Saturday, February 22, 2020

इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान बोले- वाह

 भिलाई की पूरी कहानी लिख दी आपने 


 ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के द्वितीय संस्करण का किया विमोचन


‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने अपने इस ऐतिहासिक कृति में भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रेरक इतिहास को बड़े ही रोचक शैली में संजोने का सफल प्रयास किया है। इसके प्रथम संस्करण की लोकप्रियता को देखते हुए इसके दूसरे संस्करण को शीघ्र ही प्रकाशित किया गया।


स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड-सेल की ध्वजवाहक इकाई भिलाई इस्पात संयंत्र व इसकी खदानों के रोचक इतिहास को संजोती लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की कृति ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के दूसरे संस्करण का विमोचन पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस एवं इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया। 
20 फरवरी 2020 गुरूवार की शाम भिलाई निवास में एक संक्षिप्त किंतु गरिमामय समारोह में सेल के डायरेक्टर (प्रोजेक्ट्स एवं बिजनेस प्लानिंग) तथा भिलाई इस्पात संयंत्र के सीईओ अनिर्बान दासगुप्ता तथा न्यू प्रेस क्लब आॅफ भिलाई की अध्यक्ष भावना पांडे भी लेखक के साथ विशेष रूप से उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के प्रथम संस्करण का विमोचन गत वर्ष 7 फरवरी, 2019 को राजधानी रायपुर में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह व प्रथम मुख्यमंत्री  अजीत जोगी ने एक साथ एक गरिमामय समारोह में किया था। भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भिलाई व इसकी खदानों के रोचक इतिहास पर केंद्रित इस किताब के दूसरे संस्करण में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के डायरेक्टर (प्रोजेक्ट्स एवं बिजनेस प्लानिंग) तथा भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य कायर्पालक अधिकारी अनिर्बान दासगुप्ता का साक्षात्कार और भिलाई व इसकी खदानों के इतिहास से जुड़ी रोचक सामग्री शामिल की गई है।
विमोचन अवसर पर डायरेक्टर (प्रोजेक्ट्स एवं बिजनेस प्लानिंग) तथा बीएसपी के सीईओ  अनिर्बान दासगुप्ता ने इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को किताब की पृष्ठभूमि व लेखक के कार्य से अवगत कराया। मंत्री प्रधान ने लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन के कार्य की सराहना करते हुए इतिहास के दस्तावेजीकरण के क्षेत्र में इसे एक उल्लेखनीय पहल बताया।
 इस दौरान लेखक ने जब बताया कि इस किताब में भिलाई के सारे चीफ ऑफ एग्ज़ीक्यूटिव और सारे प्रमुख रशियन के इंटरव्यू है तो मंत्री प्रधान बोले- वाह भिलाई की पूरी कहानी लिख दी आपने।  इस अवसर पर न्यू प्रेस क्लब ऑफ भिलाई के पदाधिकारीगण, विभिन्न समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधि सहित इस्पात मंत्रालय, सेल-बीएसपी के उच्च अधिकारी भी उपस्थित थे।
विदित हो कि लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने इससे पूर्व प्रकाशित ‘भिलाई एक मिसाल-फौलादी नेतृत्वकताओं की’ अपनी पुस्तक में भिलाई इस्पात संयंत्र के नेतृत्वकर्ताओं के ऊपर भी अपनी लेखनी का लोहा मनवा चुके हैं। इसके अतिरिक्त अपनी पुस्तक ‘इस्पात नगरी का फौलादी रंगकर्मी-सुब्रत बसु’ में उन्होेंने भिलाई के प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक अनुराग बसु के पिता सुब्रत बसु के जीवन संघर्ष को बखूबी पिरोया है।
आप यहाँ आयोजन से जुड़ा एक दिलचस्प वीडिओ देख सकते हैं, जिसमे इस्पात मंत्री प्रधान को सेल के डायरेक्टर प्रोजेक्ट मेरी किताब के बारे में बता रहे हैं और मैंने भी उन्हें कुछ बताया इसके बाद इस्पात मंत्री ने अपनी टिप्पणी की । यह वीडिओ मौके पर मौजूद मेरे भांजे अल्तमश शेख ने बनाया है
विमोचन समारोह की खबर विभिन्न समाचार पत्रों और वेब पोर्टल पर प्रकाशित हुई । इनमे से कुछ लिंक शीर्षक को क्लिक कर भड़ास4मीडिया  ब्लास्ट न्यूज़  स्टील सिटी ऑनलाइन  मितान भूमि  जोगी एक्सप्रेस  छत्तीसगढ़ न्यूज़ एंड इंफार्मेशन नेटवर्क  डेली हंट क्रांतिकारी संकेत डेली हंट ई संस्करण दैनिक विश्व परिवार विज़न न्यूज़ सर्विस  पढ़ सकते हैं।
वहीँ क्लिपर-28 में हेडिंग और फोटो तो विमोचन की है लेकिन भूलवश पूरी खबर दूसरे समारोह की है. 

‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ का विमोचन किया 

छत्तीसगढ़ के वर्तमान, पूर्व और प्रथम मुख्यमंत्री ने


भिलाई के निर्माण में सोवियत रूस और भारतीयों के योगदान पर केंद्रित है यह किताब

इस्पात नगरी भिलाई के पत्रकार व लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन की शोधपूर्ण किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ का विमोचन छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 7 फरवरी 2019 गुरुवार की शाम राजधानी रायपुर में आयोजित एक गरिमामय समारोह में एक साथ किया। इस्पात नगरी भिलाई के निर्माण में सोवियत रूस और भारतीय नागरिकों के योगदान पर केंद्रित इस किताब को अतिथियों ने बेहद सराहा और लेखक को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं।
लेखक/पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की भिलाई के इतिहास पर केंद्रित यह दूसरी किताब है। इसके पहले 2011 में उनकी लिखी किताब ‘भिलाई एक मिसाल’ का प्रकाशन भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन द्वारा किया गया था। जिसमें भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना काल से लेकर 2011 तक के सभी कार्यकारी प्रमुख (जीएम, एमडी व सीईओ) के साक्षात्कार व उनके काल से जुड़ी दुर्लभ घटनाओं का लेखक ने ब्यौरा दिया था। इसके बाद भिलाई पर केंद्रित ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ उनकी दूसरी किताब है। जिसमें लेखक ने भिलाई की स्थापना में सहयोग देने वाले तत्कालीन सोवियत संघ के इंजीनियरों, अनुवादकों व अन्य सहायकों की भूमिका पर विस्तार से रोशनी डाली है। इस पुस्तक में शुरूआती दौर से वर्तमान तक भिलाई में सेवा दे रहे रशियन इंजीनियर/दंपति के साक्षात्कार व प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं का दुर्लभ फोटोग्राफ्स सहित ब्यौरा है।
हरिभूमि समाचार पत्र के इलेक्ट्रॉनिक चैनल आईएनएच न्यूज के टाटा स्काई पर लांचिंग अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में हरिभूमि समाचार पत्र समूह के चेयरमैन कैप्टन रूद्रसेन सिंधु, प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी,रावघाट के योद्धा की उपाधि से विभूषित माइनिंग अधिवक्ता विनोद चावड़ा और प्रकाशक डॉ. सुधीर शर्मा भी विशेष रूप से मंच पर मौजूद थे। विमोचन समारोह में विशेष रूप से विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, छत्तीसगढ़ शासन के मंत्रीगण ताम्रध्वज साहू, रविंद्र चौबे, टीएस सिंहदेव, उमेश पटेल, पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय व भिलाई विधायक देवेंद्र यादव सहित शासन-प्रशासन के कई गणमान्य अधिकारी, मंत्रीगण, विधायकगण व नागरिक मौजूद थे। ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ को वैभव प्रकाशन की सहयोगी संस्था सर्वप्रिय प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है और जल्द ही व्यावसायिक तौर पर बाजार में उपलब्ध कराने की तैयारी है।
विमोचन समारोह का वीडिओ आप यहाँ देख सकते हैं।
7 फरवरी 2019 विमोचन समारोह की रिपोर्ट 

