Sunday, September 16, 2012

भिलाई की 'मुस्कान' से लिया है अनुराग ने 'बरफी' का आइडिया

  फिल्म के ज्यादातर फ्रेम में नजर आता है अनुराग का भिलाई


न्यू बसंत टाकिज  में बर्फी देखने उमड़े दर्शक 14 सितम्बर 2012
अनुराग बसु कोई फिल्म बनाएं और उसमें उनका शहर भिलाई नजर न आए ऐसा हो नहीं सकता। शुक्रवार को रिलीज हुई अनुराग की फिल्म 'बरफी' को क्रिटिक और दर्शकों दोनों की तारीफ मिल रही है। बहुत कम लोगों को मालूम है कि अनुराग ने अपनी 'बरफी' का बेसिक आइडिया भिलाई के ही एक मानसिक विकलांग स्कूल से लिया है। इसके अलावा भी फिल्म में कई ऐसे फ्रेम हैं, जहां अनुराग और उनका भिलाई जीवंत हो उठता है।
अनुराग की 'बरफी' एक जिंदादिल मूक-बधिर युवक की कहानी है। फिल्म भले ही दार्जिलिंग और कोलकाता के माहौल में शूट की गई है लेकिन उसका मूल भिलाई से उठाया गया है। सेक्टर-2 में बीएसपी की प्राथमिक शाला क्रमांक 19 में मुस्कान मानसिक विकलांग विद्यालय एवं पुनर्वास केंद्र चल रहा है। इस स्कूल से जुड़े ज्यादातर सदस्य अनुराग बसु व उनके परिवार के करीबी रहे हैं। अपने पिता व भिलाई के प्रख्यात रंगकर्मी सुब्रत बोस के गुजरने के बाद अक्टूबर 07 में भिलाई आए अनुराग ने खास तौर पर इस स्कूल का दौरा किया था। इसके बाद सितंबर 2010 में 'सुरता सुबरत के' आयोजन में भिलाई आए अनुराग ने इस स्कूल के बच्चों के साथ कुछ वक्त बिताया था। इस स्कूल के संचालकों में से एक बीएसपी के अफसर अजयकांत भट्ट ने बताया कि उस वक्त अनुराग ने हल्का सा हिंट दिया था कि वह इन बच्चों की गतिविधियों को अपने जहन में बसा कर ले जा रहे हैं।

आज जब फिल्म रिलीज हुई तो 'मुस्कान' संस्था से परिचित ज्यादातर लोगों को भी हैरत हुई कि अनुराग ने अपनी फिल्म में मंदबुद्धि किरदार निभा रही झिलमिल (प्रियंका चोपड़ा) के स्कूल का नाम भी 'मुस्कान' ही रखा है। इसके अलावा शुरूआती दृश्य में जब बरफी (रणबीर कपूर)  साइकिल में मरफी का रेडियो लटकाए जाते रहता है तो विविध भारती से फरमाइश में अनुराग ने भिलाई और रायपुर से अपने दोस्तों के नाम बुलवाए हैं। बसु परिवार के करीबी और अंचल के रंगकर्मी यश ओबेरॉय बताते हैं कि फिल्म में जहां-जहां बरफी और उसके पिता के भावनात्मक दृश्य आए हैं। उसमें अनुराग और उनके पिता सुब्रत बसु के आपसी रिश्तों को पहचाना जा सकता है। दोनों पिता पुत्र भी इसी तरह एक दूसरे के बेहद करीब थे। एक दृश्य जहां बरफी के पिता को अटैक आता है, वह भी पूरा का पूरा अनुराग ने अपने निजी जीवन से उठाया है। यश ने बताया कि दो दशक पहले मुंबई में एक रात अचानक सुब्रत बसु को अटैक आया था और लगभग कुछ ऐसी ही हालत में घर वालों को उन्हें अस्पताल लेकर जाना पड़ा था। फिल्म में और भी कई फ्रेम हैं, जिनमें  भिलाई या अनुराग के निजी जीवन की झलकियां नजर आती है।

