Wednesday, May 27, 2020

नेहरू ने रोपा, इंदिरा ने परवान चढ़ाया तो 
राजीव ने और आगे बढ़ाया भिलाई को 


नेहरू-इंदिरा-राजीव का आत्मीय रिश्ता रहा है इस्पात नगरी भिलाई से 


मुहम्मद ज़ाकिर हुसैन 


देश के तीन कद्दावर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का इस्पात नगरी भिलाई से भावनात्मक रिश्ता रहा है। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जहाँ भिलाई स्टील प्लांट को अंकुरित किया और उनकी बेटी इंदिरा गाँधी ने भिलाई सहित देश के तमाम सार्वजनिक उपक्रमों को परवान चढ़ाया तो प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने भिलाई की तरक्की में खूब दिलचस्पी दिखाई।
14 नवम्बर 1889 को जन्मे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का 27 मई 1964 को निधन हुआ था। 19 नवम्बर 1919 को जन्मी इंदिरा गाँधी ने 31 अक्टूबर 1984 को शहादत दी
। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का जन्म 20 अगस्त 1945 को हुआ और 21 मई 1991 में श्रीपैराम्बदूर, तमिलनाडु में राजीव गांधी को काल ने हमसे छीन लिया था। 

इस्पात नगरी भिलाई इन तीनो हस्तियों को हमेशा याद करती है। इनकी याद में कई कार्यक्रम होते रहे हैं जिनमे सरकारी स्तर  के कार्यक्रम भी शामिल हैं । जहाँ तक भिलाई स्टील प्लांट के आयोजनों की बात है तो कोरोना काल में सब कुछ स्थगित है । वैसे इसके पहले भिलाई में ऐसे आयोजनों पर सर्व धर्म प्रार्थना सभा नियमित होते रही है ।



21 मई को आतंकवादी विरोधी दिवस भी भिलाई में मनाया जाता रहा है। इस साल कोरोना काल में 21 मई को भी भिलाई बिरादरी ने आतंकवाद से कड़ाई निपटने की शपथ ली। कोविड-19 कोरोना और शारीरिक दूरी को ध्यान में रखते हुए भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मियों और अधिकारियों ने सभी विभागों में एकता एवं एकजुटता के साथ आतंकवाद से लडऩे की शपथ ली।

जवाहरलाल नेहरू का पहला  भिलाई दौरा 16-12-57, साथ में राजीव गाँधी और बर्मा के प्रधानमंत्री ऊ-नू 

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भिलाई से आत्मीय रिश्ता था। इसकी पृष्ठभूमि भी बेहद रोचक है। स्वाधीनता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र में एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की जरूरत को साफ तौर पर महसूस किया। 

इस दिशा में भारत सरकार ने 'हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड' का 19 जनवरी 1954 में गठन किया। जिसके अंतर्गत दस-दस लाख टन क्षमता की तीन इस्पात परियोजनायें सोवियत सहयोग से भिलाई में और पश्चिम जर्मनी के सहयोग से राऊरकेला में तथा ब्रिटिश सहयोग से दुर्गापुर में स्थापित की गई।
सही अर्थो में 2 फरवरी, 1955 को सोवियत तकनीक से 10 लाख टन इस्पात उत्पादन की क्षमता वाले इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिये पुरोगामी समझौता हुआ। यह इस्पात कारखाना कहां लगाया जाये इसको लेकर एकमत राय उभर कर नहीं आ रही थी।
भारी कश्मकश और कोशिशों के बाद भिलाई में इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिये सहमति हुई। सारे प्रयासों के बाद 14 मार्च 1955 को अंत: दुर्ग जिले के भिलाई को इस कारखाने के लिये चुना गया और इसके बाद ही निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो पाई। 

मध्य प्रदेश का एक आर्थिक रूप से पिछड़ा आदिवासी अंचल को इसके लिये चुना गया था और यह पिछड़ा अंचल और कोई नहीं आज का औद्योगिक तीर्थ 'भिलाई' है।



इस औद्योगिक तीर्थ के स्वप्न को साकार होते देखने पं. जवाहर लाल नेहरू भिलाई आते रहे। उनका पहला दौरा 16 दिसम्बर 1957 को हुआ। जब भिलाई स्टील प्रोजेक्ट अपनी निर्माण अवस्था में था।