Friday, February 21, 2020

कश्मीरी पंडितों के लिए महाशिवरात्रि
का जश्न अधूरा है बगैर मुसलमानों के


भिलाई में बसे कश्मीरी पंडित ने साझा की ‘हेरत’ की रौनक से जुड़ी यादें


वटक में भिगोए गए मेवे 
कश्मीर में अलगाववाद का दौर शुरू होने से पहले तक पंडित समुदाय ‘हेरत’ (महाशिवरात्रि) का त्यौहार जिस उल्लास के साथ मनाता था, उसकी अब सिर्फ यादें रह गई हैं। 
कश्मीरी पंडित समुदाय बरसों से अपनी जमीन पर ‘हेरत’ नहीं मना पाया है लेकिन इन लोगों की जिंदगी में एक बड़ी ख्वाहिश है कि एक बार फिर वही साझा संस्कृति का दौर लौट आए। माना जाता है कि ‘हेरत’ संभवतः हरि-रात्रि शब्द का अपभ्रंश है।
कश्मीरी पंडित समुदाय के भिलाई में रह रहे एक प्रमुख सदस्य संतोष कुमार किचलु को आज भी वह दौर याद है, जब उनके अपने पैतृक निवास शोपियां में महाशिवरात्रि पर्व की रौनक हुआ करती थी। 
श्रमिक संगठन इंटुक के उपाध्यक्ष और सेक्टर-5 निवासी संतोष किचलु यहां भिलाई स्टील प्लांट के ब्लूमिंग एंड बिलेट मिल  में  मास्टर आपरेटर  पर कार्यरत हैं और उनके पिता स्व. निरंजननाथ किचलु भी बीएसपी में सेवारत थे।
संतोष किचलु ने 1986 तक शोपियां में मनाये ‘हेरत’ यानि महाशिवरात्रि पर्व की याद करते हुए बताया कि वहां अलगाववाद के दौर के पहले हिंदु-मुस्लिम सब मिलजुलकर मनाते थे।
 कश्मीर में चूँकि  पंडित समुदाय शैव मत का मानने वाला है, इसलिए वहां हर कश्मीरी पंडित परिवार में रवायत रही है कि सुबह नहाने के बाद लोग मंदिर में शिवजी को जल चढ़ाते हैं और इसके बाद घर आकर अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं। 
जहां तक शिवरात्रि पर्व या ‘हेरत’ की बात है तो हमारे यहां इसकी तैयारी महीना भर पहले शुरू हो जाती थी। अखरोट, बादाम और दूसरे मेवे एक खास किस्म के पारंपरिक मिट्टी के बर्तन वटक में भिगा दिए जाते हैं, जिन्हे शिवरात्रि के दिन खोला जाता है और प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
‘हेरत’ पर्व की रौनक का जिक्र करते हुए किचलू ने बताया कि वहां सारे लोग उस दिन सुबह-सुबह उठ कर जुलूस की शक्ल में इकठ्ठा होकर अहरबल कुंड से निकलने वाले ठंडे पानी से नहाते जाते थे और फिर पूजा के बाद बड़ा जुलूस निकलता था, जो शाम शाम तक एक बड़े जुलूस में तब्दील हो जाता था।
संतोष किचलू के साथ एक सेल्फी
‘हेरत’ के जश्न में ‘सलाम’ की खास अहमियत है। जिसमें हिंदु-मुस्लिम सब एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। मुस्लिम समुदाय की इस पर्व में भागीदारी के संबंध में किचलू कहते हैं-हम लोग बगैर मुसलमानों के ‘हेरत’ की कल्पना भी नहीं कर सकते।
 इस पर्व के लिए जितना भी दूध-दही और मेवा है, सब मुसलमानों के घर से आता था। वहां हम सब की साझी विरासत थी इसलिए सब मिलजुलकर इसे मनाते थे।
बाद के दौर का जिक्र करते हुए किचलू कहते हैं-अब तो तीन दशक हो गए हैं, हम लोग अपने घर ही नहीं जा पाए हैं। रिश्तेदार जम्मू और दिल्ली में है। इसलिए आना-जाना लगा रहता है।
 इसके बावजूद ‘हेरत’ की वो रौनक अब नजर नहीं आती। यहाँ भिलाई में मनाये जाने वाले ‘हेरत’के सम्बंध में किचलू कहते हैं -अब तो यहाँ गिनती के परिवार हैं। फिर भी सब मिलजुल कर मानते हैं।
यहाँ मिटटी के खास बर्तन वटक तो नहीं मिलते इसलिए हम लोग पीतल /इ स्टील के बर्तन में ही एक रात पहले तमाम मेवे भीगा देते हैं और उसके बाद आज शिवरात्रि पूजन कर शाम को परिवार के सब लोग इकठ्ठा होते हैं। जिसमे मिलकर खाना कहते हैं और बच्चों को ‘हेरत’ के खर्च के तौर पर रूपए देते हैं। 
किचलू कहते हैं- बीते साल 5 अगस्त को केंद्र सरकार द्वारा धारा-370 हटाए जाने के बाद से हम लोग भी इंतजार कर रहे हैं कि वापस हम अपनी जमीन पर जा सकें। हम भी चाहते हैं कि कश्मीर में उसी साझा संस्कृति का दौर फिर से लौटे।

