Saturday, March 5, 2022

रूस से ज्यादा यूक्रेन करीब रहा है भिलाई के 

 

भिलाई का निर्माण किया यूक्रेन के इंजीनियरों ने, 65 साल 

पहले बने बेहतर रिश्ते आज तनाव-अपमान के शिकार

 

यूक्रेन का अज्वस्ताल स्टील प्लांट, जहां भिलाई के ज्यादातर इंजीनियरों ने तकनीकी प्रशिक्षण लिया- तस्वीर 1960 की

मुहम्मद जाकिर हुसैन 

हम भिलाईवालों से कोई रूसी और यूक्रेनी नागरिकों के बीच फर्क करने कहे तो शायद ही कोई कर पाए। रंग-रूप वेशभूषा और बोली-भाषा भी एक सी होने की वजह से वैसे भी इनमें फर्क करना आसान नहीं। दरअसल, हम लोग भिलाई में जिन्हें 'रशियन' के नाम से जानते हैं उनमें से 90 फीसदी लोग यूक्रेन मूल के ही हैं। आज भी भिलाई में जो बचे हुए 'रशियन' परिवार हैं, उन सभी का रिश्ता यूक्रेन से जुड़ा है। 

यह अलग बात है कि इन सभी की भावनाएं आज भी रूस के साथ जुड़ी हुई है। इन दिनों जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव चल रहा है, ऐसे में भिलाई में रहने वाले ये सभी वयोवृद्ध भी चिंतित है यूक्रेन-रूस में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को लेकर। सभी की वीडियो कॉल पर बातें हो रही हैं और एक दूसरे।

 तनाव के इस माहौल में दूसरा पहलू वर्तमान में यूक्रेन में मेडिकल शिक्षा लेने गए भारतीय स्टूडेंट की सुरक्षित 'घर वापसी' का है। वर्तमान में भारतीय स्टूडेंट के साथ जो सुलूक यूक्रेन में हो रहा है, उसके वीडियो विचलित कर देने वाले हैं। लेकिन हमेशा हालात ऐसे नहीं थे। 

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहल पर तत्कालीन सोवियत संघ के साथ जो रिश्ता बना, उसके नतीजे में भिलाई स्टील प्लांट का जन्म हुआ। इसके साथ ही तत्कालीन रूसी इंजीनियर भिलाई पहुंचे कारखाना निर्माण के लिए और भिलाई के नौजवान इंजीनियरों को सोवियत संघ भेजा गया स्टील टेक्नालॉजी में महारत हासिल करने। 

आईए, पहले एक नजर डालते हैं तत्कालीन परिस्थितियों पर। हमारे देश की आजादी के साथ ही नेहरू काल में जब हमारे राजनयिक रिश्ते तत्कालीन सोवियत संघ के साथ स्थापित हुए तो सोवियत संघ भी द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से उबर रहा था। इस विश्व युद्ध में आज के रूस और यूक्रेन में स्थित तमाम बड़े स्टील प्लांट पर दुश्मन देशों जर्मन, जापान और इटली का हमला हुआ था। इनमें ज्यादातर स्टील प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था।

ऐसी परिस्थिति में सोवियत संघ वहां के सभी स्टील प्लांट में फिर से उत्पादन शुरू करने की जद्दोजहद में जुटा हुआ था। इसके बावजूद हमारे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कोशिश के चलते सोवियत संघ ने भारत में 10 लाख टन उत्पादन क्षमता का स्टील प्लांट लगाने सहमति दे दी। 

तब वैश्विवक महाशक्ति के तौर पर सोवियत संघ भले ही अपना झंडा बुलंद कर रहा था लेकिन वहां का स्टील सेक्टर बहुत अच्छी हालत में नहीं था। इसके बावजूद सोवियत रूस ने अपने स्टील प्लांटों में भारतीय इंजीनियरों को तकनीकी प्रशिक्षण देना स्वीकार किया और अपने तमाम एक्सपर्ट को भिलाई भी भेजा। सोवियत संघ की इस पहल से भिलाई स्टील प्लांट अपने स्वरूप में आ सका।


'वोल्गा से शिवनाथ तक' पर वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव की टिप्पणी 

