Sunday, July 14, 2019

टाटा से लेकर जिंदल तक भिलाई के बदलते रिश्ते 


उद्योगपति नवीन जिंदल के भिलाई दौरे से उठे तूफान के बहाने 60 साल में 

भिलाई के निजी उद्योगों के साथ उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों की एक पड़ताल 


मुहम्मद जाकिर हुसैन 
1959 -जेआरडी टाटा  भिलाई स्टील प्लांट में 
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) रायगढ़ के चेयरमैन और उद्योगपति नवीन जिंदल 11 जुलाई को अपने बेटे वेंकटेश जिंदल के साथ भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के दौरे पर आए, जाहिर है उनके इस दौरे से तूफान खड़ा होना ही था।
 रेलपांत की आपूर्ति में भिलाई का प्रतिद्वंदी बन कर उभरे जिंदल समूह के चेयरमैन के अचानक भिलाई आने से श्रमिक संगठनों के साथ-साथ भिलाई के आम लोग भी सशंकित हो उठे कि कहीं यह भिलाई को भी बेचने की तैयारी तो नहीं है? दरअसल जिस तरह से मौजूदा केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने की अपनी नीति पर खुल कर अमल शुरू कर दिया है और सेल के ही तीन स्टील प्लांट भद्रावती, सेलम  और एएसपी दुर्गापुर की बोली भी लगनी शुरू हो गई है, उससे ऐसी आशंका होना स्वाभाविक है।
 हालांकि दो दिन तक के बवाल के बाद 13 जुलाई को खुद नवीन जिंदल ने स्थिति स्पष्ट की। सोशल मीडिया में  अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर नवीन जिंदल ने तमाम आशंकाओं -अफवाहों पर विराम लगाते हुए साफ किया कि ''भिलाई स्टील प्लांट उनके लिए मंदिर है।'' दूसरी तरफ बीएसपी मैनेजमेंट ने भी इसे एक अनौपचारिक दौरा बताया है। दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की माता का निधन इस हफ्ते हुआ है और नवीन जिंदल शोक व्यक्त करने श्री बघेल के भिलाई-तीन स्थित निवास पहुंचे थे। यहां मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के बाद वे अपने बेटे के साथ सीधे भिलाई आए और भिलाई स्टील प्लांट की रेल मिल का दौरा किया। 
देश के सार्वजनिक उपक्रमों के भविष्य को लेकर जो चिंताएं दिख रही हैं, ऐसे में नवीन जिंदल के इस दौरे पर सवाल उठना लाजिमी था। हालांकि नवीन जिंदल कोई पहले निजी क्षेत्र के उद्योगपति नहीं है, जो भिलाई आए हैं। 1959 में भिलाई का उत्पादन शुरू होने के बाद से अब तक के 60 साल में कई उद्योगपति और स्टील कारोबारी भिलाई आते-जाते रहे हैं। इनमें टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन भारतरत्न जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा और स्टील किंग लक्ष्मीनिवास मित्तल का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। जिंदल के इस भिलाई दौरे के बहाने  60 साल में भिलाई और यहां के अफसरों के निजी उद्योगों से रिश्तों पर एक नजर डालना बेहद प्रासंगिक होगा। 