Saturday, September 8, 2012

'गोदान' शुरू हुई थी बलराज साहनी-निरुपा राॅय के साथ लेकिन 

बनी राजकुमार-कामिनी को लेकर, भावुक हो गई थीं शिवरानी


'गोदान 'का मुहूर्त, सबसे ऊपर नजर आ रहे हैं बलराज साहनी और ठीक बीच में बेबी नाज

मुंशी प्रेमचंद की कालजयी रचना 'गोदान' पर बनी फिल्म शुरू हुई थी बलराज साहनी-निरुपा राय और बेबी नाज को लेकर लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मुहूर्त के बाद इन तीनों कलाकारों की जगह निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली को इसमें राजकुमार-कामिनी कौशल और शुभा खोटे को लेना पड़ा। फिल्म पूरी हुई और आज भी इसे एक क्लासिक के तौर पर माना जाता है। 

फूलचंद मिश्रा
फिल्म 'गोदान' से जुड़े ऐसे कई तथ्य दस्तावेज व फोटोग्राफ सहित मौजूद है इस्पात नगरी भिलाई के सेक्टर-9 में निवासरत प्रख्यात फोटोग्राफर व रिटायर बैंक अफसर फूलचंद मिश्रा के पास। 'गोदान' फिल्म के निर्माता-निर्देशक 
त्रिलोक जेटली दरअसल मिश्रा के बहनोई थे। इस लिहाज से इस फिल्म से मिश्रा पारिवारिक कारणों से जुड़े और उन्होंने प्रोडक्शन विभाग का जिम्मा संभाला था।
मिश्रा बताते हैं कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर बनीं फिल्म देखकर उनकी पत्नी शिवरानी प्रेमचंद बेहद भावुक हो गई थी। बाद में उन्होंने फिल्म के निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली को पत्र लिखकर इसे मुंशीजी की भावनाओं की सही अभिव्यक्ति बताया था। 

इस फिल्म की परिकल्पना, निर्माण से लेकर रिलीज तक सारी जवाबदारी निभाने वाले मिश्र ने मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर 'गोदान' से जुड़ी ऐसी बहुत सी यादें बांटीं। रायपुर में बैंक की अफसरी से सेवानिवृत्ति के बाद मिश्र अब शौकिया फोटोग्राफी करते हैं। 

मुंशी प्रेमचंद की कृति पर राजकुमार और कामिनी कौशल को लेकर बनीं फिल्म 'गोदान' अब अपने प्रदर्शन के 50 साल पूरे करने जा रही है। मिश्र ने बताया कि उनके बहनोई त्रिलोक जेटली और बहन कृष्णा जेटली की कोशिशों के चलते 'गोदान' को सेल्युलाइड पर साकार किया जा सका था। 
इसके लिए मुंशी प्रेमचंद के बेटे श्रीपत राय से अधिकार लिए गए थे। सारी तैयारियों के बाद 17 अप्रैल 1959 को मुंबई में मुहूर्त शॉट दिया 'गोदान' के रूसी संस्करण की प्रस्तावना लिखने वाले प्रख्यात रूसी साहित्यकार आईगर कंपंतसेव ने।
 इसके फोटोग्राफ्स दिखाते हुए मिश्र बताते हैं कि तब तक फिल्म के मुख्य पात्र होरी का किरदार बलराज साहनी, उनकी पत्नी की भूमिका निरूपा रॉय को दी गई थी और बेटी की बेबी नाज को। लेकिन बाद में बहुत से फेरबदल हुए।
 बलराज साहनी की जगह राजकुमार, निरूपा रॉय की जगह कामिनी कौशल और बेबी नाज की जगह शुभा खोटे आ गए  इसके बाद भी विभिन्न दिक्कतों की वजह से फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं हो पा रही थी। इसी दौरान भारत सरकार ने फिल्म फाइनेंस कार्पोरेशन (अब एनएफडीसी) की स्थापना की थी। तब 'गोदान' ऐसी पहली फिल्म थी जिसे इस संस्था ने फाइनेंस किया।  