 

ज्यादातर स्टील प्लांट यूक्रेन और रूस गणराज्य में 

मेकेयेवका स्टील प्लांट के बाहर भिलाई के इंजीनियर-1960

तत्कालीन सोवियत संघ में ज्यादातर बड़े स्टील प्लांट रूस और यूक्रेन गणराज्य में थे। इनमें भी भिलाई के इंजीनियरों को ज्यादातर यूक्रेन के स्टील प्लांट में प्रशिक्षण के लिए 1956 से 1990 तक  भेजा जाता रहा। 

शुरूआती दौर में जब भिलाई से देश भर के नौजवान सोवियत संघ गए तो यूक्रेन के इन्ही स्टील प्लांट के शहरों में रुमानियत का रिश्ता भी जोड़ लिया। 

दरअसल, तब सोवियत संघ भी द्वितीय विश्व युद्ध से उबरा था और अपनी सख्त पाबंदियों के चलते 'आयरन कर्टेन' कहा जाता था। वहां की वही खबरें बाहर आती थी, जो वहां का कम्युनिस्ट सोवियत प्रशासन चाहता था। दूसरा वहां की महिलाओं को तब विदेश जाने की अनुमति दुर्लभ थी। 

ऐसे में जब भारत के नौजवान यूक्रेन के स्टील प्लांट में प्रशिक्षण लेने गए तो वहां की बहुत सी नवयुवतियां इन्हें अपना दिल दे बैठीं। यह सब उस दौर की बातें हैं, जब तब के सोवियत संघ में उद्योगों का बोलबाला था और इनमें सबसे ज्यादा बड़े स्टील प्लांट संचालित थे। 

 'वोल्गा से शिवनाथ तक' पर डॉ. सोनाली चक्रवर्ती की टिप्पणी 

 

 सोवियत संघ टूटा और बदल गईं परिस्थितियां

यूक्रेन का एक मेडिकल कॉलेज

एक नाटकीय घटनाक्रम में दिसंबर 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ और सभी गणराज्यों ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। यही वह दौर था, जब यूक्रेन और रूस का इस्पात उद्योग चरमरा रहा था। 

 तब नवस्वाधीन यूक्रेन ने अपने यहां शिक्षा पर जोर दिया और देखते ही देखते मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में एक तूफान सा आ गया। इसका सीधा असर हमारे हिंदुस्तान पर भी हुआ। 

91 के पहले तक भिलाई सहित सोवियत प्रभाव वाले भारतीय शहरों में ज्यादातर परिवारों के बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए रूस-यूक्रेन जाया करते थे। तब इंजीनियरिंग में वहां भिलाई से गए स्टूडेंट को प्राथमिकता भी मिलती थी। लेकिन 91 के बाद वहां इंजीनियरिंग के बजाए फोकस मेडिकल में होने लगा और भारत के बनिस्बत वहां सस्ती मेडिकल शिक्षा की वजह से भारतीय स्टूडेंट का यूक्रेन का रुख करने लगे।

आज की परिस्थिति में बताया जा रहा है कि करीब 20 हजार स्टूडेंट यूक्रेन में मेडिकल कॉलेज में शिक्षा ले रहे हैं। फिलहाल सभी की चिंता यह है कि हमारे स्टूडेंट सुरक्षित अपने घर लौट जाएं। आईए जानते हैं कि तत्कालीन सोवियत संघ के साथ भारत ने कैसे रिश्ते जोड़े और इसके बाद उन दिनों भारतीयों को किस तरह वहां स्पेशल ट्रीटमेंट मिला। 

'वोल्गा से शिवनाथ तक' पर वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध की टिप्पणी  

 

भिलाई की पृष्ठभूमि और नेहरू का दौरा 

नेहरू-इंदिरा का मग्नितागोर्स्क दौरा (जून-1955)

भारत की स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किस तरह देश के औद्योगिकीकरण के लिए दुनिया के बड़े देशों से हाथ मिलाया, इसका ब्यौरा आपको मेरी किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' में विस्तार से मिल जाएगा। 

