Friday, August 2, 2019

एक उम्र गुजारनी पड़ी होगी इसके लिए 


'वोल्गा से शिवनाथ तक' की समीक्षा 


सौरभ शर्मा 
लेखक के साथ समीक्षक सौरभ शर्मा जी 
अभी ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' पढ़कर समाप्त की। यह किताब मूलत: भिलाई को लेकर रूसियों के संस्मरणों पर आधारित है। पचास के दशक के बाद कैसे सोवियत संघ की मदद से भिलाई स्टील प्लांट का निर्माण हुआ, इसकी पूरी बयानी इस किताब में बेहद दिलचस्प ढंग से लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने की है। किताब की सामग्री देखें, चित्रों को देखें, दस्तावेज देखें तो लगता है कि एक उम्र इसके लिए उनको गुजारनी पड़ी होगी। विलियम डेलरिंपल इसी तरह का शोधकार्य अपनी पुस्तकों के लिए करते हैं। 
एक बानगी है जैसे नेहरू भिलाई तीन बार आए। उनके भाषण के संग्रह के लिए जाकिर जी को त्रिमूर्ति भवन नई दिल्ली जाना पड़ा। यह भाषण डेढ़ घंटे का था और देश को लेकर नेहरू की जो सोच थी इसमें पूरी तरह से बयान होती है। छोटी-छोटी बातें जिसमें मेहनत नजर आती है। मसलन मास्को की एक टॉकीज में राजकपूर की फिल्म ''आवारा'' लगी हुई है। सब टाइटिल रशियन में है। फिर भिलाई के रशियन लोगों के राजकपूर से जुड़े किस्से भी, कैसे वे नेहरू की तरह ही रशिया में लोकप्रिय हो गये। कैसे रशियन लोग नर्गिस को राजकपूर की पत्नी ही समझने लगे। यह सब जानना बेहद दिलचस्प है। 
यह सबसे पहले दौर के लोगों की कहानी भी है जिन लोगों ने भिलाई को संवारा। वे लोग केवल इंजीनियर नहीं थे, उनके व्यक्तित्व के काफी आयाम थे। मसलन रशियन चीफ  इंजीनियर क्रोटेन्कोव्ह की कहानी। वे बर्ड वाचिंग में विशेष रुचि लेते थे और निशानेबाजी का शौक भी रखते थे। एक बार नेवई गांव में एक तालाब में परिंदों के शिकार में डूबने से उनकी मौत रविवार को हो गई। 
वे हर रविवार को रायपुर जाते और एक खास जगह पर पहुंचते जहां बच्चों को बैलून देते। उस दिन बच्चे उनका इंतजार करते रहे और फिर कभी इकठ्ठा  नहीं हुए। 
सबसे खास छू लेने वाले पल किताब के वो हैं जिसमें रशियन और भारतीय जोड़ों की कहानियां हैं। कितने सारे लोग जो ट्रेनिंग के लिए रशिया गए, उन्हें रशियन लड़कियों से शादी की। वहां के लोग जो आए, उन्होंने यहां ब्याह किए। शायद यह भी रहा हो कि आयरन कर्टेन के उस पार की आजाद जिंदगी जीने के लिए कई लड़कियों ने ऐसे ब्याह किए हो लेकिन यह भी हो सकता है कि भारत और रूसी सांस्कृतिक सामाजिक जीवन के करीब होने की वजह से भी यह संयोग हुआ हो जैसे मेरे वो दोस्त बताते हैं जिन्होंने रशियन साहित्य पढ़ा है कि यह प्रेमचंद के साहित्य से काफी मिलता जुलता है और भारत की सामाजिक मान्यताएं और रशिया की सामाजिक मान्यता एक जैसी है। 
मुझे यूली और ओलेस्की की कहानी विशेष रूप से अच्छी लगी। वे यूक्रेन के मरियोवपुल में रहते हैं। एक दिन दोस्तों के साथ बैठे थे। दुनिया भर के शहरों की चर्चा चली। इतने में भिलाई का भी जिक्र आया। बातचीत में पता चला कि दोनों का बचपन भिलाई में ही गुजरा है। यह संयोग आगे बढ़ा और दोस्ती पुख्ता हो गई। शादी के पूर्व वे भिलाई आए अपने परिचित जगहों को देखने।
 बीएसपी के संबंध में ख्रुश्चेव और दिमिशित्स के अनुभव भी काफी रोचक हैं। दिमिशित्स तो बीएसपी से जुड़े अहम लोगों को अक्सर मास्को बुलाते थे। ऐसे ही एक बार उन्होंने बीएसपी के महाप्रबंधक निर्मल चंद्र श्रीवास्तव को बुलाया। वहां उनके सम्मान में एक समारोह हुआ। श्रीवास्तव जी की पत्नी नलिनी जी ने संस्कृत के एक श्लोक ''स्वदेशे पूजयते राजा, विद्वानं सर्वत्र पूजयते'' का रशियन तर्जुमा सुनाया। करोल उवजाएत स्त्रना उमनिय चिलावेक उवजाएत वेस्मिर। राजा की इज्जत सिर्फ उसके देश में होती है ज्ञानी की इज्जत पूरी दुनिया में होती है।
दुर्ग 31 जुलाई 2019 

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