Friday, June 14, 2019

‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ छूती है भिलाई की अंतरात्मा को

 

भिलाई की संस्कृति व परंपरा और इसके इतिहास पर  चर्चा की भारतीय-रूसी प्रतिनिधियों ने

 

भिलाई के इतिहास पर केंद्रित हाल ही में प्रकाशित किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ पर मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल भिलाई, आल इंडिया एससी एसटी एम्प्लाईज फेडरेशन व जनवादी लेखक संघ भिलाई- दुर्ग ने संयुक्त रूप से एक चर्चा गोष्ठी 11 जून 2019 की शाम सेक्टर-4 में आयोजित की। जिसमें भिलाई-दुर्ग के प्रबुद्ध वर्ग के साथ-साथ रूसी प्रतिनिधि ने भी अपनी बातें रखीं। भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के तैलचित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरूआत हुई। अतिथियों का स्वागत छायादार पौधे भेंटकर किया गया। स्वागत उद्बोधन देते हुए छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के महासचिव और राज्य प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अफसर विश्वास मेश्राम ने आयोजन का मकसद बताया।  उन्होंने रूसी लेखकों बोरिस पोलिवाई की ‘रियल मैन’, निकोलाई ओस्त्रोवस्की की ‘अग्निदीक्षा’ और मैक्सिम गोर्की की ‘मां’ का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि उसी परंपरा में यह किताब आगे की कड़ी लगती है। उन्होंने कहा कि इस किताब में सिर्फ औद्योगिक सहयोग से हुए सृजन की ही बात नहीं है बल्कि भारत और सोवियत दिलों के मेल से उपजे इंसानी रिश्तों का रूमानी जिक्र भी है, जो इस किताब को विशिष्ट बनाते है।
आल इंडिया एससी एसटी एम्प्लाइज फेडरेशन कार्यालय 7 डी, सड़क 8, सेक्टर 4, भिलाई में हुए इस आयोजन में आधार वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विनोद साव ने कहा कि लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने भिलाई के अतीत से वर्तमान तक का खाका सरल शब्दों में खींचा है। वहीं दुर्लभ फोटोग्राफ्स की वजह से यह किताब और ज्यादा रोचक बन पड़ी है। उन्होंने कहा कि भिलाई की अंतरात्मा को छूती यह किताब पाठकों को अतीत से वर्तमान तक के रोमांचक सफर पर ले जाती है। सेल एससी-एसटी एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन सुनील रामटेके ने कहा कि लेखक ने भिलाई की शुरूआत से लेकर अब तक का तथ्यात्मक ब्यौरा जुटाने में काबिले तारीफ मेहनत की है। पूरी किताब में लेखक का समर्पण और भिलाई के प्रति एक भावनात्मक लगाव झलकता है।
 उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस किताब को ना सिर्फ भिलाई बल्कि सेल की तमाम इकाइयों में भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। मूल निवासी कला,साहित्य एवं फिल्म फेस्टिवल भिलाई के अध्यक्ष व भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर जनरल मैनेजर एल. उमाकांत ने बताया कि आंध्र में कक्षा चौथी की स्कूली किताब में उन्होंने भिलाई के बारे में पढ़ा था और संयोग से सेवा का अवसर भी यहीं मिला। देश-विदेश के दौरे का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पूरे सेवाकाल में हम जहां भी गए भले ही मूल कंपनी सेल रही लेकिन हमारी पहचान हमेशा भिलाई से ही रही है। उन्होंने भिलाई के निर्माण में रूसी इंजीनियरों के योगदान का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि वह सारा समर्पण इस किताब में रोचक ढंग से नजर आता है। रूसी प्रतिनिधि के तौर पर पहुंचे सेल रिफ्रैक्ट्रीज यूनिट (एसआरयू) के वरिष्ठ अफसर विवेक चतुर्वेदी और उनकी रूसी मूल की पत्नी इना चतुर्वेदी ने भी इस मौके पर अपने विचार व्यक्त किए। विवेक ने भिलाई के रूसी परिवेश से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें बताईं। वहीं इना ने बताया कि 34 साल पहले जब वह शादी के बाद भिलाई आई तो यहां कभी भी विदेशी होने का एहसास नहीं हुआ और अब तो वह भिलाई और यहां की संस्कृति में पूरी तरह रच-बस गई हैं।
विष्णु तोपखानेवाले की बेटी अंजलि का सम्मान
इसके पूर्व शुरूआत में लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने अपनी किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर पावर पाइंट प्रेजेंटेशन दिया। जिसमें उन्होंने भिलाई के इतिहास से जुड़ी कई रोचक जानकारी दी। उन्होंने इस किताब के लेखन की यात्रा से भी पाठकों को रूबरू कराया। इस अवसर पर अतिथियों के हाथों रूसी अनुवादक स्व. विष्णु प्रभाकर तोपखानेवाले की बेटी अंजली पैठनकर और इस किताब का कवर पेज डिजाइन करने वाले कमल सिंघोत्रा का विशेष रूप से सम्मान किया गया। वहीं आयोजन में बेगुसराय से विशेष तौर पर पहुंचे वामपंथी लेखक उमेश कुंवर ‘कवि’ की कृति ‘डरावना सुराख’ का विमोचन भी अतिथियों ने किया। आयोजन में मूल निवासी फिल्म फेस्टिवल के चित्रसेन कोसरे, अशोक ढवले, भीमराव पाटिल, प्रहलाद पाटिल, वासुदेव व लखन संगोड़े तथा जनवादी लेखक संघ की ओर से मिर्जा हफीज बेग, नासिर अहमद सिकंदर व मुमताज के अलावा ख्वाजा अजीमुद्दीन, आनंद अतृप्त, अल्तमश शेख, कबीर पैठनकर, मंथन निषाद, धर्मविजय सिंह, नवजोत सिंह, मुकेश उइके,विवेक सहारे व के. रूद्रमूर्ति सहित अनेक लोग उपस्थित थे। संचालन संजय मेश्राम ने और आभार प्रदर्शन जलेसं भिलाई-दुर्ग के अध्यक्ष राकेश बोम्बार्डे ने किया।

Sunday, June 2, 2019


भिलाई का इतिहास  ''टाइम कैप्सूल'' में

 डाल कर अमर कर दिया ज़ाकिर भाई ने 


मेरी किताब  ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' पर प्रतिक्रिया


विश्वास मेश्राम-राज्य प्रशासनिक सेवा अफसर 


मेश्राम जी को ''वोल्गा '' का समर्पण 
भिलाई से जिनकी जड़ें गहराई से जुड़ी है उन्हें  ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' पढ़ते हुए वो सारा इतिहास भूगोल आंखों के सामने झांकता हुआ दिखाई देगा। पत्रकार के रूप में सालों से कार्यरत मोहम्मद जाकिर हुसैन साहब की कलम की यही खूबी है। उन्होंने औद्योगिक शहर भिलाई के कदम ब कदम निर्माण और विकास के इतिहास को हमेशा के लिए टाइम कैप्सूल में डाल कर अमर कर दिया है।
अपने स्कूल के दिनों में मैंने राहुल सांस्कृत्यायन की पुस्तक ''वोल्गा से गंगा'' पढ़ी थी जो कि आर्यों के मध्य एशिया से आगमन और भारत के मूलनिवासियों से उनके संघर्ष, प्रतिरोध , बौद्ध सभ्यता के प्रगतिशील आयाम और फिर क्रांति प्रतिक्रांति को  इतिहास की गाथा के रूप में लिखी गई है और भारतीय इतिहास को समझने के लिए आज भी प्रासंगिक है। उसके आगे की कड़ी के रूप में मुझे ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' दिखाई देती है जो यह कहती है कि राहुल के समय उस पुरातन काल के बारे में बताने वाले लोग मरखप कर मिट्टी में मिल चुके थे मगर भिलाई का इतिहास बताने वाले लोग जिंदा है जिनसे जाकिर ने समय ले लेकर उनकी जबानी उन दिनों को याद किया और उन संस्मरणों को लिपिबद्ध कर इतिहास को वर्तमान में साकार कर दिया। 
पूरी किताब तीन खंडो में विभाजित है । पहले खंड बुनियाद'में 71 संस्मरण हैं। 6 जून 1955 को पायोनियर टीम के पहुंचने से लेकर  20 फरवरी 2018 को भिलाई से मास्को के लिए रवाना हुई इंडिया रशिया फ्रेंडशिप मोटर रैली तक की यादें जाकिर भाई की कलम से सहेजी गयी हैं। यह यादों का जबरदस्त पिटारा है जो घन्टों आपको बांधकर रखने की क्षमता रखता है। 
दूसरे खण्ड में दस्तावेज शीर्षक से 72 से 78 तक के लेख हैं जिनमें जवाहर लाल नेहरू की भिलाई यात्रा की रिपोर्टिंग हैं और  आर्काइव से ली गईं है। इस खंड में भिलाई में रशियन कामगारों की संख्या की सांख्यकी-भिलाई को बनाने में रशियन सहयोग को सीधे रेखांकित करती है।
तीसरे खंड का शीर्षक जाकिर ने दिल की बातें दी है मगर मुझे वह दिलों की बात ज्यादा लगी। रशियन इंडियन दिलों का मिलना और भिलाई में घर बसा लेने के शानदार संस्मरण 79 से 99 तक लिपिबद्ध किये गये हैं और हर एक दिल का दर्द इनमें उमड़ा पड़ा है। 

बकौल फैज़.अहमद फैज़ 
उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं ।

मेरी सिफारिश है कि भिलाई से जुड़े साथी और वो भी जो इस आधुनिक शहर को जानना समझना चाहते हैंए इन संस्मरणों को जरूर पढ़ें। सर्वप्रिय प्रकाशन कश्मीरी गेट,नई दिल्ली से प्रकाशित किताब का मूल्य ₹ 500 रुपए . है । आप इसे जाकिर भाई  मोबाइल नंबर 9425558442 से भी सीधे प्राप्त कर सकते हैं।