रिकार्डिंग के दौरान जेटली, आशा, रविशंकर और पीसी मिश्र
फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। इसे कई अवार्ड मिले और कार्लो वेरी फिल्म फेस्टिवल के साथ-साथ अमेरिका में भी इसकी स्क्रीनिंग हुई।
बाद में जेटली ने फिल्म के मूल प्रिंट साउंड ट्रैक सहित पुणे के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार को इस आधार पर सौंप दिए कि यह फिल्म भी मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की तरह राष्ट्र की धरोहर है।
रफी की नजाकत और रविशंकर की महानता गोदान के गीतों की रिकार्डिंग से जुड़ी यादें शेयर करते हुए मिश्र ने बताया कि मोहम्मद रफी ने पंजाबी पृष्ठभूमि के बावजूद जिस कुशलता से 'पिपरा के पतवा और 'होरी खेलत नंदलाल' गीतों को गाया, उसे सुन कर हम सब वाह-वाह कर रहे थे लेकिन रिकार्डिंग के बाद बाहर निकले रफी साहब ने अदब से सिर्फ शुक्रिया और मालिक का करम कह कर सलाम अर्ज कर दिया।


...तो मैं जादू से देश की गरीबी दूर कर देता



चैप्टर-888 के आयोजन 'विरासतÓ  में जादूगर शर्मा ने दिए बच्चों के अजब सवालों के गजब जवाब
भिलाई । बीएसपी के सर्वप्रथम स्कूल पीएस-1 (वर्तमान में ईएमएमएस-1) के पूर्व छात्रों के संगठन चैप्टर-888 के मासिक आयोजन 'विरासतÓ में बुधवार को जादूगर ओपी शर्मा ने बच्चों बच्चों के अजब सवालों के गजब जवाब दिए। किसी बच्चे में जादू को करियर बनाने की जिज्ञासा थी तो कोई जादू से करोड़पति बनने का नुस्खा चाहता था, वहीं कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो जादू की हकीकत जानना चाहते थे।
वर्तमान में इंग्लिश मीडियम मिडिल स्कूल के नाम से संचालित सेक्टर-1 की इस शाला  में 'विरासतÓ की शुरूआत पर शाला परिवार की ओर से एचएम शीबा जेम्स ने स्वागत भाषण दिया। बच्चों से बात करते हुए जादूगर शर्मा ने बताया कि जादू पूरी तरह विज्ञान सम्मत कला है। जिसमें समय का सटीक कैलकुलेशन और दिमाग की स्थिरता बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि वह खुद एक इंजीनियर के तौर पर आर्डिनेंस फैक्ट्री में सेवा दे चुके हैं और उनके 3 बेटे और एक बेटी भी इंजीनियर हैं। इसके बावजूद वह जादू के प्रति समर्पित हैं, क्योंकि वह मानते हंै कि लोगों के बीच अंधविश्वास दूर करने जादू ही सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है।
इसके बाद बच्चों के सवालों का सिलसिला शुरू हुआ। एक बच्चे ने पूछा-अंकल आप जादू से करोड़पति क्यों नहीं बन जाते..? श्री शर्मा ने जवाब दिया कि जादू विशुद्ध रुप से एक कला है। इसेक सिर्फ कला के रुप में ही लिया जाना चाहिए। और जहां तक जादू से करोड़पति बनने की बात है तो अगर ऐसा संभव होता तो मैं देश का वित्तमंत्री बन कर अपने देश की गरीबी ही दूर कर देता। एक स्टूडेंट ने पूछा कि जादू को करियर के तौर पर लिया जा सकता है? श्री शर्मा ने कहा कि बिल्कुल, मैंनें तो क्लास 2 से ही जादू के प्रयोग शुरु कर दिए थे। बाद में इंजीनियरिंग करते हुए इसे प्रोफेशनल ढंग से शुरु किया और 1971 से नियमित शो कर रहा हूं। आज मेरे साथ 200 लोगों की टीम है। इतने लोगों को साल भर रोजगार मिल रहा है। इसलिए आप भी सीखना शुरु करें और जादू को करियर बनाएं। एक बच्चे ने पूछा कि क्या हिप्नोटिज्म ही जादू है? श्री शर्मा ने कहा कि हिप्नोटिज्म या सम्मोहन एक विज्ञान है और जादू भी विज्ञान पर ही आधारित है। उन्होंने कहा कि इस कला को कई लोगों ने गलत प्रचारित किया है और वे जादू का गलत प्रयोग कर लोगों को ठग रहे हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया कि नींबू काटकर खून निकालना जैसी चीजें दिखाकर वे लोगों में अंधविश्वास पैदा करते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता। इसके लिए वे चाकू में ही केमिकल लगाते हैं
इस दौरान जादूगर शर्मा ने कई छोटे-छोटे मनोरंजक ट्रिक दिखा कर बच्चों की तालियां बटोरी। उन्होंने 100 रुपए के नोट से पेन आर-पार कर दी और नोट सही सलामत था। ऐसे ही बच्चे को बुलाकर उसे रुपए थमा दिए और रुपए गायब हो गया। एक बच्चे के हाथ से सिक्का लेकर उसे दुगुना कर दिया। ऐसे बहुत से ट्रिक थे, जिनका बच्चों ने खूब मजा लिया। अंत में एलुमनी चैप्टर-888 की तरफ से जादूगर शर्मा को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका सम्मान किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में स्कूल के शिक्षकगण पीआर साहू, निधि त्रिवेदी, मिताली मित्रा, सत्यवती साहू, शीतलचंद्र शर्मा, आरजी मिश्रा, ए. रवानी व एसएन साहू सहित अन्य शिक्षक तथा चैप्टर-888 एलुमनी के प्रवीण जैन, मुकीत खान, कमलजीत सिंह, केएस सुशील, तुषार रणदिवे, जगेंद्र बिसने, प्रवीण चाफले, अवधेश यादव व सुनीता पासी सहित अन्य का योगदान रहा। संचालन शीतलचंद्र शर्मा  तथा आभार प्रदर्शन मोहम्मद जाकिर हुसैन ने किया।

