Tuesday, December 27, 2016

  21 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरता है हमारा अंकित

समूचे छत्तीसगढ़ से इकलौता फाइटर पायलट, दीक्षांत में मिला स्वार्ड आॅफ आॅनर और प्रेसीडेंट प्लॉक, प्रशिक्षण में तमाम प्रतिस्पर्धाओं में देश भर के जवानों को पछाड़ कर रहा अव्वल, परेड का नेतृत्व भी किया


  इंटरव्यू के दौरान 
भिलाई नेहरू नगर निवासी अंकित अग्रवाल भारतीय वायु सेना में फाइटर पायलट बन गए हैं। अंकित समूचे छत्तीसगढ़ से इकलौते युवा हैं, जिन्होंने डेढ़ साल के कठोर प्रशिक्षण के बाद अपनी मंजिल पा ली है।
 दिसंबर-16 बैच में शामिल देश भर के 110 फ्लाइंग आफिसर्स के बीच विभिन्न प्रतिस्पर्धा में प्रथम रहने की वजह से पिछले सप्ताह हैदराबाद में हुई कमीशनिंग (दीक्षांत) के दौरान परेड का नेतृत्व करने का अवसर भी अंकित को मिला। उनकी इस उपलब्धि पर माता-पिता खुद को बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
कमीशनिंग परेड के बाद विधिवत फाइटर पायलट बन चुके अंकित हफ्ते भर की छुट्टी पर घर आए हुए हैं। वायुसेना में जाने की अपनी यात्रा का जिक्र करते हुए अंकित ने बताया कि एमजीएम सेक्टर-6 से स्कूलिंग के बाद उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से मेकेनिकल में डिग्री की पढ़ाई की और इसके बाद  इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट टेक्नालॉजी (आईएमटी) गाजियाबाद में एमबीए में दाखिला ले लिया था। इसी दौरान वायुसेना में सेवारत कजिन सुमीत अग्रवाल ने सर्विस सलेक्शन बोर्ड (एसएसबी) की जानकारी दी और तत्काल आवेदन करवाया।फिर एयरफोर्स कॉमन एप्टीट्यूट टेस्ट हुआ। जिसमें सफलता के बाद हफ्ते भर का इंटरव्यू मैसूर में हुआ। इसके बाद जुलाई 15 से अगले डेढ़ साल कठोर प्रशिक्षण में बीते और पिछले सप्ताह 17 दिसंबर को हैदराबाद के डुंडीगल स्थित एयरफोर्स अकादमी में कमिशनिंग परेड हुई। जिसमें फायटर पायलट का ओहदा मिला।
  अंकित अपने माता-पिता के साथ एयरफोर्स अकादमी में 
अंकित ने बताया कि स्कूल अथवा कॉलेज की पढ़ाई करते हुए उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि एक दिन वो फाइटर पायलट बनेंगे, इसलिए सबकुछ अचानक हुआ और इसमें सबसे ज्यादा परिवार का सपोर्ट रहा। अंकित के मुताबिक वायुसेना में शामिल होने से पहले उन्होंने कभी हवाई सफर तक नहीं किया था लेकिन अब वह स्विटजरलैंड में बना पिलेटस पीसी-7 और अपने ही देश में बना किरण एमके 1/1ए लड़ाकू विमान सफलतापूर्वक उड़ा चुके हैं।
अंकित की इस सफलता से माता-पिता बेहद अभिभूत हैं। पेशे से व्यवसायी उनके पिता योगराज अग्रवाल कहते हैं-हमारे पूरे खानदान को गौरवान्वित किया है बेटे ने। अब ईश्वर से और क्या मांगे ? वहीं उनकी मम्मी सरोज अग्रवाल कहती हैं-बेटे की सफलता हमारे जीवन का सबसे अनमोल उपहार है। बेटा देश की सेवा करेगा और हमें क्या चाहिए।अंकित के छोटे भाई नितिन अग्रवाल इन दिनों नई दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं।
श्रीलंका के वायुसेना प्रमुख के हाथों में मिले प्रतिष्ठित सम्मान
''हरिभूमि'' 27 दिसंबर 2016
अंकित अग्रवाल भिलाई और छत्तीसगढ़ से पहले फाइटर पायलट है। छह माह पूर्व भिलाई से फ्लाइंग आॅफिसर अमितेश हरमुख हुए हैं। लेकिन वह फाइटर पायलट नहीं है। अंकित की उपलब्धि इसलिए भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में भी प्रथम स्थान पाया है। जिससे कमीशनिंग परेड के दौरान सम्मान स्वरूप  राष्ट्रपति की पट्टिका (प्रेसीडेंट्स प्लॉक),भारतीय वायुसेना की विंग्स (प्रतीक) और भारतीय वायुसेना प्रमुख की तलवार (स्वार्ड आॅफ आॅनर) मुख्य अतिथि श्रीलंका एयरफोर्स के कमांडर एयरमार्शल केवीबी जयमपति के हाथों अंकित को प्रदान की गई। इसके साथ ही अपने लड़ाकू विमान से हवा में करतब दिखाने में भी अव्वल रहे अंकित को कमीशनिंग परेड के दौरान प्रतिष्ठित राजाराम ट्रॉफी प्रदान की गई। यह सारे सम्मान पाने वाले अंकित अपने बैच के इकलौते फाइटर पायलट हैं।
21 हजार फुट की ऊंचाई पर फाइटर विमान अकेले उड़ाने का रोमांच
फाइटर प्लेन के पास माता-पिता के साथ
अंकित अग्रवाल को विभिन्न फाइटर प्लेन उड़ाने का मौका मिला है और आगे भी मिलेगा। आसमान में उड़ने का रोमांच बताते हुए उनकी आंखें चमक उठती हैं। अंकित बताते हैं-पहली बार जब फाइटर प्लेन में बैठा तो साथ में संधू सर थे। दिल की धड़कन भी बढ़ी हुई थी। संधू सर ने कहा- खुद को एक पंछी की तरह समझो और बादलों को महसूस करो। इसके बाद तो 16 हजार से लेकर 21 हजार फुट की ऊंचाईं तक विमान बेखौफ उड़ा चुका हूं। खास कर रात के वक्त जब आसमान में आप अकेले होते हैं और चांद-तारों के अलावा कुछ नजर नहीं आता है, ऐसे में फाइटर प्लेन उड़ाने का रोमांच कई गुना बढ़ जाता है।

Saturday, December 24, 2016

क्विज मास्टर बनने कोई स्कूल नहीं, बनना होगा खुद से 

प्रख्यात क्विज मास्टर सिद्धार्थ बसु ने याद किया 37 साल पहले का भिलाई और केबीसी की सफलता बताई

मुहम्मद जाकिर हुसैन/भिलाई
प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान
प्रख्यात क्विज मास्टर सिद्धार्थ बसु का कहना है कि क्विज मास्टर बनने के लिए कोई स्कूल नहीं होता बल्कि इसके लिए आपमें खुद की मेहनत और लगन जरूरी है। करीब 37 साल बाद 16 दिसंबर को भिलाई आए बसु को इस बार हरियाली और बिल्डिंग ज्यादा दिखी। यहां एमजीएम स्कूल में क्विज प्रतियोगिता के होस्ट के तौर पर आए थियेटर-फि ल्म आर्टिस्ट, क्विज मास्टर और कई किताबों के लेखक सिद्धार्थ बसु ने इस संवाददाता से चर्चा करते हुए कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) की सफलता से लेकर कई सवालों के जवाब दिए। 
भिलाई से अब लाल मुरुम के मैदान गायब
सिद्धार्थ ने बताया कि करीब 37 साल पहले वह भिलाई स्टील प्लांट पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने अपनी टीम लेकर आए थे। तब रायपुर एयरपोर्ट से भिलाई पहुंचते वक्त दूर-दूर तक लाल मुरुम के मैदान नजर आ रहे थे और थोड़ी बहुत हरियाली भी थी। अब आया हूं तो बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और काफी ग्रीनरी दिखाई दे रही है। कार्यक्रम के बाद मैं भिलाई घूम कर अपनी 37 साल पुरानी यादों को जरूर ताजा करना चाहूंगा। 
मैनें काम और शौक को कभी अलग नहीं किया
थियेटर,आकाशवाणी, फिल्म, क्विज, लेखन सहित अनेक विधाओं में लगातार सक्रियता के संबंध में सिद्धार्थ बसु ने कहा कि उन्होंने जीवन में अपने शौक और काम को कभी भी अलग नहीं किया। इस वजह से थियेटर भी खूब किया। डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाई और दूरदर्शन के दौर में क्विज टाइम की शुरूआत की। फिर सैटेलाइट चैनलों का दौर आया तो ढेर सारे दूसरे प्रोग्राम के साथ-साथ ‘कौन बनेगा करोड़पति’ लेकर हम लोग आ गए। काम अभी भी ढेर सारा कर रहे हैं लेकिन सब कुछ अपने मन का ही करते हैं। 
 ऑटोग्राफ की गुजारिश
 पूरी हो रही है
फिल्में मैं शाहरूख के लिए छोड़ चुका
सिद्धार्थ ने मजाकिया लहजे में कहा कि फिल्मों में वह हाल के कुछ सालों में आए हैं, वह भी तब जबकि वह 60 के हो चुके हैं। उन्होंने हंसते हुए कहा-मैं चाहता तो पहले भी फिल्में कर सकता था लेकिन मैनें फिल्में शाहरूख के लिए छोड़ दी। आखिरकार थियेटर में हम दोनों के गुरु एक ही शख्स बैरी जॉन थे। सिद्धार्थ ने बताया कि शुजीत सरकार की ‘मद्रास कैफे’ में रॉ अफसर से लेकर मलयाली में रोशन एंड्र्यू की सुपरहिट मूवी ‘हाऊ ओल्ड आर यू?’ में राष्ट्रपति तक की भूमिकाएं कर चुके हैं। अभी भी फिल्में वह बहुत कम करते हैं। 
खुद दुविधा में थे अमिताभ भी 
सिद्धार्थ बसु ने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए। उन्होंने बताया कि 16 साल पहले जब इस क्विज कार्यक्रम को डिजाइन किया गया तो अमिताभ बच्चन को लेने का फैसला किसी एक का नहीं बल्कि पूरी टीम का था लेकिन खुद अमिताभ बच्चन भी दुविधा में थे। उन्होंने करीब 3.5 महीने हां बोलने में लगा दिए। नतीजा सबके सामने था अमित जी बड़े परदे से छोटे परदे पर आए और छोटा परदा सचमुच में काफी बड़ा हो गया। 
..और मिल गया आटोग्राफ
ध्यान रखते हैं फिर भी गलतियां संभव
सिद्धार्थ ने बताया कि केबीसी में पूछे जाने वाले सवाल और जवाब में पूरी सावधानी बरती जाती है और कोशिश ‘जीरो एरर’ की होती है। इसके बावजूद कुछ एक सवाल-जवाब पर सवाल उठे थे। हमनें वहां अपनी गलती स्वीकार की। हमारे पास हर सवाल और उसके जवाब को क्रास चेक करने पूरी टीम है। उन्होंने बताया कि केबीसी का अगला सीजन फिलहाल सोनी चैनल पर निर्भर है। 
भारत भाग्य विधाता कौन यह रवींद्रनाथ बता चुके 
सिद्धार्थ बसु ने क्विज से जुड़े सवालों पर एक संदर्भ देते हुए कहा कि ज्यादातर लोग राष्ट्रगान जनगणमन को संस्कृत का समझते हैं लेकिन यह है बांग्ला में। वह भी साधु कम्युनिटी में बोली जाने वाली बांग्ला में। जब रवींद्रनाथ ठाकुर ने यह गान रचा तो तब से अब तक कई बार लोग यह स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि इसमें भारत भाग्य विधाता के रूप में अंग्रेजी राजा जार्ज पंचम को संबोधित किया गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी जीवन काल में ही स्पष्ट कर दिया था कि उनका भारत भाग्य विधाता Al Mighty GOD (सर्वशक्तिमान परमेश्वर) है। 
बोकारो प्रथम, राउरकेला द्वितीय और इटारसी की टीम तृतीय रही
हम साथ-साथ हैं 
कलकत्ता डायोसियन मिशन एजुकेशन बोर्ड द्वारा एमजीएम स्कूल सेक्टर-6 में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त मास्टर सिद्धार्थ बसु के तत्वाधान में प्रथम अंतर एम.जी.एम. स्कूल क्विज प्रतियोगिता का आयोजन शुक्रवार को किया गया। जिसमें एमजीएम ग्रुप के स्कूलों से 9 स्कूलों की टीम शामिल हुई। इस अवसर के मुख्य अतिथि अमरेष कुमार मिश्रा, पुलिस अधीक्षक दुर्ग थे। विशिष्ट अतिथि वेरी रेव्ह.फादर जार्ज मैथ्यू रम्बान, रेव्ह फादर पीटी थामस, रेव्ह फादर जोशी वर्गीस, रेव्ह.फादर जोस के वर्गीस, रेव्ह.फादर कूरियन जॉन, कॉरस्पोडेंट राजन मैथ्यू, गिलसन थॉमस, सुरेश जेकब, टी.जी. मनोज.रॉय थॉमस, सी.व्ही. जॉन   चर्च एवं शाला प्रबंधन कमेटी के सदस्यगण ,एमजीएम ग्रुप स्कूल के प्राचार्यगण, शाला के शिक्षकगण एवं अन्य सदस्यगण व छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे। विद्यालय की प्रभारी सुजया कुमारी ने स्वागत में भाषण दिया तथा मुख्य अतिथि अमरेश कुमार मिश्रा ने सभा को उद्बोधित किया। शाला के छात्र-छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त एमजीएम बोकारो को नगद पुरस्कार के रूप में 10001 रूपए व प्रशस्ति पत्र, द्वितीय स्थान प्राप्त एमजीएम राउरकेला को नगद पुरस्कार 7001 रूपए व प्रशस्ति पत्र तथा तृतीय स्थान प्राप्त एमजीएम इटारसी को नगद पुरस्कार 5001 रूपए व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। वेरी रेव्ह.फादर जार्ज मैथ्यू रम्बान द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
 

Friday, September 16, 2016

''रिटायरमेंट'' का फैसला मेरा खुद का था, चुनाव लड़ने से न किसी ने रोका ना कहा


पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने अनौपचारिक चर्चा में की अपने दिल की बातें 

मुहम्मद जाकिर हुसैन
  नोएडा स्थित निवास में यशवंत सिन्हा
देश के वित्त व विदेश मंत्री रह चुके वरिष्ठ राजनेता यशवंत सिन्हा अब सार्वजनिक बात करने से थोड़ा परहेज करते हैं। उनकी शिकायत है कि जो वो कहते हैं, उससे लोगों में गलतफहमी ज्यादा हो जाती है। श्री सिन्हा का कहना है कि यह ''रिटायरमेंट'' उन्होंने खुद चुना है। इन दिनों वह अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं, जो साल भर में पाठकों के समक्ष होगी। इसलिए उनका कहना है कि- हमेशा मेरा कहना जरूरी नहीं, अब जो कहेगी मेरी किताब कहेगी। 2 सितंबर 2016 की सुबह नोएडा स्थित निवास पर यशवंत सिन्हा व श्रीमती नीलिमा सिन्हा से अनौपचारिक मुलाकात हुई। इस दौरान भिलाई से लेकर देश तक की बातें हुई। इनमें से कुछ बातें यशवंत सिन्हा जी के साथ सवाल-जवाब की शक्ल में-
0 आप मुख्यधारा की राजनीति से बिल्कुल दूर हो गए हैं, क्या यह आपका राजनीतिक वनवास है? 
00 इसे वनवास कहना ठीक नहीं। दरअसल यह एक तरह का रिटायरमेंट है, जिसे मैनें खुद चुना है। क्योंकि मेरा मानना है कि दो तरह की राजनीति में सक्रिय रह कर देशहित में कार्य किया जा सकता है। पहला तो आप सक्रिय राजनीति में रह कर चुनाव लड़ें और मंत्री या जनप्रतिनिधि रहते हुए योगदान दें और दूसरा किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन में रहते हुए देश की चिंता करें। जैसा कि गांधी जी और जयप्रकाश जी ने करते हुए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई थी. हालांकि अभी मैं गांधी जी और जयप्रकाश जी वाली भूमिका से कुछ दूर हूं।
0..तो क्या 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे का फैसला आपका खुद का था? 
00मुझे चुनाव लडऩे से न किसी ने रोका न ही किसी ने कोई प्रस्ताव दिया। जब उन्होंने (इशारा पार्टी के नीति निर्धारकों की तरफ) 75 साल से उपर वालों का नियम बनाया था तो मैनें उसके पहले ही तय कर लिया था कि अब संसदीय चुनाव नहीं लड़ूंगा और इस तरह 2014 में मैं अपनी परंपरागत सीट हजारीबाग (झारखंड)से उम्मीदवार नहीं था।
0 मोदी सरकार में मंत्री आपके सुपुत्र जयंत सिन्हा के कामकाज में आपका कितना मार्गदर्शन या दखल रहता है? 
00 बतौर मंत्री जयंत का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है और मैं नहीं समझता कि मुझे उन्हें इसमें किसी तरह का मार्गदर्शन देना चाहिए। हां, एक परिवार में जैसे पिता-पुत्र की बात होती है हमारे रिश्ते भी वैसे ही हैं। मंत्री के तौर पर जयंत क्या करते हैं, उससे मुझे सरोकार नहीं लेकिन हजारीबाग के विकास को लेकर हमारी चर्चा जरूर होती है।
सिन्हा दंपत्ति के साथ 
0 आज केंद्र में भाजपा सरकार है और आप पूर्व में बाजपेयी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोनों सरकारों में भूमिका को लेकर क्या फर्क देखते हैं? 
00 आज की सरकार पर टिप्पणी करना मेरा मकसद नहीं है क्योंकि इससे गलतफहमी ज्यादा बढ़ जाती है। वैसे भी हम तो संघ के बाहर के हैं। इतना जरूर है कि तब (बाजपेयी सरकार के दौरान) हमारे वक्त में संघ तो हावी नहीं हो पाया था और ज्यादातर फैसलों में  संघ के लोग हमारे विरोध में ही थे।
0 सार्वजनिक जीवन में अब कैसी सक्रियता या व्यस्तता रहती हैं? 
00 देखिए, अपने परंपरागत निर्वाचन क्षेत्र रहे हजारीबाग के लिए तो लगातार काम कर रहा हूं। पिछले साल वहां रेल नेटवर्क आ गया। यहां दिल्ली में टेलीविजन चैनलों के शाम के डिबेट में मैं जाता नहीं। क्योंकि आधे घंटे की चिल्लपो में आपको 2 मिनट बोलने का मौका मिलता है और उसमें भी एंकर हावी होने लगता है। इसलिए मैनें सभी चैनलों को साफ मना कर दिया है। पिछले साल हिंदी के एक बड़े अखबार  ने मुझे साप्ताहिक कॉलम लिखने प्रस्ताव दिया था। तीन हफ्ते मैनें कॉलम लिखा भी। फिर मुझे लगा कि वह अखबार पत्रकारिता के मानदंडों पर खरा नहीं उतर रहा है तो मैनें वहां लिखना बंद कर दिया। अब सिर्फ एनडीटीवी इंडिया के लिए हर हफ्ते ब्लॉग लिख देता हू्ं।
0 कलराज मिश्र जैसे कुछेक अपवादों को छोड़ कर पार्टी के 75 पार वरिष्ठ नेताओं को मंत्री न सही राज्यपाल तो बनाया जा रहा है। क्या ऐसा कोई प्रस्ताव मौजूदा सरकार की ओर से आपको मिला?
00 यह सवाल ही नहीं उठता। मुझे अपने फैसले खुद लेने की आदत है। राज्यपाल बनना होता तो 1990 में ही बन जाता। तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक रोज बुलाया और बोले -आपको पंजाब का राज्यपाल बना कर भेजना चाहते हैं। तब मैनें साफ मना कर दिया था। आज ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से नहीं आया और न ऐसा प्रस्ताव स्वीकार कर सकता हूं।
  भिलाई में ब्याह
0अगले साल राष्ट्रपति चुनाव को लेकर क्या उम्मीदें दिखाई देती हैं? 
00प्रत्याशी तय करना उनका (केंद्र सरकार) का फैसला है। मैंनें अपनी लाइफ तय कर ली है। तो,ऐसी उम्मीदें मैं क्यों पालूं। हां, पार्टी के अंदर कुछ नाम जरूर सुन रहा हूं। जिनका मैं खुलासा नहीं कर सकता। हालांकि धारणा यह बन रही है कि जो चर्चा में नहीं है, ऐसा कोई नया नाम सामने आएगा।
0पाकिस्तान को लेकर हमारे देश की नीति कैसी होनी चाहिए?
00(मोदी सरकार पर टिप्पणी नहीं करने की शर्त पर उन्होंने कहा) मैं जनरल मुशर्रफ की जीवनी पढ़ रहा था, उसमें एक जगह वह लिखते हैं-इंडिया से वालीबॉल का मैच जीतने पर पाकिस्तान में जबरदस्त खुशी का माहौल था। तो दोनों देशों में खेल में हार-जीत पर खुश होने वाली स्थिति है। बहुत सी बातें ऐसी हैं कि जिनसे यह बार-बार जाहिर करने की कोशिश होती है कि पाकिस्तान हमारे बराबर का देश है। कश्मीर को लेकर अब तक हमारे देश मेें एक नीति नहीं रही है। अब तक जो भी प्रधानमंत्री आए, उन्होंने अपने अनुसार नीति बना ली।
0 देश की आर्थिक नीति और विदेश नीति से कितने संतुष्ट हैं? 
00 इन पर मेरा कुछ भी सार्वजनिक कहना ठीक नहीं।
0 राजनीतिक जीवन में इतने अनुभव के बाद अचानक चुप्पी को जनता क्या समझे? 
00इसे चुप्पी न समझें। अपनी बायोग्राफी (आत्मकथा) लिख रहा हूं। अगले साल तक पूरी हो जाएगी। उसमें सारी बातें लिखूंगा। पब्लिशर से बात हो गई है। जरा इंतजार कीजिए।
0छत्तीसगढ़, खास कर भिलाई से आपका रिश्ता रहा है, उसे कैसे बयां करेंगे? 
00अब इस बात को पूरे 56 साल हो चुके हैं। (पत्नी नीलिमा सिन्हा की तरफ इशारा करते हुए) इनके पिता निर्मलचंद्र श्रीवास्तव जी भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के जनरल मैनेजर थे और वहीं भिलाई के डायरेक्टर बंगला में हमारी शादी हुई। अरसा बीत गया है लेकिन भिलाई की तरक्की की खबर मिलते रहती है। भिलाई ने अच्छी तरक्की की है और छत्तीसगढ़ तो पिछले 16 साल में काफी बदल गया है। सुन कर और जानकर अच्छा लगता है। 

Saturday, July 30, 2016

भिलाई के आकाश ने ‘मोहेंजो-दारो’
पर आशुतोष-ऋत्विक को घसीटा कोर्ट में 

दावा-1995 में लिखी थी पटकथा, आज भी इसी नाम से मशहूर है उनका नाटक, बाम्बे हाईकोर्ट करेगा फैसला, 12 अगस्त 2016 को  रिलीज होनी है ऋत्विक की फिल्म

मुहम्मद जाकिर हुसैन/भिलाई

आशुतोष गोवारीकर-ऋत्विक रोशन की बहुचर्चित फिल्म ‘मोहेंजो-दारो’ की  पटकथा को लेकर बाम्बे हाईकोर्ट में दाखिल केस के याचिकाकर्ता इस्पात नगरी भिलाई में पले-बढ़े युवा फिल्मकार आकाशादित्य लामा हैं। आकाश का कोर्ट में दावा है कि उन्होंने 1995 में ‘मोहेंजो-दारो’ की पटकथा लिखी थी  2003 में आशुतोष गोवारीकर को यह पटकथा पढ़ने दी थी। आकाश ने अपनी याचिका में साफ कहा है कि उनकी स्क्रिप्ट चोरी कर आशुतोष ने ‘मोहेंजो-दारो’ बना ली है। अब 12 अगस्त को फिल्म रिलीज होने वाली है। उसके पहले कोर्ट में सुनवाई भी चल रही रही है।
इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर फिल्म जगत तक में ‘मोहेंजो-दारो’ पर उठा विवाद सुर्खियों में है। अपनी स्क्रिप्ट चोरी होने का आरोप लगा रहे आकाश ने ‘हरिभूमि’ से चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें सस्ती लोकप्रियता का कोई शौक नहीं है, इसलिए 2010 में जैसे ही उन्हें गोवारीकर द्वारा ‘मोहेंजो-दारो’ फिल्म शुरू करने की जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत ई-मेल भेजा। जिसमें साफ तौर पर मैनें कह दिया था कि अभी फिल्म शुरू नहीं हुई है और वह किसी सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसा कुछ नहीं करना चाहते। लेकिन स्क्रिप्ट का क्रेडिट उन्हें दिया जाना चाहिए। लेकिन बकौल आकाश, उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। आकाश ने बताया कि भिलाई से ग्वालियर जाने के बाद उन्होंने 1995 में ‘मोहेंजो-दारो’ की पटकथा लिखना शुरू की थी। इसके बाद 1997 में जब वह मुंबई पहुंचे तो फिल्म बनाने का सपना लिए काम की तलाश करते रहे। इस बीच 2000 में बन रही ‘गदर-एक प्रेम कथा’ में डायरेक्टर अनिल शर्मा के असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए। यहां से इंडस्ट्री में कई लोगों से संपर्क बढ़ा और इस बीच आशुतोष गोवारीकर की ‘लगान’ के एडिटर जसविंदर बल्लू सलूजा से उन्होंने ‘मोहेंजो-दारो’ की अपने हाथ से लिखी स्क्रिप्ट सौंपते हुए गोवारीकर से मीटिंग करवाने का अनुरोध किया था। लेकिन मीटिंग के बजाए 4 दिन रखने के बाद गोवारीकर ने यह कह कर स्क्रिप्ट लौटा दी कि ‘लगान’ के बाद उनका इरादा एतिहासिक कथानक पर फिल्म बनाने का नहीं है।
इसके बाद जब 2010 में उन्हें गोवारीकर द्वारा ‘मोहेंजो-दारो’ फिल्म शुरू किए जाने की खबर मिली तो उन्होंने तत्काल ई-मेल भेजा। 2 साल बाद आकाश ने फिर से गोवारीकर को ई-मेल भेजा लेकिन दोनों ई-मेल का कोई जवाब नहीं मिला। आकाश ने बताया कि उन्होंने अपनी यह स्क्रिप्ट बकायदा राइटर एसोसिएशन मुंबई और कॉपीराइट आॅफिस दिल्ली में रजिस्टर्ड करवा रखी है। इसके बाद उन्होंने गोवारीकर को लीगल नोटिस भी भेजा। अब मामला बाम्बे हाईकोर्ट में है। आकाश ने बताया कि कोर्ट में सुनवाई के दौरान गोवारीकर फिल्मस के वकीलों ने यह तो स्वीकार कर लिया है कि स्क्रिप्ट दी गई थी। इसकेअलावा कोर्ट के आदेश पर हमने स्क्रिप्ट से जुड़े अपने सारे दस्तावेजों का परीक्षण भी करवा लिया है। आकाश ने स्क्रिप्ट चोरी के इस मामले मे आशुतोष गोवारीकर के साथ ऋत्विक रोशन, यूटीवी मूवीज और वाल्ट डिजनी इंडिया को कटघरे में खड़ा किया है।
भिलाई में जन्में, अब छोटे-बड़े परदे पर सक्रिय
आकाशादित्य लामा भिलाई में जन्में और पले-बढ़े हैं। उनके पिता हरीशचंद्र लामा यहां सीआईएसएफ में पदस्थ थे और आकाश ने विवेकानंद स्कूल व ईएमएमएस सेक्टर-2 के बाद 1994 में सीनियर सेकंडर स्कूल सेक्टर-4 से 12 वीं पास की है। यहां पाटन और कोहका में आज भी पैतृक जमीन व मकान है और परिचितों व रिश्तेदारों से मिलने वह अक्सर भिलाई आते रहते हैं। आकाश ने 2012 में फिल्म ‘सिगरेट की तरह’ बनाई थी। इसके अलावा वह छोटे परदे पर कुमकुम, कुसुम और हमारी बेटियों का विवाह जैसे सीरियल लिख चुके हैं। डेढ़ घंटे की अवधि का उनका लिखा नाटक ‘मोहेंजो-दारो’ वर्ष 2005 से लगातार मंचित हो रहा है। अब तक उज्जैन, इंदौर, कोलकाता, गोवा और चंडीगढ़ में इसके सफल शो हो चुके हैं। संयोग से आकाश के इस बहुचर्चित नाटक का पोस्टर भिलाई से अंतरराष्ट्रीय स्तर की फैशन फोटोग्राफी में अपना अलग मकाम बनाने वाले शिराज हेनरी ने डिजाइन किया है। 

Monday, May 16, 2016

बहन की मौत का दर्द सीने में दबाए महफिल 

में गाती रहीं सुषमा श्रेष्ठ, बजती रहीं तालियां 

प्रख्यात पाश्र्वगायिका सुषमा श्रेष्ठ भिलाई में अपना कार्यक्रम दे रही थी और मुंबई 

में उनकी बहन की मौत हो गई, 45 साल पहले पिता भी ऐसे ही पल में दुनिया छोड़ गए थे

मोहम्मद जाकिर हुसैन/भिलाई
स्टील क्लब में सुषमा (पूर्णिमा) श्रेष्ठ 
प्रख्यात पाश्र्व गायिका सुषमा (पूर्णिमा)  श्रेष्ठ  14 मई 2016 शनिवार की रात स्टील क्लब सेक्टर-8 में एक से बढ़ एक शानदार गीत सुना रही थी। गीत सुनाते हुए वह थोड़ी उदास जरूर थी लेकिन अपने मन की बात उन्होंने ज्यादा लोगों से शेयर नहीं की । उनके एक-एक गीत पर खूब-खूब तालियां बजी, वाहवाही हुई और लोग इसके बाद घर भी चले गए। लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम था कि जिस वक्त सुषमा सुरों की तान छेड़ रहीं थीं, उनके सीने में बहन की मौत का दर्द कसक मार रहा था। सुषमा जब भिलाई के लिए रवाना हुई थी तो उनकी बड़ी बहन देव्यानी वेंटीलेटर पर थीं जिनका शनिवार 14 मई की सुबह निधन हो गया।
सुषमा रविवार की सुबह ही मुंबई रवाना हुई है। उनके जाने के बाद जिसे भी पता चला सभी उनके इस जज्बे को सलाम कर रहा है। वैसे, सुषमा के साथ यह दुर्योग दूसरी बार हुआ है। करीब 45 साल पहले ऐसे ही एक बड़े कार्यक्रम के ठीक पहले उनके पिता भी ह्दयघात से चल बसे थे।
इंटरव्यू के दौरान 
7 साल की उम्र से फिल्मों में पाश्र्वगायन शुरू करने वाली सुषमा श्रेष्ठ बाद के दौर में पूर्णिमा के नाम से गाने लगीं।

आज वह अपनी 7 साल की पोती की दादी बन चुकी हैं।  प्रो. डॉ. टी.उन्नीकृष्णन के साथ एक कंसर्ट 'तू जो मेरे सुर में' पेश करने 13 मई को वे भिलाई पहुंची थीं। आयोजन की तैयारियां करीब छह माह से चल रही थी। इसलिए सुषमा यहां आते ही रिहर्सल में जुट गर्इं। तब तक उनकी बड़ी बहन देव्यानी को मुंबई के एक हास्पिटल में वेंटीलेटर पर रखा जा चुका था। इसके बावजूद बिना विचलित हुए सुषमा अपने रियाज में लगी रहीं। शायद उन्हें उम्मीद थी कि कोई राहत की खबर आएगी। लेकिन 14 मई की सुबह बहन की मौत की खबर आ गई। ऐसे में आयोजकों ने उन्हें ढांढस बंधाया और घर जाने की सलाह दी। लेकिन सुषमा ने घर वालों खास कर अपने जीजा से बात की और फिर कंसर्ट के बाद 15 मई की सुबह ही घर जाने की बात कही। आयोजकों को उनकी बात माननी पड़ी। सुषमा के साथ आई एक सहायिका ने बताया कि देव्यानी उनकी कजिन थी और संयुक्त परिवार में सब एक साथ पले-बड़े हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि बहन का अचानक चले जाना उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा।
ऐसे ही एक शो के ठीक पहले पिता गुजर गए थे 
पिता भोला श्रेष्ठ के साथ सुषमा
आयोजन से ठीक पहले सुषमा ने संक्षिप्त बातचीत में बताया कि 45 साल पहले भी परिवार में ऐसा ही हादसा हुआ था। मुंबई में रह रहे पंजाब मूल के लोगों की संस्था पंजाब एसोसिएशन का सालाना जलसा 12 अप्रैल 1971 को होना था। इसमें राजकपूर अंकल, दारा सिंह जी, प्राण साहब और बीआर चोपड़ा जी जैसी बड़ी बड़ी पंजाबी हस्तियों के सामने अपनी परफ ार्मेंस को लेकर मैं बहुत उत्साहित थी। पिताजी भोला श्रेष्ठ प्रख्यात संगीतकार खेमचंद्र प्रकाश के सहायक थे। वे भी लगातार मुझे तैयारी करवा रहे थे। अचानक 11 अप्रैल को दिल का दौरा पडऩे से पिताजी का देहांत हो गया। ऐसे गमगीन माहौल के बावजूद लोगों ने मुझे किसी तरह कार्यक्रम मे परफ ार्म करने राजी कर लिया। मैनें अगले दिन 12 अप्रैल को प्रोग्राम दिया। तब पिताजी की जगह नरेंद्र चंचल जी ने मेरे साथ संगत की। शो सफ ल रहा और इसके बाद पंजाब एसोसिएशन ने मुझे स्कालरशिप दी।
रवि ने दिया साथ 'तेरा मुझसे है...' में
 तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई......
स्टील क्लब में 14 मई की रात सुषमा (पूर्णिमा) श्रेष्ठ  और प्रो. डॉ. टी.उन्नीकृष्णन ने मिलकर 4 दशक के सुपरहिट हिंदी, मलयाली, तेलुगू और बंगाली गीतों से समां बांध दिया। सुषमा ने अपनी परफ ार्मेंस के दौरान लोगों को यह एहसास नहीं होने दिया कि उनके घर में कोई दुखद घटना घटी है। हालांकि 1973 की फिल्म 'आ गले लग जा' के गीत 'तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई' शुरू करते वक्त उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि यह गीत स्व. राहुल देव बर्मन और मेरे बिछड़े परिजनों को समर्पित है। इसके बाद गाते वक्त कुछ देर के लिए उनका गला रुंध गया। इसी गाने में एक पल ऐसा भी आया जब सुषमा गाते-गाते स्टेज से नीचे उतरी और सामने बैठे भिलाई स्टील प्लांट के ईडी वक्र्स एम. रवि ने माइक संभााल लिया। रवि ने इस गाने का पूरा एक अंतरा गाया और फिर सुषमा ने भी उनका पूरा साथ दिया। इसके बाद पूरी महफिल तालियों से गूंज उठी।

सुषमा/पूर्णिमा की पहचान है ये गीत 
1. है न बोलो-बोलो,  पापा को मम्मी से... (अंदाज)
2. तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई... (आ गले लग जा)
3. यादों की बारात निकली है आज दिल के द्वारे... (यादों की बारात)
4. एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल... (धरम-करम)
5. बड़े अच्छे लगते हैं ये धरती, ये नदिया... (बालिका बधू)
6. इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न... (अंकुश)
7. तूत्तू तू तुत्तू तारा, तोड़ो ना दिल हमारा... (बोल राधा बोल)
8. बरसात में जब आएगा सावन का महीना... (मां)

Saturday, April 16, 2016

घने जंगल के बीच बसा है एक घर का राजस्व गांव 

राजस्व रिकार्ड में शुरू से गांव का दर्जा, रहता है सिर्फ  एक परिवार,देश-विदेश में हैं बच्चे


बंजारीडीह गांव और एकमात्र घर 
घने जंगल के बीच महज एक घर। वह भी पूरी तरह से आबाद। प्रशासनिक रिकार्ड में यह आज भी गांव का दर्जा रखता है। गांव की आबादी महज 25 लोगों की है। इनमें भी बच्चे देश-विदेश में पढ़ रहे हैं। पूर्ण साक्षर, पूरी तरह जागरुक और सर्वसुविधायुक्त यह गांव है बालोद जिले के अंतिम छोर में बसा बंजारीडीह।
आम तौर पर जंगलों के अंदर इक्का-दुक्का घरों के वनग्राम बहुतायत पाए जाते हैं लेकिन अंचल में बंजारीडीह  संभवत: अपनी तरह का इकलौता राजस्व ग्राम है। इस इलाके में चल रही मोहड़ जलाशय परियोजना का मुख्य बांध इसी बंजारीडीह गांव की सीमा पर ही बनना है।
रिजर्व फारेस्ट से होकर जाता है बंजारीडीह का पहुंच मार्ग

ऐसा नहीं कि इस गांव में कभी दूसरे परिवार बसे नहीं। दरअसल घने जंगल के बीच में होने की वजह से यहां बसने वाले ज्यादातर परिवार एक या दो साल में ही यहां से चले गए। वर्तमान में यहां सुंदरा बालोद के मूल निवासी दाऊ भारत सिंह देशमुख के वंशज पूनम कुमार देशमुख, स्व.ऋषि कुमार और ललित कुमार का परिवार एक ही घर में रह रहा हैं। 100 साल पहले यहां आकर बसा देशमुख परिवार आज भी खेती कर रहा है। देशमुख परिवार के वरिष्ठ सदस्य पूनम कुमार देशमुख बताते हैं कि पहले तो बिजली तक नहीं थी और जंगली जानवरों का खतरा बहुत ज्यादा था। बारिश में तो गांव करीब डेढ़ महीने तक बाहरी दुनिया से कटा रहता था। इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमारे पूर्वजों ने जब गांव नहीं छोड़ा तो हम कैसे छोड़ सकते हैं। पूनम बताते हैं कि-हमारे दादाजी ने जेवरतला से रूपसिंह साहू परिवार को यहां लाकर बसाया था। इसी तरह राज्य शासन ने भी 4 किसानों को जमीन देकर यहां बसाने का प्रयत्न किया था। लेकिन सब कुछ साल बाद यहां से चले गए। अब कोई 16-17 परिवार की यहां खेती की जमीन है, जो समय-समय पर खेती के नाम से आते हैं लेकिन यहां स्थाई रूप से रहने कोई नहीं आता।
इस तरह जेठासी में मिला था जंगल के बीच का गांव 
पूनम कुमार देशमुख 
पूनम देशमुख बताते हैं-हमारे परिवार के पितृपुरुष दाऊ भारत सिंह देशमुख का मूल गांव बालोद के समीप सुंदरा व जगतरा है। गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने वाले भारत दाऊ ने तमाम पैतृक संपत्ति अपने छह भाईयों में बांट दी थी। इस त्याग से अभिभूत होकर इन छह भाईयों ने भारत दाऊ के इकलौते बेटे धारा सिंह देशमुख को 105 एकड़ रकबा वाला बंजारीडीह गांव जेठासी (ज्येष्ठ को उपहार) में दिया था। धारा सिंह के दो बेटे पन्नालाल और खम्हनलाल हुए। इनमें स्व. पन्नालाल के 5 बेटे अर्जुन सिंह, परसराम , स्व. पीलालाल, बसंत और पीलेश्वर हुए। इन सभी की काश्तकारी की जमीन बंजारीडीह में है लेकिन निवास आस-पास के गांवों में है। वहीं खम्हनलाल के तीन बेटों पूनम कुमार, स्व. ऋषि कुमार और ललित कुमार का परिवार आज भी बंजारीडीह में रह रहा है।
बच्चे पढ़ रहे देश-विदेश में 
बंजारीडीह गांव पूरी तरह समृद्ध और शिक्षित है। साक्षरता का आलम यह है कि यहां सभी 'निवासीÓ पढ़े-लिखे हैं। वहीं इनकी नई पीढ़ी अब देश-विदेश में पढ़ाई कर रही है या फिर कर चुकी है। पूनम कुमार देशमुख का बड़ा बेटा प्रतुल कुमार देशमुख रशिया में एमडी की पढ़ाई करने गया हुआ है। छोटा बेटा राहुल देशमुख इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुका और बिटिया बीसीए कर रही है।
कभी पत्नी तो कभी पति बनते हैं पंच 
त्रिभुवन व सुनीता (बारी-बारी से पंच )
ग्राम पंचायत कुदारी दल्ली के अंतर्गत आश्रित ग्राम बंजारीडीह वार्ड-7 का दर्जा रखता है और महज एक घर वाले इस गांव में प्रशासनिक कामकाज के लिहाज से जनप्रतिनिधि (पंच) भी हंै। यहां देशमुख परिवार के त्रिभुवन देशमुख-सुनीता बाई देशमुख (बेटा बहू) बारी-बारी से पंच बनते हैं। दरअसल राजनीतिक रूप से भी इस इलाके के तमाम गांव बेहद जागरुक है। यही वजह है कि कुदारी दल्ली ग्राम पंचायत में आज तक जनप्रतिनिधि सर्वसम्मति से निर्वाचित होते आए हैं। जिसके चलते कभी चुनाव की नौबत नहीं आई। फिलहाल बंजारीडीह का प्रतिनिधित्व सुनीता बाई कर रही है। जरूरत पडऩे पर उनके पति और पूर्व पंच त्रिभुवन देशमुख उनके कामकाज में मदद कर देते हैं। सुनीता बाई बताती हैं,यहां सबसे बड़ी समस्या पहुंच मार्ग की है। यहां पहुंच मार्ग की जमीन वन विभाग के अंतर्गत संरक्षित वन क्षेत्र (रिजर्व फारेस्ट) में आती है। मोहड़ बांध परियोजना में मुख्य बांध का प्रस्तावित इलाका बंजारीडीह से लगा हुआ है। ऐसे में जल संसाधन विभाग वालों ने भरोसा दिलाया है कि उनका अमला यहां पहुंच मार्ग बना कर देगा। लेकिन यह भी भविष्य के गर्त में है।

एक मकान वाले गांव की खास बातें 
गोबर गैस का इस्तेमाल
संरक्षित वन क्षेत्र से होकर जाता है गांव का रास्ता
आबादी 25 लेकिन रहते हैं 11 लोग, बाकी बच्चे देश-विदेश में पढ़ रहे
उन्नत और आधुनिक खेती है आय का मुख्य जरिय
तत्कालीन दुर्ग जिले के प्रथम शत-प्रतिशत साक्षर गांव में से एक
गोबर गैस का शत-प्रतिशत इस्तेमाल
 बालोद व राजनांदगांव दोनों जिले का बिजली कनेक्शन इस गांव में

'' ये जानना काफी रोचक है कि जंगल के अंदर मात्र एक घर वाला राजस्व गांव है। मैं एक बार जाकर जरूर देखना चाहूंगा। अगर वहां किसी प्रकार के कार्यों की जरूरत है तो जिला प्रशासन जरूर करवाएगा।'' 
राजेश सिंह राणा, कलेक्टर बालोद 

Tuesday, January 5, 2016

मैनें इंदिरा गांधी नहीं गायत्री देवी से 
प्रभावित होकर लिखी थी 'आंधी' 

प्रख्यात कथाकार व पत्रकार कमलेश्वर से खास चर्चा 


साक्षात्कार के अगले दिन सुबह
भिलाई (12 जनवरी 2003)। प्रख्यात साहित्यकार व पत्रकार कमलेश्वर का मानना है कि साहित्य कोई क्रांति नहीं ला सकता बल्कि क्रांति लाने वालों का मार्गदर्शन भर कर सकता है। 
बहुचर्चित उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' के बेस्ट सेलर बनने से उन्हें अपने उद्देश्यों की पूर्ति का संतोष है। इंदिरा गांधी पर केंद्रित माने जाते रहे बहुचर्चित उपन्यास 'काली आंधी' के संबंध में कमलेश्वर का कहना है कि उन्होंने यह उपन्यास इंदिरा गांधी से प्रभावित होकर नहीं बल्कि जयपुर की महारानी गायत्री देवी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लिखा था।
 इन दिनों इंदिरा गांधी पर ही महत्वाकांक्षी फिल्म का लेखन कर रहे कमलेश्वर मानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और सीमांत गांधी पर भी फिल्म बननी चाहिए। 
कमलेश्वर के मुताबिक छत्तीसगढ़ में श्रेष्ठ साहित्य लिखा जा रहा है क्योंकि यहां के लोग बाजारवाद से दूर हैं। छत्तीसगढ़ी बोली में भाषा बनने की उन्हें पूरी संभावनाएं नजर आती है। 
इन दिन गुजरात त्रासदी पर केंद्रित उपन्यास लिख रहे कमलेश्वर से उनके भिलाई प्रवास के दौरान विशेष बातचील हुई। 


सवाल-जवाब

0 दो वर्ष पूर्व लिखा गया आपका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' आज भी बेस्ट सेलर है। 
जिन उद्देश्यों को लेकर आपने उपन्यास लिखा, क्या आप उसमें सफल रहे? 
00 इस उपन्यास को जितना विशाल व विराट पाठक समुदाय मिला, उससे निश्चित ही संतोष हुआ। हिंदी में इसके 9 संस्करण निकल चुके हैं और मराठी, उर्दू, बांग्ला व उडिय़ा में इसका अनुवाद हुआ।
कई जगह यह किताब 'ब्लैक' में साइक्लोस्टाइल स्वरूप में भी बिकी। मेरा संदेश ज्यादा लोगों तक पहुंचा। इससे लगता है कि मैं अपने उद्देश्य में सफल रहा। 

0 आपने (काली ) आंधी जैसी संवेदनशील फिल्म लिखी तो मिस्टर नटवरलाल और राम-बलराम जैसी मसाला फिल्म भी. क्या मसाला फिल्म लिखते हुए कहीं आपको अपने स्तर से समझौता करना पड़ा? 
00 कोई समझौता नहीं। अगर मैं व्यावसायिक तरीके से 'मिस्टर नटवरलाल' या 'राम-बलराम' लिख रहा हूं तो मेरा मकसद अपनी फिल्म को सफल बनाना है। अब इसका मतलब यह नहीं कि मैं गलत करूंगा।

जयपुर सांसद गायत्री देवी अपनी जनता की समस्याएं सुनते हुए।

0 आपकी 'काली आंधी' में इंदिरा गांधी की छवि दिखती है? 
00 ऐसा नहीं है, यह लोगों की गलतफहमी है कि 'आंधी' मैंनें इंदिरा गांधी को केंद्र में रख कर लिखी। दरअसल उन दिनों जयपुर में महारानी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ रही थी। 
मैं जयपुर गया था चुनाव की रिपोर्टिंग करने। वहां देखा तो गायत्री देवी एक हाथ मेें नंगी तलवार और सिर पर कलश लिए पूजा के लिए मंदिर जा रही हैं। उनके पीछे हजारों की भीड़ है। उस वक्त मेरे ध्यान में आया कि ऐसी महिलाएं ही राजनीति में आनी चाहिए और इसके बाद मैनें 'काली आंधी' लिखना शुरू किया। 

0 लेकिन इस पर बनीं फिल्म तो इंदिरा गांधी के जीवन के काफी करीब लगती है? 
00 दरअसल जब गुलजार ने 'आंधी' बनाने सुचित्रा सेन को चुना तो उसके सामने कोई मॉडल नहीं था।

 हमनें इंदिरा गांधी, तारकेश्वरी सिन्हा और नंदिनी सत्पथी के चेहरे सामने रखे। जिसमें कहानी के अनुसार सुचित्रा सेन को इंदिरा गांधी की भाव-भंगिमा पसंद आई।इसके बाद सुचित्रा का गेटअप ठीक इंदिरा गांधी की तरह रखा गया, इसलिए लोगों को यह गलतफहमी हो जाती है। 


0 इन दिनों आप इंदिरा गांधी पर केंद्रित महत्वाकांक्षी फिल्म का लेखन कर रहे हैं। क्या आप उसमेें इंदिरा के संपूर्ण व्यक्तित्व से न्याय कर पाएंगे? 
00 जिस तरह रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' थी उसी तरह यह फिल्म होगी। यकीन मानिए, इसमेें इमरजेंसी के हालात, आपरेशन ब्ल्यू स्टार सहित तमाम वह बातें भी होंगी जो इंदिरा के व्यक्तित्व के दूसरे पहलू से भी रूबरू कराती है। 

0 क्या मनीषा कोईराला को दर्शक इंदिरा गांधी के रूप में स्वीकार कर पाएगा, जबकि वह 'छोटी सी लव स्टोरी' से विवादित हो गई हैं?
00 जिस वक्त कलाकार का चयन करना था हम लोगों ने तब्बू, नंदिता दास सेल लेकर दक्षिण व बांग्ला की कई अभिनेत्रियों के चेहरे व भाव-भंगिमा का अध्यन किया। 
लेकिन, कंप्यूटर पर मनीषा का चेहरा इंदिरा के काफी करीब लगा। इसलिए उसे चुना गया। जहां तक 'लव स्टोरी' वाली बात है तो मैं उस विवाद मेें पडऩा नहीं चाहता। आखिरकार मनीषा एक कलाकार भी है और विभिन्न किरदारों को निभाना उसका पेशा है। 

0 इंदिरा गांधी के अलावा राजनीति मेें आपको कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं लगता जिस पर आप फिल्म लिखें और वह चले भी? 
00 क्यों नहीं सुभाषचंद्र बोस हैं, जवाहरलाल नेहरू हैं और फिर सीमांत गांधी भी हैं। इन सब पर फिल्म बननी चाहिए। 

0 इन दिनों सैटेलाइट चैनलों पर जो सीरियल आ रहे हैं उनका समाज में कैसा प्रभाव महसूस करते हैं? 
00 माफ कीजिएगा, इन सीरियलों से मेरे अपने घर की महिलाएं 'डि-वैल्यूड' होती  दिखती है। सीरियलों में और खूबसूरत होती सास या बहू को देख कर मुझे लगता है कि इतनी सुंदर तो मेरे घर की महिलाएं भी नहीं है। 

0 हिंदी की पहली कहानी माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ़ में ही लिखी थी। लेकिन, आज भी साहित्य के नक्शे में छत्तीसगढ़ का विशेष स्थान नहीं बन पाया? 
00 साहित्य में छत्तीसगढ़ का महत्व तो पहले से ही रेखांकित हो चुका है। फिर मैनें पहले ही कहा कि छत्तीसगढ़ के पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी और सप्रे जी के बिना हिंदी साहित्य का इतिहास ही लंगड़ा है। 

0 फिलहाल छत्तीसगढ़ में जो साहित्य लिखा जा रहा है उस पर आपकी टिप्पणी? 
00 यहां छत्तीसगढ़ में तो बहुत अच्छा लिखा जा रहा है। परदेशी राम की कहानियां बहुत अच्छी है। कनक तिवारी, सतीश जायसवाल भी लिख रहे हैं। कबीर पर जितना अच्छा अंक महावीर अग्रवाल ने 'सापेक्ष' का निकाला है, मेरी नजर में पूरे भारत मेें इसकी मिसाल नहीं है। दरअसल छत्तीसगढ़ में इतना अच्छा इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि यहां के लोग बाजारवाद से दूर हैं। 

0 यहां मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का दर्जा दिलाने का संकल्प व्यक्त किया है। आपकी नजर में छत्तीसगढ़ी बोली के भाषा मेें तब्दील होने की क्या संभावनाएं हैं? 
00 बहुत संभावनाएं हैं। छत्तीसगढ़ी में कोई कमी नहीं है। दरअसल जब तक तमाम क्षेत्रीय सहयात्री भाषाएं पुष्ट होकर सामने नहीं आएंगी तब तक हिंदी समृद्ध नहीं होगी। 

0 यहां छत्तीसगढ़ में साहित्य के क्षेत्र में दो लाख रुपए का पुरस्कार विवादित हो गया है। आरोप है कि राज्य के सांस्कृतिक सलाहकार अशोक बाजपेयी के खेमे  से कथित रूप से जुड़े लोगों (विनोद कुमार शुक्ल और कृष्ण बलदेव वैद्य) को ही इस पुरस्कार से नवाजा गया। आपकी क्या राय है? 
00 अगर साहित्यकारों को सम्मान मिल रहा तो ये अच्छी बात है। बाकी बेवजह की बातों में कुछ रखा नहीं है। 

0 आज साहित्य में क्रांति जैसी बातें सुनाई नहीं देती? 
00 दरअसल साहित्य से क्रांति नहीं होती है बल्कि जो लोग क्रांति कर सकते हैं साहित्य उनके काम आता है। 

0 साहित्य में किसी वाद या एजेंडे का लेखन क्या मायने रखता है? 
00 एजेंडे का लेखन गलत है।स्त्री विमर्श,दलित विमर्श यह सब क्या है? यह ज्यादा दूर तक नहीं चल सकता। 

0 प्रारंभिक दिनों में आपने पेंटर का काम भी किया और आपका हस्तलेखन बहुत ही कलात्मक है। क्या आज भी पेंटिंग के शौक से रचनात्मक स्तर पर जुड़े हैं? 
00 नहीं पेंटिंग तो अब नहीं करता। क्योंकि एमएफ हुसैन पेंटिंग को जिस ऊंचाई तक ले गए हैं उसके बाद मुझे लगा कि यह मेरे काम की चीज नहीं है। वैसे मेरा मानना है कि क्रिएटिव ग्रेटनेस किसी भी काम को निरंतर करने से कायम रहती है। 

0 आपके समकालीन और पूर्ववर्ती में ऐसे कौन से व्यक्तित्व हैं, जिन्हे देख कर आपको लगता है कि ऐसा नहीं बन सका? 
00 ऐसा तो कोई भी नहीं। क्योंकि मुझे अपने आप पर भरोसा था। हां, प्रभावित जरूर रहा हूं। गणेश शंकर विद्यार्थी से, प्रेमचंद से और निराला के 3 उपन्यासों से। 

0 प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने गोवा चिंतन मेें जो हिंदूत्व की परिभाषा दी है उससे आप कितना इत्तेफाक रखते हैं? 
गुड़गांव के निवास में 2004
00 यह तो उनके लिए बड़ी सुविधाजनक चीज है। आप बताईए आखिर हिंदुत्व है क्या चीज? उनके अडवाणी, तोगडिय़ा,सिंघल, मोदी और ठाकरे सब का हिंदुत्व अलग-अलग है।
 पहले बाजपेयी ने अमरीका में खुद को संघ का सच्चा स्वयंसेवक कह दिया फिर भारत आकर संघ का मतलब भारत संघ बता दिया। 
अब गोवा चिंतन आया है तो यह सब उनकी सुविधा के हिसाब से है। कम शब्दों में कहूं तो एक मित्र ने कहा है-'बाजपेयी जी आपने घुटने तो बदलवा लिए लेकिन देश के घुटने तोड़ दिए।' 
गुजरात को लेकर अमरीका में बाजपेयी और इंग्लैंड में अडवाणी ने जब शर्मिंदगी का इजहार किया तो फिर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी में कैसे चले गए? अभी प्रवासी दिवस मनाया गया।
 इसमें उन्हीं लोगों को बुलाया गया जो थ्री पीस के नीचे भगवा पहनते हैं। पहले उनके लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था। अब अप्रवासी भारतीयों के साथ इसे अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रवाद का नाम दिया जा रहा है। यह बी हिंसक हिंदुत्व का दूसरा रूप है। 

0 तो आखिर हिंदुत्व है क्या? 
00 दरअसल हिंदुत्व तो सावरकर की किताब से पैदा होता है। जिसमें उन्होंने साफ कहा है कि इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। तो फिर इसे वही लोग 'डिफाइन' करें। 

0 प्रिंट मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश से क्या खतरा देखते हैं? 
00 खतरा तो अंग्रेजी पत्रकारिता को होगा, हिंदी पत्रकारिता को नहीं। हां, इससे भाषाई भगवाकरण का खतरा जरूर बढ़ रहा है। 

0 इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं? 
00 एक उपन्यास लिख रहा हूं। गुजरात में जो मानवीय त्रासदी हुई, यह उसी पर आधारित है। 
(रविवार 12 जनवरी 2003 को भिलाई निवास में लिया गया इंटरव्यू 13 जनवरी 2003 के हरिभूमि भिलाई-दुर्ग संस्करण में प्रमुखता से प्रकाशित)
 
परिचय
इंटरव्यू के मिनिएचर पर आटोग्राफ
कमलेश्वर (पूरा नाम-कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना) का जन्म 6 जनवरी 1932 को मैनपुरी उत्तरप्रदेश में हुआ। लेकिन, वे अपनी उम्र के साथ भारत की पिछले पांच हजार वर्षों की सांस्कृतिक उम्र को जोडऩा कभी नहीं भूलते। 
अपनी स्कूली पढ़ाई के बाद कमलेश्वर ने इलाहाबाद से इंटर-बीए और फिर हिंदी में एमए की पढ़ाई पूरी की। उनका पहला उपन्यास 'एक सडक़ सत्तावन गलियां' पहले 'हंस' में और फिर 'बदनाम गली' शीर्षक से भी छपा। 
उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद जीविका के लिए कुछ ऐसे कार्य भी किए जो अब बेहद अविश्वसनीय लग सकते हैं। मसलन किताबों एवं लघु पत्र-पत्रिकाओं के लिए प्रूफ रीडिंग, कागज के डिब्बों पर डिजाइन और ड्राइंग बनाने का काम,ट्यूशन पढ़ाना, पुस्तकों की सप्लाई से लेकर चाय के गोदाम में रात की पाली में चौकीदारी तक शामिल है। 
सन 1948 में पहली कहानी 'कॉमरेड' से लेकर अब तक इनकी साहित्यिक यात्रा में ढेरों कहानियां, उपन्यास, यात्रा संस्मरण, नाटक व आलोचनाएं प्रकाशित हो चुके हैं। पत्रिका 'सारिका' के संपादक (1967-78)के रूप में उन्होंने हिंदी कहानी के समानांतर आंदोलन का नेतृत्व किया। 
उनके कई उपन्यास छपने से पहले पत्रिकाओं में छप कर चर्चित हुए हैं साथ ही फिल्मों के लिए भी उन्होंने खूब लिखा। उनके उपन्यास 'काली आंधी' पर गुलकाार ने 'आंधी' नाम से बेहद सशक्त फिल्म बनाई। 
इसके अलावा उन्होंने मौसम, अमानुष, फिर भी, सारा आकाश जैसी कलात्मक फिल्मों से लेकर 'मि. नटवरलाल','सौतन', 'द बर्निंग ट्रेन' और 'राम-बलराम' जैसी मसाला फिल्मों सहित उन्होंने कुल 99 फिल्मों के लिए लेखन किया। इन दिनों वे इंदिरा गांधी पर बनने वाली महत्वाकांक्षी फिल्म के लिए लेखन कार्य में जुटे हुए हैं।
 दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक (1980-82) रहने के अलावा उन्होंने मीडिया के समस्त क्षेत्रों में काम किया है। दूरदर्शन के लिए अछूते विषयों और सवालों से पूरे देश को झकझोर देने वाले 'परिक्रमा' कार्यक्रम (जिसे यूनेस्को ने दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ टेलीविजन कार्यक्रम माना था) में कमलेश्वर ने ज्वलंत मुद्दों पर खुली और गंभीर बहस करने की दिशा में साहसिक पहल की थी। 
बीसवीं सदी अवसान की बेला में प्रकाशित उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' आज भी बेस्ट सेलर है। इन दिनों राष्ट्रीय दैनिक में संपादन के अलावा स्वतंत्र लेखन के साथ निजी टीवी चैनल को वे अपनी सेवाएं दे रहे हैं।  27 जनवरी 2007 को फरीदाबाद में उन्होंने आखिरी सांस ली।