Wednesday, June 8, 2011

रशियन खुशबू फिर फैलाने की कोशिश

तत्कालीन सोवियत संघ सरकार की वाणिज्यिक फर्म त्याशप्रोम एक्सपोर्ट (टीपीई) फिर एक बार भिलाई में रूसी हलचल बढ़ाने की तैयारी में। रूसी तकनीशियनों के साथ डॉक्टर व टीचर भी लाना चाहते हैं। उद्योगों से भी हाथ मिलाने का वादा। ब्लास्ट फर्नेस से लेकर प्लेट मिल तक बीएसपी की सारी यूनिट तैयार करने वाली रूसी फर्म त्याशप्रोम एक्सपोर्ट (टीपीई) फिर एक बार सक्रिय हुई है। टीपीई की तैयारी न सिर्फ प्लांट के स्तर पर अपनी सक्रियता बढ़ाने की है बल्कि भिलाई के सामाजिक माहौल में भी अपनी भागीदारी देने आगे आना चाहती है। टीपीई के स्थानीय प्रमुख अलेक्जेंडर एस. करयुकिन ने ‘भास्कर’ से खास मुलाकात में अपनी भविष्य की रणनीतियों का खुलासा किया।
श्री करयुकिन ने बताया कि वर्तमान में टीपीई न सिर्फ स्टील सेक्टर बल्कि एग्रीकल्चर सेक्टर व अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़े क्षेत्र में भी सक्रिय है। भिलाई स्टील प्लांट में फिलहाल कोक ओवन और ब्लास्ट फर्नेस के लिए रशियन एक्सपर्ट कंपनी की ओर से भेजे गए हैं। वहीं बहुत ही सीमित मात्रा में इक्विपमेंट सप्लाई का कार्य भी मिला हुआ है। कंपनी कारखाने के स्तर पर विस्तारीकरण और आधुनिकीकरण प्रोजेक्ट में ज्यादा से ज्यादा काम लेने की इच्छुक है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा वह भिलाई के सामाजिक माहौल में भी अपना योगदान देना चाहते हैं। श्री करयुकिन ने कहा कि-उन्हें यह अच्छी तरह मालूम है कि 1990 तक भिलाई में रशियंस ने काफी योगदान दिया है और हमारे टेक्निकल एक्सपर्ट के अलावा डॉक्टर व टीचर भी हुआ करते थे। इसे ध्यान में रखते हुए हाल ही में उन्होंने बीएसपी के डायरेक्टर इंचार्ज (एमएंडएच) डॉ. सुबोध हिरेन से मुलाकात की थी। जिसमें उन्होंने टीपीई की तरफ बीएसपी अस्पताल में रशियन स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स और नर्स के जॉब के लिए संभावनाओं पर चर्चा की। टीपीई की तरफ से यहां मेडिकल इक्विपमेंट सप्लाई के लिए उन्होंने संभावनाएं तलाशी हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में भी टीपीई योगदान की इच्छुक है। जिसमें बीएसपी स्कूलों और दुर्ग-भिलाई के दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में रूसी भाषा सिखाने टीचर उपलब्ध कराने के भी हम इच्छुक हैं। वहीं रूसी फिजिक्स पढ़ाने भी हम टीचर उपलब्ध कराना चाहते हैं। इस संबंध में उनकी बीएसपी के मुख्य शिक्षा अधिकारी कृष्ण कुमार सिंह से चर्चा हुई थी। वहीं दुर्ग के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में भी उनकी बात हुई है। श्री करयुकिन ने बताया कि डॉ. हिरेन और श्री सिंह से उनकी चर्चा सार्थक रही और उम्मीद है कि जल्द ही कोई नतीजा निकलेगा। श्री करयुकिन ने बताया कि वह स्थानीय सहायक उद्योगों के साथ भी मिल कर काम करने के इच्छुक हैं। यदि कोई एंसीलरी आगे आए तो वह उनके साथ वाणिज्यिक संबंध बनाना चाहेंगे।
भिलाई और रशियन का साथ पुराना
भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना मेें सोवियत संघ का सहयोग किसी से छिपा नहीं है। बहुत कम लोगों को मालू्म है कि बीएसपी मेें सोवियत संघ की तरफ से त्याशप्रोम एक्सपोर्ट की वह एकमात्र कंपनी थी,जिसने 1मिलियन टन की पहली ब्लास्ट फर्नेस से लेकर 4 मिलियन टन की आखिरी यूनिट प्लेट मिल तक की स्थापना की है। 1984 में प्लेट मिल की स्थापना के बाद अंतरर्राष्ट्रीय परिस्थितियां बदली और बीएसपी के विस्तारीकरण व आधुनिकीकरण में अन्य देशों की कंपनियां भी ठेके लेने लगी। इससे टीपीई पिछड़ते गई। फिर 1991 में सोवियत संघ के विखंडन के बाद टीपीई की भिलाई में सक्रियता धीरे-धीरे कम होती गई। अब बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर टीपीई फिर एक बार सक्रिय हुई है।