Thursday, September 6, 2012

मैं नेहरू हाउस, अब मर रहा हूं



मैं नेहरू हाउस हूं। सेक्टर-1 में एक टीन शेड को हटा कर मेरी इमारत खड़ी की गई थी देश की राष्ट्रीय एकता और कला-संस्कृति  को प्रदर्शित करने पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की सोच के मुताबिक । कुछ साल इस सोच पर अमल भी हुआ। लेकिन मेरी पहचान खत्म करने की साजिश में धीरे-धीरे लोग कामयाब होते गए और आज मेरे काफी सालों बाद बना भोपाल का भारत भवन तो देश और दुनिया की सुर्खियों मेें रहता है लेकिन मेरी अपनी पहचान पर मेरे अपने भिलाई के लोगों ने जंग लगाने में कोई कमी नहीं की।
मेरी कहानी शुरू होती है 1956 से। जब सेक्टर-1 में अस्पताल की जगह के ठीक सामने टीन का शेड डाला गया सामाजिक-धार्मिक आयोजनों के लिए। इस साल जब ईद पड़ी तो भिलाई स्टील प्लांट के पहले रजिस्ट्रार मोहम्मद अबुल फराह वारसी की पहल पर इसी शेड के ठीक सामने मैदान में ईद की पहली नमाज पढ़ी गई। फिर इसके बाद गणेशोत्सव आया तो महाराष्ट्र मूल के पहले चीफ इंजीनियर (सिविल) पीपी दानी की पहल पर शेड के भीतर गणपति की स्थापना की गई। धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजनों का सिलसिला चल पड़ा। 1956 और 57 में15 अगस्त व 26 जनवरी  पूरी भिलाई ने यहीं मनाई। 1958 के आखिरी महीनों में जब पहली कोक ओवन बैटरी का काम पूरा हो गया तो यहां इस्तेमाल किए गए टीन के शेड और बहुत पोल को यहां लाकर इस सभागार को और मजबूत बना दिया गया। अक्टूबर 1960 में रेल मिल का उद्घाटन करने पहुंचे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भिलाई में राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित करते एक भवन बनाने का सुझाव दिया। पं. नेहरू का सपना था कि एक  ऐसा सभागार बनाया जाए, जो उस वक्त के 17 राज्यों का प्रतिनिधित्व करते 17 कमरों से घिरा हो। जिससे कि यहां पूरे देश की कला व संस्कृति को दर्शाया जाए।  पं. नेहरू के रहते यहां 17 कमरे और भव्य सभागार तैयार हो गया। इसमें रूसी इंजीनियरों ने अपने देश से मोटर मंगाकर सभागार के स्टेज के नीचे लगा दी, जिससे नाटकों के प्रदर्शन के दौरान स्टेज पूरा गोल घूमता था। 1963 में पं. नेहरू गुजरे तो उनकी याद में इस पूरे आडिटोरियम कैंपस को नेहरू सांस्कृतिक सदन का नाम दे दिया गया।
