Sunday, June 2, 2019


भिलाई का इतिहास  ''टाइम कैप्सूल'' में

 डाल कर अमर कर दिया ज़ाकिर भाई ने 


मेरी किताब  ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' पर प्रतिक्रिया


विश्वास मेश्राम-राज्य प्रशासनिक सेवा अफसर 


मेश्राम जी को ''वोल्गा '' का समर्पण 
भिलाई से जिनकी जड़ें गहराई से जुड़ी है उन्हें  ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' पढ़ते हुए वो सारा इतिहास भूगोल आंखों के सामने झांकता हुआ दिखाई देगा। पत्रकार के रूप में सालों से कार्यरत मोहम्मद जाकिर हुसैन साहब की कलम की यही खूबी है। उन्होंने औद्योगिक शहर भिलाई के कदम ब कदम निर्माण और विकास के इतिहास को हमेशा के लिए टाइम कैप्सूल में डाल कर अमर कर दिया है।
अपने स्कूल के दिनों में मैंने राहुल सांस्कृत्यायन की पुस्तक ''वोल्गा से गंगा'' पढ़ी थी जो कि आर्यों के मध्य एशिया से आगमन और भारत के मूलनिवासियों से उनके संघर्ष, प्रतिरोध , बौद्ध सभ्यता के प्रगतिशील आयाम और फिर क्रांति प्रतिक्रांति को  इतिहास की गाथा के रूप में लिखी गई है और भारतीय इतिहास को समझने के लिए आज भी प्रासंगिक है। उसके आगे की कड़ी के रूप में मुझे ''वोल्गा से शिवनाथ तक'' दिखाई देती है जो यह कहती है कि राहुल के समय उस पुरातन काल के बारे में बताने वाले लोग मरखप कर मिट्टी में मिल चुके थे मगर भिलाई का इतिहास बताने वाले लोग जिंदा है जिनसे जाकिर ने समय ले लेकर उनकी जबानी उन दिनों को याद किया और उन संस्मरणों को लिपिबद्ध कर इतिहास को वर्तमान में साकार कर दिया। 
पूरी किताब तीन खंडो में विभाजित है । पहले खंड बुनियाद'में 71 संस्मरण हैं। 6 जून 1955 को पायोनियर टीम के पहुंचने से लेकर  20 फरवरी 2018 को भिलाई से मास्को के लिए रवाना हुई इंडिया रशिया फ्रेंडशिप मोटर रैली तक की यादें जाकिर भाई की कलम से सहेजी गयी हैं। यह यादों का जबरदस्त पिटारा है जो घन्टों आपको बांधकर रखने की क्षमता रखता है। 
दूसरे खण्ड में दस्तावेज शीर्षक से 72 से 78 तक के लेख हैं जिनमें जवाहर लाल नेहरू की भिलाई यात्रा की रिपोर्टिंग हैं और  आर्काइव से ली गईं है। इस खंड में भिलाई में रशियन कामगारों की संख्या की सांख्यकी-भिलाई को बनाने में रशियन सहयोग को सीधे रेखांकित करती है।
तीसरे खंड का शीर्षक जाकिर ने दिल की बातें दी है मगर मुझे वह दिलों की बात ज्यादा लगी। रशियन इंडियन दिलों का मिलना और भिलाई में घर बसा लेने के शानदार संस्मरण 79 से 99 तक लिपिबद्ध किये गये हैं और हर एक दिल का दर्द इनमें उमड़ा पड़ा है। 

बकौल फैज़.अहमद फैज़ 
उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं ।

मेरी सिफारिश है कि भिलाई से जुड़े साथी और वो भी जो इस आधुनिक शहर को जानना समझना चाहते हैंए इन संस्मरणों को जरूर पढ़ें। सर्वप्रिय प्रकाशन कश्मीरी गेट,नई दिल्ली से प्रकाशित किताब का मूल्य ₹ 500 रुपए . है । आप इसे जाकिर भाई  मोबाइल नंबर 9425558442 से भी सीधे प्राप्त कर सकते हैं।

No comments:

Post a Comment