यह प्रधानमंत्री नेहरू ही थे, जिनकी वजह से तब सोवियत संघ ने भारत में एक स्टील प्लांट लगाने न सिर्फ कर्ज बल्कि तमाम तकनीकी सहायता व मशीनरी उपलब्ध कराने हामी भरी थी। जवाहरलाल नेहरू का सोवियत संघ से रिश्ता हमारे देश की आजादी से पहले का था।

 जवाहरलाल नेहरू ने 1947 के पहले और बाद में तीन मरतबा सोवियत संघ का दौरा किया था। पहली बार वह सोवियत सरकार के विशेष आमंत्रण पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर 7 नवंबर 1927 को महान अक्टूबर क्रांति दिवस की 10 वीं सालगिरह के आयोजनों में भाग लेने पहुंचे थे। उनके साथ उनके पिता मोतीलाल नेहरू, छोटी बहन कृष्णा व पत्नी कमला नेहरू भी साथ थे। 

इसके बाद सोवियत संघ का उनका दूसरा दौरा 7 जून से 23 जून 1955 में हुआ। तब उनके साथ उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी थी। उन्होंने अपनी यात्रा याकेतरिनबर्ग से शुरू की थी। वह रूस के औद्योगिक शहर मैगनीतोगोर्स्क भी पहुंचे थे और यहां का विशाल स्टील प्लांट देखा था। 'रशिया बियॉन्ड' नाम की एक वेबसाइट के अनुसार '1955 में जब नेहरू और इंदिरा गांधी नदी किनारे बसे औद्योगिक शहर मैगनीतोगोर्स्क पहुँचे थे तो स्टील प्लांट में काम करने वाले कामगार और शहर के स्थानीय लोग उन्हें देखने के लिए दौड़ पड़े थे। 

अपने इस दौरे में नेहरू मास्को से लेनिनग्राद की वृहद यात्रा पर निकले, इस दौरान उन्होंने स्टालिनग्राद, क्रीमिया, जॉर्जिया, अस्काबाद, ताशकंद, समरकंद, अल्टाई क्षेत्र, मग्निागोस्र्क और सवर्दलोव्स्क (याकेतरिनबर्ग)  शहरों का दौरा किया। 

जवाहरलाल नेहरू का तीसरा और अंतिम दौरा 8 सितंबर 1961 को हुआ था। जिसमें नेहरू ने तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री के साथ मॉस्को में इंडो-सोवियत फ्रैंडशिप रैली को संबोधित किया था। जवाहरलाल नेहरू अपने पहले दौरे में रूस की औद्योगिक प्रगति को करीब से देखा था। फिर जब हमारा देश आजाद हुआ तो उन्होंने 10 लाख टन सालाना क्षमता वाले एक स्टील प्लांट के लिए रूस को राजी कर लिया।

 'वोल्गा से शिवनाथ तक' पर 'हरिभूमि' के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी की टिप्पणी 

 

 ऐतिहासिक समझौते के बाद मंजूरी मिली भिलाई को 

2 फरवरी 1955 को भारत-सोवियत संघ के बीच नई दिल्ली में करार

2 फरवरी 1955 को नई दिल्ली में सोवियत संघ के साथ भारत का ऐतिहासिक समझौता हुआ था। इस समझौते के फलस्वरूप ही हफ्ते भर के भीतर नए स्टील प्लांट के लिए भिलाई के नाम पर भारत सरकार की मंजूरी मिली थी। 

इसके बाद भिलाई स्टील प्रोजेक्ट कंपनी, इस्पात मंत्रालय और हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (सेल की पूर्ववर्ती कंपनी) अस्तित्व में आए।

इन तमाम प्रक्रियाओं के बीच 6 जून 1955 को पायनियर टीम नागपुर होते हुए भिलाई पहुंची। जिसमें सोवियत संघ और भारत के इंजीनियर सहित 11 प्रतिनिधि थे। यह टीम दुर्ग के सर्किट हाउस पहुंची और भिलाई परियोजना पर जमीनी स्तर का काम शुरू हुआ। इसके अगले दिन नई दिल्ली से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मास्को के लिए उड़ान भरी थी। 

 ' वोल्ग से शिवनाथ तक' पर स्कूली छात्रा परी पुरोहित का एक वीडियो

 