Wednesday, February 19, 2020

रावघाट-राजहरा की खोज में हाथी-घोड़े पर 
125 साल पहले पहुंची थीं पहली टीम 



रावघाट रेललाइन के रक्षकों ने जाना भिलाई की खदानों का 

रोचक इतिहास,एसएसबी के जवानों ने सराहा प्रस्तुतिकरण


एसएसबी केंवटी बटालियन में भिलाई पर प्रस्तुतिकरण 

भिलाई स्टील प्लांट की रावघाट खदान क्षेत्र में बिछाई जा रही रेल लाइन की सुरक्षा में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहे सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवानों व अफसरों ने पहली बार बीएसपी की खदानों का इतिहास विस्तार से जाना।
एसएसबी क्षेत्रीय मुख्यालय (विशेष अभियान) के उपमहानिरीक्षक वी. विक्रमण की पहल पर रावघाट क्षेत्र में अंतागढ़ की 28 वीं बटालियन और केंवटी की 33 वीं बटालियन में भिलाई के इतिहास पर केंद्रित किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' के लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने पीपीटी व आडियो-वीडियो आधारित प्रेजेंटेशन गुरुवार 13 फरवरी 2020 को दिया। बटालियन में सुरक्षा बलों के जवानों व अफसरों में  भिलाई व इसकी लौह अयस्क खदानों के इतिहास से जुड़े  सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत की। दोनों बटालियन में सत्र की शुरूआत फिल्मस डिवीजन की डाक्यूमेंट्री 'भिलाई स्टोरीज' के प्रदर्शन के साथ हुई।
अंतागढ़ में कमांडेंट मधुसूदन राव के मार्गदर्शन में हुए सत्र में सेकंड इन कमांडेंट जनार्दन मिश्रा ने आयोजन के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन की किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' भिलाई से जुड़े के कई अंजाने और रोचक तथ्यों से रूबरू कराती है। चूंकि हम सभी भिलाई की एक महत्वपूर्ण परियोजना से जुड़े हैं, इसलिए इसका अतीत जानना बेहद जरूरी है। इस दौरान डिप्टी कमांडेंट विकास दीप, रवि भूषण व अवनीश कुमार चौबे सहित बटालियन के अन्य अफसर व जवान मौजूद थे।
इसी तरह केंवटी में कार्यकारी कमांडेंट और सेकंड इन कमांडेंट पीबी सैनी ने सत्र की अध्यक्षता की। डिप्टी कमांडेंट गौतम सागर ने आयोजन के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि रावघाट की खदानों  पर भिलाई का भविष्य टिका है और इसकी रेललाइन के लिए हमारे जवान सुरक्षा दे रहे हैं। ऐसे में इस अंचल का इतिहास जानना हम सबके लिए बेहद जरूरी है। इस दौरान अपने पीपीटी प्रेजेंटेशन में लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने भिलाई विशेषकर इसकी खदानों से जुड़े कई रोचक तथ्यों से जवानों व अफसरों को रूबरू कराया।

एसएसबी अंतागढ़ बटालियन में प्रेज़ेंटेशन के दौरान 

लेखक ने अपने प्रेजेंटेशन में उन  विपरीत परिस्थितियों को बताया जब करीब सवा सौ साल पहले 1887 में भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग  के वरिष्ठ वैज्ञानिक परमार्थ नाथ बोस ने पहली बार अधिकारिक रूप से दल्ली राजहरा से लेकर रावघाट तक के लौह अयस्क भंडारों की खोज की थी। इस दौरान बोस के साथ उनकी पत्नी और पूरा काफिला था और सभी लोग हाथियों में ड्रिल मशीनें लाद कर खुद घोड़ों पर सवार होकर आए थे। लेखक ने 1903 में जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा की यहां स्टील प्लांट शुरू करने की योजना से जुड़े तथ्य और 1955 में दल्ली राजहरा की पहाड़ियों में पहली ड्रिलिंग का रोचक ब्यौरा भी दिया।
इसके अलावा उन्होंने भिलाई में इस्पात संयंत्र स्थापित करने की पृष्ठभूमि और भिलाई से जुड़े अब तक के कई रोचक घटनाक्रम की जानकारी दी। जिसमें  भिलाई से तत्कालीन सोवियत संघ जाकर प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय इंजीनियरों के पहले दल के साथ जुड़े किस्से और पहले रूसी चीफ  इंजीनियर की आकस्मिक मौत के बाद उपजी परिस्थितियों को भी बताया। इसी तरह भिलाई के परिप्रेक्ष्य में प्रगतिशील रशियन इंजीनियरों के अंधविश्वास और उनकी कुछ अनूठी परंपराओं का उन्होंने विशेष उल्लेख किया। लेखक ने अपने प्रस्तुतिकरण में छह दशक में बदलते भिलाई की तस्वीरों के साथ जुड़े कई प्रमुख तथ्य और भिलाई की संस्कृति का हिस्सा रहे रशियन परिवारों से जुड़ी बहुत सी रोचक बातें भी बताई। इसके साथ ही शहर की पहचान बन चुके कुछ महत्वपूर्ण भवनों के साथ जुड़े किस्से भी उन्होंने बताए। उन्होंने हिंदी फिल्मों में इस्तेमाल भिलाई के महत्वपूर्ण दृश्यों पर वीडियो फुटेज के माध्यम से जानकारी दी। प्रस्तुतिकरण के बाद मौजूद जवानों और अफसरों ने लेखक से भिलाई के इतिहास और वतर्मान से जुड़े कई सवाल भी पूछे। इस दौरान फीडबैक सत्र में जवानों ने प्रेजेंटेशन से हासिल जानकारियों को साझा करते हुए कहा कि पहली बार उन्हें इतनी रोचक जानकारियां मिली है। आयोजन के दौरान डिप्टी कमांडेंट (कम्यूनिकेशन) विनय कुमार और असिस्टेंट कमांडेंट रतीश कुमार पांडेय सहित तमाम अफसर मौजूद थे।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र रावघाट में हुए इस प्रस्तुतीकरण की रिपोर्ट आप विभिन्न वेबसाइट में भी पढ़ सकते हैं, इनमें कुछ प्रमुख वेबसाइट हैं- sunday campus दक्षिणापथहरियर एक्सप्रेस , भिलाई टाइम्स , खबर चालीसा आज की जनधारा , सीजी मितान , स्टेट मीडिया सर्विस , स्टीलसिटी ऑनलाइन  सीजी मेट्रो , सहमत न्यूज़ , संगवारी टाइम्स , अयान न्यूज़ , जोगी एक्सप्रेस  न्यूज़ 24 कैरेट 

