Friday, November 20, 2020

 अनुराग की 'लुडो' में भिलाई, सुपेला, 

धमतरी और सेंट थामस का मैजिक




इस्पात नगरी भिलाई में पले-बढ़े फिल्मकार अनुराग बसु की इस दीपावली रिलीज हुई फिल्म 'लुडो' में कलाकार भले ही मुंबई के हैं लेकिन अलग-अलग किरदार में ढले इन कलाकारों से अनुराग ने भिलाई, सुपेला, धमतरी और सेंट थामस का जिक्र बखूबी करवाया है। 

अनुराग बसु ने पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बच्चन, राजकुमार राव और आदित्य राय कपूर सहित ढेर सारे कलाकारों के लेकर बनाई इस फिल्म में अपने शहर और अपने बचपन के परिवेश को शामिल करना नहीं भूले हैं।
अनुराग अपनी पहले की भी तमाम फिल्मों में अपने शहर भिलाई का जिक्र करते रहे हैं। इसे और विस्तारित करते हुए अनुराग ने 'लुडो' में अलग-अलग दृश्यों में भिलाई और छत्तीसगढ़ को याद किया है। 

12 नवंबर 2020 को ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज के बाद से दर्शकों की प्रशंसा बटोर रही 'लुडो' में स्थानीयता वाले संवाद की वजह से भिलाई और छत्तीसगढ़ के दर्शक भावनात्मक रूप से जुड़ रहे हैं।

 ज्यादातर युवा दर्शक ऐसे दृश्यों के स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं, जिन दृश्यों में भिलाई-छत्तीसगढ़ का उल्लेख है। फेसबुक, इंस्टाग्राम से लेकर ट्विटर तक में ऐसे दृश्य घूम रहे हैं जिसमें किरदार स्थानीय क्षेत्रों का उल्लेख करते हैं।

अनुराग बसु ने इस फिल्म में 4 अलग-अलग कहानियों को एक कड़ी में पिरोते हुए पेश किया है। इनके अलग-अलग दृश्यों में अनुराग ने भिलाई से जुड़े संवाद बुलवाए हैं। एक दृश्य में सत्तु भाई का किरदार निभा रहे पंकज त्रिपाठी पूछते हैं कि धमतरी से भिलाई वाले रोड में गए थे क्या मैडम के साथ?

एक दृश्य में पति अपनी पत्नी के सामने स्वीकारोक्ति करते हुए सुपेला चौक में रहने वाली महिला शांभवी का जिक्र कर रहा है तो एक अन्य दृश्य में नायक पूछ रहा है कि भिलाई की रहने वाले हो? वहीं एक अन्य दृश्य में जेल से लौट चुके अभिषेक बच्चन को पत्नी बता रही है कि बेटी बड़ी हो गई है और सेंट थामस में एडमिशन करवा दिया है। 

अनुराग बसु ने 'लुडो' में एक किरदार से संवाद बुलवाया है कि-कुछ रिश्तों में लॉजिक नहीं होता सिर्फ मैजिक होता है। भिलाई से अपने रिश्ते का कुछ ऐसा ही मैजिक अनुराग ने 'लुडो' में दिखाया है। 

फिल्म को जहां डार्क कॉमेडी के रूप में लोग पसंद कर रहे हैं वहीं इसमें तीखा राजनीतिक व्यंग्य भी शामिल है। जिसके स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। खास तौर पर 'नेशन वांट्स टू नो' वाला दृश्य।
अनुराग ने 'लुडो' की कहानी चार रंगों की गोटी को प्रतीक बना कर पेश की है। जिसमें प्यार और गुस्से की प्रतीक लाल रंग की गोटी अभिषेक बच्चन की, शांति,खुशी और धूप की प्रतीक पीली गोटी आदित्य रॉय कपूर की, आशावाद और पवित्रता की प्रतीक नीले रंग की गोटी रोहित सराफ और पियरले माने की और अप्रत्याशित घटना की प्रतीक हरे रंग की गोटी राजकुमार राव की कहानी है। 

वहीं पंकज त्रिपाठी पूरी कहानी को आगे बढ़ाने वाला पासा हैं। वहीं अनुराग ने 60 के दशक की भगवान दादा की फ़िल्म 'अलबेला' के 'किस्मत की हवा कभी गरम कभी नरम' गाने का भी फिल्म में बेहतरीन इस्तेमाल किया है।

लुडो में शामिल संवाद ...


अनुराग बसु ने अपनी फिल्म 'लुडो' के जिन दृश्यों में स्थानीयता का समावेश किया है, उन्हें खूब पसंद किया जा रहा है। फिल्म में कुछ प्रमुख संवाद इस तरह से हैं-

1. ''एक बात बताओ भिलाई धमतरी की तरफ गए थे क्या मैडम को लेकर? हां सर, गया था... बस-बस उधर का ही होटल है।''
2. ''उससे जाकर मिल लेना, वहां रहती है सुपेला चौक पर, महिला एवं समाज कल्याण चलाती है।''

3. ''आप यहां.? आप तो भिलाई से हैं..? वो मैं यहां पर 6 महीने के लिए एक इंटर्नशिप के लिए आई हूं।''
4. 'यह पुराना सर्टिफिकेट है उसका, लास्ट ईयर सेंट थॉमस में डाल दिया है, जाओ मिल लो जाकर उससे।''


अपने पिता की रंगकर्म शैली को देते रहे हैं आदरांजलि

'लुडो' में यमराज के किरदार में अनुराग बसु


अनुराग बसु की अपनी अलग शैली है। जो उनकी हर फिल्म में नजर आती है। यह शैली उन्हें विरासत में मिली है। जिसे उन्होंने बचपन में अपने पिता स्व. सुब्रत बोस और मां दीपशिखा बोस को नेहरू हाउस सेक्टर-1 में थियेटर करते हुए देखा था।

 इसका सिनेमा में विस्तार करते हुए अनुराग ने फिर एक बार सूत्रधार शैली में 'लुडो' का निर्माण किया है। इस फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने सूत्रधार के रूप में अनुराग बसु खुद आधुनिक यमराज के रूप में नजर आए हैं। 

इस यमराज के माध्यम से ही कहानी का फ्रेम दर फ्रेम विस्तार होते जाता है। इसके पहले अनुराग ने अपनी फिल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो' में भी रंगमंच की इसी सूत्रधार शैली का इस्तेमाल किया था।

 बसु परिवार के रंगकर्म को करीब से जानने वाले इस्पात नगरी के लोग बताते हैं कि स्व. सुब्रत बोस अपने नाटक में कहानी को आगे बढ़ाने सूत्रधार जरूर रखते थे। तब ऐसा किरदार नवलदास मानिकपुरी निभाया करते थे। अब अनुराग बसु उसी शैली को सिनेमाई रंग देते हुए नए ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं।

पत्रकारिता के स्टूडेंट की अनुराग बसु से

यादगार मुलाकात और 'लुडो' में सेंट थॉमस


आमदी नगर हुडको में अनुराग बसु के साथ पत्रकारिता के स्टूडेंट (18 सितंबर-2017)


अनुराग बसु की फिल्म 'लुडो' में भिलाई, सुपेला व धमतरी के डायलॉग तो हैं ही साथ में एक डॉयलाॅग में सेंट थॉमस काॅलेज का भी जिक्र है। यह डॉयलाॅग थोड़ा चौंकाता भी है।
हालांकि खुद मेरे लिए और हमारे सेंट थॉमस कॉलेज रुआबांधा पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के स्टूडेंट के लिए यह वाकई में सरप्राइज जैसा ही है। इसके पहले भिलाई सेक्टर-2 के मानसिक नि:शक्त विद्यालय 'मुस्कान' के नाम को लेते हुए दादा (अनुराग बसु) ने 2013 में अपनी फिल्म 'बरफी' में 'मुस्कान' स्कूल दिखाया था। वैसे सेक्टर-2 के 'मुस्कान' स्कूल से बसु परिवार का आत्मीय नाता भी है। 
ऐसे में दादा ने 'बरफी' का स्टोरी आइडिया भले ही मुंबई के किसी मूक-बधिर स्कूल की किसी बच्ची को देखकर लिया लेकिन जहन में उनका अपना शहर भिलाई तो था ही। लिहाजा वहां 'मुस्कान' था तो अब साल 2020 में उनकी 'लुडो' के एक संवाद  में सेंट थॉमस है।
हालांकि सेंट थामस नाम शामिल करने के पीछे की वास्तविकता हो सकता है कुछ और भी जो जो दादा जानते हों। लेकिन हमारे सेंट थामस कॉलेज परिवार लोगों के लिए खुश होने की वजह तो है ही। यहां पिछले 4 साल से पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में मैं अतिथि प्राध्यापक के तौर पर संलग्न हूं। 
किस्सा मुख्तसर यह है कि बसु साल 2017 में भिलाई आए थे रूंगटा इंजीनियरिंग कॉलेज में टेडेक्स टॉक में हिस्सा लेने। तब मैनें उनसे अपने सेंट थॉमस कॉलेज चल कर पत्रकारिता के स्टूडेंट को मार्गदर्शन देने का आग्रह किया था।
हालांकि इसमें कुछ दिक्कतें भी आईं। तब दादा के पास रविवार 17 सितंबर का दिन था, जिसमें उन्हें अपने दोस्त की फैक्ट्री में विश्वकर्मा पूजा में शामिल होना था। 
वहीं रविवार होने की वजह से कॉलेज में भी छुट्टी थी। अंतत: सोमवार 18 सितंबर सुबह-सुबह तय यह हुआ कि कुछ चुनिंदा स्टूडेंट को लेकर मैं हुडको स्थित उनके बड़े पिताजी के घर 11:30 बजे तक पहुंच जाऊं। वहीं मुलाकात और बात कर लेंगे।
इसके बाद मैनें तीनों साल के स्टूडेंट में से कुछ को बुलाया और हम सब जा पहुंचे हुडको। यहां करीब घंटे भर तक दादा ने अनौपचारिक बातचीत की। इसी के साथ एक बात और जहन में आ रही है, दादा ने 'लुडो' में कुछ संवाद के माध्यम से आज के मीडिया पर जबरदस्त कटाक्ष किया है। सोशल मीडिया पर एक वर्ग मीडिया से जुड़े डॉयलॉग को अनुराग कश्यप का लिखा हुआ बताकर मजे ले रहा है। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। 

ऐसा इसलिए क्योंकि 18 सितंबर 2017 को जब हम लोग दादा के साथ बैठे तो तब भी उन्होंने मीडिया को लेकर कुछ ऐसी ही टिप्पणी की थी, जो अब संवाद के तौर पर 'लुडो' में शामिल हैं। खासकर एक बहुचर्चित संवाद- ''जब सरकार नहीं कहना चाहती तो हम मीडिया से कहलवा लेती है...नेशन वांट्स टू नो..''
खैर, तब पत्रकारिता के स्टूडेंट से दादा ने मीडिया के स्वरूप को लेकर दादा ने काफी कुछ कहा था। मैं दावा तो नहीं करता लेकिन मुमकिन है, तब बातचीत करते दादा के मन में कहीं सेंट थॉमस कॉलेज का नाम घर कर गया होगा और उन्होंने इसे अपनी फिल्म 'लुडो' में इस्तेमाल कर हम लोगों को खुशी मनाने का मौका दे दिया।
 इस यादगार मुलाकात के दौरान मेरे साथ पत्रकारिता के स्टूडेंट में अमिताभ शर्मा, रोमन तिवारी, सबा खान, साक्षी सैनिक, विनायक सिंह, अभिषेक यादव, कृष्णा दुबे, चंद्रकिशोर और अमित खरे थे। 
हम सबके लिए तब दादा के साथ घंटे भर बैठना यादगार पल रहा और अब 'लुडो' में सेंट थॉमस का जिक्र तो हम सब के लिए एक सरप्राइज है ही। इसलिए शुक्रिया दादा, इस सरप्राइज के लिए...

हरिभूमि में प्रकाशित स्टोरी