''रिटायरमेंट'' का फैसला मेरा खुद का था, चुनाव लड़ने से न किसी ने रोका ना कहा
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने अनौपचारिक चर्चा में की अपने दिल की बातें
मुहम्मद जाकिर हुसैननोएडा स्थित निवास में यशवंत सिन्हा |
0 आप मुख्यधारा की राजनीति से बिल्कुल दूर हो गए हैं, क्या यह आपका राजनीतिक वनवास है?
00 इसे वनवास कहना ठीक नहीं। दरअसल यह एक तरह का रिटायरमेंट है, जिसे मैनें खुद चुना है। क्योंकि मेरा मानना है कि दो तरह की राजनीति में सक्रिय रह कर देशहित में कार्य किया जा सकता है। पहला तो आप सक्रिय राजनीति में रह कर चुनाव लड़ें और मंत्री या जनप्रतिनिधि रहते हुए योगदान दें और दूसरा किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन में रहते हुए देश की चिंता करें। जैसा कि गांधी जी और जयप्रकाश जी ने करते हुए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई थी. हालांकि अभी मैं गांधी जी और जयप्रकाश जी वाली भूमिका से कुछ दूर हूं।
0..तो क्या 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे का फैसला आपका खुद का था?
00मुझे चुनाव लडऩे से न किसी ने रोका न ही किसी ने कोई प्रस्ताव दिया। जब उन्होंने (इशारा पार्टी के नीति निर्धारकों की तरफ) 75 साल से उपर वालों का नियम बनाया था तो मैनें उसके पहले ही तय कर लिया था कि अब संसदीय चुनाव नहीं लड़ूंगा और इस तरह 2014 में मैं अपनी परंपरागत सीट हजारीबाग (झारखंड)से उम्मीदवार नहीं था।
0 मोदी सरकार में मंत्री आपके सुपुत्र जयंत सिन्हा के कामकाज में आपका कितना मार्गदर्शन या दखल रहता है?
00 बतौर मंत्री जयंत का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है और मैं नहीं समझता कि मुझे उन्हें इसमें किसी तरह का मार्गदर्शन देना चाहिए। हां, एक परिवार में जैसे पिता-पुत्र की बात होती है हमारे रिश्ते भी वैसे ही हैं। मंत्री के तौर पर जयंत क्या करते हैं, उससे मुझे सरोकार नहीं लेकिन हजारीबाग के विकास को लेकर हमारी चर्चा जरूर होती है।
सिन्हा दंपत्ति के साथ |
00 आज की सरकार पर टिप्पणी करना मेरा मकसद नहीं है क्योंकि इससे गलतफहमी ज्यादा बढ़ जाती है। वैसे भी हम तो संघ के बाहर के हैं। इतना जरूर है कि तब (बाजपेयी सरकार के दौरान) हमारे वक्त में संघ तो हावी नहीं हो पाया था और ज्यादातर फैसलों में संघ के लोग हमारे विरोध में ही थे।
0 सार्वजनिक जीवन में अब कैसी सक्रियता या व्यस्तता रहती हैं?
00 देखिए, अपने परंपरागत निर्वाचन क्षेत्र रहे हजारीबाग के लिए तो लगातार काम कर रहा हूं। पिछले साल वहां रेल नेटवर्क आ गया। यहां दिल्ली में टेलीविजन चैनलों के शाम के डिबेट में मैं जाता नहीं। क्योंकि आधे घंटे की चिल्लपो में आपको 2 मिनट बोलने का मौका मिलता है और उसमें भी एंकर हावी होने लगता है। इसलिए मैनें सभी चैनलों को साफ मना कर दिया है। पिछले साल हिंदी के एक बड़े अखबार ने मुझे साप्ताहिक कॉलम लिखने प्रस्ताव दिया था। तीन हफ्ते मैनें कॉलम लिखा भी। फिर मुझे लगा कि वह अखबार पत्रकारिता के मानदंडों पर खरा नहीं उतर रहा है तो मैनें वहां लिखना बंद कर दिया। अब सिर्फ एनडीटीवी इंडिया के लिए हर हफ्ते ब्लॉग लिख देता हू्ं।
0 कलराज मिश्र जैसे कुछेक अपवादों को छोड़ कर पार्टी के 75 पार वरिष्ठ नेताओं को मंत्री न सही राज्यपाल तो बनाया जा रहा है। क्या ऐसा कोई प्रस्ताव मौजूदा सरकार की ओर से आपको मिला?
00 यह सवाल ही नहीं उठता। मुझे अपने फैसले खुद लेने की आदत है। राज्यपाल बनना होता तो 1990 में ही बन जाता। तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक रोज बुलाया और बोले -आपको पंजाब का राज्यपाल बना कर भेजना चाहते हैं। तब मैनें साफ मना कर दिया था। आज ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से नहीं आया और न ऐसा प्रस्ताव स्वीकार कर सकता हूं।
भिलाई में ब्याह |
00प्रत्याशी तय करना उनका (केंद्र सरकार) का फैसला है। मैंनें अपनी लाइफ तय कर ली है। तो,ऐसी उम्मीदें मैं क्यों पालूं। हां, पार्टी के अंदर कुछ नाम जरूर सुन रहा हूं। जिनका मैं खुलासा नहीं कर सकता। हालांकि धारणा यह बन रही है कि जो चर्चा में नहीं है, ऐसा कोई नया नाम सामने आएगा।
0पाकिस्तान को लेकर हमारे देश की नीति कैसी होनी चाहिए?
00(मोदी सरकार पर टिप्पणी नहीं करने की शर्त पर उन्होंने कहा) मैं जनरल मुशर्रफ की जीवनी पढ़ रहा था, उसमें एक जगह वह लिखते हैं-इंडिया से वालीबॉल का मैच जीतने पर पाकिस्तान में जबरदस्त खुशी का माहौल था। तो दोनों देशों में खेल में हार-जीत पर खुश होने वाली स्थिति है। बहुत सी बातें ऐसी हैं कि जिनसे यह बार-बार जाहिर करने की कोशिश होती है कि पाकिस्तान हमारे बराबर का देश है। कश्मीर को लेकर अब तक हमारे देश मेें एक नीति नहीं रही है। अब तक जो भी प्रधानमंत्री आए, उन्होंने अपने अनुसार नीति बना ली।
0 देश की आर्थिक नीति और विदेश नीति से कितने संतुष्ट हैं?
00 इन पर मेरा कुछ भी सार्वजनिक कहना ठीक नहीं।
0 राजनीतिक जीवन में इतने अनुभव के बाद अचानक चुप्पी को जनता क्या समझे?
00इसे चुप्पी न समझें। अपनी बायोग्राफी (आत्मकथा) लिख रहा हूं। अगले साल तक पूरी हो जाएगी। उसमें सारी बातें लिखूंगा। पब्लिशर से बात हो गई है। जरा इंतजार कीजिए।
0छत्तीसगढ़, खास कर भिलाई से आपका रिश्ता रहा है, उसे कैसे बयां करेंगे?
00अब इस बात को पूरे 56 साल हो चुके हैं। (पत्नी नीलिमा सिन्हा की तरफ इशारा करते हुए) इनके पिता निर्मलचंद्र श्रीवास्तव जी भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के जनरल मैनेजर थे और वहीं भिलाई के डायरेक्टर बंगला में हमारी शादी हुई। अरसा बीत गया है लेकिन भिलाई की तरक्की की खबर मिलते रहती है। भिलाई ने अच्छी तरक्की की है और छत्तीसगढ़ तो पिछले 16 साल में काफी बदल गया है। सुन कर और जानकर अच्छा लगता है।
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