 इसके बाद उनका अगला दौरा 27 अक्टूबर 1960 को हुआ, तब पूरा का पूरा नेहरू मंत्रिमंडल रायपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में हिस्सा लेने आया हुआ था। 
दूसरा भिलाई दौरा 27 अक्टूबर 1960 
27 अक्टूबर 1960 को पं. नेहरू अपने दूसरे भिलाई दौरे पर भिलाई आए तो उन्होंने रेल एंड स्ट्रक्चरल मिल का उद्घाटन किया था। तब का उनका भाषण नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी नई दिल्ली में सुरक्षित है। कारखाने में रेल मिल का उद्घाटन करने जाते वक्त नेहरू जी शायद कुछ मजाहिया मूड में थे।
लिहाजा उन्होंने भाषण खत्म करते और मशीन की तरफ जाते हुए कहा-'' मुझसे कहा गया है कि कोई बटन दबाऊं या हैंडल इधर-उधर कर के। यहां क्या है, रेल और स्ट्रक्चरल मिल। हां कुछ थोड़ा सा मैं समझा हूं यह, लेकिन पूरी तौर पर नहीं समझा हूं। क्योंकि मेरी पढ़ाई इंजीनियरिंग की नहीं थी, वह तो और तरफ झुक गई थी लेकिन खैर थोड़ा बहुत मैं समझा और अब मैं वह हैंडल घुमाने वाला हूं।
 मुझे ठीक ठीक नहीं मालूम घुमाने से क्या होगा। लेकिन कुछ न कुछ तो होगा ना..? हां, अब अब घुमाऊं ना, अच्छा तो मालगाड़ी चलने वाली है इधर से।'' (इसके साथ ही चारों तरफ तालियों की गडगड़़ाहट के बीच रेल मिल का औपचारिक उद्घाटन हो गया) 



कुछ देर के लिए पहुंचे थे नंदिनी 

नंदिनी 14 फरवरी 1962 

इसी दौरे पर पं. नेहरू जब भिलाई विद्यालय आए तो उनके स्वागत के लिए रशियन और भारतीय बच्चे हाथ में फूल लिए खड़े थे। नेहरू आगे बढऩे लगे एक बच्चे ने कुछ फूलों को निशाना लगाते हुए उनकी तरफ फेंक दिया। 

नेहरू ने भी तुरंत उनमें से कुछ फूल लपक कर कैच ले लिया और बच्चों सी खिलखिलाहट के साथ फूल उसी बच्चे को दे मारा। इससे पहले की बच्चा सहमता, पं. नेहरू ने तुरंत उसे गोद में उठा लिया।  
इसके बाद उनका आंशिक दौरा 14 फरवरी 1962 को हुआ। तब नेहरू चुनाव प्रचार के सिलसिले में ओडिशा जा रहे थे और दिल्ली से वे भिलाई नंदिनी एयरोड्रम पहुंचे। यहां उनका स्वागत करने आम जनता खड़ी थी। यहाँ उन्होंने सबका अभिवादन स्वीकार किया 

नंदिनी एयरोड्रम के एक कमरे में भिलाई स्टील प्लांट के अफसरों से कारखाने के कामकाज की जानकारी ली, कुछ जरूरी हिदायतें दी और इसके बाद वायुसेना के प्लेन से ओडिशा के लिए रवाना हो गए। जवाहरलाल नेहरू का आखिरी भिलाई दौरा 15 मार्च 1963 को हुआ था। तब उन्होंने कारखाना देखने के बाद एक आमसभा को संबोधित किया था।

  

अस्थि कलश आया था भिलाई, शोक में डूब गया था शहर 


शोक की घडी 7 जून 1964 
अपने भिलाई के आखिरी दौरे के करीब सवा साल के बाद 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू का देहांत हो गया। पूरा देश शोकमग्न था और जाहिर है भिलाई में भी मायूसी छाई हुई थी।
दिल्ली मेें यह तय किया गया कि नेहरू के बनाए आधुनिक तीर्थ में भी उनके अस्थि कलश भेजे जाएंगे। इसी कड़ी में 7 जून 1964 को जवाहरलाल नेहरू की अस्थियों का एक कलश भिलाई पहुंचा था। सीनियर सेकंडरी स्कूल सेक्टर-7 के मैदान में इस अस्थिकलश को आम जनता के दर्शन के लिए रखा गया था।



भिलाई से यह अस्थिकलश राजिम के त्रिवेणी संगम में विसर्जित किया जाना था, इसलिए कलश लेकर राजिम के तत्कालीन विधायक और कालांतर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ल भिलाई पहुंचे थे।

तत्कालीन जनरल मैनेजर इंद्रजीत सिंह के नई दिल्ली में होने की वजह से उनकी पत्नी मोहिंदर कौर (ठीक दाएं) ने इन्हें भिलाई बिरादरी की ओर से ग्रहण किया था। तस्वीर में तब के सोवियत चीफ इंजीनियर एसआई मलेयशेव व अन्य लोग भी नजर आ रहे हैं। 



उस रोज के गवाह रहे बहुत से लोग आज भी भिलाई में हैं। ये लोग बताते हैं पं. नेहरू के अस्थि कलश का दीदार करने भिलाई-दुर्ग व आस-पास के लोग हजारों की तादाद में उमड़े थे। 