Monday, February 17, 2020

भिलाई का  इतिहास जीवंत हुआ प्रेजेंटेशन में 


एसएसबी-बीएसएफ-सीआईएसएफ और एफएसएनएल में मेरी किताब

 'वोल्गा से शिवनाथ तक ' पर केंद्रित भिलाई के इतिहास पर प्रस्तुतिकरण



लेखक को सम्मानित करते डीआईजी  वि विक्रमण और बीएसएफ में प्रस्तुतीकरण के दौरान अफसरों के मध्य लेखक 
भिलाई स्टील प्लांट की रावघाट खदान क्षेत्र की सुरक्षा में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहे सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भिलाई का इतिहास जानने के उद्देश्य से दो अलग-अलग सत्रों का आयोजन क्रमशः 7 मई 2019 और 23 मई  2019 को किया। इन सत्रों में भिलाई के इतिहास पर केंद्रित किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने पीपीटी व आडियो-वीडियो आधारित रोचक प्रस्तुतिकरण दिया। दोनों सत्रों में सुरक्षा बलों के जवानों व अफसरों में भिलाई व इसकी खदानों के इतिहास से जुड़े कई सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत की।
एसएसबी क्षेत्रीय मुख्यालय (विशेष अभियान) भिलाई में हुए सत्र में बल के डीआईजी वी. विक्रमन ने लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन को प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ भिलाई के कई अंजाने और रोचक तथ्यों से रूबरू कराती है और जिसे भिलाई में जरा भी दिलचस्पी हो, इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए।
इसी तरह बीएसएफ सीमांत मुख्यालय रिसाली भिलाई में आयोजित प्रस्तुतिकरण सत्र को संबोधित करते हुए महानिरीक्षक जेबी सांगवान ने कहा कि लेखक जाकिर हुसैन ने भिलाई कारखाना, शहर और इसकी खदानों से जुड़ा इतिहास पाठकों के समक्ष रोचक ढंग से लाने में कड़ी मेहनत की है। एक औद्योगिक शहर के बनने और बसने का सफर जानने पाठकों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए।
एसएसबी और बीएसएफ में अपने प्रस्तुतिकरण के दौरान लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने भिलाई से जुड़े कई रोचक तथ्यों से जवानों व अफसरों को रूबरू कराया। इस दौरान भिलाई पर केंद्रित फिल्म्स डिवीजन की डाक्यूमेंट्री ‘भिलाई स्टोरी’ का भी प्रदर्शन किया गया। लेखक ने अपने प्रस्तुतिकरण के दौरान बताया कि किस तरह 1955 में 6 जून की भरी दोपहरी में माइनस डिग्री वाले ठंडे मुल्क रशिया से कुछ इंजीनियरों की टीम अपने भारतीय इंजीनियरों के साथ पहली बार दुर्ग पहुंची थी। 
उन्होंने भिलाई से रशिया जाकर प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय इंजीनियरों के पहले दल के साथ जुड़े किस्से और पहले रूसी चीफ इंजीनियर की आकस्मिक मौत के बाद उपजी परिस्थितियों को भी बताया। इसी तरह भिलाई के परिप्रेक्ष्य में प्रगतिशील रशियन इंजीनियरों के अंधविश्वास और उनकी कुछ अनूठी परंपराओं का उन्होंने विशेष उल्लेख किया। लेखक ने अपने प्रस्तुतिकरण में छह दशक में बदलते भिलाई की तस्वीरों के साथ जुड़े कई उल्लेखनीय तथ्य और भिलाई की संस्कृति का हिस्सा रहे रशियन परिवारों से जुड़ी बहुत सी रोचक बातें भी उन्होंने बताई।
 इसके साथ ही शहर की पहचान बन चुके कुछ महत्वपूर्ण भवनों के साथ जुड़े किस्से भी उन्होंने बताए। उन्होंने फिल्मों में इस्तेमाल भिलाई के महत्वपूर्ण दृश्यों पर भी जानकारी दी। प्रस्तुतिकरण के बाद मौजूद जवानों और अफसरों ने लेखक से भिलाई के इतिहास और वतर्मान से जुड़े कई सवाल भी पूछे। इस दौरान बीएसएफ के डीआईजी डॉ. एसके त्यागी, आईएस राणा, उम्मेद सिंह, प्रदीप कटियाल, कमांडेंट आरएस कंवर और अजय लूथरा सहित तमाम अफसर मौजूद थे।