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के काम में आई तेजी 

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट निर्माण प्रथम चरण

प्रधानमंत्री नेहरू के जून 1955 के दौरे के बाद सोवियत संघ से इंजीनियर बड़ी तादाद में भिलाई पहुंचे और देश के पहले आधुनिक सरकारी स्टील प्लांट के निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ा। 

बाद के दौर में सोवियत संघ ने न सिर्फ स्टील बल्कि दूसरे भारतीय उद्योगों को स्थापित करने में भी अपनी भागीदारी दी। भारत का यह औद्योगिकीकरण तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की दूरदृष्टि का परिणाम थी। वजह इसके पीछे की यह है कि भारत के साथ जिस सोवियत संघ का करार हुआ उसमें रूस और यूक्रेन एक विशाल देश सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे। 

जब भिलाई का निर्माण शुरू हुआ और 40 लाख टन की क्षमता तक कारखाना निर्माण चलता रहा, तब तक हमारे इन्हीं यूक्रेनियन इंजीनियरों ने हम भारतीयों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया।

बीएसपी स्कूल सेक्टर-1 भिलाई 1988 बैच का यादगार आयोजन 'गुरुदक्षिणा' 

 

 इंजीनियरिंग शिक्षा में भिलाई के बच्चों को प्राथमिकता मिली यूक्रेन में

वह सोवियत संघ (यूएसएसआर) का दौर था, जब इस विशाल संघ (देश) का हिस्सा रहते हुए रूस, यूक्रेन, जार्जिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, अजरबैजान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, लिथुआनिया, मॉल्दोविया, लातविया, आर्मीनिया, तुर्कमेनिया व एस्टोनिया अलग-अलग गणराज्य के तौर पर अस्तित्व रखते थे। उस दौर में सोवियत संघ का 80 फीसदी इस्पात उद्योग यूक्रेन में था।

यही वजह है कि जब 2 फरवरी 1955 को भारत के साथ सोवियत संघ करार हुआ तो इसके बाद भिलाई में स्थापित होने वाले स्टील प्लांट के भारतीय इंजीनियरों को तकनीकी प्रशिक्षण के लिए ज्यादातर यूक्रेन के ही स्टील प्लांट में भेजा गया। हालत तो यह थी कि आज जिस तरह से यूक्रेन में सस्ती मेडिकल पढ़ाई का क्रेज है, उन दिनों भिलाई के संपन्न अफसरों के पास अपने बच्चों को यूक्रेन के विभिन्न संस्थानों में कम दर पर उच्च शिक्षा के लिए भेजने का विकल्प था और इसका लाभ भी भिलाई के बच्चों को खूब मिला। ऐसे बच्चे 1990 तक रूस और यूक्रेन के विभिन्न कॉलेजों/तकनीकी संस्थानों में पढऩे जाते रहे।

भिलाई स्टील प्लांट शिक्षा विभाग का सफरनामा 1955 से

 

यूक्रेन-रूस के स्टील प्लांट, जिनके इंजीनियरों ने बनाया भिलाई

तत्कालीन सोवियत संघ में ज्यादातर स्टील प्लांट यूक्रेन और रूस गणराज्य में थे। भिलाई में 10 लाख टन वार्षिक उत्पादन क्षमता का स्टील प्लांट लगाने हुए समझौते के बाद तमाम इंजीनियर इन्हीं स्टील प्लांट से आए और भिलाई के नौजवान इंजीनियरों को भी इन्हीं स्टील प्लांट में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। इनमें यूक्रेन के मरियोपोल (पूर्व नाम ज्दानोव) में अज्वस्ताल स्टील प्लांट और इलिच  स्टील एंड आयरन वर्क्स है। यूक्रेन के मेकेयेवका (पूर्व नाम दमित्रविस्क या दमित्रविस्की) में दोनेत्स्क प्रांत से 15 किमी दूर स्थापित मेकेयेवका मेटलर्जिकल प्लांट है। 