उस्ताद विलायत खां, पं. भीमसेन जोशी, एमएस सुब्बलक्ष्मी, हेमा मालिनी, केजे येसुदास और उदय शंकर से लेकर शायद ही कोई ऐसी विभूति होगी, जिन्होंने यहां अपनी प्रस्तुति न दी हो। 1989 तक तो कुछ-कुछ ठीक चला लेकिन इस साल जैसे ही चित्रमंदिर टॉकीज को बंद कर कला मंदिर  सभागार का रुप दिया गया, मैनेजमेंट का ध्यान कला मंदिर पर ज्यादा और नेहरू हाउस  पर कम होता गया। यहां की लाइब्रेरी में देश की तमाम भाषाओं का साहित्य हुआ करता था। जब से लाइब्रेरी सिविक सेंटर शिफ्ट हुई है, यहां का सारा भाषाई साहित्य कबाड़ में जा चुका है। नेहरू हाउस की लाइब्रेरी की जगह अब जिम चलता है। शेष कमरों में कुछ कला-संस्कृति से जुड़े संगठनों को दिए गए हैं। इनसे भी अब हर महीने शुल्क वसूलने की तैयारी है। पूरा नेहरू हाउस जर्जर हो गया है। स्टेज के नीचे लगी रशियन मोटर को सुधारने वाले कई इंजीनियर आज भी भिलाई में मौजूद हैं, लेकिन जिम्मेदार लोग इस मोटर पर मलबा डाल इसे पूरी तरह ढकने की तैयारी में है। बाकी तस्वीरें यहां की बदहाली को उजागर करती है।
मुझे पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की सोच के मुताबिक बनाया तो गया लेकिन बाद का मैनेजमेंट उसे कायम नहीं रख सका। हर साल प्लानिंग बनती है लेकिन इस पर अमल बहुत कम हो पाता है। इस वित्तीय वर्ष में भी मैनेजमेंट की बहुत कुछ करने की योजना है लेकिन छह महीने बीतने के बावजूद अब तक सिर्फ बजट का ही रोना है।
शुरूआती दौर में इस्पात नगरी के एकमात्र ऑडिटोरियम के तौर पर मुझे खूब संवारा गया। मेरा औपचारिक उद्घाटन तो कभी नहीं हुआ लेकिन मुझे पं. नेहरू के गुजरने के बाद नेहरू सांस्कृतिक सदन का नाम जरुर दे दिया गया। उस वक्त के जनरल मैनेजर सरदार इंद्रजीत सिंह  ने 17 कमरों में 17 राज्यों की संस्कृति को दर्शाने अच्छी पहल की थी। तब भिलाई के सांस्कृतिक संगठनों को कमरे नि:शुल्क उपलब्ध कराए गए थे, जिससे कि देश की राष्ट्रीय एकता को जीवंत रूप में दर्शाया जा सके। मैनेजमेंट ने अपनी तरफ से काफी सहयोग भी किया। इंद्रजीत सिंह ने सीधे दिल्ली बात कर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी को उद्घाटन के लिए भिलाई आमंत्रित कर लिया था। लेकिन तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और उस वक्त कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले द्वारका प्रसाद मिश्र को नागवार गुजरा। तब उड़ीसा दौरे पर गई इंदिरा को संबलपुर से सड़क मार्ग से भिलाई पहुंचना था। लेकिन इसके पहले श्री मिश्र संबलपुर पहुंच गए और इंदिरा को वहां से भोपाल चलने राजी कर लिया। इस तरह डीपी मिश्र के अहम के चलते नेहरू हाउस का औपचारिक उद्घाटन नहीं हो पाया।

