तब कोचिंग-ट्यूशन थे नहीं, स्कूल में टीचर ने तैयारी करवाई और
भिलाई से 5 स्टूडेंट ने इतिहास रच दिया आईआईटी में सफलता का
साल 1974 में भिलाई के शिक्षा जगत हासिल की थी पहली बड़ी उपलब्धि
मुहम्मद जाकिर हुसैन
गौतम, कामेश राव, वसंत और सहगल के साथ लेखक |
तब साल 1974 में अचानक से ‘तूफान’ आया और बीएसपी सीनियर सेकंडरी स्कूल सेक्टर-10 से एक साथ कुल 5 स्टूडेंट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा में सफल हो गए। इतनी बड़ी सफलता के बावजूद तब कोई शोर-शराबा नहीं हुआ था।
इनमें से बी के कामेश राव, गौतम सदाशिव, डॉ. वसंत जोशी और डॉ. अनिल सहगल ने अलग-अलग आईआईटी में दाखिला लिया और एक स्टूडेंट अनिल पटेल निजी कारणों से परिवार के साथ गुजरात चले गए थे। कालांतर में ये चारों स्टूडेंट देश-विदेश के प्रमुख संस्थानों में शीर्ष पद पर पहुंचे। आज जब 50 साल बाद यही चारों स्टूडेंट भिलाई लौटे तो इनकी आंखों में चमक थी अपने बचपन को फिर से जी लेने की।
इस बीच जब बात इनके स्कूली जीवन की सबसे बड़ी सफलता की निकली तो चारों ने बिल्कुल सहज होकर कहा-तब कहीं कोई जश्न जैसी बात ही नहीं थी।
हां,हमारे प्रिंसिपल ए. एस रिजवी सर और सारे टीचर्स ने पीठ जरूर थपथपाई लेकिन इसके बाद सभी अपने-अपने एडमिशन की तैयारी में जुट गए। आज 50 साल बाद अपनी यादों को बांटते हुए इन सभी को उम्मीद है कि भिलाई का आईआईटी अपनी अलग पहचान बनाएगा।
सत्र 1973-74 में हेड ब्वाॅय रहे आर. अशोक कुमार और हेड गर्ल रहीं पूनम सारस्वत शर्मा का भी मानना है कि सभी बच्चों का करियर संवारने में सबसे ज्यादा योगदान तब के प्रिंसिपल ए. एस. रिजवी सर का था। उन्हें भिलाई स्टील प्लांट के तब के जनरल मैनेजर पृथ्वीराज आहूजा खास तौर पर रायपुर के राजकुमार कॉलेज से वाइस प्रिंसिपल का दायित्व छोड़कर सेक्टर-10 स्कूल आने प्रस्ताव दिया था।
मैथ्स टीचर ने तीन महीने स्कूल में करवाई तैयारी, तब मिली सफलता
मैथ्स टीचर श्रीमती पोट्टी के साथ बेंगलुरू में गौतम (दिसंबर-24) |
डॉ.जोशी, डॉ.सहगल, कामेश और गौतम बताते हैं, तब केमिस्ट्री एमएन बोरले और फिजिक्स एसके साहू पढ़ाते थे। लेकिन इन सबसे हट कर मैथ्स की टीचर श्रीमती शांता ने दिसंबर तक स्कूल का कोर्स पूरा करवा दिया और बाकी बचे तीन महीने में हम सबको विशेष तैयारी करवाई। जिसमें पिछले 10 साल के अनसाल्वड क्वेश्चन पेपर हल करवाए और जेईई पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयारी करवाई।
तब बाहर कोई ट्यूशन-कोचिंग नहीं था और हमारे कोई भी टीचर अलग से ट्यूशन नहीं लेते थे। हमारी सारी तैयारी स्कूल में ही हुई। गौतम सदाशिव बताते हैं, हाल ही में उन्होंने अपनी मैथ्स टीचर से उनके बेंगलुरु स्थित घर जाकर मुलाकात की थी। आज भी हम सब मानते हैं कि मैडम पोट्टी के मार्गदर्शन के बिना हम लोग तब आईआईटी में सफलता हासिल नहीं कर पाते थे।
तब पोस्टमैन टेलीग्राम लेकर पहुंचा था, जिसमें सिर्फ रैंक का उल्लेख था
15 जुलाई 2013 को आखिरी बार हुआ था टेलीग्राम का इस्तेमाल |
जब मद्रास आईआईटी गए तो वहां रिक्त सीटों की स्थिति बताते हुए ब्रांच के बारे में पूछा। तब तक देश में 5 आईआईटी थे और यहां बीटेक में कुल 1500 स्टूडेंट लेते थे।
इनमें हर आईआईटी में 300 सीटें होती थी। डॉ.वसंत जोशी बताते हैं- तब आईआईटी प्रवेश परीक्षा सभी 5 आईआईटी की फैकल्टी के एक समूह द्वारा आयोजित की गई थी। इसे संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) कहा जाता था। उस साल मार्च में हमारे 11 वीं बोर्ड के इम्तिहान हुए थे और इसके दो माह बाद 3-4 मई 1974 को जेईई हुई थी। वसंत जोशी बताते हैं कि तब रायपुर और नागपुर भी परीक्षा केंद्र थे लेकिन उन्होंने कानपुर सेंटर चुना था। उनका रिजल्ट भी डाक से घर पहुंचा था।
प्रिंसिपल रिजवी सर ने किया प्रोत्साहित, प्रेरणा बने 1973 बैच के रामचंद्रन
प्रिंसिपल ए.एस. रिजवी और 1973 बैच के रामचंद्रन |
तब वसंत कुमार की सबसे ज्यादा चर्चा होती थी। हमारे प्रिंसिपल ए. एस रिजवी सर भी हम सबको प्रोत्साहित करते थे। इसलिए हमारे अंदर भी एक जज्बा था कि कुछ करना जरूर है।
हमारे सामने रामचंद्रन ही रोल मॉडल थे। उनकी सफलता से सभी प्रभावित थे और यह तय कर लिया था कि हमें भी आईआईटी जाना है। तब भिलाई के स्टूडेंट मेडिकल और इंजीनियरिंग में ज्यादा जाते थे, इसलिए हम लोगों ने मैथ्स सेक्शन के होने की वजह से तय कर लिया था कि आईआईटी में जाएंगे अगर नहीं हुआ तो आरईसी में एडमिशन ले लेंगे। रामचंद्रन वसंत कुमार वर्तमान में ब्रिटेन में वैज्ञानिक हैं।
तब देश में सिर्फ 5 आईआईटी थे, आज देश भर में भिलाई सहित 23 संचालित हो रहे
आईआईटी भिलाई |
साल 1974 में जब पहली बार भिलाई से एक साथ 5 स्टूडेंट ने सफलता दर्ज की थी, तब देश में सिर्फ 5 आईआईटी थे। इनमें आईआईटी बॉम्बे (1958), आईआईटी मद्रास (1959), आईआईटी कानपुर (1959), और आईआईटी दिल्ली (1961) थे।
तब इन आईआईटी में प्रत्येक में 300-300 सीट्स थी। फिर दशकों बाद देश में छठवां आईआईटी गुवाहाटी (1994) में शुरू हुआ। अब देश में भिलाई सहित कुल 23 आईआईटी संचालित हैं। भिलाई का आईआईटी यहां कुटेलाभाठा की जमीन पर बनाया गया है।
हमें कोचिंग-ट्यूशन की जरूरत ही नहीं पड़ी: सहगल
अमेरिका में अनिल सहगल एशियन-अमेरिकन कमिश्नर के तौर पर |
तब सेक्टर-10 का अंग्रेजी मीडियम स्कूल शुरू ही हुआ था और हम यहां तीसरे बैच थे। हमारे प्रिंसिपल रिजवी सर का हर बच्चे पर गंभीरता के साथ खास ध्यान होता था।
तब आईआईटी को लेकर आज जैसा माहौल भी नहीं था कि अगर पास नहीं हुए तो क्या होगा। हम लोगों के दिमाग में यही था कि आईआईटी नहीं तो रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (आरईसी) चले जाएंगे। हमारी मैथ्स टीचर श्रीमती पोट्टी का साफ कहना था कि जो पूछना है क्लास में या फिर क्लास के बाद स्कूल में ही पूछो। वह ट्यूशन कोचिंग कभी नहीं लेती थी।
मैंने आईआईटी बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। पिता श्याम लाल सहगल तब भिलाई स्टील प्लांट के स्टील मेल्टिंग शॉप में सुपरिंटेंडेंट थे। हमारा परिवार सेक्टर-9 में रहता था। अमेरिका में मैं 1983 से प्राध्यापक के पेशे में हूं। तब से लगातार यह 41 वां साल है। वहां मैसाचुसेट्स बोस्टन की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी मेडफोर्ड में मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ा रहा हूं।
जो भी प्रेशर था हमारा खुद का बनाया हुआ था कि हमें जेईई क्रैक करना है: कामेश
बीके कामेश राव |
पैरेंट्स हमारे जागरुक जरूर थे लेकिन कभी किसी ने हमें दबाव में नहीं पढ़ाया कि हम उनके मुताबिक पढ़े। हां, जो भी प्रेशर था वह सब हमारा खुद का बनाया हुआ था। हम सब अंदरूनी तौर पर दबाव में थे कि हमें हर हाल में जेईई क्रैक करना करना होगा। इसलिए हम लोगों ने काफी मेहनत की।
तब भिलाई में तो कोचिंग-ट्यूशन का नामो-निशान नहीं था। उन दिनों तो पूरे इंडिया में ही हम लोग 2-3 कोचिंग का नाम सुनते थे। एक ब्रिलियंट कोचिंग दक्षिण भारत में थी जो डिस्टेंस में देश भर में कोचिंग करवाते थे। बाद में एक अग्रवाल कोचिंग का भी हम लोगों ने नाम सुना लेकिन इसकी जरूरत नहीं पड़ी।
होटल-एयरपोर्ट निर्माण में कामेश का विशिष्ट योगदान, तब चरोदा से सेक्टर-10 आते थे स्कूल
एक व्याख्यान के दौरान जीएमआर इंफ्रास्ट्रक्चर के डायरेक्टर बीके कामेश राव (ठीक बीच में ) |
तब तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति लागू की थी तो हम लोगों ने एक सिविल इंजीनियरिंग की फर्म बनाई। इसके बाद अमर विलास और उदय विलास सहित ओबेरॉय ग्रुप के ढेर सारे होटल डिजाइन से लेकर कंस्ट्रक्शन तक बनाए। इसके बाद मैंने 2004 में जीएमआर कंपनी में ज्वाइन की।
हमनें हैदराबाद एयरपोर्ट , कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए टर्मिनल-3 जैसे कई चुनौतीपूर्ण निर्माण किए। अभी हम दिल्ली, हैदराबाद, गोवा का एयरपोर्ट भी संचालित कर रहे हैं। मेरे पिता बीबी शंकरम चरोदा में रेलवे में कार्यरत थे और तब हम चरोदा में रहा करते थे। वहां से मैं रोज लोकल ट्रेन से भिलाई नगर रेलवे स्टेशन उतरता था और वहां से साइकिल लेकर सेक्टर-10 स्कूल जाता था।
सलेक्शन हो गया तो खुशी हुई लेकिन दबाव कुछ नहीं था:गौतम
गौतम सदाशिव |
एक तरह से हम सबके लिए सरप्राइज ही था। हम लोग तो तय कर चुके थे कि अगर आईआईटी में नहीं हुआ तो आरईसी में सिलेक्शन हो ही जाएगा।
हां, तब भिलाई से एक साथ 5 स्टूडेंट का सलेक्शन होना एक बड़ी बात तो थी ही। इसके लिए हम सारा क्रेडिट स्कूल की पढ़ाई और टीचर्स को देते हैं। मैनें आईआईटी बॉम्बे से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद देश-विदेश की कई प्रमुख फर्म्स में सेवाएं दी।
एलएंडटी में प्रोजेक्ट मैनेजर, एचसीसी में जनरल मैनेजर, ओरिएंटल स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, जीएमआर वाइस प्रेसिडेंट और आईएलएफएस में प्रेसिडेंट रहा। अब पूरा समय परिवार को दे रहा हूं। अपने करियर में मैंने सड़क निर्माण के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे सहित देश के कई प्रमुख निर्माण में अपना योगदान दिया। मेरे पिता जी. सदाशिव तब भिलाई स्टील प्लांट के डिप्टी चीफ इंजीनियर थे और हमारा परिवार सेक्टर-10 में रहता था।
हिंदी मीडियम से आया था लेकिन खूब मेहनत की: डॉ. वसंत जोशी
एनएसडब्ल्यूसी में वैज्ञनिक डॉ. वसंत जोशी (दाएं) |
जहां तक आईआईटी की तैयारी की बात है तो मैडम श्रीमती शांता शंकरन पोट्टी ने अपने रोजाना की क्लास से हट कर हमें न्यू मैथ्स अच्छी तरह पढ़ाया, जो केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के तहत हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं था।
इससे हमारी तैयारी बेहतर ढंग से हो पाई। तब मैंने कानपुर आईआईटी में दाखिला लिया था। वर्तमान में अमेरिकी नौसेना संगठन नौसेना सतह युद्ध केंद्र ( एनएसडब्ल्यूसी) के अनुसंधान विभाग में वरिष्ठ वैज्ञानिक और तकनीकी प्रमुख के तौर पर सेवा दे रहा हूं। मेरे पिता शिवराम दत्तात्रेय जोशी तब भिलाई स्टील प्लांट के कंट्रोलर स्टोर्स एंड परचेज थे। उन दिनों हम सेक्टर-2 में रहते थे।
मैथ्स सेक्शन में थे सिर्फ 14 स्टूडेंट, बायो के 8 स्टूडेंट बनें डॉक्टर
बीएसपी सीनियर सेकंडरी स्कूल सेक्टर-10 भिलाई |
वहीं इसी सत्र की बायोलॉजी में 30 स्टूडेंट थे। जिनमें से 8 चिकित्सा पेशे में गए। इन 8 स्टूडेंट में परवेज़ अख्तर,पूनम सारस्वत, रेखा गुप्ता, एन एस प्रसन्ना, निर्वेद जैन, शुभदा आप्टे, इंदिरा अरोड़ा और वीएस गीता शामिल हैं।
इस सत्र की ह्यूमैनिटीज (कला समूह) में सिर्फ 6 स्टूडेंट थे, इसलिए उन्हें मैथ्स की क्लास में बैठना होता था। यहां 1975-76 का मैथ्स का बैच उल्लेखनीय उपलब्धि वाला रहा, जब यहां से 10 स्टूडेंट आईआईटी के लिए चयनित हुए।
एलुमनी मीट में जुटे 50 साल बाद, भिलाई से बालोद तक मचाया धमाल
एलुमनी मीट के दौरान स्कूल में 1974 बैच (24 दिसंबर 2024) |
जाट रेजीमेंट से अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर जयेश सैनी ने पूर्वोत्तर में अपने दीर्घ कार्यकाल के अनुभव साझा किए। अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश शर्मा ने सभी से इस उम्र में अपनी अस्थियों और उपास्थियों की अच्छी देखभाल के लिए प्रेरित किया। कैल्शियम लेने के साथ उन्होंने कुछ सरल अभ्यास भी बताए जिससे स्वयं को फिट रखा जा सके। नेत्र रोग विशेषज्ञ में डॉ. पूनम सारस्वत शर्मा ने आखों की देखभाल के टिप्स दिये। डॉ संजीव जैन, डॉ रेखा, डॉ सुभाष सिंघल, डॉ विद्याधर, डॉ प्रसन्ना, डॉ शुभदा एवं डॉ निर्वेद जैन ने भी स्वास्थ्य के विभिन्न क्षेत्रों पर उपयोगी जानकारी दी।
एलुमनी मीट की खबर हरिभूमि 09-01-25 |
पहले दिन सभी सहपाठी भिलाई के एक होटल में मिले तया गीत और नृत्यों को प्रस्तुतियां दी। इसके बाद सीनियर सेकंडरी स्कूल सेक्टर-10 में भी सभी सहपाठियों ने समय बिताया।
यहां पौधारोपण किया और यादगार के तौर पर अपने स्कूल को उपहार दिए। इस दौरान स्कूल की प्रिंसिपल सुमिता सरकार व स्टाफ ने सभी का स्वागत किया। इसके बाद सभी ने मैत्रीबाग जाकर अपने बचपन की यादें ताजा की। फिर सभी बालोद रिसोर्ट के लिए निकल गए जहा अलग-अलग सत्रों में लोगों ने अपने अनुभव साझा किये। यहां वाटर स्पोटर्स का भी आनंद लिया। यहां उनकी अगवानी कांकेर से आए दल ने सामूहिक नृत्य और तिलक लगा कर किया। अंताक्षरी, नृत्य, तंबोला और विभिन्न खेलों का आनंद सभी लोगों ने लिया।
एलुमनी मीट में मुख्य रूप से यूएसए से अनिल सहगल, वसंत जोशी, ऑस्ट्रेलिया से सुजीत दत्त के साथ कुलदीप अरविन्द,रवि अखौरी,बितापी सेनगुप्ता, जयश्री प्रधान, अविनाश मेहता,विनय बहल,कुमार मुखर्जी,गौतम सिल,प्रदीप सत्पथी, राकेश अस्थाना, वीएस राधामणि, रायपुर से निर्वेद जैन, संजय भौमिक, शेष भारत से, पूनम सारस्वत शर्मा हेड गर्ल नोएडा,आर अशोक कुमार हेड बॉय नागपुर, मंजुला त्रिपाठी भोपाल, केका बनर्जी नवी मुंबई, शिरीष नांदेड़कर नवी मुंबई, गुरविंदर भसीन जबलपुर, रेखा सिंघल करनाल, ब्रिगेडियर जे सैनी एन दिल्ली, राजीव वर्मा एन दिल्ली, विप्लव वर्मा एन दिल्ली, अनिरुद्ध गुहा कोलकाता, मीता बनर्जी कोलकाता, सुसान रॉय केरल, बीके कामेश राव हैदराबाद, प्रसन्न प्रकाश बेंगलुरु, गौतम सदाशिव बेंगलुरु और शुभदा रानाडे पुणे से शामिल हुए।
हरिभूमि 09-01-25 |
Beautifully summed up ! Loved going through the blog ! It was nostalgia yet again ! 🙏🏻
ReplyDeleteAppreciated. You put the story in its right perspective. Dr. Ramachandran Vasant Kumar, is an adjunct Professor at IIT Bhilai.
ReplyDeleteThank you Zakir, for beautifully capturing the essence of our Class of 74.👍👍
ReplyDeleteIncredible story ...they are the true motivators ...74 batch represents mini India... good coverage
ReplyDeleteBeautiful summed up. God bless the 74 batch.
ReplyDeleteFantastic job. Well covered, highlighted and summed up..Keep it up.
ReplyDeleteFantastic job, Zakir. . Well covered, highlighted and summed up. Keep it up.
ReplyDeleteInspiring compilation!
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