फिर मचेगी धूम ‘888’ के दौर की

सेक्टर-1 मिडिल स्कूल के 1988 बैच स्टूड़ेंट हुए एकजुट
888 यानि 1988 में पास आउट 8 वीं का बैच। सेक्टर-1 का बीएसपी प्रायमरी स्कूल मिडिल में तब्दील हुआ और इंग्लिश मीडियम होने के बाद अब यह स्कूल ईएमएमएस-1 कहलाता है। इस स्कूल का नाम और मीडियम बदला लेकिन इस स्कूल से भावनात्मक लगाव रखने वालों का यहां से आज भी रिश्ता कायम है। इस स्कूल में 1980 से 1988 तक अपनी पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट एकजुट हुए हैं। तैयारी है पुराने दोस्तों को इक_ा कर अपने स्कूल के दिनों की यादों में खो जाने की। आगे और भी कार्यक्रम होने हैं जिसमें एलुमनी का गठन के साथ ही आगामी सालों में 1988 बैच की सिल्वर जुबली मनाना भी शामिल है।
इस्पात नगरी के विभिन्न स्कूलों की एलुमनी की तर्ज पर सेक्टर-1 के इस स्कूल के पुराने स्टूडेंट भी एलुमनी बनाने सक्रिय हुए हैं। इस स्कूल से पास आउट प्रवीण जैन, नवेद आमिर खान और के एस सुशील बताते हैं-1988 के बाद 22 साल का अरसा बीत गया है और इस दौरान कभी ऐसा मौका नहीं आया कि सारे दोस्त एक साथ इक_े हुए हों। दरअसल मिडिल स्कूल के बाद पूरा बैच बिखर गया और सभी साथी अलग-अलग स्कूलों में चले गए। इसके बाद जॉब व अन्य कारणों से बहुत से साथी देश के विभिन्न हिस्सों और विदेश में भी बस गए। इस बैच के सीवी राजशेखर, आनंद साहू और हर्षदेव नाफड़े ने बताया कि हाल ही में भिलाई में रहने वाले सेक्टर-1 के 88 बैच के 10-12 साथी इक_े हुए। इसके बाद तय हुआ कि सभी की तलाश की जाए। ऐसे में बहुतों का पता मिला, कुछ के मोबाइल नंबर मिले और इस तरह धीरे-धीरे 40 से ज्यादा साथियों से संपर्क हो पाया। अभी भी मिर्जा जाहिद बेग, श्रीधर, गोपीनाथ, लालसिंह, गुरदीप सिंह, जगेंद्र बिसने व पीवी राममूर्ति सहित बहुत से ऐसे क्लासमेट हैं, जिनका संपर्क सूत्र मिल नही पाया है।
इस ग्रुप के हितेंद्र बोरकर, कमलजीत सिंह व मनहरण लाल साहू ने बताया कि सेक्टर-1 मिडिल स्कूल से 1988 में 8 वीं पास आउट स्टूडेंट 29 मई रविवार की शाम छह बजे सेक्टर-1 के पार्क में इक_ा हो रहे हैं। जहां आगे के कार्यक्रमों की रणनीति बनाई जाएगी।