 सेक्टर-7 स्कूल के मैदान में लोग लंबी-लंबी कतारों में लगे थे और सबने अपनी अपनी श्रद्धा के फूल पं. नेहरू के अस्थिकलश पर चढ़ाए थे। इसके बाद यहां से अस्थि कलश रायपुर होते हुए राजिम भेजे गए थे। जहां त्रिवेणी संगम में श्यामाचरण शुक्ल ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में इनका विसर्जन किया था।


पहली बार अपने पिता की प्रतिनिधि बन कर भिलाई आईं थीं इंदिरा 

ब्लास्ट फर्नेस-1 में, सिविक सेंटर में लकी ड्रा निकालते हुए और आम सभा को सम्बोधित करते हुए इंदिरा गाँधी 
जवाहरलाल नेहरू की तरह उनकी बेटी इंदिरा गांधी का भी भिलाई से आत्मीय लगाव रहा है। 9 फरवरी 1963 को इंदिरा गांधी का पहला भिलाई दौरा भी उनके पिता जवाहरलाल नेहरू के कहने पर हुआ था। तब वो किसी पद पर नहीं थी, यहां तक कि सांसद भी नहीं थी। तब इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता परिषद् की सदस्य थीं 
दरअसल वह ऐसा दौर था, जब चीनी हमले से उबरने के बाद देश को मजबूत बनाने हर भारतवासी अपना योगदान दे रहा था। ऐसे में भिलाई बिरादरी ने अपना योगदान समर्पित करने विशेष कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आमंत्रित किया था।
तब भिलाई स्टील प्लांट की कमान संभाल रहे जनरल मैनेजर सुकू सेन एक कुशल इंजीनियर होने के अलावा स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चरमपंथी गतिविधियों में संलग्न रही अनुशीलन पार्टी के सदस्य भी रह चुके थे।

 इसलिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से उनके आत्मीय रिश्ते थे। हालांकि इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ही आना था लेकिन किन्हीं व्यस्तताओं के चलते वे नहीं आ सके और उन्होंने प्रतिनिधि के तौर पर अपनी बेटी इंदिरा गांधी को भेजा था।

 तब इंदिरा गांधी की भी पहचान देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी के तौर पर ही ज्यादा थी, इसलिए उन्हें सुनने सिविक सेंटर ओपन एयर थियेटर का मैदान खचा-खचा भरा हुआ था। आमसभा के पहले श्रीमती गांधी भिलाई स्टील प्लांट पहुंची थी। जहां उन्होंने विभिन्न इकाइयों का दौरा किया।
इसी दिन शाम को वह विशेष कार्यक्रम में शामिल हुईं जिसमें बीएसपी की ओर से जनरल मैनेजर सुकू सेन और भिलाई महिला समाज की ओर से अध्यक्ष इला सेन ने राष्ट्रीय रक्षा कोष में डेढ़ लाख रूपए का अंशदान दिया था।

 इस दौरान समस्त दानदाताओं का आभार व्यक्त करने आफिसर्स एसोसिएशन की ओर से एक लक्की ड्रा भी रखा गया था। इंदिरा गांधी के हाथों यह लक्की ड्रा निकालकर अफसरों और उनके परिवारों को उपहार भी दिए गए थे। इसके बाद श्रीमती गांधी अगली सुबह नई दिल्ली रवाना हो गई।


इस तरह सिविक सेंटर किया गया था इंदिरा के नाम पर 

 
जनरल मैनेजर पृथ्वीराज आहूजा लोकार्पण करते हुए 
यह बांग्लादेश निर्माण के बाद एक लोकप्रिय जननेता बन कर उभरी इंदिरा गांधी का दौर था। तब बांग्लादेश निर्माण और पाकिस्तान की करारी हार के चलते इंदिरा गांधी अपनी लोकप्रियता के चरम पर थीं।
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के पराजय स्वीकार कर लेने के बाद जब औपचारिक तौर पर बांग्लादेश का गठन हो गया तो भिलाई स्टील प्लांट मैनेजमेंट ने अपनी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक टोकन गिफ्ट देने का फैसला लिया था।
तब के जनरल मैनेजर (स्व.) पृथ्वीराज आहूजा से बीते दशक में जब मेरी मुलाकात हुई तो उन्होंने इस पर तफसील से बताया था। किस्सा मुख्तसर यह है कि नई दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर बनाए गए भिलाई के मार्केट सिविक सेंटर को इंदिरा प्लेस का नाम देना तय हुआ था।
जिसके लिए तमाम औपचारिकताओं और मंजूरी के बाद कार्यक्रम बना कि इंदिरा प्लेस का लोकार्पण खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी करेंगी। इसके लिए तारीख भी तय हो गई और कार्यक्रम भी।

 लेकिन ऐन वक्त पर 26 जनवरी की व्यस्तता को देखते हुए प्रधानमंत्री का भिलाई दौरा टल गया और (स्व. आहूजा के मुताबिक) प्रधानमंत्री कार्यालय की मंजूरी के बाद तय हुआ कि जनरल मैनेजर आहूजा ही इस विशेष पट्टिका का अनावरण कर दें।