सीआईएसएफ जवानों के बीच यादगार पल

सेक्टर 3 के सभागार में प्रेजेंटेशन के दौरान 
भिलाई स्टील प्लांट को सुरक्षा देने का दायित्व केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) का है। सेक्टर-3 में आज जहां सीआईएसएफ का सभागार है, वहां पहले खुला मैदान हुआ करता था,जहां बल के जवान एक्सरसाइज करते थे। तब वहां एक आटा चक्की और कुछ टपरीनुमा दुकान भी हुआ करती थी। वहां कुछ बड़े-बड़े पेड़ भी लगे हुए थे और सेक्टर-1 से हम बहुत से हमउम्र बच्चे यहां कदम्ब का फल लेने आते थे।
इस फल को हम लोग शरारतन अपने साथियों के सिर पर मारते थे, जिससे काफी जोर से लगता था। शायद इसलिए हम लोग कदम्ब फल को 'टकला' कहते थे, अभी बच्चे इसे जानते हैं या नहीं मुझे नहीं मालूम। वो किस्सा फिर कभी। वैसे उसी दौरान कुछ दिन बाद यहां दीवारें उठा दी गईं और सीआईएसएफ का विस्तार हुआ। लेकिन हम बच्चों का जाना यहां नहीं रुका।
यहां तब खुले मैदान में सीआईएसएफ जवानों को परदे पर फिल्म दिखाई जाती थी। तब चुपके से नजर बचा कर फिल्म शुरू होने के दौरान हम बच्चे भी अंदर पहुंच जाते थे। यहां शायद तब हर शनिवार शाम को फिल्म दिखाई जाती थी।
खैर, अब वह सब छूट गया और पिछले दिनों 28 अगस्त 2019 को  बल के डीआईजी उत्तम कुमार सरकार ने मुझे यहां आमंत्रित किया तो उसी जगह बने सभागार में खड़े होकर सीआईएसएफ जवानों से संवाद करते सारी यादें उमड़ने लगी, जिसे मैनें सरकार सर के साथ शेयर भी की।
डीआईजी उत्तम कुमार सरकार धनबाद से भिलाई बीते साल ट्रांसफर होकर आए हैं। उन्हें भिलाई शहर और इसके इतिहास के बारे में जानने में गहरी दिलचस्पी है,इसलिए उन्होंने मेरी किताब ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' न सिर्फ पढ़ी, बल्कि अपने अफसरों को उपहार में भी दी है।
उनके बुलावे पर पिछले दिनों मैं सीआईएसएफ जवानों के सैनिक सम्मेलन में शामिल हुआ। जहां मुझे जवानों के बीच इस्पात नगरी भिलाई के निर्माण से अब तक के घटनाक्रम पर पीपीटी प्रेजेंटेशन देने का मौका मिला। इस प्रेजेंटेशन में दुर्लभ स्टिल फोटोग्राफ्स, आडियो और वीडियो के माध्यम से मैनें भिलाई के पूरे 65 साल का खाका खींचने की कोशिश की।
सीआईएसएफ के अफसरों और जवानों ने बेहद दिलचस्पी के साथ प्रेजेंटेशन देखा और सभी लोगों की राय थी कि उन्हें भिलाई से जुड़े इन पहलुओं के बारे में आज तक पता नहीं था। इन जवानों ने भिलाई से जुड़े कई सवाल भी पूछे और अपनी जिज्ञासा शांत की। कुल मिलाकर जवानों के बीच मेरे लिए यह दिन बेहद यादगार रहा।

भिलाई के इतिहास से रूबरू हुआ एफएसएनएल परिवार


एफएसएनएल में प्रेज़ेंटेशन की झलकियां 
सार्वजनिक उपक्रम फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड ने 8 अक्टूबर 2019 को भिलाई के इतिहास पर प्रेजेंटेशन देने बुलाया। भिलाई स्टील प्लांट सहित देश के प्रमुख स्टील प्लांट से निकलने वाले स्क्रैप (कचरे) की सफाई कर उसमें से लौह अंश निकालने का काम बखूबी कर रही इस कंपनी पर भी निजीकरण की गाज गिरने वाली है।
यह मुद्दा फिर कभी। अभी बात मेरे प्रेजेंटेशन की। यहां मौका था सार्वजनिक उपक्रम फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड निगमन कार्यालय भिलाई में राजभाषा माह-2019 के समापन का।
इस दौरान स्कूली बच्चों और विभागीय कर्मियों और नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अंतर्गत आने वाले दुर्ग-भिलाई के 110 से ज्यादा केंद्र व राज्य सरकार के संस्थानों के प्रतिनिधियों के लिए कुछ प्रतियोगिताएं भी रखी गईं थीं। इसमें मुझे निर्णायक की भूमिका भी अदा करने की जवाबदारी दी गई थी।
इस प्रतियोगिता के बाद मेरा पीपीटी प्रेजेंटेशन रखा गया। जिसमें आडियो-वीडियो और कुछ दुर्लभ फोटोग्राफ्स के जरिए मैनें भिलाई का सफरनामा रोचक ढंग से बताने की कोशिश की।
मेरा प्रेजेंटेशन न सिर्फ एफएसएनएल के कर्मियों-अफसरों व अन्य मेहमानों को पसंद आया बल्कि नवोदय विद्यालय बोरई से आए विद्यार्थियों और शिक्षकों ने भी इसमें खूब दिलचस्पी दिखाई। इस मौके पर एफएसएनएल के महाप्रबंधक कार्मिक एवं प्रशासन/विधि व्हीव्ही सत्यनारायण ने मुझे सम्मानित किया।
इस दौरान भिलाई एजुकेशन ट्रस्ट भिलाई के ट्रस्टी एवं सचिव सुरेन्द्र गुप्ता, कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर डॉ. सिपी दुबे, शिक्षा विभाग की सहायक प्राध्यापक ज्योति मिश्रा के साथ साथ विभिन्न सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधि, स्कूली बच्चे व शिक्षकगण मौजूद थे।
इस दौरान सहायक प्रबंधक (प्रणाली विश्लेषक एवं कार्यक्रमक) प्रशांत कुमार साहू ने एफएसएनएल कार्पोरेट वीडियो का प्रदर्शन किया और सुरेन्द्र गुप्ता ने उत्पादन, उत्पादकता एवं सुरक्षा को पावर पाइंट के माध्यम से विस्तार से बताया। राजभाषा अधिकारी छगन लाल नागवंशी ने राजभाषा संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी दी। कुल मिलाकर मेरे लिए एफएसएनएल में प्रेजेंटेशन देना एक यादगार अनुभव रहा।