आईआईटी जेईई के गिरते परिणाम खतरे की घंटी

आईआईटी की परीक्षा में इस साल दुर्ग भिलाई से बैठे - 3600 स्टूडेंट

25 मई को जारी परिणाम स्कूलवार सफल स्टूडेंट
डीपीएस भिलाई-23
डीपीएस दुर्ग-2
गुरुनानक स्कूल से.6 -2
इंदु आईटी स्कूल-1
कृष्णा पब्लिक स्कूल-6
केंद्रीय विद्यालय दुर्ग-1
मां शारदा पब्लिक स्कूल-1
एमजीएम से.6 -4
शंकराचार्य हुडको- 2
शिवा पब्लिक स्कूल-2
बीएसपी से-10 व से.4-14
स्वामी विवेकानंद से.2-1
विश्वदीप दुर्ग-1
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सफल स्टूडेंट कुल-60
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बीएसपी के स्कूलों से आईआईटी चयनित
वर्ष स्टूडेंट
1984 29
1985 21
1986 23
1987 27
1988 25
1989 17
1990 19
1991 16
1992 17
1993 13
1994 15
1995 25
1996 31
1997 29
1998 28
1999 27
2000 24
2001 23
2002 24
2003 28
2004 18
2005 14
2006 15
2007 19
2008 05
2009 09
2010 08
2011 14
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वास्तविकता कुछ और है
इस साल के आईआईटी जेईई परिणाम को देखकर भले ही कुछ लोग खुश हो सकते हैं कि पहली बार इतने ज्यादा स्कूलों से भिलाई-दुर्ग के स्टूडेंट सफल हुए हैं लेकिन वास्तविकता कुछ और है। इन आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो यह एजुकेशन हब कहलाने वाले भिलाई के लिए खतरे की घंटी है। हर सफल स्टूडेंट को सिर्फ अपना बताने वाले कोचिंग और ट्यूशन के बढ़ते जाल के बीच आईआईटी एक्जाम एक फैशन की तरह हो गए हैं। जितने स्टूडेंट परीक्षा देने बैठ रहे हैं उसके मुकाबले सफलता का प्रतिशत बेहद कम है। शिक्षाविद् भी इस गिरावट से चिंतित हैं।
हैरान कर देने वाले आंकड़े
आईआईटी के ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जाम (जेईई) में देश भर से इस साल कुल 4 लाख 68 हजार 240 स्टूडेंट शामिल हुए। जिसमें 25 मई को जारी परिणाम अनुसार कुल 13 हजार 602 (2.9 प्रतिशत) को सफलता मिली। एजुकेशन हब या सेंटर ऑफ एक्सीलेंस कहलाने वाले भिलाई में (दुर्ग सहित) इस साल 3600 स्टूडेंट इस परीक्षा में शामिल हुए जिसमें महज 60 (1.6 प्रतिशत) को सफलता मिली। इसके विपरीत दो दशक पुराने रिकार्ड देखें तो 1984 में देश भर के 30 हजार प्रतिभागियों के बीच कोचिंग के जंजाल से मुक्त अकेले भिलाई से ही 29 स्टूडेंट सफल हुए थे। आज के भिलाई के गिरते आईआईटी परिणाम के मुकाबले पुणे जैसे शहर में इस साल 5 हजार स्टूडेंट शामिल हुए जिनमेें से 150 सफल रहे।
परीक्षार्थी बढ़े लेकिन सफलता घटी
आईआईटी की परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स की तादाद दिनों दिन बढ़ती जा रही है। जहां 1998 के पहले सिर्फ 4 सेंटरों में यह परीक्षा होती थी और लगभग 2 हजार बच्चे शामिल होते थे वहीं अब दुर्ग-भिलाई के 8 सेंटरों में यह परीक्षा होती है और 3600 स्टूडेंट बैठते हैं। आने वाले सालों में सेंटर और परीक्षार्थियों की तादाद में और इजाफा होने की संभावनाएं जताई जा रही है। स्टूडेंट की बढ़ती तादाद और कोचिंग सेंटरों के बढ़ते दावों के बीच सफल प्रतियोगियों की तादाद भी इसी अनुपात में बढऩी चाहिए थी लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं रहा है। हालत यह है कि 100 के अंदर सिर्फ एक स्टूडेंट का नाम आया है और 1000 के अंदर सिर्फ 4 स्टूडेंट हैं। इसके विपरीत 90 के दशक में ऑल इंडिया रैंकिंग में टॉप 10 में ज्यादातर स्टूडेंट भिलाई के होते थे।
क्या फैशन हो गया है आईआईटी?
जिस तरह आईआईटी में बैठने वाले स्टूडेंट की तादाद बढ़ी है, उससे साफ है कि समाज में आईआईटी-जेईई को लेकर क्रेज सा बना दिया गया है। इंडस्ट्रियल टाउनशिप मेें रहने वाले हर पालक का सपना होता है उनका बच्चा इंजीनियर बनें। बाजार इसका फायदा उठाना खूब जानता है लिहाजा बेतहाशा कोचिंग खुल गए हैं लेकिन इसके अनुपात में सफलता की दर गिरती जा रही है। पहले जहां राष्ट्रीय स्तर पर सफल 3000 स्टूडेंट की सूची जारी होती थी और उसमें भिलाई (दुर्ग सहित) से 20 से 30 स्टूडेंट सफलता दर्ज करते थे। इसके विपरीत आज 10 हजार का चयन हो रहा है और भिलाई के स्टूडेंट 1000 के अंदर कम और 5 हजार से 10 हजार के बीच बड़ी मुश्किल से रैंकिंग हासिल कर पा रहे हैं। ज्यादातर असफल स्टूडेंट और उनके पालकों की धारणा यह रहती है कि अगर आईआईटी में नहीं लगा तो एआई ट्रिपल ई या फिर पीईटी में अच्छा परफार्म कर लेंगे।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इतने कंपटीशन के माहौल में 60 बच्चों का चयन होना संतोषजनक तो है लेकिन इसमें और सुधार की जरूरत है। भिलाई के स्टूडेंट अगर सोचें कि उन्हें कोई एजेंसी, कोई संस्था या कोई व्यक्ति ज्यादा बेहतर हेल्प कर सकता है तो इसमें सफलता कम भ्रम ज्यादा है। स्टूडेंट को खुद पर भरोसा रखना चाहिए और पालक अपने बच्चों के साथ खुद तय करें कि क्या उनका बच्चा आईआईटी की परीक्षा में बैठने योग्य है अथवा नहीं? बेहतर रिजल्ट के लिए और अधिक समर्पण की जरूरत है।
कृष्ण कुमार सिंह, मुख्य शिक्षा अधिकारी, बीएसपी
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आज जब नर्सरी प्रवेश को मिशन आईआईटी बोला जा रहा है तो इसमें क्रेज ज्यादा और गंभीरता कम है। हर पालक अपने बच्चे को आईआईटी में भेजने का ख्वाब पाल रहा है इससे परीक्षार्थी बढ़ रहे हैं और कोचिंग भी खूब फल-फूल रहे हैं लेकिन इसके अनुपात में सफलता की दर गिर रही है। स्कूल की पढ़ाई और खुद की तैयारी पर पालक और स्टूडेंट का ध्यान कम हो गया है। अफसोस की बात है कि भिलाई से आईआईटी का परिणाम ढलान की ओर जा रहा है।
आरसी सिंह, सेवानिवृत्त मुख्य शिक्षा अधिकारी बीएसपी
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हम अपने स्कूल के परिणाम से संतुष्ट हैं। स्कूल में जो माहौल दिया जा रहा है उसकी वजह से सकारात्मक परिणाम आ रहा है। आज स्टूडेंट अपना सेल्फ एप्लीकेशन,सेल्फ मोटिवेशन और खुद की रूचि के साथ यह सफलता दर्ज कर रहे है। बाहर के बारे में मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना। हां, कहीं जाने से सफलता मिल जाएगी, यह दौर चल पड़ा है और फैशन सा हो गया। इससे फायदे को लेकर मुझे डाउट है। इसके चलते कई बार स्टूडेंट प्रेशर में भी आ जाते है। जरूरत इस बात की है कि स्टूडेंट अपने स्कूल में रेगुलर, सिलेबस ठीक से कवर करे और खुद पर भरोसा रखे।
एमपी यादव, प्राचार्य डीपीएस, भिलाई
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आनंद के. आईआईटी में देश भर में 47 वां