दोनेत्स बेसिन (डोनबास) की मशहूर आयरन ओर खदानें भी यहीं है। निपर नदी के किनारे यूक्रेन में ज्पारोशिया दक्षिण-पूर्वी शहर है। यहां क्रिवयी रीह (रोग) आयरन ओर माइंस है। यहीं ज्पारोशिया स्टील प्लांट ज्पारोस्ताल में है, जो 1933 में शुरू हुआ था। क्रिवा रोग स्टील प्लांट पहले सरकारी था, जिसे अब आर्सेलर-मित्तल ले चुका है। 

इनके अलावा रूस में भी स्टील प्लांट हैं, जिनका भिलाई से सीधा रिश्ता रहा है। इनमें रूस के दक्षिण-पश्चिम साइबेरिया में केमेरोवो परिक्षेत्र (ओब्लास्ट) स्थित नोवोकुजनेत्स है। जहां नोवोकुजनेत्स आयरन एंड स्टील प्लांट है। रूस के चेलियाबिन्स्क परिक्षेत्र (ओब्लास्ट) में यूराल पर्वत श्रृंखला के साए तले मग्नितागोर्सके शहर है, जहां मग्नितागोर्सके आयरन एंड स्टील वर्क्स है। 

 'वोल्गा से शिवनाथ तक' प्रथम संस्करण का विमोचन 

 

ज्यादातर शीर्ष पदों तक पहुंचे शुरूआती बैच के इंजीनियर

मरियोवपोल में भिलाई के इंजीनियर-1957

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के लिए युवा इंजीनियरों का पहला बैच 10 सितंबर 1956 को भिलाई से रवाना हुआ था। तब से 90 के दौर तक भिलाई के इंजीनियरों के कई बैच उच्च तकनीकी प्रशिक्षण के लिए जाते रहे। इनमें से ज्यादातर इंजीनियर भारतीय स्टील सेक्टर के शीर्ष पदों पर रहे।

 इनमें बहुत से लोगों ने स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) को नेतृत्व दिया तो बहुत से इंजीनियर सेल के विभिन्न स्टील प्लांट में शीर्ष पदों पर पहुंचे। इन इंजीनियरों के पहले बैच से केसी खन्ना, एस. नारायण, एएस मूर्ति, एचसी धारवाड़, ईआरसी शेखर, एचएस अश्वत्थ, निमाई कुमार मित्र, केपी रामचंद्रन, बीएमजी रमन, एबी माथुर, ईएएस मूर्ति, एनसी रामासुब्बु, एस. नारायण, कैलाश बिहारी गोयल, केआर संगमेश्वरन, तेरे देसाई, आर. कृष्णामूर्ति, एस. समरपुंगवन में आधे ज्पारोशिया और आधे ज्दानोव में तकनीकी प्रशिक्षण हेतु भेजे गए थे। 

ज्पारोशे में एस. समरपुंगवन, ईआरसी शेखर, केआर संगमेश्वरन और एके फोतेदार ने प्रशिक्षण लिया, वहीं दिलबाग राय आहूजा, गोपीनाथ पुरी, रघुवीर व पीएच सचदेवा सहित अन्य ने मेकेयवका स्टील प्लांट भेजा गया। तब भिलाई स्टील प्लांट में नियुक्त होने वाले सोवियत चीफ इंजीनियर मेें भी ज्यादातर यूक्रेन के स्टील प्लांट से ही आते थे। 

शुरूआती दौर के चीफ इंजीनियर वीई दिमशित्स ने यूक्रेन की प्रसिद्ध डोनबास की खदानों में भी काम किया था और मरियोवपुल व अज्वस्ताल स्टील प्लांट में सेवाएं दी थी। वहीं शुरूआती दौर के युवा इंजीनियरों में केआर संगमेश्वरन, एस. रामासुब्बुु, ईआरसी शेखर और केबी गोयल को रूस के मग्नितागर्सके में भी प्रशिक्षण का अवसर मिला। बाद के दौर में देखें तो ईडी प्रभारी रहे विनोद अरोरा को रूस मेें साइबेरिया के नोवे कुजनेत्स स्टील प्लांट मेें प्रशिक्षण का अवसर मिला था। 

'वोल्गा से शिवनाथ तक' के दूसरे संस्करण का विमोचन 

 