Sunday, February 2, 2020

आईबीएम के नए चीफ अरविंद कृष्ण का 

भिलाई कनेक्शन जानते हैं आप..?



नाना से सुनी थी इस्पात नगरी के बनने की कहानी, नानी रहीं
 हैं भिलाई की पहली डॉक्टर, पिता थे  सेना में मेजर जनरल



मुहम्मद जाकिर हुसैन

भारतीय मूल के अरविंद कृष्ण को बहुप्रतिष्ठित अमेरिकी आईटी कंपनी इंटरनेशनल बिजनेस मशीन (आईबीएम) का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनाया गया है। 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना अहम स्थान रखने वाली आईबीएम कंपनी के इस नए चीफ का भिलाई कनेक्शन बेहद भावनात्मक है। अरविंद की माता आरती कृष्ण इन दिनों गुड़गांव में रहती हैं। फोन पर चर्चा करते हुए आरती ने बताया कि अरविंद कभी भिलाई तो नहीं गए लेकिन अपने नाना कर्नल ताराचंद के बेहद करीब रहे हैं और बचपन में भिलाई के शुरूआती दौर की बहुत सी कहानियां उन्होंने अपने नाना से सुनी हैं। 
अरविंद को नई जवाबदारी मिलने आरती कृष्ण भी बेहद खुश हैं। अरविन्द कृष्ण का भिलाई कनेक्शन मिलना भी एक संयोग रहा। दरअसल भिलाई के इतिहास पर मेरी किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ से ही मुझे अपने एक पाठक के ज़रिये मिला। भिलाई के शुरूआती दौर में आने वाले रिटायर अफसर विश्वनाथ नागेश मजुमदार यहाँ हुडको में रहते हैं उन्होंने मेरी किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ पढ़ी  है।
लिहाज़ा आज 1 फरवरी को जब देश भर के अखबारों में अरविंद कृष्ण के सीईओ बनने की खबर छपी तो उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि-बेटा तुम्हारी किताब में जिस कर्नल ताराचंद परिवार का जिक्र है, शायद ये अरविंद कृष्ण उन्हीं के घर से है।
वैसे बताते चलूँ कि कर्नल ताराचंद परिवार से मेरा बीते दशक में 2006 में परिचय हुआ था। तब कर्नल ताराचंद की पत्नी डॉ. मोहिनी ताराचंद भी जीवित थीं। नई  दिल्ली में उनके निवास पर डॉ. मोहिनी और आरती कृश्न से भिलाई में बिताये उनके दिन और कर्नल ताराचंद पर मेरी बात हुयी थी। उसी बातचीत को मैंने में प्रकाशित किया है । 
99 साल की उम्र में डॉ मोहिनी का नई दिल्ली में 2013 में निधन हुआ था। कर्नल ताराचंद की बेटी आरती कृष्ण से तब से हुआ परिचय आज भी बरकरार है, लिहाजा आज मजुमदार अंकल का फोन आने के बाद मैनें आरती कृष्ण को फोन कर पूछा तो उन्होंने हंसते हुए कहा-''मेरा बेटा है भई अरविंद।'' इसके बाद तो फिर उनसे आज फिर लंबी बात हुई।