 इस तरह 25 जनवरी 1972 से सिविक सेंटर का नाम बदल कर इंदिरा प्लेस कर दिया गया। ये अलग बात है कि आज भी अधिकृत नाम पते के तौर पर हम लोग इंदिरा प्लेस सिविक सेंटर लिखते हैं।


तड़के 2 बजे और 4 बजे इंदिरा गांधी
की आमसभा और जनता का डटे रहना

चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गाँधी भिलाई में 
ये किस्सा तब का है,जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री नहीं थीं। चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर चुकी थी और आम चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। मतदान 3 से 6 जनवरी 1980 तक होना था।
भिलाई के दो बार विधायक रहे फूलचंद बाफना (अब दिवंगत) करीब 17 साल पहले इस बारे में मुझे एक रिकार्डेड इंटरव्यू में विस्तार से बताया था। स्व. बाफना ने जो बताया था, सब कुछ उन्हीं के शब्दों में-
''अचानक रात 2 बजे वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल का टेलीफोन आया। उन्होंने कहा-इंदिरा जी छत्तीसगढ़ में आम चुनाव के लिए प्रचार करेंगी तो भिलाई स्टील प्लांट की एम्पाला कार के लिए बात कर लो। मैनें सुबह बीएसपी के मैनेजिंग डायरेक्टर शिवराज जैन को फोन लगाया तो वो थोड़ा हिचकिचाए।
मैनें उनकी उलझन को दूर करते हुए कहा कि आप कांग्रेस पार्टी को कार मत दीजिए बल्कि हमारी इंटक यूनियन के नाम पर दीजिए। हम उसका पूरा किराया भुगतान करेंगे। इस तरह रास्ता निकला और बीएसपी के मान्यता प्राप्त श्रमिक संगठन इंटक के नाम पर एम्पाला कार इंदिरा जी के लिए बुक कराई गई।
इंदिरा जी रायगढ़-बिलासपुर होते हुए भिलाई आ रही थीं। इसलिए यहां 32 बंगला के ठीक सामने सेक्टर-8 में खाली मैदान में अपार जनसमूह उमड़ा था। सभा शाम 6 बजे होनी थी लेकिन इंदिरा जी के आगमन में लगातार विलम्ब होता गया। यहां तक कि रात के 10 बज गए लेकिन इंदिरा जी नहीं पहुंची। लेकिन जनता वहां से टस से मस नहीं हुई। लोग डटे हुए थे।
लोगों का इंतजार बढ़ता रहा और आखिरकार रात 2 बजे इंदिरा जी भिलाई पहुंची। उनके पहुंचते ही रात 2 बजे भी जनता जिंदाबाद के नारे लगा रही थी। इंदिरा जी मंच पर पहुंची और सबसे पहले उन्होंने देरी के लिए माफी मांगी। उन्होंने सभा को संबोधित किया।
इसके बाद यहां से वो राजनांदगांव के लिए रवाना हुई। इंदिरा जी अपने साथ एक मिनी ट्यूबलाइट रखती थी। सुबह के 3 बजे रहे थे और रास्ते में अंजोरा, टेढ़ेसरा और सोमनी में जगह-जगह अपार जनसमूह इंदिरा जी का इंतजार कर रहा था। 

इंदिरा जी कार से उतर कर मिनी ट्यूबलाइट और कार की हेडलाइट की रोशनी में सबका अभिवादन करते हुए बढऩे लगी। इस बीच रास्ते में बीएसपी की एम्पाला कार पंक्चर हो गई थी, फिर उतनी ही रात में बनवाया गया।
 तब तक के लिए इंदिरा जी विद्याचरण शुक्ल की कार में बैठी। सुबह करीब 4 बजे इंदिरा जी राजनांदगांव पहु्ंची तो वहां भी दूर-दूर से हजारों की तादाद में ग्रामीण जनता आकर मैदान में डटी हुई थी।

 वहां उन्होंने सभा को संबोधित किया और इसके बाद रायपुर रवाना हुई। जहां सर्किट हाउस में फ्रेश होने के बाद कुछ देर ध्यान किया। इसके बाद नाश्ता किया और फिर गुजरात के लिए विशेष विमान से रवाना हो गई।
मैनें चंदूलाल चंद्राकर जी से पूछा कि-इंदिरा जी तो पूरी रात सभाएं लेते रहीं तो सोएंगी कब? तब चंदूलाल जी ने बताया कि विमान में डेढ़ घंटे में वो अपनी नींद पूरी कर लेंगी।''  ये पूरे उद्गार स्व. बाफना के थे।