रिसाली के कल्पतरू अपार्टमेंट में 25 मई की सुबह फिर एक बार खुशियां लेकर आई। पिछले साल यहां टॉप फ्लोर पर रहने वाले विपुल सिंह ने आईआईटी में राष्ट्रीय स्तर पर 5 वां और समूचे खडक़पुर रीजन में पहला स्थान हासिल किया था। तारीख वही है बस साल भर बदला है और विपुल के घर के ठीक नीचे दूसरी मंजिल पर रहने वाले आनंद के. ने इस बार आईआईटी में देश भर में 47 वां और समूचे खडक़पुर रीजन में पहला स्थान हासिल कर फिर यहां खुशियां बिखेर दी है।
इस अपार्टमेंट में ज्यादातर बीएसपी व निजी कंपनियों में कार्यरत अफसरों के घर हैं। एनएमडीसी बचेली में असिस्टेेंट जनरल मैनेजर एन केशवन नंबुदिरी भिलाई में बेहतरीन पढ़ाई का माहौल देखते हुए दो साल पहले परिवार सहित इसी अपार्टमेंट में रहने आ गए थे। उनके दोनों बेटे आनंद के. और अरविंद के. डीपीएस भिलाई में पढ़ रहे हैं। बुधवार की सुबह से देर रात तक इस घर में बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। कोई मोबाइल फोन पर बधाई दे रहा था तो कोई गुलदस्ते लेकर आनंद व उसके परिजनों को बधाई देने पहुंच रहा था। इन बधाइयों के बीच आनंद के पिता के चेहरे पर गंभीरता है। वह कहते हैं आनंद की असली परीक्षा तो अब शुरू हुई है। उसके भविष्य की दिशा तो अब तय होगी। खडक़पुर रीजन के इस साल के टॉपर के घर ‘भास्कर’ ने कुछ पल बिताए।
इंटरनेट नहीं, दोस्त ने दी खबर
श्री नंबुदिरी को मालूम था कि हर साल 25 मई को आईआईटी का परिणाम आ जाता है लिहाजा वह एनएमडीसी से अपनी छुट्टी लेकर 24 मई को ही भिलाई पहुंच गए थे। बुधवार की सुबह रोज की तरह 7 बजे आनंद की नींद खुली। आनंद की मां आशादेवी बताती हैं कि हमें किसी कोचिंग संस्थान से फोन आ चुका था कि परिणाम 8:30 बजे जारी होगा। चूंकि इस घर में हाल ही में शिफ्ट हुए हैं, इसलिए यहां इंटरनेट नहीं है। ऐसे में आनंद के किसी दोस्त ने फोन पर यह खुशखबरी दी। आनंद के मुताबिक उसे 50 के अंदर रैंकिंग की तो पूरी उम्मीद थी, इसलिए कहीं और कन्फर्म करने की कोई जरूरत नहीं पड़ी।
जमकर बजाया की बोर्ड
आनंद पिछले दो साल से आईआईटी की तैयारी में गंभीरता से जुटा हुआ था। आनंद के पिता श्री नंबुदिरी बताते हैं कि वह कभी गिटार बजाया करते थे और उनका बेटा की-बोर्ड बेहद शौक से बजाता है। लेकिन आईआईटी की तैयारी के लिए पिछले दो साल से उसने की-बोर्ड बहुत कम बजाया था। आज जब रिजल्ट आया, उसके बाद उसने सबसे पहले माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लिए और फिर भगवान के आगे नतमस्तक हुआ। इसके बाद उसने की-बोर्ड खोला और जम कर बजाया। आनंद ने बताया कि उसे वेस्टर्न म्यूजिक ज्यादा पसंद है और माइकल जैक्सन व लिंकेन पार्क को वह अपना आइडियल मानता है।
इतना मीठा....नहीं..नहीं
सफलता की खबर मिलने के बाद मोबाइल पर दी जाने वाली बधाई तो ठीक है लेकिन घर पहुंचने वाले लोग आनंद को मिठाई खिलाना नहीं भूल रहे। आनंद इससे थोड़ा सा परेशान दिखा। ‘भास्कर’ से आनंद ने कहा-इतनी मिठाई मैनें कभी नहीं खाई। मैनें अपने माता-पिता का मुंह मीठा किया और उन्होंने व भाई ने मुझे मिठाई खिलाई लेकिन इसके बाद अब और मिठाई....इतना मीठा मैं नहीं खा सकूंगा।
भरपूर नींद और भरपूर पढ़ाई
आनंद ने अपनी सफलता का राज साझा करते हुए बताया कि उसे दिन में सोने की आदत नहीं है और रात में वह अनिवार्य रूप से 10:30 से सुबह 7 बजे तक की भरपूर नींद लेता है। उसने कभी इस बात का टेंशन नहीं लिया कि देर रात तक पढऩा है या फिर बिल्कुल सुबह उठ कर याद करना है। पूरे दो साल स्कूल और कोचिंग के अलावा घर में भी उसने पढ़ाई की लेकिन समय का सही नियोजन कर उसने बिना किसी तनाव के अपना कोर्स पूरा किया और रिवीजन भी।
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Monday, June 6, 2011