 तब भिलाई के इंजीनियरों को मिलता था स्पेशल ट्रीटमेंट 

ज्पारोशे में नए साल की पार्टी में भिलाई के इंजीनियर-1958

भिलाई से यूक्रेन और रूस के स्टील प्लांट में उच्च तकनीकी प्रशिक्षण लेने वाले कई वरिष्ठ इंजीनियर आज भी यह बताते नहीं थकते कि उन्हें उस दौर में सोवियत रूस में कैसा वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता था।

 भिलाई स्टील प्लांट की रेल एंड स्ट्रक्चरल मिल के सुप्रिंटेंडेंट रहे नरेंद्र सिंह छत्री बताते हैं-जब सितंबर 1956 को भिलाई के इंजीनियरों का समूह सोवियत रूस के लिए रवाना हो रहा था तो सांसद व महात्मा गांधी के सचिव रहे सुधीर घोष को खास तौर पर इस्पात मंत्रालय में विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी) नियुक्त किया गया था और पत्राचार व पासपोर्ट सहित हमारी यात्रा का तमाम औपचारिकताएं सुधीर घोष के मार्गदर्शन में हुई। घोष हम लोगोें को खास तौर पर विदा करने एयरपोर्ट भी आए थे। 

छत्री बताते हैं-मास्को उतरने के बाद से अज्वस्ताल, ज्दानोव, ज्पारोशे, मरियोपोल और मग्नितागोर्सके जैसे स्टील प्लांट में समूह को बांट दिया गया। यहां हर शहर में भारतीय को स्पेशल ट्रीटमेंट मिलता था। शहर में भारतीय युवा यदि सर्कस या मूवी देखने तो वहां के स्थानीय लोग हमें पहले टिकट लेने का मौका देते।

 इसी तरह शहर में होने वाली क्रिसमस व न्यू ईयर सहित तमाम पार्टियों में भी भारतीय युवा खास तौर पर आमंत्रित किए जाते थे। वह ऐसा दौर था जब द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से सोवियत रूस उबर रहा था और जनजीवन सामान्य हो रहा था। ऐसे में भारतीय इंजीनियर भी वहां की जीवनशैली में घुलमिल गए। 

जब भिलाई स्टील प्लांट से निकला पहला 'हीरा'

 

दिल का रिश्ता भी जुड़ता गया यूक्रेन से 

मल्होत्रा-मजुमदार और बलराम सिंह दंपति

जिन दिनों भिलाई स्टील प्रोजेक्ट अपना रूप ले रहा था, उन्हीं दिनों सुदूर यूक्रेन में तकनीकी प्रशिक्षण हासिल करने गए भिलाई के ज्यादातर नौजवानों ने वहां दिल का रिश्ता भी जोड़ लिया। 

1956 से 1985 तक भिलाई में लगभग हर साल ऐसे कई जोड़े आते गए, जिनकी नई जिंदगी की शुरूआत यूक्रेन से हुई। भिलाई के एक युवा इंजीनियर काशीनाथ 1957 में यूक्रेन के ज्पारोशिया में प्रशिक्षण ले रहे थे। वहीं उनकी मुलाकात आना मलाया से हुई। बातें-मुलाकातें हुई और लुदमिला को काशीनाथ इतना भा गए कि उन्होंने साथ जिंदगी बिताने का फैसला कर लिया। 

1959 में भिलाई के इंजीनियर एलआर भटनागर यूक्रेन के मकेयेवका स्टील प्लांट में प्रशिक्षण ले रहे थे। वहीं उनकी मुलाकात एक युवा टेलीफोन ऑपरेटर गलीना से  हुई और दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया।

1960 में मेकेयेवका के स्टील प्लांट में प्रशिक्षण ले रहे भिलाई के युवा इंजीनियर मोती सागर मल्होत्रा का वहीं के अस्पताल में पदस्थ 21 साल की नर्स जीना पर आ गया और जब मल्होत्रा हिंदुस्तान लौटे तो उनके साथ उनकी हमसफर जीना भी थी। 