इंदिरा जी ने मुझ जैसे छोटे कार्यकर्ता को अपने 

घर पर कराया भोजन, हमेशा रखती थीं ध्यान

 दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी के तीन दशक तक महामंत्री रहे पूर्व मंत्री और भिलाई विधायक बदरुद्दीन कुरैशी के जहन में स्व. इंदिरा गांधी से जुड़ी कई यादें हैं, जो आज भी उन्हें भाव-विभोर कर जाती हैं। कुरैशी बेहद भावुक होकर बताते हैं कि एक मौका ऐसा भी आया इंदिरा गांधी ने उन्हें अपने घर पर भोजन करवाया और दुर्ग में कांग्रेस से जुड़ी तमाम जानकारी ली।

 कुरैशी को इस बात का मलाल है कि इंदिरा और राजीव गांधी के दौर में संगठन स्तर पर जैसी गंभीरता शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश स्तर के नेतृत्व में होती थी, वैसी अब देखने को नहीं मिलती। 


1978 में मेरे जीवन का  वह यादगार पल-कुरैशी


कुरैशी बताते हैं-1978 में बारिश का मौसम था और तब दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री की हैसियत से संगठन के कार्य से वह दिल्ली गए थे। उनके साथ स्टील वर्कर्स यूनियन (इंटक) के पदाधिकारी जीपी तिवारी भी थे। दिल्ली में उनकी मुलाकात युवा नेता जगदीश टाइटलर और युवक कांग्रेस के तब के महामंत्री सुदर्शन अवस्थी से हुई। इन दोनों नेताओं के साथ हम दोनों भी इंदिरा जी के निवास पहुंचे। दोपहर का वक्त था। हम लोगों ने पहले से समय ले रखा था इसलिए हम चारों को सीधे इंदिरा जी ने अपने बैठक कक्ष में बुलवाया।


दुर्ग के कांग्रेसी नेताओं का नाम लेकर पूछा हाल


कुरैशी कहते हैं- मेरे लिए निजी तौर पर यह सुखद आश्चर्य का विषय था कि इंदिरा जी दुर्ग के बहुत से कांग्रेसी नेताओं का नाम लेकर पूछ रहीं थी। खैर, हम लोगों की करीब पौन घंटे बात हुई। इसके बाद हम लोग जाने लगे तो इंदिरा जी ने कहा कि खाने का वक्त हो चुका है चलिए साथ में भोजन कर लीजिए। इंदिरा जी के इस व्यवहार से हम तो अभिभूत हो गए। फिर इंदिरा जी हम चारों को लेकर डाइनिंग हॉल में गईं और वहां हम सबको आत्मीयता के साथ भोजन करवाया। इस दौरान उन्होंने संगठन से जुड़ी कई बातें की और भविष्य को लेकर अपनी योजनाएं बताईं व हम लोगों से जरूरी सुझाव लेकर उसे अपनी डायरी में नोट किया। इसके बाद हम लोग इंदिरा जी के काफिले के साथ आदर्श कालोनी पहुंचे, जहां घनघोर बारिश की वजह से भारी तबाही हुई थी। यहां इंदिरा जी ने सहायता सामग्री का वितरण किया।


कार्यकर्ताओं तक का नाम 

लेकर  पूछती थीं हाल-चाल


कुरैशी कहते हैं-इस मुलाकात के बाद कुछ ऐसा हुआ कि जब भी देश के किसी भी हिस्से में कांग्रेस का कोई बड़ा आंदोलन होता था तो इंदिरा जी का संदेश जरूर आता था। इस मुलाकात के अलावा मुझे तीन बार चंदूलाल चंद्राकर जी के साथ भी इंदिरा जी से मिलने का मौका मिला। हमेशा वह आत्मीयता से मिलती थीं। हमेशा कार्यकर्ता स्तर के लोगों के बारे में पूछतीं थीं। मुझे हैरानी होती थीं कि उन्हें ज्यादातर कार्यकर्ताओं के नाम तक जुबानी याद रहते थे।
कुरैशी कहते हैं-तब इंदिरा जी जिस तरह संगठन को लेकर गंभीरता से बातें सुनती थी, उसका असर यह होता था कि पार्टी के कार्यकर्ता अपने आप को बेहद सम्मानित महसूस करता था। यही गंभीरता स्व. राजीव गांधी में भी थी। इसके चलते मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी भी अपने ब्लाक स्तर तक के कार्यकर्ता की बात को तवज्जो देती थी। कुरैशी कहते हैं-आज पार्टी में ऐसी गंभीरता कम देखने मिल रही है। आज की परिस्थिति में चिट्ठी भी लिखो तो चिट्ठी का अता-पता नहीं रहता है। इस पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।


जब कड़ाके की ठंड में इंदिरा जी का सारी 

रात इंतजार किया भिलाई की जनता ने


पूर्व मंत्री बदरुद्दीन कुरैशी बताते हैं-दुर्ग-भिलाई और छत्तीसगढ़ को लेकर इंदिरा जी का खास लगाव था। यहां के आदिवासी अंचल को लेकर वह हमेशा संवेदनशील रहीं। कुरैशी बताते हैं-1970 से 1980 तक हर लोकसभा-विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी प्रचार के लिए आईं। 1970 की ऐसी ही एक चुनावी सभा में पत्रकार के तौर पर मोतीलाल वोरा भी मौजूद थे। 1980 की सभा का जिक्र करते हुए कुरैशी बताते हैं-3-6 जनवरी 1980 को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना था और संभवत: 30-31 दिसंबर 1979 को इंदिरा जी छत्तीसगढ़ के दौरे पर थीं। खास बात यह थी कि भिलाई स्टील प्लांट की शेवरलेट एम्पाला कार मंगाई गई थी, जिसे विद्याचरण शुक्ल खुद ड्राइव कर रहे थे और इंदिरा जी सामने सीट पर बैठीं थी। तब सेक्टर-8 के मैदान में आमसभा थी और रात 8 बजे तक इंदिरा जी के आने की घोषणा हो चुकी थीं। दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में लोगों का हौसला कम नहीं हुआ था। 


इंदिरा को जेल भेजे जाने से भड़की 

जनता ने दुर्ग में जिता दिया कांग्रेस को 


हजारों की तादाद में मैदान में लोग शाम से इकट्ठा होने लगे थे लेकिन घोषणा पर घोषणा होती रहीं और इंदिरा जी नहीं पहुंच पाईं। इसके बावजूद जनता वहीं डटी रहीं। अंतत: रात करीब 2:30 बजे इंदिरा जी सभा स्थल पर पहुंची और लोगों ने पूरे धैर्य के साथ उनका भाषण सुना। तब चंदूलाल चंद्राकर कांग्रेस के प्रत्याशी थे। यहां से इंदिरा जी दुर्ग सर्किट हाउस पहुंची। कुछ देर विश्राम किया और फिर राजनांदगांव के लिए रवाना हो गईं। ऐसा जुझारू नेतृत्व बहुत कम देखने को मिलता है। इस चुनाव में चंदूलाल चंद्राकर भारी मतों से विजयी हुए थे। कुरैशी एक अन्य घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहते हैं-जब 19 दिसंबर 1978 को मोरारजी देसाई सरकार ने इंदिरा गांधी को जेल भेजा तो पूरे देश में आक्रोश उबल पड़ा था। इन्हीं दिनों दुर्ग नगर निगम के चुनाव भी थे। उस आक्रोश का जवाब दुर्ग की जनता ने कांग्रेस को निगम चुनाव में भारी मतों से जीता कर दिया था।


जब राजीव को नेहरू ने भेजा जनरल मैनेजर के बंगले में 

 
नेहरू को प्रोजेक्ट एरिया दिखते दिमशित्स, साथ में हैं राजीव 
इंदिरा गांधी के सुपुत्र और देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी का पहला भिलाई 16 दिसंबर 1957 को अपने नाना और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ हुआ था। 

तब राजीव महज 13 वर्ष के थे। तब भिलाई स्टील प्रोजेक्ट का काम शुरू हुआ था। उस दौर में केंद्र सरकार की प्राथमिकता भारत दौरे पर आने वाले राष्ट्राध्यक्षों/राष्ट्र प्रमुखों को देश की तरक्की का मॉडल दिखाने की थी।
उन दिनों बर्मा के प्रधानमंत्री ऊ-नू भारत दौरे पर थे। नेहरू राउरकेला और भिलाई दौरे पर जा रहे थे लिहाजा अपने साथ ऊ-नू को भी लेते आए। राउरकेला के बाद सभी मेहमान भिलाई पहुंचे। तब 32 बंगला बन चुका था और बंगला-1 में जनरल मैनेजर निर्मलचंद्र श्रीवास्तव रहते थे और बंगला-2 को गेस्ट हाउस बनाया गया था।
इस इकलौते बंगले में नेहरू और ऊ-नू के रुकने की व्यवस्था की गई थी। उस दौरे का एक दिलचस्प किस्सा तब के जनरल मैनेजर निर्मलचंद्र श्रीवास्तव की पत्नी नलिनी श्रीवास्तव ने मुझे एक इंटरव्यू में बताते हुए कहा था- तब दो देश के प्रधानमंत्री एक ही बंगले में रुके थे और साथ में नेहरू के नाती राजीव गांधी भी।

सुबह-सुबह तीनों को तैयार होना था लेकिन बाथरूम तो दो था। लिहाजा नेहरू ने तुरंत राजीव गांधी को हमारे बंगला-1 में भेजा। यहां उनके लिए तुरंत पानी गर्म करवाया गया और फिर राजीव नहा कर तैयार हुए। इसके बाद सभी प्रोजेक्ट एरिया देखने रवाना हुए, जहाँ उन्हें जनरल मैनेजर निर्मलचंद्र श्रीवास्तव और रशियन चीफ इंजीनयर वी ई दिमशित्स ने निर्माण गतिविधियों से अवगत कराया था।
बहरहाल उस रोज हुआ कुछ यूं कि नेहरू का तो दौरा प्रोटोकॉल के हिसाब से मिनट दर मिनट तय था और उन्हें राजधानी दिल्ली लौटना था। लेकिन ऊ-नू को भिलाई इतना पसंद आया कि उन्होंने कुछ दिन रुकने की ख्वाहिश जाहिर की।

