Saturday, March 20, 2021

छत्तीसगढ़ी की शुरूआती दो फिल्मों के गीतों व कथानक पर 

मेरा आलेख, सीनाजोरी के साथ चोरी और सम्मान की कथा 


गुरुवार 11 मार्च 2021 सम्मान समारोह भनपुरी रायपुर 

 (एक) 

साल 2009-10 में भाई राजेश चंद्राकर ने वर्ड प्रेस में छत्तीसगढ़ी गीत संगी  के नाम से शानदार ब्लॉग बनाया। जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों को रोचक ब्यौरे के साथ अपलोड करना शुरू किया। 

मुझे संस्कृति विभाग के एक प्रमुख अफसर राहुल सिंह जी से पता लगा तो ब्लॉग देखा। बेहद रोचक लगा। ब्लॉग पढ़ते 'कहि देबे संदेस' से जुड़ी कुछ एक गलतियों पर मेरी नजर गई तो मैनें राजेश भाई को ई-मेल (तब व्हाट्सएप नही था) कर दिया। 

राजेश भाई ने जवाब दिया और प्रोत्साहित किया कि मैं इस पर विस्तार से लिखूं। इस तरह मैनें 'कहि देबे संदेस' पर इसके हर गीतों की कहानी और तमाम फोटोग्राफ के साथ विस्तार से लिखा। फिर बारी आई 'घर-द्वार' की। निर्माता स्व. विजय पांडेय के सुपुत्र भाई जयप्रकाश पांडेय का साथ मिला तो भनपुरी रायपुर के अपने घर ले गए। 

जहां उनकी माता व परिवार के अन्य सदस्यों से विस्तार से बात हुई। इस तरह 'घर-द्वार' पर भी गीत और उनके बनने की कहानी से लेकर फिल्म से जुड़ी कई रोचक बातों को लेकर मैनें छत्तीसगढ़ी गीत संगी के लिए लिखा। दोनों आलेख आज भी इस वेबसाइट पर मौजूद हैं और सर्वाधिक पढ़े जाते हैं। 

 (दो)

घर-द्वार से जुड़ी एक रोचक बात यह थी कि इसके गाने तो सदाबहार थे लेकिन फिल्म का मूल प्रिंट खत्म हो चुका था। जब मेरी मुलाकात भाई जयप्रकाश पांडेय से हुई तो वो अपने पिता की धरोहर घर-द्वार फिल्म का प्रिंट खोजने अथक परिश्रम कर रहे थे। 

अंतत: उन्हें सफलता मिली और महाराष्ट्र में किसी मराठी फिल्म संग्रहालय में फिल्म का एक प्रिंट मिल गया। इस स्टोरी को मैं ब्रेक करना चाहता था लिहाजा भिलाई में, जिस अखबार में सेवारत था, वहां मैनें स्टोरी सारे तथ्यों और फोटोग्राफ के साथ बनाई। 

उम्मीद थी कि यह स्टोरी ऑल एडिशन फ्रंट पेज पर मेरे नाम सहित लगेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दफ्तर की अंदरूनी राजनीति कहिए या तत्कालीन ब्यूरो प्रमुख का उस स्टोरी को जानबूझ कर महत्व नहीं देने का फैसला, जो भी स्टोरी भिलाई एडिशन में लगी, बिना नाम के और बहुत छोटी सी काट-पीट कर। इतनी मेहनत के बाद जान बूझकर कोई आपकी मेहनत को यूं ही जाया कर दे तो हैरान-परेशान होना स्वाभाविक है। 

लेकिन तब तक दफ्तर की राजनीति का थोड़ा बहुत ज्ञान हो गया था इसलिए बिना विचलित हुए मैनें रायपुर में इसी अखबार में अपने एक सहयोगी से बात की। 

तय हुआ कि यह स्टोरी वह रायपुर से बनाएगा। दो दिन बाद मेरी वही स्टोरी मेरे सहयोगी ने अपने नाम से बनाई और वहां से वह सारे एडिशन में प्रकाशित हुई। तब जाकर मुझे तसल्ली हुई कि चलो कहीं तो मेहनत रंग लाई। 

 (तीन) 

छत्तीसगढ़ी गीत संगी  में 'कहि देबे संदेस' और 'घर-द्वार' पर मेरा लिखा आलेख आज भी खूब पढ़ा जाता है लेकिन मेरा यह आलेख भी चोरी-सीना जोरी से नही बच पाया। चूंकि गूगल सर्च में यही आलेख सबसे पहले दिखता है इसलिए बिना मेहनत कॉपी-पेस्ट के खेल में माहिर लोगों को इसमें भी स्कोप दिख गया।

लिहाजा रायपुर से कोई कंप्यूटर इंस्टीट्यूट चलाने वाला शर्मा नाम का एक कारोबारी भिलाई आया। तमाम चिकनी-चुपड़ी बातों के बाद मुद्दे की बात उसने यह की कि वह छत्तीसगढ़ी फिल्मों के इतिहास पर किताब लिख रहा है और मेरा यह आलेख मेरे नाम सहित ससम्मान अपनी किताब में देना चाहता है। तय हुआ कि वह कुछ मानदेय भी देगा। 