मौजूदा मैनेजमेंट ने नेहरू हाउस को संवारने कई योजनाएं बनाई है। इनमेें मुख्य सभागार का वृहद स्तर पर सौंदर्यीकरण होना है। इससे लगे तीन बड़े कमरों में , जिसमें कुछ माह पहले तक इप्टा व नेहरू हाउस का दफ्तर था, अब नए सिरे से अत्याधुनिक ढंग से सौंदर्यीकरण कराया जाएगा। इसे वीवीआईपी ट्रीटमेंट के लिए सुरक्षित रखने की तैयारी है। वहीं दो मंजिला भवन वाले हिस्से का संधारण कर उसे आवासीय रूप दिया जाएगा। जिससे कि भिलाई में अपना प्रदर्शन करने आने वाले नाट्य व कला-संस्कृति के दल के रुकने का इंतजाम हो सके। उपर के कमरों में कला-संस्कृति से जुड़े दफ्तर खोलने की भी तैयारी है। शेष कमरों में जहां कबाड़ रखा है, उसे नए सिरे से आवंटित किया जाएगा। अब कमरों का किराया भी सुविधा के हिसाब से वसूलने की तैयारी है। मैनेजमेंट के पास लंबी-चौड़ी योजनाएं हैं लेकिन सारी फाइलें धूल खा रही है। अफसरों की दलील है कि बजट नहीं है। दूसरी तरफ कला मंदिर को पूरा एयर कंडीशंड करने  अमल शुरू हो चुका है।

