इंसान के चांद पर जाने की खबर सुनने के साथ शुरू हुआ स्पेस से मेरा इश्क
यंग साइंटिस्ट कांग्रेस में हिस्सा लेने भिलाई पहुंचे इसरो चीफ ने की दिल की बातें
भिलाई में पत्रकार बिरादरी के साथ डॉ. किरण कुमार |
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन डॉ. अलुरु सिरील किरण कुमार 28 फरवरी 2017 को भिलाई आए। यहां छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय भिलाई की मेजबानी में छत्तीसगढ़ काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नालॉजी (सी-कॉस्ट) की 15 वीं यंग साइंटिस्ट कांग्रेस में चीफ गेस्ट के तौर पर पहुंचे डॉ. किरण कुमार ने मिशन मंगल पर अपना आधार वक्तव्य (की-नोट एड्रेस) दिया और प्रेस से बातचीत में कई सवालों के जवाब भी दिए। इस दौरान तकनीकी विवि के कुलपति डॉ. मुकेश कुमार वर्मा भी मौजूद थे।
सादगी पसंद शख्सियत डॉ. किरण कुमार बातचीत में भी बेहद सरल नजर आए। उन्होंने हिंदी में सारे सवालों के जवाब दिए। 15 फरवरी 2017 को इसरो के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से अपने एकल मिशन में देश-विदेश के रिकार्ड 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। इस उल्लेखनीय उपलब्धि के बाद चर्चा में आए इसरो चीफ किरण कुमार यहां भिलाई प्रवास के दौरान लोगों की नजरों में एक हीरो की तरह थे। हर कोई उनसे मिलना चाहता था और उन्होंने निराश भी नहीं किया। यहां तक कि फोटो खिंचवाने और आटोग्राफ देने में भी वह बेहद सहज रहे। पत्रकारों से बातचीत और अपने आधार वक्तव्य में उन्होंने जो कुछ कहा, वो सब कुछ इस अंदाज में-
थुंबा में पहला परीक्षण बिशप की मदद से
21 नवंबर 1963 को देश का पहला रॉकेट लांच किया गया। इसकी असेम्बलिंग थुम्बा के सेंट मैरी मैगडलिन चर्च में की गई। चूंकि यह पहली बार हो रहा था और इसमें लांचिंग के दौरान तेज आवाज होनी थी। इसलिए इस चर्च के बिशप पीटर बर्नार्ड परेरा को पूरी जानकारी दी गई और उनसे मदद मांगी गई। इसके बाद बिशप ने गांव व आस-पास के मछुवारों को सहमत किया कि यहां जो भी होगा वह आप सबके फायदे के लिए होगा। इससे रॉकेट परीक्षण पूरी तरह शांतिपूर्ण हुआ।
मछुवारों को दिया वादा निभाया इसरो ने
यहां से भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का सफर शुरू हुआ। तब मछुआरों से जो वादा बिशप ने किया था, इसरो ने उस वादे के अनुरूप कई सौगातें मछुवारों को दी है। आज देश भर के समुद्री तटवर्तीय मछुवारों के पास जीपीएस प्रणाली है और उन्हें मछली पकडऩे में मौसम के अनुमान की सटीक जानकारी इसरो देता है। तब एक चर्च से शुरू हुआ सफर आज मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है।
हमनें नासा की गलतियों से सीखा, तब मिली सफलता
जब तक हम अपनी या दूसरों की गलतियों से नहीं सीखते, तब तक हमें सफलता नहीं मिलती। मंगल मिशन की शुरूआत अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने की थी। उनसे कुछ गलतियां हुई। यही गलतियां हमारे लिए मील का पत्थर साबित हुई। हमनें इन गलतियों से सीखा और अपनी राह आसान की। मंगल ग्रह से भेजे जा रहे फोटोग्राफ्स पर लगातार अनुसंधान चल रहा है और भविष्य में कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामनें आएंगी।
मंगलयान की कक्षा बदलने में कामयाब
मिशन मंगल में कई महत्वपूर्ण पड़ाव आ रहे हैं। मंगलयान-1 की दिशा परिवर्तन की गई। जनवरी में लंबी अवधि के सूर्य ग्रहण के दौरान मंगलयान की कक्षा में सुधार किया गया है। यदि ऐसा नहीं करते तो यान की बैटरी डिस्चार्ज हो जाती। क्योंकि ग्रहण की वजह से सूर्य की रौशनी उस पर नहीं पड़ती। कक्षा में सुधार कर देने से यान की लाइफ बढ़ गई है। प्रोजेक्ट पांच साल और जारी रहेगा।
अब चांद और मंगल मिशन की तैयारी
अंतरिक्ष में एक साथ 104 उपग्रहों की लॉन्चिंग से अपनी धाक जमाने के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चांद और मंगल मिशन में कामयाबी पाने की तैयारी में है। वैज्ञानिक अब चंद्रयान-2 की तैयारी में जुट गए हैं। पिछले मिशन में चांद की कक्षा का चक्कर लगाने वाला उपग्रह यानी ऑर्बिटर छोड़ा गया था। इस बार वैज्ञानिक ऑर्बिटर के साथ चांद पर रोवर उतारने की भी कोशिश करेंगे। यह मिशन 2018 से शुरू होगा, जिसके 2021-22 तक पूरा होने की उम्मीद है।
बातचीत के दौरान, साथ हैं वाइस चांसलर |
इंसान के चांद पर पहुंचने की खबर से शुरू हुआ मेरा इश्क
अपने ख्वाबों की बात करूं तो स्कूल में मैं भी दूसरे बच्चों की तरह सिर्फ अपने बेहतर माक्र्स और हाइएस्ट परेंटेज चाहता था। हाई स्कूल में फिजिक्स के टीचर नरसिम्हैया सर ने प्रभावित किया। वो हमेशा नई तकनीक के बारे में बताते थे। एक रोज उनके रेडियो पर एक खबर सुनने को मिली कि इंसान के कदम चांद पर पड़े हैं, इससे मैं बेहद रोमांचित हो उठा। यहां से स्पेस टेक्नालॉजी को लेकर जो इश्क हुआ वो लगातार परवान चढ़ता गया और उसी की बदौलत मैं यहां तक पहुंचा।
इस कायनात में हम अकेले नहीं
धरती से परे जीवन के अभी तक ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। इस पर लगातार शोध चल रहा है। इसके बावजूद हम यह नहीं कह सकते कि इस समूची कायनात में हम अकेले हैं। उम्मीद रखनी चाहिए कि भविष्य में कुछ चौंकाने वाले नतीजे मिले।
प्राचीन ग्रंथों को नजर अंदाज नहीं कर सकते
वेद-पुराण या प्राचीन ग्रंथों को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते लेकिन विज्ञान के इस दौर में हम अपने आंख-कान खुले रखना चाहिए। विज्ञान की भी एक सीमा है लेकिन प्राचीन ग्रंथों में अगर कुछ उल्लेख है तो उसे परीक्षण की कसौटी पर कसना चाहिए।
हमारे सामने है चीन की मिसाल
चीन के झिंझियांग प्रांत की टू यूयू ने अपने शोध से स्पष्ट किया कि एक हजार साल पहले भी मलेरिया का रोग था और उसका उपचार आज की ही तरह किया जाता था। इस पर उन्हें 2015 का नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसी तरह हम अपने यहां भी हजारों साल पुराने ग्रंथों/प्रमाणों के आधार पर अपने शोध को दिशा दे सकते हैं।
फि लहाल अंतरिक्ष में कोई बाहरी मरम्मत कार्य संभव नहीं
अंतरिक्ष विज्ञान में फि लहाल सिर्फ अवलोकन ही संभव है। उपग्रह के माध्यम से ओजोन परत के नुकसान की मरम्मत या दूसरे ऐसे किसी बाहरी कार्य की संभावनाएं फिलहाल नहीं है। जैसे स्पेस टेक्नालॉजी के माध्यम से भूजल स्त्रोत का पता तो लगाया जा सकता है लेकिन पानी की गुणवत्ता जांचना इससे संभव नहीं है।
अगले दो महीने में एक और प्रक्षेपण
दो महीने के भीतर अप्रैल-मई में कार्टो-2 सीरिज का उपग्रह प्रक्षेपित करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। इसके साथ भी अलग-अलग देशों के उपग्रह भी प्रक्षेपित किए जाएंगे लेकिन इनकी संख्या 15 फरवरी जितनी (104) नहीं होगी। लेकिन संभव है कि कुछ ज्यादा वजन के भी उपग्रह भेजे जाएं। जो 40,80 या 100 किग्रा तक के हो सकते हैं। इस तरह साल भर में पीएसएलवी मेें 6 से 7 और जीएसएलवी में 3 उपग्रह प्रक्षेपण की तैयारी है।
रूंगटा कॉले्ज में अपनी रंगोली के सामने इसरो चीफ |
अंतरिक्ष में मानव को भेजने हम पूरी तरह सक्षम हैं लेकिन यह हमारी प्राथमिकता सूची में उपर नहीं है। अभी हमें रिमोट सेंसिंग तकनीक और संचार प्रणाली में काफी कुछ करना है। जहां तक अंतरिक्ष में भारत का अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करने की संभावनाओं की बात है तो यह बहुत ही शुरूआती स्तर पर प्रस्ताव के रूप में है। इस दिशा में अभी प्राथमिकता से नहीं सोचा गया है। अभी हमारा पूरा ध्यान अर्थ ऑब्जर्वेशन,सेटेलाइट कम्यूनिकेशन, नैविगेशन व क्लाइमेट चेंज पर्यावरण के प्रभाव के अध्यन और अवलोकन पर है।
इसरो की सफलता का श्रेय पूरी टीम को
अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में इसरो की अब तक की उपलब्धि का श्रेय पूरी टीम को है। यहां टीम वर्क से कार्य होता है और इसरो की सफलता में एक बायोलाजिस्ट से लेकर कंप्यूटर इंजीनियर तक सभी के योगदान को इसका श्रेय जाता है।
छत्तीसगढ़ के गांवों का डिजिटल डाटा तैयार करने देंगे मदद
छत्तीसगढ़ के गांवों का डिजिटल डाटा तैयार करने में हम इसरो की तरफ से छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय के स्टूडेंट की मदद करेंगे। उन्हें सैटेलाइट से मिट्टी-जल परीक्षण, गांवों में शिक्षा का स्तर लाइफ स्टाइल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विषयों का डिजिटल डाटा तैयार करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह डाटा राज्य सरकार को दिया जाएगा। इसकी शुरुआत तकनीकी विवि के 55 गोद लिए गांवों से की जाएगी। इस संबंध में आज ही रूंगटा इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर में तकनीकी विवि,सीजीकॉस्ट व कृषि विभाग समेत अन्य शासकीय विभाग के अफ सरों की बैठक हमने की है। जिसके बेहतर नतीजे आने की उम्मीद है।
निजी कंपनियों के साथ अनुबंध अभी तय नहीं
सैटेलाइट लांचिंग और अन्य कार्यों के लिए निजी सेक्टर को भी लेने की योजना बनी है, लेकिन अभी बात नहीं बनी है। जल्द ही फैसला हो जाएगा। फिलहाल कोई नाम सामने नहीं है। इंदौर में इसरो का प्रक्षेपण सेंटर सहित कई प्रस्ताव आए हुए हैं, इसको लेकर फिलहाल कोई तैयारी नहीं है।
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