 भिलाई के लिए टाटा हमेशा  'ट्री गार्ड' की भूमिका में रहा

डी आर आहूजा 
टाटा स्टील व्यावसायिक प्रतिद्वंदी होने के बावजूद कभी भी भिलाई के लिए घातक साबित नहीं हुआ। जैसा कि ऐतिहासिक तथ्य है कि दल्ली राजहरा से लेकर रावघाट की लौह अयस्क खदानों की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर 1900 से 1907 के दौर मेें जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा ने यहां स्टील प्लांट लगाने की योजना बनाई थी। संभवत: उनका स्टील प्लांट आज के डौंडी लोहारा से लगे संबलपुर के आसपास स्थापित होना था। लेकिन तब यहां पानी का कोई बड़ा स्त्रोत नहीं था, इसलिए 1907 में सुवर्णरेखा नदी के किनारे साकची-कालीमाटी नामक गांव के आसपास टाटा स्टील की बुनियाद रखी गई। 
आजादी के बाद दूसरी पंचवर्षीय योजना में भिलाई, दुर्गापुर और राउरकेला में विदेशी सहायता से स्टील प्लांट स्थापना का कार्य शुरू हुआ। इस दौर में टाटा स्टील के  अभिलेखागार में रखी दल्ली राजहरा लौह अयस्क खदान की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भिलाई के लिए दल्ली राजहरा खदान विकसित की गई। इसके अलावा टाटा स्टील ने शुरूआती दौर में भिलाई स्टील प्लांट के लिए कुशल मानव संसाधन की भी मदद भी की। यही वजह है कि जब 1959 में जेआरडी टाटा भिलाई प्रवास पर आए थे तो किसी तरह का ना तो विवाद हुआ था और ना ही कोई सवाल उठा था। क्योंकि टाटा सच्चे अर्थों में भिलाई के हितैषी थे। बीएसपी के शुरूआती दौर के इंजीनियर और बाद मेें बोकारो स्टील प्लांट के मैनेजिंग डायरेक्टर और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड विशाखापट्टनम के सीएमडी रहे दिलबाग राय आहूजा कहते हैं-भिलाई को बनाने में सोवियत रूस ने तो भरपूर योगदान दिया लेकिन टाटा स्टील हमारे लिए तब एक 'ट्री गार्ड' की भूमिका में था। टाटा से आए कर्मियों ने हमारे कर्मियों को बेहतर ढंग से सिखाया।

कुशल कर्मियों के साथ-साथ भिलाई को दी विश्वकर्मा पूजा की सौगात 

  हितेन भाया    शूटे बनर्जी            सुकू सेन    डॉ  शेखर       वी एन मजुमदार 
निजी क्षेत्र का होने के बावजूद टाटा स्टील ने भिलाई के निर्माण और इसकी तरक्की में अपना अहम योगदान दिया है। इसमें सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि टाटा ने शुरूआती दौर में अपने कई काबिल इंजीनियर भिलाई को दिए। इनमें प्रमुख नाम सुकू सेन का है, जो भिलाई में जनरल सुप्रिंटेंडेंट (ईडी वक्र्स) बन कर आए और कुछ ही वर्ष में यहां जनरल मैनेजर (आज सीईओ का पद) बन गए। इसी तरह प्रख्यात क्रिकेटर शरोबिंदु नाथ (शूटे) बनर्जी भी टाटा स्टील से भिलाई भेजे गए थे। उन्होंने यहां खेल प्रतिभाओं को निखारने में योगदान दिया। भिलाई में डायरेक्टर (परचेस) और हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (एचएसएल) के चेयरमैन रहे हितेन भाया बताते हैं-जब भिलाई स्टील प्लांट की रेल मिल चालू हो गयी थी तब टाटा भी रेल पांत की आपूर्ति भारतीय रेलवे को करता था। इन दिनों भारत सरकार ने रेलपांत के दाम बढ़ा स्टील सेक्टर पर राशनिंग लागू कर दी। तब टाटा स्टील से इस बढ़े हुए दाम को लेकर विवाद हुआ था और टाटा ने रेलपांत बनाने से इनकार कर दिया। 
इसके बाद तब के एचएसएल-भिलाई और भारतीय रेलवे के बीच विशिष्ट अनुबंध हुआ था। भिलाई स्टील प्लांट के दो मरतबा मैनेजिंग डायरेक्टर रहे डॉ. ईआरसी शेखर बताते हैं-चूंकि उस दौर में सारे ग्रेजुएट इंजीनियर तो सोवियत संघ जाकर प्रशिक्षण ले रहे थे लेकिन खेत-खलिहानों और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आ रहे गैरपेशवर कर्मियों को स्टील प्लांट में काम करने का हुनर सिखाने भारतीय लोगों की भी जरूरत थी। ऐसे में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर टाटा स्टील के सैंकड़ों पेशेवर इंजीनियर और वरिष्ठ कर्मियों ने भी भिलाई आकर अपनी सेवाएं दी। अपने कर्मियों को भिलाई भेजने में टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा ने भी व्यक्तिगत रूचि ली। इसके चलते भिलाई में दूसरी पंक्ति के कर्मियों ने टाटा के सहकर्मियों से स्टील प्लांट के विभिन्न विभागों का हुनर बहुत जल्दी सीख लिया। डॉ. शेखर कहते हैं-जब हमारा पहला ब्लास्ट फर्नेस शुरू हो गया तो 1959 में जेआरडी टाटा खुद भिलाई आए। उन्होंने पूरे प्लांट का दौरा किया। टाटा सच्चे अर्थों में भिलाई के हितैषी थे, इसलिए उनका भिलाई आना  हम युवा इंजीनियरों के लिए यह गर्व का क्षण था। भिलाई के शुरूआती दौर के इंजीनियर रहे वीएन मजुमदार बताते हैं-टाटा स्टील और कुल्टी आयरन वक्र्स के लोगों ने भिलाई आकर कर्मियों को प्रशिक्षित किया और कई तो यहीं भिलाई के होकर रह गए। इन लोगों ने टाटा की परंपरा यहां भी शुरू की। इसमें विश्वकर्मा पूजा का आज जो स्वरूप हम भिलाई में देखते हैं, इसकी शुरूआत टाटा के लोगों ने ही की थी।

जब जेआरडी की गुजारिश को सिर-माथे पर लिया भिलाई ने 

भिलाई स्टील प्लांट के शुरूआती दौर में 1956 से 1959 तक उपमहाप्रबंधक प्रशासन रहे आईएएस अफसर स्व. मेप्पल्ली कृष्णन कुट्टी नायर अपनी आत्मकथा (With malice towards none The chronicle of an Era MKK Nayar ) में भारत रत्न जेआरडी टाटा का भिलाई से जुड़ा संस्मरण दर्ज करते हुए लिखते हैं-हम लोगों ने भिलाई स्टील प्रोजेक्ट की ओर से 5 हजार रूपए के योगदान के साथ इंटर स्टील प्लांट क्रिकेट टूर्नामेंट की योजना बनाई।
 इसके लिए देश के सभी स्टील प्लांट को पत्र लिखा। इनमें सबसे उत्साहजनक जवाब टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा का आया। जिसमें जेआरडी ने लिखा-हमारी दिली इच्छा जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा की स्मृति में एक क्रिकेट टूर्नामेंट स्थापित करने की रही है लेकिन कतिपय कारणों से अब तक ऐसा नहीं हो सका। जमशेदजी भारतीय इस्पात उद्योग के संस्थापक होने के साथ-साथ जेआरडी टाटा के दादा भी थे। 
नायर लिखते हैं-चूंकि तब तक हम लोगों ने भिलाई के नाम पर ट्रॉफी की घोषणा कर दी थी, इसलिए उन्होंने पूछा कि क्या भिलाई में जमशेदजी के नाम पर भी ऐसी ट्रॉफी की शुरूआत कर सकते हैं। हम लोगों ने उनके पत्र का सकारात्मक जवाब दिया और भिलाई ट्रॉफी के साथ एक अन्य ट्रॉफी जमशेदजी के नाम पर कर दी। इसके बाद 8 अक्टूबर 1958 को सेक्टर-1 के मैदान में शानदार क्रिकेट प्रतियोगिता का शानदार आगाज हुआ। जिसका उद्घाटन करने प्रख्यात क्रिकेटर कर्नल सीके नायडु भिलाई पहुंचे।

जब अमेरिका में भिलाई की याद ताज़ा कर दी स्टील किंग मित्तल ने 

जी एन पुरी 
ऐसा नहीं है कि भिलाई का दौरा करने वाले जिंदल पहले निजी क्षेत्र के उद्योगपति हैं। उनके पहले भी कई उद्योगपति अपने कारोबार के  सिलसिले में भिलाई आते रहे हैं। बीएसपी और सेल में बड़े पदों पर रहने के बाद विश्व बैंक के वरिष्ठ तकनीकी सलाहकार के पद पर सेवा दे चुके अमेरिका निवासी जीएन पुरी बताते हैं-शुरूआती दौर में उद्योगपति मोहनलाल मित्तल अपने बेटे लक्ष्मीनिवास मित्तल के साथ भिलाई आते थे और यहां से ब्लूम-बिलेट व अन्य फेब्रिकेटेड स्टील की खरीदी करते थे।
 कई सालों बाद अमेरिका में विश्व बैंक की किसी बैठक में अचानक जब स्टील किंग लक्ष्मीनिवास मित्तल से मुलाकात हुई तो भिलाई की यादें ताजा हो गई। मित्तल काफी देर तक भिलाई में बिताये अपने दिन याद करते रहे पुरी कहते हैं-तब निजी क्षेत्र की स्टील फैक्ट्री के ज्यादातर लोग भिलाई में कारोबार करने आते थे और तब हितों के टकराव जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन अब समय बदल चुका है। 
इधर मौजूदा दौर में भिलाई के अफसरों पर जिंदल का हमदर्द होने का आरोप लग रहा है। इसके पीछे भी ठोस वजह है। पीछे मुड़ कर देखेे तो पहले भी भिलाई स्टील प्लांट से रिटायर होने वाले अफसर आकर्षक पे-पैकेज और अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के फेर में निजी कारोबारियों के हमदर्द रहे हैं। करीब 4 दशक पहले महाराष्ट्र में भंडारा के समीप स्थापित की गई फैक्ट्री मेें भिलाई के कई शीर्षस्थ अफसर निदेशक रहे हैं। इसके अलावा अपने सेवाकाल में ऐसे अफसर निजी क्षेत्र के हितों के लिए भिलाई के हितों को ताक पर रखकर काम करते हैं, उन्हें रिटायरमेंट के बाद ऐसे उद्योग समूहों में अगले 5-7 साल के लिए आसानी से जॉब मिल ही जाती है। भिलाई के कई इंजीनियरों ने सेवानिवृत्ति से पहले या बाद में भी देश-विदेश के कई उद्योग समूह को ज्वाइन किया है। 

जिंदल और भिलाई में टकराव के दो दशक

दरअसल आज जिस तरह नवीन जिंदल के भिलाई स्टील प्लांट दौरे पर सवाल उठ रहे हैं, उसके मूल में दो दशक से चला आ रहा व्यवसायिक टकराव है। इसकी शुरूआत 1999 में हुई थी। तब जेएसपीएल रायगढ़ ने निजी क्षेत्र की पहली रेल मिल स्थापित करने की घोषणा की। इसके बाद जिंदल के अफसरों ने भिलाई आकर रेल मिल के इंजीनियरों के इंटरव्यू लेना शुरू किए। ऊंची तनख्वाह पर कई इंजीनियर एक झटके में भिलाई से रायगढ़ रवाना हो गए।
 इस दौरान सबसे बड़ा धमाका तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रांत गुजराल का इस्तीफा था। जिसमें 2001 में 31 मार्च शनिवार को इस्तीफा देकर श्री गुजराल 2 अप्रैल  सोमवार से जेएसपीएल में उपाध्यक्ष बन गए थे। इसके बाद जिंदल की रेल मिल का युद्ध स्तर पर निर्माण चालू हुआ और अब 19 साल में हालात ये हैं कि जिंदल निजी क्षेत्र का एकमात्र रेलपांत का आपूर्तिकर्ता बन गया है। इस बीच सेल के तीन प्रमुख स्टील प्लांट सेलम, भद्रावती और एएसपी दुर्गापुर के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही जनमानस में यह आशंका घर कर गई है कि देर-सबेर भिलाई को बीमार घोषित कर इसे भी बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। 

भिलाई के दम पर फल-फूल रहा जिंदल 

विक्रांत गुजराल            पंकज गौतम 
दो दशक पहले रेलमिल स्थापना के लिए भिलाई स्टील प्लांट के इंजीनियरों को ऊंची तनख्वाह पर तोडऩे वाले जेएसपीएल की अब तक की तरक्की में भिलाई का सर्वाधिक योगदान है। शुरूआत में विक्रांत गुजराल उपाध्यक्ष बन कर जिंदल ग्रुप में गए। गुजराल करीब 15 साल जिंदल के साथ रहे और इसके बाद उन्होंने  शशि रूईया का एस्सार ग्रुप ज्वाइन कर लिया था। वहीं भिलाई स्टील प्लांट के सीईओ रहे पंकज गौतम ने भी हाल के बरसों में जिंदल ग्रुप ज्वाइन किया। आजकल गौतम वहां चीफ आपरेटिंग ऑफिसर हैं। इनके साथ ही जूनियर स्तर के ढेर सारे अफसरों का बीते 19 साल में भिलाई से रायगढ़ पलायन लगातार जारी है।
 एक तरफ भिलाई के इंजीनियरों के दम पर जेएसपीएल की तरक्की संभव हो पा रही है, वहीं दूसरी तरफ भिलाई स्टील प्लांट सेल में अपनी ध्वजवाहक इकाई का तमगा तेजी से खो रहा है। रेलपांत आपूर्ति को लेकर बीते दशक में जिंदल ने सेल-भिलाई स्टील प्लांट को न्यायालय तक खींचा और मामला राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग में पहुंचा था। जिसमें जिंदल ने सेल-रेलवे के रेलपांत आपूर्ति को लेकर 1960 के अनुबंध को चुनौती दी थी। हालांकि इसमें जिंदल को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन वर्तमान में बदली परिस्थिति में ग्लोबल टेंडर में पिछडऩे के बावजूद 'मेक इन इंडिया' के तहत जिंदल को भारतीय रेलवे को रेलपांत आपूर्ति का ठेका मिल ही गया है। इसी तरह ईरान को रेलपांत आपूर्ति का ठेका भी भिलाई के हाथों से फिसल कर जिंदल को मिल चुका है। इन तमाम परिस्थितियों में रेलपांत निर्माण का एकमात्र सार्वजनिक उपक्रम भिलाई स्टील प्लांट लगातार मांग के अनुरूप आपूर्ति में विफल साबित हो रहा है और संसद में लगातार इस मुद्दे पर सवाल उठ रहे हैं। जानकार लोग इसके पीछ गहरा षडय़ंत्र देखते हैं। 

तस्वीर का दूसरा पहलु, आज कोई भी तकनीक गोपनीय नहीं

यह सच है कि भिलाई के दम पर जिंदल को फलने-फूलने का अवसर मिला है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इंटरनेट के इस दौर मेें कोई भी तकनीक गोपनीय नहीं रह गई है। इसलिए नवीन जिंदल के इस दौरे में जो आशंकाएं जताई जा रही है कि जिंदल ने हमारी तकनीक करीब से देख ली, तो  यह तथ्य पूरी तरह से निराधार है। दरअसल आज सेल स्तर पर नालेज मैनेजमेट पोर्टल है, जिसमें सेल के तमाम स्टील प्लांट अपने यहां की तकनीक और मॉडिफिकेशन को आपस में साझा करते हैं।
 इसी तरह राष्ट्रीय स्तर नेशनल नालेज मैनेजमेट पोर्टल है, जिसमें तमाम निजी और सार्वजनिक क्षेत्र अपने-अपने यहां की तकनीक साझा करते हैं। इसके साथ ही एक और उल्लेखनीय तथ्य यह है कि भिलाई अथवा सेल के किसी भी स्टील प्लांट के पास उसकी खुद की विकसित की हुई कोई भी तकनीक नहीं है। 40 लाख टन क्षमता तक भिलाई की सारी तकनीक तत्कालीन सोवियत संघ की थी लेकिन इसके बाद ग्लोबल टेक्नालॉजी का दौर आया। अब भिलाई की नई यूनिवर्सल रेल मिल में एसएमएस मीर जर्मनी की तकनीक है। मीर कंपनी सिर्फ भिलाई ही नहीं बल्कि जिंदल सहित दुनिया के तमाम स्टील प्लांट को अपनी तकनीक बेचती हैं। आज ग्लोबल टेक्नालॉजी के दौर में  निजी और सार्वजनिक स्टील प्लांट एक दूसरे के यहां अपने कर्मियों को भेज कर प्रशिक्षण भी दिलाते हैं। यह एक नियमित प्रक्रिया है, ऐसे में अब तकनीक की गोपनीयता कहीं नहीं रह गई है। इसलिए महज चंद घंटों के दौरे में जिंदल यहां से कुछ कॉपी कर ले जाएंगे, ऐसा सोचना भी निराधार है। 

..फिर भी जिंदल के मददगार कई
इसमें कहीं कोई शक नहीं कि रेल उत्पादन में भिलाई के प्रतिद्वंदी बन चुके जिंदल समूह को परवान चढ़ाने में भिलाई के कई प्रमुख अफसरों का हाथ रहा है। कुछ साल पहले रेल मिल और क्वालिटी के जीएम रहे एक अफसर के रिटायरमेंट से पूर्व ही जिंदल जाने की चर्चा शुरू हो गई थी। लेकिन ऐन वक्त पर सेल ने उन्हें रिटायर होते ही दो साल के लिए सलाहकार बना दिया। इसके बाद उनका जिंदल जाना टल गया। 
इसी तरह भिलाई के कई उच्च पदस्थ अफसरों पर यहां की तकनीक जिंदल को हाथों-हाथ देने के आरोप लगते रहे हैं। बीते दशक में इस बात की जबरदस्त चर्चा थी कि एक ईडी स्तर के अधिकारी ने भिलाई की रेल एंड स्ट्रक्चरल मिल की रशियन ड्राइंग-डिजाइन कथित तौर पर जिंदल के साथ गुपचुप तरीके से शेयर कर दी है। चूंकि उन दिनों विक्रांत गुजराल भी जिंदल समूह में वाइस प्रेसीडेंट थे,इसलिए इस चर्चा को और ज्यादा बल मिला।  इनके अलावा भी कई ऐसे अफसर हैं जो जिंदल के मददगार रहे हैं। 

..तो क्या इतना आसान है भिलाई का निजीकरण

11  जुलाई 2019 - भिलाई के ब्लास्ट फर्नेस -8  में नवीन जिंदल 
जिंदल के दौरे से भिलाई के निजीकरण को लेकर आशंकाएं जाहिर होना स्वाभाविक है। लेकिन यह मामला इतना भी आसान नही है कि मंडी में पड़े माल को देखने कोई खरीददार आए और बोली लगा ले। यह सच है कि मौजूदा सरकार में निजीकरण और आउटसोर्सिंग की दर 2,4,8 और 16 गुना रफ्तार से बढ़ी है। 
खुद भिलाई स्टील प्लांट और इसकी टाउनशिप की ज्यादातर सेवाएं धड़ल्ले से निजीकरण/आउटसोर्स की भेंट चढ़ाई जा रही है। प्लांट के कई विभागों में तो अब नियमित श्रेणी के तमाम काम ठेका मजदूर कर रहे हैं। बीएसपी के एक अफसर टिप्पणी करते हुए कहते हैं-भिलाई का निजीकरण इतना आसान नहीं है। यह तो लगभग बेवकूफी की बात होगी कि जिंदल यहां आए हैं तो भिलाई  को टटोलने और बोली लगाने की पृष्ठभूमि बन रही है। चूंकि भाजपा की नीति सार्वजनिक उद्योगों के लिए सकारात्मक नहीं रही है, इसलिए यह बिल्कुल माना जा सकता है कि आगे मुनाफे वाले स्टील प्लांट की भी बोली लगा दी जाएगी। लेकिन इसके लिए किसी उद्योगपति को जानबूझकर भिलाई आकर विवाद खड़ा करने की जरूरत क्यों पड़ेगी? अफसर कहते हैं-यह एक अनौपचारिक दौरा था और इसका कोई अर्थ निकालना जल्दबाजी होगी। 

जिंदल के प्रवास पर वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार की तल्ख़ टिप्पणी

छत्तीसगढ़ 12 जुलाई 2019 
नवीन जिंदल के भिलाई स्टील प्लांट दौरे पर वरिष्ठ पत्रकार और सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ के प्रधान संपादक सुनील कुमार जी ने अपने 12 जुलाई 2019 के संपादकीय में तीखी टिप्पणी की है। सुनील कुमार लिखते हैं-
'' देश के एक बड़े स्टील निर्माता नवीन जिंदल को कल केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम भिलाई इस्पात संयंत्र ने जिस तरह अपने कारखाने का दौरा करवाया है वह हैरान करने वाला है। नवीन जिंदल पर केन्द्र सरकार की ही जांच एजेंसी सीबीआई मुकदमा चला रही है कि उन्होंने रिश्वत देकर, गलत तरीके से केन्द्र सरकार से कोयला खदान हासिल की। इस मामले में अपनी कंपनी के सभी बड़े अफसरों के साथ नवीन जिंदल जमानत पर रिहा हैं। केन्द्र सरकार के भला कौन से उपक्रम की यह समझदारी कही जाएगी कि वह केन्द्र सरकार के खिलाफ साजिश करके, भ्रष्टाचार से खदान हासिल करने वाले को मेहमान बनाकर अपना कारखाना दिखाए? और यह बात उस वक्त अधिक गंभीर हो जाती है जब अंतरराष्ट्रीय खुले बाजार में भिलाई इस्पात संयंत्र और नवीन जिंदल एक-दूसरे के मुकाबले खड़े रहते हैं। 
लोगों को याद होगा कि एक वक्त जब बीएसपी के एमडी विक्रांत गुजराल थे, और बीएसपी रेलपांत बनाने के काम में सबसे आगे थी, तब जिंदल ने रेलपांत बनाना शुरू किया था और गुजराल बीएसपी को छोड़कर जिंदल की नौकरी में चले गए थे। 
आज जब मोदी सरकार एक-एक करके बहुत से सार्वजनिक उपक्रम बेचने की अपनी नीयत और तैयारी खुलकर बता चुकी है, तब बीएसपी को इस तरह एक दूसरे कारोबारी के सामने खोलकर रख देना किसी तरह का शिष्टाचार नहीं है, यह सीधे-सीधे बीएसपी के हितों के खिलाफ एक साजिश है, फिर चाहे इसका फैसला किसी भी स्तर पर क्यों न लिया गया हो। 
सरकारी उपक्रम को सोच-समझकर घाटे में लाने की योजना कोई नई नहीं है। जिस बीएसपी से जिंदल उसका एमडी छीनकर ले गया था, उसी बीएसपी में उसी जिंदल के लिए लाल कालीन बिछाकर स्वागत करना वहां के अफसरों की नीयत उजागर करता है, और हो सकता है कि इसके पहले दिल्ली की मंजूरी भी रही हो। यह समझने की जरूरत है कि नवीन जिंदल के अपने कारखाने बिक गए हैं, जिन्हें उनके भाई ने ही खरीदा है। ऐसे में इतनी बड़ी बीएसपी को किस उम्मीद से जिंदल के सामने पेश किया जा रहा है? नेहरू के बनाए हुए देश के इस पहले सबसे बड़े औद्योगिक तीर्थ को एक पशु बाजार में पशु कारोबारी के सामने खड़ा कर दिया गया है, और मानो नवीन जिंदल इसकी देह को टटोलकर इसमें गोश्त का अंदाज लगाने आया हुआ हो। इसके बाद देश में केन्द्र सरकार द्वारा अपराधी साबित करने के लिए जितने लोगों को कटघरे में खड़ा किया गया है, वे भी जमानत मिलने के बाद भिलाई इस्पात संयंत्र आकर मांग कर सकते हैं कि उन्हें भी कारखाना घुमाया जाए। भारत का संविधान दो अभियुक्तों के बीच भेदभाव की इजाजत नहीं देता है, यह एक अलग बात है कि जिन लोगों पर अब तक केन्द्र सरकार के साथ साजिश और भ्रष्टाचार करने का मुकदमा शुरू नहीं हुआ है, और जिन्हें जमानत लेने की जरूरत नहीं पड़ी है, उन लोगों को बीएसपी के अफसर घुमाने से मना भी कर सकते हैं।''   

जिंदल ने दी सफाई , बोले-''बीएसपी हमारे लिए मंदिर के समान, सारे कयास आधारहीन''

फेसबुक पर नवीन जिंदल की पोस्ट 
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड रायगढ़ के चेयरमैन नवीन जिंदल ने भिलाई स्टील प्लांट दौरे के तीसरे दिन साफ किया है कि उनके इस दौरे को लेकर लगाए जा रहे सारे कयास आधारहीन है। नवीन जिंदल ने सोशल मीडिया पर फेसबुक और ट्विटर के जरिए अपनी बात रखते हुए भिलाई दौरे का मकसद बताया है और भिलाई स्टील प्लांट को एक मंदिर निरुपित किया है।
 नवीन जिंदल ने ट्विट कर कहा कि वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की माताजी के निधन पर संवेदना व्यक्त करने गए थे। उसके बाद मैं अपने बेटे वेंकटेश को भिलाई स्टील प्लांट दिखाने ले गया। नवीन जिंदल ने कहा कि भिलाई स्टील प्लांट हमारे लिए एक मंदिर के समान है। इस प्लांट से ही प्रेरणा लेकर हमनें रायगढ़ में रेल मिल लगाई थी और हमें इस बात का गर्व है कि भारत में रेलपांत की आपूर्ति सिर्फ छत्तीसगढ़ से होती है। उन्होंने कहा कि इन खबरों से जो कयास लगाए गए हैं वह आधारहीन हैं। भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारियों और अधिकारियों ने हमें जो सम्मान दिया, उसके लिए हम उनके आभारी हैं। 
उल्लेखनीय है कि नवीन जिंदल अपने बेटे वेंकटेश के साथ संक्षिप्त प्रवास पर गुरुवार 11 जुलाई को भिलाई पहुंचे थे। भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अनिर्बान दासगुप्ता एवं महाप्रबंधक प्रभारी (परियोजनाएँ) एके भट्टा भी इस दौरान उनके साथ उपस्थित थे। अपने दौरे में उन्होंने सर्वप्रथम मेनगेट के निकट स्थापित सेफ्टी एक्सीलेंस सेंटर सुरक्षा कवच का अवलोकन किया। 
इसके बाद नवीन जिंदल ने अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित यूनिवर्सल रेल मिल का अवलोकन करते हुए रेल निर्माण एवं रेल लोडिंग की प्रक्रियाओं को देखा। उन्होंने महामाया ब्लास्ट फर्नेस-8, रेल मिल में एण्ड फोर्जिंग प्लांट तथा स्टील मेल्टिंग शॉप-1 का भी अवलोकन किया। उन्होंने संयंत्र के अधिकारियों के साथ आपसी ज्ञान व अनुभव को साझा कर इस्पात उत्पादन व उत्पादकता को बढ़ाने संबंधी प्रयासों पर चर्चा की थी।
@mzh 14719 

1 comment:

  1. बहुत खूब ज़ाकिर। यह पोस्ट पूर्वाग्रह रहित और तथ्यपरक है। यह पूरी तरह से आंखें खोलने वाली ही नहीं बल्कि पत्रकारिता के लिए मानदंड स्थापित करने वाली है। चाहते तो तुम अपनी भावनाओं के चलते, सबके सुर में सुर मिलते लेकिन यहां तुमने अपने पत्रकारिता के कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए सब कुछ निष्पक्ष और तटस्थ होकर देखा समझा और बहुत सी आंखें खोल दी।
    चीज़ों को इसी तरह देखो और इसी तरह लिखो, इसी उम्मीद के साथ...

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