दिल्ली के भरोसे आंदोलन खत्म, नीचे उतरे युवा

नई दिल्ली में सारे टीए प्रशिक्षितों को नौकरी देने के संबंध में नीति बनाने के आश्वासन के बाद बुधवार की रात 11:30 बजे आंदोलनकारी सेक्टर-9 की पानी टंकी से उतर गए। इसके पहले अस्पताल के कान्फ्रैंस हॉल में 3:30 घंटे तक चली मैराथन बैठक में कई बार गतिरोध की स्थिति आई, अंतत: कार्पोरेट ऑफिस से आए अफसर के आश्वासन के बाद आंदोलनकारी पानी टंकी से नीचे उतरने राजी हो गए।
बीएसपी में ट्रेड अप्रेंटिसशिप (टीए) का प्रशिक्षण पाए 1998 बैच के युवा आंदोलनकारी 12 अप्रैल की शाम से सेक्टर-9 अस्पताल की पानी टंकी पर चढ़े हुए थे इन लोगों की मांग लिखित तौर पर एनएमआर नियुक्ति पत्र देने की थी। आंदोलन को समाप्त करवाने 24 घंटे में मैनेजमेंट और नई दिल्ली स्तर पर कई कोशिशें हुई।
अंतत: बुधवार की शाम 7:30 बजे आंदोलनकारियों से बातचीत की पहल हुई। जिसमें सेल के ईडी पीएंडए बी. ढल, बीएसपी के ईडी पीएंडए एसके शर्मा, जीएम पर्सनल इंचार्ज राजकुमार नरूला, पूर्व विधायक अरुण वोरा, कलेक्टर ठाकुर रामसिंह व अन्य लोग शामिल हुए।
बातचीत के दौरान कई बार गतिरोध की स्थिति आई। अंतत: सेल के ईडी श्री ढल ने आश्वस्त किया कि नई दिल्ली में कार्पोरेट स्तर पर इस संबंध में नीति बनाने पहल की जाएगी जिससे इन टीए प्रशिक्षितों को नौकरी दी जा सके। बैठक में मौजूद पूर्व विधायक अरूण वोरा की सहमति के बाद अंतत: आंदोलनकारी टंकी से नीचे उतरने राजी हो गए। बैठक से बाहर निकले आंदोलन के नेतृत्वकर्ता कुलदीप सिंह व संतोष सिंह ने साथियों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया।अंतत: 11:30 बजे रात को सारे आंदोलनकारी पानी टंकी से नीचे उतर आए।
इससे पहले दोपहर में आंदोलन को समर्थन देने आए कांग्रेस नेता अमित जोगी ने पानी टंकी के नीचे घोषणा की कि यदि मैनेजमेंट इनकी मांग नहीं मानती है तो भिलाई स्टील प्लांट में काम बंद करवा दिया जाएगा। इस आंदोलन की वजह से बुधवार की दोपहर तीन युवाओं की तबीयत बिगड़ गई। बैकुंठधाम के जितेंद्र नारंग, मोरिद के कृष्ण कुमार और खुर्सीपार के गुलाब कुमार को ऊपर टंकी पर ही छांव कर लिटाया गया और चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई गई।
आंदोलन स्थल पर दिनभर गहमा-गहमी रही। शाम को बीएसपी के जनरल मैनेजर इंचार्ज पर्सनल राजकुमार नरूला ने मीडिया के समक्ष वस्तुस्थिति रखते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की वजह से बीएसपी में सिर्फ खुली भर्ती के माध्यम से ही रोजगार संभव है, वहीं आंदोलनकारियों को बीती रात एमडी विनोद अरोरा की मौजूदगी में तीन विकल्प दिए गए हैं। इसमें बीएसपी की विस्तारीकरण परियोजना में एचएससीएल के माध्यम से डेली रेट में काम दिलाने, को-आपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से काम दिलाने और खुली भर्ती के दौरान आवेदन की स्थिति में इंटरव्यू के दौरान प्राथमिकता देने का आश्वासन दिया गया है। श्री नरूला ने स्पष्ट किया कि बीएसपी में टीए प्रशिक्षण ट्रेड अप्रेंटिसशिप अधिनियम 1961 के प्रावधान के तहत दिया जाता है, जिसमें प्रशिक्षण के उपरांत युवाओं को नौकरी पर रखने की बाध्यता कतई नहीं है।
प्रबंधन जुटा था व्यवस्था बनाने में
टीए आंदोलन को देखते हुए बीएसपी नगर सेवाएं विभाग बुधवार को सक्रिय रहा। सेक्टर-9 अस्पताल की सभी पानी टंकियों की एहतियातन जांच की गई और चारों तरफ रोशनी की व्यवस्था की गई। गतिरोध बरकरार रहने की स्थिति में संभावित स्थिति को देखते हुए मैनेजमेंट ने पानी टंकी के चारों ओर रेत बिछाने की योजना भी बना ली थी।
सीएम ने किया हवाई मुआयना
बुधवार की शाम एक कार्यक्रम में शामिल होने आए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का हैलीकॉप्टर भी पानी टंकी के ऊपर से गुजरा। इससे कुछ देर के लिए आंदोलनकारियों में चर्चा थी कि मुख्यमंत्री उनके आंदोलन का हवाई मुआयना कर रहे हैं।
आंदोलनकारियों को उम्मीद बंधी
टीए आंदोलकारियों को इस बैठक के बाद उम्मीद बंधी है कि नई दिल्ली में इस बार सार्थक हल जरूर निकलेगा। पिछले 32 घंटे तक उपर रहे अपने साथियों के लिए नीचे आंदोलनकारी युवाओं ने हर संभव सहयोग व समर्थन दिया। वक्त-वक्त पर इन युवाओं के लिए खाने की व्यवस्था की गई साथ ही ग्लूकोज व पानी भी भिजवाया गया।
टीओटी लड़ रहे 13 साल से हक की लड़ाई
एक तरफ टीए प्रशिक्षितों की बीएसपी में नौकरी के लिए जद्दोजहद चल रही है तो दूसरी तरफ टेक्नीकल कम ऑपरेटर (टीओटी) की नियुक्ति से वंचित 88 युवा भी 13 साल से नौकरी की बाट जोह रहे हैं। इन प्रभावित युवाओं में 30 भिलाई-दुर्ग के और शेष छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों से हैं। इस वजह से कई बार यह युवा पूरी तरह संगठित भी नहीं हो पाते हैं। आंदोलन इन युवाओं ने भी किया और अभी भी दिल्ली कूच का सिलसिला जारी है। इसके बावजूद अभी तक इन्हें कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है।
क्या है टीओटी का मामला
भिलाई स्टील प्लांट में आईआईटी से प्रशिक्षित और बीएसपी पास युवाओं को 1996 तक रोजगार दफ्तर के माध्यम से बुलावा पत्र भेज टीओटी में निश्चित प्रक्रिया के बाद नियुक्त किया जाता था। इसी के तहत अगस्त 1996 मेें टीओटी के लिए रोजगार दफ्तर के माध्यम से नाम मंगाए गए और प्रक्रिया के तहत 18 जनवरी 1997 को लिखित परीक्षा हुई। इनका साक्षात्कार दिसंबर 1997 को हुआ और चयनित युवाओं के 4 समूह बनाए गए। जिनका स्वास्थ्य परीक्षण क्रमश: जनवरी, फरवरी, जून एवं अक्टूबर 1998 को हुआ। इसके बाद पहले समूह के 119 को मार्च 1998, दूसरे समूह के 231 को जुलाई 1998 और तीसरे समूह के 113 की नियुक्ति मार्च 2001 को हुई। चौथे समूह में कुल 138 उम्मीदवार थे। जिनमें से 50 को मार्च 2003 में नियुक्ति दी गई और शेष 88 उम्मीदवार आज तक भटकर रहे हैं।
अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिला
टीओटी के युवाओं ने बड़े पैमाने पर आंदोलन अक्टूबर 2000 से शुरू किया था। लगातार आंदोलनों के चलते 2001 और 2003 में टीओटी में भर्तियां हुई। इसके बावजूद 50 युवा नौकरी से वंचित रह गए। इन युवाओं ने 2004 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दस्तक दी। जहां मामला 6 साल तक चलता रहा। इस बीच कथित तौर पर बीएसपी के कुछ अफसरों के कहने पर याचिकाकर्ताओं ने 12 जनवरी 2010 को मामला इस उम्मीद पर वापस ले लिया कि उन्हें नौकरी मिल जाएगी लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। इस बीच सेल-बीएसपी से लेकर इस्पात मंत्रालय तक कई फेरबदल हो गए लेकिन अभी तक इन्हें आश्वासन ही मिलता रहा।
हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद नियुक्तियां कैसे..?
टीओटी बैच के युवा बीएसपी मैनेजमेंट के रवैये से उद्वेलित हैं। इन लोगों का कहना है कि बीएसपी मैनेजेंट जनवरी 2004 के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस निर्देश का हवाला देता है जिसमें नियुक्ति सिर्फ खुली भर्ती और रोजगार कार्यालय के माध्यम से करने कहा गया है। इन युवाओं के मुताबिक इसके बावजूद मार्च 04 में 50 टीओटी और 84 टीए को एसीटी के पद पर नियमित किया गया। वहीं क्रीड़ा एवं मनोरंजन विभाग में 40 लोगों को टीओटी का स्टेटस देकर मार्च 07 में नियमित किया गया। टीओटी युवाओं का सवाल है कि मैनेजमेंट उनके मामले में जब हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला देता है तो इन मामलों में कैसे नियुक्ति हो गई। टीओटी युवाओं में अब भी उम्मीद बरकरार है कि नई दिल्ली में उनके साथ इंसाफ होगा।
सीधे इंटरव्यू से नियुक्ति की मांग भी उठी
टीए आंदोलनकारियों में दल्ली राजहरा के युवाओं का समूह भिलाई के कुछ साथियों और संयुक्त खदान मजदूर संघ के महासचिव कमलजीत सिंह मान के साथ 14 अप्रैल की दोपहर इस्पात भवन में एमडी वीके अरोरा से मिला। बैठक में शामिल युवाओं के मुताबिक डेढ़ घंटे की चर्चा के दौरान मैनेजमेंट ने अपनी मजबूरी जाहिर कर दी वहीं यह बात भी निकल कर आई कि विस्तारीकरण परियोजना में 1000 पदों पर खुली भर्ती की जानी है, जिसमें टीए बैच के लिए मैनेजमेंट की ओर से आयुसीमा में छूट का प्रावधान रखा जा सकता है। इस मुद्दे पर दोनों पक्षों में चर्चा हुई,जिसमें आंदोलनकारियों ने यह मांग उठाई की उन्हें आयु सीमा में छूट के साथ सीधे इंटरव्यू के माध्यम से लिया जाए। युवाओं के मुताबिक एमडी श्री अरोरा ने आश्वस्त किया है कि दिल्ली में इस संबंध में चर्चा की जाएगी। युवाओं ने बताया कि श्री मान भी सोमवार 18 अप्रैल को दिल्ली जाकर इस संबंध में प्रस्ताव कार्पोरेट ऑफिस में रखेंगे।

गिरी को बर्दाश्त नहीं हुई उपेक्षा
जिस युवक की वजह से तीन दिन भिलाई में बीएसपी-पुलिस व जिला प्रशासन को हलाकान होना पड़ा, वह युवक पवन गिरी अब पूरी तरह स्वस्थ्य है। सिरसाकलां निवासी पवन गिरी वर्तमान में निगम में सफाई कर्मी के रूप में दैनिक वेतनभोगी के तौर पर काम करता है। शादी-शुदा पवन गिरी ने जिन हालातों में 10 अप्रैल को जान देने की कोशिश की वह वर्तमान सामाजिक ढांचे की विसंगति को बयान करती है। सिरसाकलां निवासी पवन 1997 के टीए बैच का प्रशिक्षण प्राप्त युवा है। पवन के बैच में 173 लोगों ने एक साथ ट्रेनिंग की लेकिन बीएसपी में नौकरी मिली सिर्फ 127 को। शेष आज भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं। पवन की मानें तो उसके बैच का ही एक साथी नौकरी लगने के बाद संपन्नता का जीवन बिता रहा है। यह साथी रविवार 10 अप्रैल की सुबह अपनी कार से गुजर रहा था और उसने साइकिल से जाते गिरी को रोका और व्यंग्यात्मक लहजे में पूछ दिया कि तुम लोगों की संडे की बैठक में क्या हुआ..? इससे गिरी को बुरा लगा और उसने अपने परिवार को ऐसा सुविधा संपन्न जीवन न दे पाने के मलाल के साथ जान देने का फैसला कर लिया। हालांकि सभी की तत्परता से गिरी की जान बच गई है। सेक्टर-9 अस्पताल से छुट्टी के बाद उसके साथियों ने भरोसा दिलाया है कि हालात जरूर बदलेंगे। इसी भरोसे के सहारे गिरी अब अपने परिवार में लौट गया है।