इसके कुछ दिन बाद पता चला कि महाशय ने दोनों आलेख अपने नाम से किताब में चिपका दिए हैं और सबसे गंभीर बात कि अपनी राजनीतिक पहुंच का लाभ उठा कर किताब का विमोचन तब के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के हाथों करवा लिया है। शायद मुख्यमंत्री कार्यालय भी साहित्यिक चोरी को लेकर इतना गंभीर नहीं होता, इसलिए डा. रमन ने बिना देखे-परखे किताब का विमोचन कर दिया।

 (चार) 

कंप्यूटर कारोबारी शर्मा की चोरी तो तत्काल दिख गई थी लेकिन इसके बाद तो जो हो रहा है वो और भी गजब है। इन 10-11 साल में ऐसे कई आलेख मेरी नजरों से गुजरे हैं, जिनमें सीधे-सीधे कॉपी पेस्ट कर मेरे मूल आलेख को चिपका दिया गया है। कुछ महानुभवों ने नकल में अकल सिर्फ इतनी लगाई है कि हिंदी में लिखे मेरे आलेख को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कर लगा दिया है।

कापी-पेस्ट का धंधा जोरों पर है। इन दोनों फिल्मों से जुड़े मेरे आलेख देखिए और इसके बाद गूगल पर सर्च कीजिए, ऐसे बहुत से आलेख हिंदी और छत्तीसगढ़ी में आपको मिल जाएंगे। ऐसे लोगों का क्या किया जाए…? 

 (5)

इस महीने की शुरूआत में इन तमाम मुद्दों को लेकर भाई जयप्रकाश पांडेय से मेरी फोन पर बात हुई। उन्होंने भी स्वीकारा कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर लिखने वालों ने जम कर कॉपी-पेस्ट का खेल खेला है।
इसके बाद उन्होंने बताया कि 11 मार्च को उनके पिता की पुण्यतिथि है। भाई जयप्रकाश पांडेय ने मुझे ससम्मान आमंत्रित किया। आयोजन की खबर आप वेबसाइट सीजी न्यूज ऑनलाइन  स्टील सिटी ऑनलाइन  द रफ्तार  द सीजी न्यूज  छत्तीसगढ़ आसपास प्रभात टीवी  अपनी सरकार पर क्लिक कर  पढ़ सकते हैं। पूरी खबर यह रही-


 'घर-द्वार' पर शोधपरक लेखन के लिए जाकिर का सम्मान 

रायपुर में आयोजित समारोह में विधायक व पूर्व मंत्री ने किया सम्मानित

मुख्य आयोजक जयप्रकाश पांडेय स्वागत करते हुए, सांस्कृतिक कार्यक्रम और उमड़ा जनसमूह

छत्तीसगढ़ी सिनेमा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले विजय कुमार पांडेय की पुण्यतिथि पर इस्पात नगरी भिलाई के लेखक/पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन का सम्मान किया गया।

 उन्हें यह सम्मान दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'घर-द्वार' पर शोधपरक लेखन के लिए दिया गया। रायपुर के भनपुरी स्थित विजय चौक में 11 मार्च 2021 गुरुवार की शाम हुए भव्य आयोजन में मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री व वर्तमान में रायपुर ग्रामीण विधायक सत्यनारायण शर्मा और विशिष्ट अतिथि फिल्म निर्माता मोहन सुंदरानी ने उन्हें सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, शॉल व श्रीफल प्रदान किया गया। 

आयोजक जयशंकर तिवारी व इरशाद अली ने बताया कि वेबसाइट छत्तीसगढ़ी गीत-संगी के लिए लेखक/पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने दिसंबर 2010 में फिल्म 'घर-द्वार' पर विस्तार से शोधपरक आलेख लिखा था। 
इसके साथ ही इस फिल्म का मूल प्रिंट के गुम होने और महाराष्ट्र के आंचलिक संग्रहालय में इसकी एक प्रति मिलने के संदर्भ में भी उन्होंने जानकारी दी थी। आयोजकों ने बताया कि वर्ष 1964 में प्रथम छत्तीसगढ़ी फिल्म कहि देबे संदेस के बाद रायपुर भनपुरी के मालगुजार विजय पांडेय ने दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म घर-द्वार का निर्माण वर्ष 1971 में किया था। 
जिसमें मोहम्मद रफी-सुमन कल्याणपुर का गाया गीत 'सुन-सुन मोर मया पीरा के' और मोहम्मद रफी का गाया 'गोंदा फुल गे मोर राजा' गीत आज भी लोकप्रियता के चरम पर हैं।

समारोह में मुख्य अतिथि विधायक सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि स्व. विजय पांडेय छत्तीसगढ़ की शान थे। उन्होंने अपनी बोली-भाषा और संस्कृति को घर-घर पहुंचाने का काम किया। 
आयोजन में छत्तीसगढ़ के फिल्म पीआरओ दिलीप नामपल्लीवार, रायपुर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष गिरीश दुबे, जयबाला तिवारी, जयप्रकाश पांडेय, प्रेम चौधरी, गीता सिंह, ध्रुव प्रसाद, नागभूषण यादव, टेसू नंदकिशोर साहू, लक्ष्मीकांत तिवारी और तारकेश्वर शर्मा सहित अन्य लोग मौजूद थे।