 ऐसे में नेहरू और राजीव गांधी अगले दिन दिल्ली के लिए रवाना हो गए और ऊ-नू पूरे हफ्ते भर तक भिलाई निर्माण को करीब से देखने रुकने रहे। यहां से जाकर ऊ-नू ने अपने देश में औद्योगिकीकरण की पहल भिलाई मॉडल के आधार पर की थी। 

राजीव गाँधी श्रम शक्ति सदन और सेक्टर 1 के कार्यक्रम में

दूसरी बार कांग्रेस महासचिव की हैसियत से भिलाई आये थे राजीव 

राजीव गांधी दूसरी बार 13 सितम्बर 1984 में कांग्रेस महासचिव और संसद सदस्य के तौर पर भिलाई आये थे। इस प्रवास के दौरान राजीव गांधी ने मध्यप्रदेष सरकार की शहरी गरीब वर्गों के प्रशिक्षण और रोजगार योजना 'स्टेप अप' योजना का शुभारंभ किया था।
इसके लिए सेक्टर-1 में आज नेहरू हाउस के सामने के क्रिकेट स्टेडियम में प्रदर्शनी लगाई गई थी। इसका उद्घाटन करने के साथ ही राजीव गांधी ने भिलाई में स्टील वर्कर्स यूनियन के कार्यालय श्रम शक्ति सदन का उद्घाटन किया था। 


दस्तावेज़ बन गई राजीव की वो ऐतिहासिक तस्वीर 

1984 की पहली तस्वीर समरपुंगवान और दूसरी हरीश के साथ, इसी पर 1989 में राजीव ने ऑटोग्राफ दिया था 
राजीव गांधी से जुड़ा यह किस्सा बेहद भावनात्मक है। 16 दिसंबर 1957 को जब किशोरवय राजीव गांधी पहली बार भिलाई आए थे, तब फोटोग्राफरों की टीम में भिलाई स्टील प्लांट के फोटोग्राफर हरीश जाधवजी हिरानी भी थे।

 इस घटना के करीब 27 साल बाद कांग्रेस महासचिव की हैसियत से राजीव गांधी दूसरी बार 13 सितम्बर 1984 में भिलाई आए तो सेक्टर-1 में लगी प्रदर्शनी में खास तौर पर राजीव गांधी की 1957 वाली फोटो भी लगाई गई थी।
 प्रदर्शनी भ्रमण के दौरान तत्कालीन सेल के चेयरमैन सुब्रमण्यम समरपुंगवन एक-एक कर सारी फोटो का परिचय दे रहे थे। जब राजीव इस फोटो के पास पहुंचे तो देखकर मुस्कुराए। इसी दौरान पास ही बीएसपी के फोटोग्राफर हरीश भी खड़े थे।

 तब राजीव को सेल चेयरमैन समरपुंगवन ने बताया कि हरीश ने ही 16 दिसंबर 1957 को यह फोटो ली थी। इस पर राजीव बेहद खुश हुए और हरीश से बेहद आत्मीयता से मिले। इस दौरान उन्होंने अपनी उसी तस्वीर के पास हरीश के साथ फोटो खिंचवाई थी।
 इसके बाद 1 मई 1989 को तीसरी और आखिरी बार राजीव गांधी भिलाई आए तो हैसियत प्रधानमंत्री की जरूर थी, लेकिन पुराने लोगों से खुलकर मिले। इस दौरान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हरीश भी तालपुरी पहुंच गए। यहां बंगला नं. 1 राजीव गांधी को ठहराया गया था।

 हरीश यहां पहुंच गए 1984 में खिंचवाई यही फोटो लेकर। उन्होंने आटोग्राफ  की गुजारिश की.... राजीव ने पास खड़े तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. ईआरसी शेखर से पेन मांगा और हरीश की ही पीठ पर फोटो रख उस पर लिख दिया 'राजीव गांधी 1 मई 1989।' अब हरीश और उनकी फोटोग्राफी की दुनिया की बस यादें ही रह गई हैं। 24 मई 2012 गुरुवार को तड़के 3 बजे सेक्टर-9 अस्पताल में हरीश ने 82 साल की उम्र में आखिरी सांस ली थी।


राजीव ने भिलाई की आमसभा में कहा था ...... 