अप्रैल में कार्यभार संभालेंगे अरविंद

आरती कृष्ण -डॉ मोहिनी ताराचंद  
57 साल के अरविंद कृष्णा फिलहाल क्लाउड और कॉग्निटिव सॉफ्टवेयर विभाग में आईबीएम के वाईस प्रेसिडेंट हैं। 
यहां वह आईबीएम बिजनेस यूनिट का नेतृत्व करते हैं जो क्लाउड और डेटा प्लेटफॉर्म प्रदान करता है। इस पर आईबीएम के क्लाइंट काम करते हैं।
उनकी वतर्मान जिम्मेदारियों में आईबीएम क्लाउड, आईबीएम सिक्योरिटी और कॉग्निटिव एप्लीकेशन बिजनेस और आईबीएम रिसर्च शामिल हैं। अरविंद वहां लंबे समय से सीईओ 62 वर्षीय वर्जीनिया रोमेट्टी की जगह लेने जा रहे हैं।
 कंपनी ने इसकी औपचारिक घोषणा कर दी है और 6 अप्रैल को औपचारिक रूप से नए सीईओ का पदभार ग्रहण कर लेंगे। कृष्णा 1990 में आईबीएम से जुड़े थे। वतर्मान सीईओ रोमेटी ने बयान में कहा, 'अरविंद आईबीएम में अगले युग के लिए सही सीईओ हैं।'वर्जीनिया रोमेटी फिलहाल कंपनी की एग्जीक्यूटिव चेयरमैन रहेंगी। 
अरविंद वर्तमान में आईबीएम में एक एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहे हैं। जब उन्हें जनवरी में सीईओ के तौर पर नामित किया गया तो वो आईबीएम के क्लाउक्लाउड और कॉग्न‍िटिव सॉफ्टवेयर में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट के पद पर थे। 2018 में 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर में रेड हैट के आईबीएम के अधिग्रहण का श्रेय उन्हें दिया जाता है। वह एक प्रमुख अमेरिकी टेक समूह के चौथे भारतीय मूल के सीईओ होंगे। इस सूची में माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला, गूगल के सुंदर पिचाई और एडोब के शांतनु नारायण का नाम शामिल है। 


कुछ बातें कर्नल ताराचंद-डॉ. मोहिनी ताराचंद की


ताराचंद दम्पति 
जहां तक अरविंद कृष्णा के भिलाई कनेक्शन की बात है तो उनके नाना कर्नल ताराचंद 1956 में सेना से भिलाई स्टील प्रोजेक्ट में सुप्रिटेंडेंट (ट्रेनी) बनाकर भेजे गए थे। 
यहां कर्नल ताराचंद की जिम्मेदारी देश भर से आने वाले युवा इंजीनियरों के लिए भिलाई से लेकर तत्कालीन सोवियत संघ तक में तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था को देखने की थी। 
आज का मानव संसाधन विभाग (एचआरडी) भवन तब भिलाई टेक्नीकल इंस्टीट्यूट (बीटीआई) के नाम से कर्नल ताराचंद के नेतृत्व में शुरू हुआ था और यहां ना सिर्फ इंजीनियरों बल्कि बाद के दौर में देश भर से आने वाले हजारों कर्मियों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था शुरू की गई थीं।
 इसी तरह अरविंद कृष्ण की नानी और कर्नल ताराचंद की पत्नी डॉ. मोहिनी ताराचंद का भी भिलाई के शुरूआती दौर में अहम योगदान रहा है। डॉ. मोहिनी एक कुशल चिकित्सक थी। 1956 में जब भिलाई में किसी भी डाक्टर की औपचारिक नियुक्ति नहीं हुई थी, तब उन्होंने भिलाई हाउस (आज का बीआईटी) के अपने घर में स्वैच्छिक क्लिनिक शुरू किया था। 
ताराचंद दंपति 1961 तक भिलाई में रहे और तब तक भिलाई में औपचारिक रूप से आमदी भाठा (सेक्टर-9) का अस्पताल शुरू हो गया था।
 इसके बावजूद डॉ. मोहिनी बगैर किसी औपचारिक नियुक्ति के स्वैच्छिक तौर पर भिलाई के कर्मियों व उनके परिवारों की चिकित्सा सेवा के लिहाज से बीएसपी के डाक्टरों के साथ सेवा देती रहीं। ताराचंद दंपति की बेटी आरती तब दिल्ली में पढ़ रही थीं। अब वे गुड़गांव में रहती हैं। 

देहरादून-कुन्नूर  में हुई है अरविंद की पढ़ाई


फोन पर बातचीत के दौरान आरती कृष्ण ने कहा-अरविंद की स्कूली पढ़ाई देहरादून में हुई है और अपने नाना के बेहद करीबी रहे हैं। इसलिए बचपन में मेरे पिता कर्नल ताराचंद उन्हें अक्सर एक पब्लिक सेक्टर के तौर पर भिलाई की तरक्की और वहां के शुरूआती संघर्ष के बारे में बताते थे। 
अरविंद के पिता मेजर जनरल विनोद कृष्ण अब इस दुनिया में नहीं है। अरविंद ने आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग में डिग्री (1980 से 1985 तक) लेने के बाद अमेरिका का रुख किया। 
उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ इलनॉइज, अर्बाना शैंपेन से इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पीएचडी की पढ़ाई की। 
इससे पहले उन्होंने देहरादून के बाद स्टेन्स हायर सेकेंडरी स्कूल, कुन्नूर से स्कूली पढ़ाई की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर उत्तर प्रदेश भारत से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बैचलर इन इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। अब वहां सबसे प्रतिष्ठित कंपनी के चीफ होने जा रहे हैं। अरविंद को आईबीएम में नई जवाबदारी मिलने से पूरे परिवार में खुशियों का माहौल है।
1 फरवरी 2020