1962 में यूक्रेन के ज्पारोशे में स्कूली पढ़ाई कर रही क्लेरा और भिलाई से गए युवा इंजीनियर बलराम सिंह की कहानी में भी ऐसी ही रूमानियत थी। क्लेरा और बलराम ने बाद में शादी कर ली और भिलाई में नई जिंदगी की शुरूआत की। सेल के निदेशक प्रोजेक्ट पद से रिटायर हुए बलराम सिंह तो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन क्लेरा उम्र के 8 वें दशक में भी बेहद सक्रिय हैं और सोशल मीडिया पर रोजाना अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं। 

 यूक्रेन के ज्दानोव (अब मरियोपोल) के एक आर्थोडोक्स क्रिश्चियन परिवार की बेटी लुद्मिला और भिलाई से वहां स्टील प्लांट में प्रशिक्षण लेने गए युवा इंजीनियर विश्वनाथ नागेश मजुमदार की भी नजरें मिली और प्यार हो गया। हालांकि उनकी शादी में कुछ दिक्कतें आईं लेकिन दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर 1963 में शादी के बाद भिलाई में नहीं जिंदगी की शुरूआत की। 

बाद के दौर में 1985 में यूक्रेन के ज्पारोशिया में फैशन डिजाइनर लुद्मिला अरेफयेवा और भिलाई से वहां प्रशिक्षण लेने गए सुब्रत मुखर्जी ने 1985 में एक दूसरे को दिल दे दिया और शादी के बाद भिलाई में नई जिंदगी शुरू की। पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर विवेक चतुर्वेदी 1986 में यूक्रेन के मशीन बिल्डिंग इंस्टीटॅयूट ज्पारोशिया में पढ़ रहे थे। वहीं इना लुब्रोनेंको भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की तालीम ले रही थीं। दोनों के दिल मिले और रूमानियत का एक नया रिश्ता शुरू हुआ जो आज भी हंसी-खुशी चल रहा है। 


नए दौर में भिलाई को जरूरत नहीं रही रूसी इंजीनियरों की 

भिलाई स्टील प्लांट का 40 लाख टन सालाना हॉट मेटल उत्पादन क्षमता तक का विस्तारीकरण अकेले सोवियत रूस के दम पर हुआ था। जाहिर है, इसमें रूसी तकनीक और मशीनरी इस्तेमाल हुई। इस वजह से एक दौर ऐसा भी रहा जब रशियन टेक्नीकल एक्सपर्ट बड़ी तादाद में भिलाई में हुआ करते थे। 

इनमें से 90 फीसदी एक्सपर्ट यूक्रेन के स्टील प्लांट से ही आया करते थे। इन सभी एक्सपर्ट को उपलब्ध कराने की जवाबदारी रूसी फर्म त्याशप्रोम एक्सपोर्ट (टीपीई) की हुआ करती थी। लेकिन देखते ही देखते दौर बदलने लगा। 


टीपीई का दफ्तर बंद, इस्माइल स्वदेश लौटे और यनोद का निधन 

टीपीई के दफ्तर में मेरी दाईं ओर इस्माइल और बाईं ओर यनोद

सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत सरकार के फैसले के अनुरूप भिलाई सहित तमाम सरकारी स्टील प्लांट के विस्तारीकरण में ग्लोबल टेंडर के जरिए अलग-अलग देशों की तकनीक अपनाने  की शुरूआत हुई। 

तब जर्मन, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, चीन और इटली सहित विभिन्न देशों की तकनीक का भिलाई में प्रवेश हुआ। ऐसे में रशियन एक्सपर्ट की संख्या लगातार घटने लगी। 

2018 में स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने एक अहम फैसला लेते हुए 2020 तक रशियन एक्सपर्ट की तादाद को घटाते हुए शून्य करने का फैसला लिया। इसके अनुरूप ही अब भिलाई सहित सेल के किसी भी स्टील प्लांट में रशियन एक्सपर्ट की जरूरत नहीं रही। 

भिलाई में एक्सपांशन बिल्डंग स्थित टीपीई का दफ्तर अब बंद हो चुका है। टीपीई के भारत प्रमुख इस्माइल मजयानेव ने बीएसपी मैनेजमेंट की ओर से सेक्टर-7 रशियन काम्पलेक्स में आवंटित सभी बंगले लौटा कर पिछले ही साल अपने देश रवाना हो चुके हैं। वहीं टीपीई दफ्तर की पहचान रहे यहां के केयर टेकर यनोद कुमार का भी कैंसर से देहांत हो चुका है। 


अब भारतीय स्टूडेंट से हो रहा व्यवहार चिंताजनक 

पोलैंड सीमा पर परेशान हाल भारतीय स्टूडेंट-28 फरवरी 2022

एक तरफ जिस यूक्रेन में शांतिकाल के दौरान भिलाई से गए इंजीनियरों को उन दिनों वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता था तो दूसरी तरफ अब युद्धकाल में उसी यूक्रेन में भारतीय नौजवान स्टूडेंट के साथ दुव्र्यवहार की चिंताजनक खबरें आ रही हैं। 

आज भारतीय स्टूडेंट अपनी जान बचाने बंकरों में किसी तरह रह रहे हैं। युद्धग्रस्त क्षेत्र से निकलना सबसे बड़ी चुनौती है। 

ऐसे में यूक्रेनी लोग भारतीय स्टूडेंट को ट्रेन में चढऩे नहीं दे रहे हैं। वहीं पोलैंड सीमा पर भारतीय स्टूडेंट से वहां की सेना द्वारा मारपीट करने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। भारत सरकार के सारे इंतजाम शांति वाले देशों में हैं। स्टूडेंट से कहा जा रहा है कि किसी तरह युद्धग्रस्त क्षेत्र से निकल जाएं। हालांकि संकटग्रस्त इलाके से बाहर निकालने के लिए किसी तरह का कोई इंतजाम भारत सरकार की तरफ से नहीं हो रहा है। ऐसे में भारतीय स्टूडेंट बेहद चुनौतीपूर्ण हालात का सामना कर रहे हैं। 

अब तो भारतीय स्टूडेंट की मौत की खबरें भी आ रही हैं। कर्नाटक के नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौदर की यूक्रेन के खारकीव में मंगलवार 1 मार्च को हमले में मौत हो गई। पंजाब के बरनाला का रहने वाले चंदन कुमार की बुधवार 2 मार्च को को मौत हो गई। चंदन की मौत की वजह बीमारी बताई गई है और वह लंबे समय से अस्पताल में भर्ती थे। वहीं 4 मार्च को पंजाब के रहने वाले हरजोत सिंह को क्रास फायर में गोली लगी है और अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है।

7 comments:

  1. इसे अपने पोर्टल पर ले रहा हूँ कुछ संपादन के साथ ,साभार

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  2. शानदार। आपके आर्टिकल से मेरे नॉलेज में जबरदस्त इजाफा हुआ। कुछ नया जानने को मिला जो अद्भुत है।

    शुभकामनाएं।

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  3. बहुत ही बढिया जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद🙏

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  4. युक्रेन हो रूस हमारे लिए दोनों बराबर है। दोनों देशों का सहयोग भारत के विकास में जिस ढंग से रहा है, उसे किसी भी भारतीय को नहीं भूलना चाहिए। आपने अपने संकलन में इन बातों को उम्दा तरीके से चित्रित किया है।आज जिस तरीके के हालात दोनों देशों की बीच बना हुआ है, काफी चिंता जनक है। मुझे लगता है, संबंध और वजह कुछ भी रहे हो , मुझे नाटो संगठन की भूमिका काफी संदेहास्पद लगता है। मुझे लगता है, कहीं न कहीं ये देश युक्रेन के कंधे का इस्तेमाल कर रूस की शक्ति को कमजोर करने का प्रयास दिखाई पड़ रहा है। युद्ध विराम जल्द नहीं हुआ तो तीसरी विश्व युद्ध के संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। दोनों देशों को भगवान सद्बुद्धि दे और युद्ध विराम की स्थिति निर्मित हो जाए।इसी में विश्व कल्याण की भावना छिपी हुई है।

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  5. बहुत ही ऐतिहासिक,सारगर्भित और अब मर्मस्पर्शी रपट । आपकी लेखनी मे जीवन्तता है। बधाई, शुभकामनाऐ। 🌷🌷🙏🙏

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  6. Bahut khub sir.....It is very nice & knowledgeable.

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