सिविक सेंटर में राजीव की आमसभा, मंच पर चंदूलाल चंद्राकर और मणिशंकर अय्यर  
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नई दिल्ली के प्रकाशन विभाग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के 1 मई 1989 को श्रमिक दिवस पर भिलाई में दिए गए भाषण को प्रकाशित किया था। 4 पन्नों के इस भाषण की कुछ खास झलकियां-
(1) भिलाई से मेरी खास आत्मीयता रही है। यह मेरा चौथा भिलाई दौरा है। 1957 में पहली बार भिलाई अपने नाना पं. जवाहरलाल नेहरू जी के साथ आया था। तब भिलाई का काम शुरू ही हुआ था।
(2)आज यहां करीम साहेब के हाथों एक छोटा सा तोहफा पाकर मैं बेहद खुश हूं। मुझे बताया गया है कि करीम साहेब भिलाई के सबसे वरिष्ठ कर्मी हैं। मैनें जानकारी ली है कि करीम साहेब ने 1957 में भिलाई स्टील प्रोजेक्ट ज्वाइन किया था और इस साल रिटायर हो रहे हैं। मेरी उन्हें शुभकामनाएं।
(3)आज पब्लिक सेक्टर को और ज्यादा समृद्ध करना जरूरी है। इसमें भिलाई स्टील प्लांट का आधुनिकीकरण व विस्तारीकरण तो तत्काल जरूरी है। अगर देश को लगातार प्रगति के पथ पर ले जाना है तो हमें भिलाई का तत्काल आधुनिकीकरण व विस्तारीकरण करना होगा।
(4)हमारी सरकार में ईएसआईएस असंगठित क्षेत्र के 3 करोड़ से ज्यादा श्रमिकों को लाभ मिल रहा है। इन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए जवाहर रोजगार योजना में 21 सौ करोड़ रूपए का आवंटन किया गया है।
(5)मुझे मध्यप्रदेश में जल संकट की जानकारी है। मैं इस मंच से आश्वस्त करता हूं कि भिलाई टाउनशिप को उसकी जरूरत का पूरा-पूरा पानी समय पर मिलेगा और इसके साथ ही सिंचाई के लिए पानी में कोई कटौती नहीं की जाएगी।
(6)आज रावघाट खदान और वहां की प्रस्तावित रेल लाइन परियोजना में पर्यावरण से जुड़े कुछ विषय रुकावट बन रहे हैं। मुझे उम्मीद है यह रेलवे लाइन बस्तर के आदिवासियों के लिए मददगार साबित होगी और भिलाई स्टील प्लांट से जुड़ी बहुत सी समस्याओं का हल होगी।
(7) ऐसा पहली बार हुआ है कि हमारे पड़ोसियों ने हमसे सैन्य सहायता मांगी और हमनें तत्काल भेजी भी। मालद्वीप और श्रीलंका में भारत की इस सैन्य कार्रवाई की पूरी दुनिया में चर्चा है और सभी ने भारत की सैन्य शक्ति को स्वीकार करते हुए इसकी सराहना की है।
(8)आज आप सभी को सुनिश्चित करना होगा कि हम लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, स्वशासन, समाजवाद और गुटनिरपेक्षता के मार्ग अपनाएं। यही एकमात्र रास्ता है, जिनसे हमारा देश मजबूत बन सकता है।
 जय हिंद। 


7 comments:

  1. Excellent graphic account of Bhilai. I enjoyed with re-living of memories. I also feel sorrow for what is happening to these modern temples. Nehruji long back called himself as First Servant, what a humility. Many thanks Hussain sahab. God will bless you. PP Varma Retd. DGM.

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  2. Phir se padhte bore nahi hua. Ye bhilai kahani, aaj ka Aatma Nirbhar nahi ti aur kya. Chhattisgarh ko aage lejane me, bhilai ka anmol yog daan raha aur rahega.

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  3. बहुत विस्तारपूर्वक दिनांक सहित तीनों प्रधानमंत्रियों के भिलाई प्रवास की सचित्र जानकारी अद्भुत है। यह आलेख अपनेआप में इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। आपका परिश्रम स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आपको इस हेतु बधाइयाँ।

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  4. आपके लेख अच्छे और तध्यपूर्ण होते हैं शुभकामनाएं। लिखते रहें।

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  5. ज़ाकिर भाई, अपनी लेखनी से जिस प्रकार आप हर घटना को जीवंत बनाते है ऐसा लगता है जैसे सब कुछ आपके सामने ही घटित हुआ हो ...!! सच तो यह है कि मेरी ज़िंदगी में 1955 से 1980 तक का भिलाई में गुजरे समय की कई यादें आप जब बयान करते है तो कई कई घटनाओँ का मैं भी साक्षी रहा हूँ इसलिए उनसे जुड़ भी पता हूँ । ऐसी कई कई यादें मेरे साथ भी इन हस्तियों से सम्बंधित जुड़ी हुई हैं जिनका बखूबी वर्णन आपने किया है । आपको बहुत बहुत बधाइयाँ कि आप हम जैसे भिलाई वासियों को उन यादों से जोड़ रहे हैं जिनके बचपन से जवानी तक हमारा भी हिस्सा रही हैं ।

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  6. उपरोक्त विचार थे मेरे यानि राकेश मोहन विरमानी के

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