Saturday, September 1, 2012

सीईओ के हाथो 'भिलाई एक मिसाल' का विमोचन

भिलाई के इतिहास को संजोने की बीएसपी जनसंपर्क विभाग की पहल

भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य कार्यपालक अधिकारी के इस्पात भवन सभागार में बीएसपी के जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित, लेखक व पत्रकार मोहम्मद जाकिर हुसैन द्वारा लिखित पुस्तक 'भिलाई एक मिसाल फौलादी नेतृत्वकर्ताओं की' का विमोचन 30 अगस्त को तत्कालीन सीईओ पंकज गौतम ने किया। इस अवसर पर ईडी पीएंडए एम अखौरी, ईडी वक्र्स वाई के डेगन, डायरेक्टर इंचार्ज (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवायें) डॉ सुबोध हिरेन, महाप्रबंधक (कार्मिक) आर के शर्मा, महाप्रबधक (सामग्री प्रबंधन) डी ए लोथे तथा जनसंपर्क विभाग के प्रमुख  विजय मैराल, वरिष्ठ साहित्यकार व विचारक रमेश नैयर और इस पुस्तक के लेखक मोहम्मद जाकिर हुसैन विशेष रूप से उपस्थित थे।
इस मौके पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी पंकज गौतम ने कहा कि इतिहास संकलन व लेखन होना चाहिए, यह नई पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करती है। लेखक श्री जाकिर ने बड़े ही परिश्रम लगन के साथ इस पुस्तक को आकार दिया है। उनका यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है। जनसपर्क विभाग ने भिलाई के स्वर्णिम इतिहास को संजोने का यह अनुपम प्रयास किया। लेखक श्री जाकिर तथा जनसंपर्क विभाग बधाई के पात्र हैं।
विशेष अतिथि, वरिष्ठ साहित्यकार, विचारक व प्रतिष्ठित पत्रकार एवं संपादक  रमेश नैयर ने लेखक मोहम्मद जाकिर हुसैन तथा भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि जिस कुशलता से भिलाई स्टील प्लांट अनगढ़ मटमैले लौह अयस्क को पूरे जतन से फौलाद में तब्दील करता है। इसी तन्मयता से कुशल कारीगर, मेधावी प्रोफेशनल, कलाकार, लेखक-विचारक और विभिन्न विधाओं की प्रतिभाओं को भी तराशता है। भिलाई उद्योग गगन की आकाशगंगा है। भिलाई आज देश के सामने एक मिसाल बन गया है। इतिहास को संजोना एक दुष्कर कार्य है और इस चुनौतिपूर्ण कार्य को लेखक मोहम्मद जाकिर हुसैन ने बखूबी अंजाम दिया है। मैं जाकिर हुसैन व भिलाई इस्पात संयंत्र के उनके इस सद्प्रयास के लिए दिल से बधाई देता हूँ।
जनसंपर्क के मुखिया विजय मैराल ने इस प्रकाशन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जनसपर्क विभाग समय-समय पर उपयोगी पुस्तकें प्रकाशित करता रहा है। इस कड़ी में यह पुस्तक भिलाई उन पूर्ण नेतृत्वकर्ताओं को समर्पित है जिन्होंने भिलाई को नई ऊँचाई दी या फिर भिलाई की इस जमीं से उठकर एक मुकाम हासिल किया। बीएसपी के प्रथम जनरज मैनेजर से लेकर प्रथम सीईओ तक के विभिन्न नेतृत्वकर्ताओं के साक्षात्कार लेना तथा उसे लिपिबद्ध करना अपने आप में दुष्कर कार्य था जिसे लेखक जाकिर ने बखूबी निभाया।यह प्रकाशन भिलाई के उन्हीं नेतृत्वकर्ताओं का सादर स्मरण है। जिनके हम सदैव ऋणी रहेंगे एवं वे हमारे भविष्य की उपलब्धियों के भी प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे।
पुस्तक के लेखक मोहम्मद जाकिर हुसैन ने अपने लेखकीय अनुभव को शेयर करते हुए कहा कि यह पुस्तक तीन से चार वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद पूर्ण हो सकी। यह मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा है। इस पुस्तक में मुझे बीएसपी के प्रथम जीएम से लेकर प्रथम सीईओ तक अनेक नेतृत्वकर्ताओं से साक्षात्कार लेने के साथ-साथ भिलाई की सरजमीं से अपना करियर प्रारंभ कर सेल व अन्य कंपनियों के मुखिया के रूप में नई ऊँचाई देने वाले अनेक व्यक्तियों से रूबरू होकर उनके मनोभाव को संकलित करने का अवसर मिला। मैं भिलाई इस्पात संयंत्र के उच्च प्रबंधन तथा जनसंपर्क विभाग से मिले सहयोग व समर्थन के प्रति सदैव आभारी रहूँगा। कार्यक्रम का संचालन व आभार प्रदर्शन जनसंपर्क विभाग के जूनियर मैनेजर सत्यवान नायक ने किया। इस अवसर पर सीईओ सचिवालय, जनसपर्क विभाग व अन्य विभागों के अधिकारीगण तथा लेखक के परिजन आदि विषेष रूप से उपस्थित थे।