अन्न साक्षात ईश्वर

शादी हो या कोई पार्टी, हम हिंदुस्तानियों के लिए पूरी थाली भर लेना और थोड़ा खा कर बाकी फेंक देना अब आम बात हो गई है। दावत कैसी भी हो, हम खाना तो खाते ही हैं साथ ही मेजबान द्वारा रखवाई गई सारी डिश को बहुत ज्यादा-ज्यादा लेकर उसमें से थोड़ा सा चखना भी चाहते हैं और आखिर में ठंडा-गरम और पान के साथ विदाई हो तो क्या बात है।

खाने की ऐसी बेकद्री, वह भी ऐसे देश में जहां आज भी कुपोषण और अनाज आखिरी तबके तक नहीं पहुंचने की समस्या बरकरार है। इस बेकद्री के माहौल में हम अपने धर्मग्रंथों को भी भूल गए हैं, जिनमें भोजन को लेकर न सिर्फ आचार संहिता है, बल्कि भोजन के महत्व को भी साफ तौर पर बताया गया है। लोग नहीं चेते, इसलिए केंद्र सरकार पड़ोसी मुल्क की तर्ज पर ‘वन डिश’ कानून बनाने पर विचार कर रही है। जिसमें सामूहिक दावतों में सिर्फ एक तरह की डिश परोसना अनिवार्य किया जाएगा।

इस मौसम मेें अगले दो महीने शादियों की भरमार है। कुछ मुहूर्त तो ऐसे हैं जो दुर्लभ हैं, लिहाजा इस मुहूर्त में हर कोई अपने बेटे-बेटियों की शादियां करना चाह रहा है। स्वाभाविक है कि एक ही दिन में एक ही परिवार को औसतन 5-6 से ज्यादा आमंत्रण मिले। हमारी कोशिश होगी कि हम हर जगह अपनी उपस्थिति दें लेकिन हर जगह भोजन भी करें ऐसा संभव नहीं। फिर भी मेजबान तो अपने मेहमानों के लिहाज से आज के दौर में जरूरत से ज्यादा ही भोजन पकवाएगा। ऐसे में शादियों के इस मौसम में दूसरे दिन सुबह का नजारा जरूर देखिए जहां औसतन 100 से 150 लोगों का खाना बरबाद होकर खुले में पड़ा रहता है। डिस्पोजल ग्लास और कटोरियां भी खुले में पड़ी आपको मिल जाएंगी जो घातक प्लास्टिक की बनीं है। अब किराया भंडार वालों ने भी स्टेनलेस स्टील के ग्लास-कटोरियों को शादी-पार्टी में देना बंद कर दिया है। इन सबका दबाव रहता है कि डिस्पोजल खरीदो और इस्तेमाल के बाद फेंक दो। इस पर अभी तक किसी शासन-प्रशासन ने नियम बनाने और कार्रवाई करने की तरफ ध्यान नहीं दिया है। जरा गौर कीजिए, हम जितने डिस्पोजल ग्लास और कटोरी को इस्तेमाल कर फेंक देते हैं, वह इस धरती पर बोझ नहीं तो और क्या है। आखिर हम कब चेतेंगे...?


वेदों में अन्न को साक्षात ईश्वर मानते हुए ‘अन्नम वै ब्रह्म’ लिखा गया है। वैदिक संस्कृति में भोजन मंत्र का प्रावधान है। जिसका सामूहिक रूप से पाठ कर भोजन ग्रहण किया जाता है। हमारे यहां भोजन के दौरान ‘सहनौ भुनक्तु’ कहा जाता है, इसके पीछे भावना यह है कि मेरे साथ और मेरे बाद वाला भूखा न रहे। वेदों मे ‘अन्नम बहु कुर्वीत’ कहा गया है, यानि अन्न अधिक से अधिक उपजाइए। कृषि और ऋषि प्रधान देश में अगर हम अन्न का महत्व नहीं समझेंगे तो भविष्य में प्रकृति खुद हमें समझा देगी।
आचार्य महेशचंद्र शर्मा, वैदिक संस्कृति के जानकार

कुरआन-हदीस ने चेताया है खाने की बरबादी से
कुरआन शरीफ के 8 वें पारे की रूकू-4 में कहा गया है-‘खाओ उसी में से जो अल्लाह ने तुम्हे रोजी दी है और शैतान के कदमों पर न चलो’। हदीस-22 इब्ने माजह में हजरत आयशा (रदि.) से रिवायत है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद घर के अंदर तशरीफ लाए तो रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा पड़ा हुआ देखकर उसे उठाया और पोछ कर खा लिया। उन्होंने अपनी बीवी आयशा से फरमाया कि ये चीज (रोटी)जब किसी कौम से रूठी है तो लौट कर नहीं आई है। इस्लाम में हर हाल में रोटी के एहतराम का हुक्म है। हजरत मोहम्मद ने रोटी खाने के आदाब (तरीके) भी बताए हैं। इसे न मानते हुए अगर हम खाने की बेकद्री करते हैं तो यह हमारी बदकिस्मती होगी।
हाफिज मक्सूद खान, मदरसा रूआबांधा

बाइबिल ने रोका है पेटूपन से
बाइबिल में अन्न के सम्मान का कई जगह उल्लेख है। एक आयत में कहा गया है कि हम खाने का लालच (पेटूपन) बिल्कुल न करें। हमारी जितनी आवश्यकता है, हम उतना ही खाएं। इसी तरह प्रेरितों के काम अध्याय (6-2)में कहा गया है कि हम परमेश्वर का वचन छोडक़र खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें, यह ठीक नहीं। इसाई समुदाय मे आय का दसवां भाग परमेश्वर के काम (जनकल्याण) में खर्च करने का विधान है। जिससे दीन-दुखियों की सेवा हो। हम शादी-पार्टियों में अन्न बरबाद करके खुद के साथ-साथ प्रकृति का भी नुकसान कर रहे हैं। इस पर गंभीरता से सोचना होगा।
रेव्ह. राकेश प्रकाश पास्टर मेनोनाइट चर्च, हास्पिटल सेक्टर

गुरुओं ने बताया है सत्कार के साथ खाना
सिक्खों में गुरु अंगद देवजी से लंगर की प्रथा नियमित हुई। जिसमें स्त्री-पुरुष को समान अधिकार है। सिक्खों में पहले पंगत फिर संगत का प्रावधान है। जिसमें पंगत में एक साथ बैठकर (प्रसाद मानते हुए)भोजन करने और झूठन नहीं छोडऩे का निर्देश है। आज के दौर में भोजन बरबाद करने की कुवृत्ति को रोकने जनजागरण जरूरी है।
दलजीत सिंग, गुरू गोविंद सिंग स्टडी सर्किल भिलाई

अन्न का एक दाना तैयार होता है 4 माह में
एक अन्न का दाना तैयार होने मे चार महिने का समय, श्रम और पानी लगता है। इतनी मेहनत से तैयार दानों को हम बेदर्दी से फेंक देते हैं। इस दिशा में सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। हम बफे सिस्टम का दुरूपयोग कर रहे हैं। खाना जरूरत से ज्यादा लेने के बाद उसे फेंक कर हम गरीबों के मुंह का निवाला भी छीन रहे हैं। आज कृषि उत्पादन और जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ा रहा है। अगर हम ऐसे ही अन्न फेंकते रहे तो जल संकट की तरह जल्द ही अन्न संकट का सामना करना पड़ेगा।
डॉ. आरती दीवान, गृहविज्ञान विभागाध्यक्ष, शासकीय इंदिरा गांधी कॉलेज वैशाली नगर

बीएसपी की कमान फिर से भिलाइयंस को

भिलाई। पंकज गौतम के रूप में भिलाईवासियों को फिर एक बार अपने ही बीच का एक नेतृत्वकर्ता मिल गया है। तीन दिन पहले ही ईडी वक्र्स के तौर पर जवाबदारी संभालने वाले श्री गौतम को भिलाई स्टील प्लांट का नया ईडी (इंचार्ज) बनाया गया है। पिछले 5 साल में श्री गौतम तीसरे ऐसे भिलाइयंस हैं, जिन्हें अपने ही प्लांट में नेतृत्व का अवसर मिला है।
भिलाई स्टील प्लांट में 90 के दशक में डॉ. ईआरसी शेखर के बाद करीब डेढ़ दशक तक ‘सेल’ की दूसरी ईकाई के एक्जीक्युटिव डायरेक्टरों को पदोन्नत कर भिलाई का मुखिया बनाया जाता रहा। पिछले 5 साल में यह परंपरा टूटी। 31 जुलाई 2006 को राजेंद्र प्रसाद सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद राघवचारी रामराजु को बीएसपी की कमान सौंपी गई थी। श्री रामराजु ने अपने कैरियर की शुरूआत भिलाई से ही की थी और वह एमडी के पद से भिलाई से ही रिटायर हुए। 30 मार्च 2010 को श्री रामराजु के रिटायरमेंट के बाद तत्कालीन ईडी वक्र्स अशोक कुमार को प्रभारी एमडी बनाया गया लेकिन वह भी एक माह में रिटायर हो गए। उनके बाद एक माह तक एक्जीक्युटिव डायरेक्टरों की कमेटी ने प्लांट का संचालन किया। फिर भिलाई से ही अपनी सेवा की शुरूआत करने वाले और कार्पोरेट ऑफिस से स्थानांतरित होकर लौटे विनोद कुमार अरोरा को ईडी प्रोजेक्ट के साथ-साथ प्रभारी एमडी का दायित्व सौंपा गया। अब एक और भिलाइयंस पंकज गौतम को नेतृत्व सौंपा गया है।
रायपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स में बीई और एएमआईआईएम करने के बाद श्री गौतम ने वर्ष 1974 में भिलाई इस्पात संयंत्र की इलेक्ट्रिकल रिपेयर शॉप में बतौर जूनियर इंजीनियर ज्वॉइन किया। विभिन्न विभागों में अपनी क्षमता का लोहा मनवाते हुए श्री गौतम अप्रैल 2009 में महाप्रबंधक (परियोजनाएं) बनें। पांच महीने बाद सितंबर 2009 में वे कार्यपालक निदेशक के पद पर आसीन हुए और सेलम इस्पात संयंत्र विशाखापट्टनम का नेतृत्व उन्हें दिया गया। सेलम में श्री गौतम ने 2000 करोड़ रूपए के परियोजना कार्यों को समय से पूरा करते हुए अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया।