मेरा कश्मीरनामा-4
चंद कपड़े और घरेलु एलबम लेकर रातों-रात अपना घर छोड़ना पड़ा था
गंजू परिवार को, आज भी याद आती है सत्थू बरबरशाह की वो गलियां
कश्मीर में फिल्मों की शूटिंग का सुनहरा दौर देख चुके गंजू
को अब सब सपना लगता है, लौटना चाहते हैं अपने घर
डाउन टाउन श्रीनगर में बाजार की एक गली |
मुहम्मद जाकिर हुसैन
साल के 365 दिनों में कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं जो निजी तौर पर लोगों के लिए खास अहमियत रखती हैं। साल 1989 की 24 जनवरी ऐसी ही तारीख है जो गंजू दंपत्ति को भुलाए नहीं भुलती।
श्रीनगर के तीन सितारा होटल पम्पोश के मैनेजर तेज कृष्ण गंजू और बारामूला में शासकीय वित्त विभाग में कार्यरत शकुंतला (अंजू) गंजू को अपनी ढाई वर्षीय बच्ची मोना के साथ रातों रात घर छोड़ना पड़ा। जल्दबाजी में बैग में कुछ कपड़े ही रख पाए थे और साथ रह गया था पारिवारिक एल्बम।
कश्मीर की याद आती है तो बच्चों को दिखाते हैं पुराना एलबम
गंजू परिवार 2012 में (साभार-फेसबुक) |
तेज गंजू अब यहां भिलाई में एक शीतल पेय कंपनी में क्षेत्रीय प्रबंधक हैं, लेकिन उनके पास अपने घर की निशानी के रूप में एक एल्बम ही बचा है।
जब भी गंजू दंपत्ति को अपने कश्मीर की याद आती है तो अपने बच्चों 7 वर्षीय अभिनव और 15 वर्षीय मोना को याद से एल्बम दिखाते हैं कि ऐसा था हमारा कश्मीर। पाकिस्तान राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा को लेकर गंजू दंपत्ति का मानना है कि इससे कश्मीर समस्या हल होने वाली नहीं। गंजू कहते हैं दोनों देशों के बीच वार्ता कहां तक सफल होगी कहना मुश्किल है।
हालांकि वह कहते हैं, यह तय है कि यह बातचीत और जनरल मुशर्रफ का दौरा सिर्फ गेट टू गेदर हो कर रह जाए। जब तक केंद्र सरकार और कश्मीरियों के लिए भी कोई गुंजाईश नहीं है। अब यह आने वाला वक्त ही बताएगा कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ के भारत दौरे से हमें क्या हासिल होता है।
आज हम कश्मीर जाएं तो शायद नहीं पहचान पाएंगे अपनी ही गलियां
सत्थू बरबरशाह का एक मंदिर |
श्रीमती गंजू कहती है चूंकि हमारा बचपन वहीं गुजरा और हम बड़े भी वहीं हुए इसलिए हम कश्मीर को तो भूल नहीं सकते।हालात ऐसे बना दिए गए कि हमें अपनी जमीन छोड़नी पड़ी।
आज भी मन करता है कि हम अपने घर जाएं लेकिन, सच्चाई यह है कि अगर हम किसी तरह वहां पहुंच भी गए तो उन गलियों को भी अब नहीं पहचान पाएंगे। क्योंकि, हमारा अतीत बहुत पीछे छूट चुका है। दहशतगर्दों ने तो वहां की गलियों तक को तहस-नहस कर दिया है। श्रीमती गंजू बताती है-जिस रात हम लोगों ने कश्मीर को अलविदा कहा उसके पहले से ही विषम परिस्थिति निर्मित हो रही थी। घर छोडऩे के 3 दिन पहले 21 जनवरी को सत्थु बरबरशाह में हमारे मकान के सामने से एक विशाल रैली निकाली।
रैली में शामिल लोग मुंह में कपड़ा बांधे हुए और हथियार पकड़े हुए थे। इन अलगाववादियों को मकसद दहशत फैलाना था और जिसमें वो सफल भी हुए। इसका बुरा असर दोनों समुदाय पर पड़ा। हमें विस्थापित होना पड़ा। तब जो हमारे साथ हुआ, हम नहीं चाहेंगे किसी और के साथ हो।
वह कहती है दूसरे कश्मीरी पंडितों की तरह हमने अपना घर, जमीन, जायजाद सब कुछ वहीं छोड़ दिया और अपनी जान बचाकर किसी तरह वहां से निकले। उस मंजर को याद कर आज भी हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
गंजू एक बक्से में रखे कपड़े और जूते दिखाते हुए बताते हैं आज भी इसे हम हिफाजत से रखे हुए हैं। जिस रात हम लोगा वहां से निकले थे इसी पोशाक में थे। आज भी हमें अपने सत्थू बरबरशाह की वो गलियां याद आती हैं।
ईद में हमारे घर चूल्हा नहीं जलता था और महाशिवरात्रि पर उनके घर
श्रीनगर के हजरतबल दरगाह व शंकराचार्य मंदिर में ईद और महाशिवरात्रि |
तेजकृष्ण गंजू कहते हैं हमारा कश्मीर तो वाकई जन्नत था लेकिन, दहशतगर्दों ने उसे दोजख बना दिया।
वह बताते हैं कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों में इतनी एकता थी कि ईद में हमारे घर चूल्हा नहीं जलता और महाशिवरात्रि के दिन मुसलमानों के यहां। दोनों एक ही थाली में खाते थे।
गंजू कहते हैं कश्मीर में आतंकवाद के लिए वहां के मुसलमान कतई दोषी नहीं हैं क्योंकि वहां तो आतंकवादियों के नाम पर पाकिस्तानी, अफगानिस्तानी और सूडानी लड़ रहे हैं और यह लोग धर्म के नाम पर इन लोगों को इस्तेमाल करना चाहते है।
इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चों के हाथों में क्लाश्निकोव (एके-47) थमाए गए। आज आम कश्मीरी आतंकवाद से तंग आ चुका है। हमें वहां रह रहे आम कश्मीरियों के बारे में भी जानना चाहिए।
हमारा आम कश्मीरी तो चाहता है कि हिंदू भाई फिर उसका पड़ोसी बन जाए। डल झील के शिकारों में कोई हलचल नहीं है, शिकारे वाला इंतेजार कर रहा है कि कोई तो सैलानी आए। यह हम सब की बदनसीबी है।
'सिलसिला' के वो यादगार दिन, अब सब पीछे छूट गया
सिलसिला में अमिताभ-रेखा व कश्मीर में शूटिंग के दौरान निर्देशन करते यश चोपड़ा |
कश्मीर में हिंदी व अन्य फिल्मों के निर्माण से संबद्ध रहे गंजू ने श्रीनगर दूरदर्शन में भी अपनी सेवाएं दी।
वहीं उनके लिखे अधिकांश नाटक आल इंडिया रेडियो से प्रसारित हुए हैं जिसके लिए वे सम्मानित भी हो हो चुके हैं। लेकिन अब यह सब पीछे छूट गया।
वह बताते हैं- यश चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' की शूटिंग के दौरान कश्मीर में उन्हें प्रोडक्शन विभाग में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी। तब डायरेक्टर यश चोपड़ा, कलाकारों में अमिताभ बच्चन, रेखा, जया और टीम के सभी सदस्यों से अच्छी जान पहचान हो गई थी।
'सिलसिला' की टीम के सभी लोग तब कश्मीर खूब घूमे थे। इस फिल्म में "देखा एक ख़्वाब" गीत को नीदरलैंड के केयूकेनहोफ़ ट्यूलिप गार्डन और पहलगाम के कुछ हिस्सों में में शूट किया गया था।
गंजू कहते हैं- बात सिर्फ 'सिलसिला' की ही नहीं बल्कि 75-80 के दौर में जितनी भी फिल्मों की शूटिंग हमारे कश्मीर में हुई, वहां किसी न किसी रूप में मेरी भागीदारी रहती थी।
फिर ज्यादातर फिल्मों की टीम हमारे होटल में ही रुकती थी। इस वजह से सबसे मिलना होता था। वह कहते हैं अब तो वहां ऐसा माहौल ही नहीं रहा कि कोई उन खूबसूरत वादियों को अपने कैमरे में उतारे और कोई फिल्म बनाए।
कश्मीर से निकल कर हम लोगों ने पहली बार देखा क्या होती है गरीबी
हरिभूमि भिलाई -13 जुलाई 2001 |
गंजू कहते हैं-कभी तो लगता है जन्नत को छोड़ हम दोजख में आ गए। कश्मीर से बाहर निकल कर हम लोगों ने पहली बार देखा और जाना कि गरीबी क्या होती है।
छत्तीसगढ़ में हमें कोई मदद नहीं मिली सरकारी स्तर पर वर्तमान में हाउसिंग बोर्ड औद्योगिक क्षेत्र निवासी गंजू कहते हैं जो कश्मीरी अपना घर-बार छोड़कर आए हैं उनको सरकार से भी कुछ नहीं मिलता।
अपने कटु अनुभव बताते हुए श्रीमती गंजू कहती है जिस वक्त हम कश्मीर छोड़ नागपुर के बाद यहां आए, जिला प्रशासन से तीन महीने तक मात्र 200-200 रूपए की मदद मिली। फिर उसी दौरान केंद्र सरकार द्वारा प्राथमिकता और मेरिट के आधार पर नौकरी के लिए गई अनुशंसा की मेरी फाईल आज तक कलेक्टोरेट में घूम रही है।
12 साल से नौकरी का पता नहीं है। गंजू कहते हैं दूसरे राज्यों में कश्मीर से आए लोगों को सहायता राशि के तौर पर 3-3 हजार रूपए मिलते हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में तीन परिवार हैं लेकिन सरकार उनकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती।
गंजू कहते हैं विडंबनाएं तो बहुत हैं इसके बाद भी हमें यहीं रहना है क्योंकि हम चाह कर भी अपने कश्मीर नहीं जा सकते। हम तो किसी तरह अपने आप को समझा चुके हैं लेकिन अब हमारे बच्चे तो हमारी उस जमीन के बारे में कुछ जानते ही नहीं। हम नहीं जानते कि हम कब अपनी जमीन में वापस लौट सकेंगे।
नोट:- पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा के दौरान हरिभूमि भिलाई संस्करण में दुर्ग-भिलाई में रह रहे कश्मीरी परिवारों का इंटरव्यू 10 जुलाई 2001 से लगातार 15 दिन तक प्रकाशित हुआ। यह इंटरव्यू उसी श्रृंखला का हिस्सा है। शेष कड़ियां आप यहां नीचे लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं।