Thursday, December 31, 2020

तब 1930 में शुक्ल परिवार भिलाई में बनाने 
जा रहा था टाटा की तरह निजी स्टील प्लांट


भिलाई में स्टील प्लांट की दमदारी से पैरवी कर 
रविशंकर ने पूरा किया था अपने भांजे का सपना



बूढ़ापारा रायपुर स्थित निवास में रमेशचंद्र शुक्ल के साथ 
भिलाई में स्टील प्लांट लगाने के लिए तत्कालीन सेंट्रल प्राविंस एंड बरार प्रांत के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने जो दृढ़ता दिखाई थी, उसके पीछे एक मजबूत आधार उनके दिवंगत भांजे की एक अध्ययन रिपोर्ट थी। 

दरअसल भिलाई में निजी स्टील प्लांट लगाने की योजना शुक्ल के भांजे बालाप्रसाद तिवारी की थी लेकिन इस भांजे की असमय मौत के चलते योजना पर 1920-30 के दौर में अमल नहीं हो पाया, फिर स्वतंत्र भारत में शुक्ल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समक्ष दृढ़ता से भिलाई के दावे को रखा और तब कहीं भिलाई में स्टील प्लांट की स्थापना हो पाई।

31 दिसंबर को रविशंकर शुक्ल की पुण्यतिथि के मौके पर उनके पौत्र रमेशचंद्र शुक्ल ने यह रोचक जानकारी एक मुलाकात के दौरान दी। रविशंकर शुक्ल के बड़े बेटे अंबिकाचरण शुक्ल के सुपुत्र रमेशचंद्र शुक्ल अपने बूढ़ापारा रायपुर स्थित पैतृक निवास में रहते हैं। 

आज भी उनके निवास में स्व. रविशंकर शुक्ल के दौर की कई दुर्लभ निशानी मौजूद है। यहां 12 दिसंबर 2020 की दोपहर मेरी उनसे उनके निवास पर मुलाकात हुई। उनके कमरे में दीवार पर स्व. शुक्ल की बड़ी सी तस्वीर लगी है।

वहीं बीते दौर का रेडियो, रिकार्ड प्लेयर, बेल रिकार्डर से लेकर बाद के दौर के टेप रिकार्ड और वीसीआर भी मौजूद हैं। इन दुर्लभ निशानियों के बीच 85 वर्षीय रमेशचंद्र शुक्ल ने अपने दादा (जिन्हें वह 'बाबा' कहते हैं) पर विस्तार से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने जो कुछ कहा, सब उन्हीं के शब्दों में- 


टाटा की रिपोर्ट के आधार पर योजना बनाई थी बालाप्रसाद ने 

एक जुलाई 1956 को भिलाई स्टील प्रोजेक्ट निर्माण स्थल सोंठ गांव में रविशंकर शुक्ल 

तब भिलाई में टाटा के स्तर का विशाल निजी स्टील प्लांट लगाने की तैयारी हमारे परिवार की थी। हमारे बाबा के भांजे बालाप्रसाद तिवारी तब टाटा स्टील में इंजीनियर थे और उनके पास 1888 से 1905 की अवधि में दल्ली राजहरा से रावघाट तक भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) व टाटा स्टील द्वारा कराए गए सर्वे की पूरी रिपोर्ट थी। 

तब 1905 तक टाटा स्टील ने यहां स्टील प्लांट इसलिए नहीं लगाया था क्योंकि यहां आसपास पानी का कोई बड़ा बांध जैसा स्त्रोत नहीं था। हालांकि इसके बाद 1920 आते-आते तांदुला बांध बना।

इस दौर में बालाप्रसाद तिवारी टाटा स्टील से छुट्टी लेकर अक्सर रायपुर आते थे। यहां से उन्होंने दल्ली राजहरा तक पूरा सर्वे किया था और भिलाई गांव के आस-पास निजी स्टील प्लांट स्थापित करने रिपोर्ट तैयार की थी।


हो चुकी थी वित्तीय व्यवस्था और दूसरी तैयारी भी 

शुक्ल निवास में पुराना रेडियो और बेल टेप रिकार्डर 

तब तक हमारे बाबा भी देश के राजनीतिक परिदृश्य में स्थापित हो चुके थे। ऐसे में हमारा परिवार इस स्टील प्लांट को लेकर बेहद उत्साहित था। 
सब कुछ टाटा के स्तर का होने जा रहा था। वित्तीय व्यवस्था और दूसरी तैयारी भी हो चुकी थी लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था।1930 में बेहद कम उम्र में नौजवान बाला प्रसाद तिवारी की आकस्मिक मृत्यु हो गई।
हमनें अपने पिता अंबिकाचरण शुक्ल से कई बार सुना था कि बाबा अपने सभी बच्चों से भी ज्यादा अपने भांजे बालाप्रसाद को चाहते थे। बालाप्रसाद की शख्सियत बिल्कुल अंग्रेजों जैसी थी। बाबा जहां 6 फीट 1 इंच ऊंचे थे तो उनके भांजे उनसे भी 2 इंच ऊंचे थे। 

भांजे की मौत ने कर दिया था दुखी, मेहता ने निभाई अहम भूमिका 

शुक्ल को भिलाई का ब्ल्यूप्रिंट दिखाते श्रीनाथ मेहता

जब बालाप्रसाद तिवारी की आकस्मिक मौत हुई तो हमारे बाबा इतने ज्यादा दुखी हुए कि उन्होंने अपना सिर दीवार पर दे मारा था। 

बालाप्रसाद तिवारी की वह सर्वे रिपोर्ट यहीं बूढ़ापारा रायपुर के निवास में सुरक्षित थी लेकिन बाद के दौर में हमारे चाचा विद्याचरण शुक्ल के लोगों ने इस रिपोर्ट का महत्व नहीं समझा और उसे रद्दी में फिंकवा दिया।

वैसे इसी रिपोर्ट के आधार पर हमारे बाबा ने अपने विश्वस्त आईसीएस आफिसर श्रीनाथ मेहता से विस्तृत सर्वे करवा कर तीन वाल्यूम में रिपोर्ट तैयार करवाई थी।

जिसके आधार पर उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समक्ष भिलाई के दावे को मजबूती से रखा था। मेहता को उनके इसी उल्लेखनीय कार्य की वजह से भिलाई स्टील प्रोजेक्ट का पहला जनरल मैनेजर बनाया गया।


बाबा ने कहा था-'भिलाई' लेकर लौटूंगा नहीं तो मेरी लाश आएगी

हमारे बाबा मध्य भारत में लगने वाले स्टील प्लांट के लिए भिलाई के दावे को लेकर इस कदर आश्वस्त थे कि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने भी जिद पकड़ ली। 

सीपी एंड बरार के मुख्यमंत्री बनते ही बाबा ने भिलाई के पक्ष में श्रीनाथ मेहता से नए सिरे से दावा रिपोर्ट तैयार करवाई। इस बीच प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मध्य भारत का स्टील प्लांट विभिन्न वजहों से कुछ माह टालने की मन:स्थिति में थे। वह दुर्गापुर का काम पहले शुरू करवाना चाहते थे।

तब मध्यभारत में अलग-अलग जगह से स्टील प्लांट लगाने की मांग भी उठ रही थी और कुछ लोग इसे विवादित करवा कर पूरी योजना ही ठंडे बस्ते में डलवाना चाह रहे थे। बाबा को यह सब पता लगा तो अपने सेक्रेट्री श्रीनाथ मेहता बुलाया और रातों-रात टेलीप्रिंटर पर अपने प्लान को फिर से तैयार करवा कर दिल्ली भिजवाया। इसके बाद मेहता को लेकर वह दिल्ली गए। 

जाने से पहले बाबा अपने परिवार और विधायकों के बीच बोलकर गए थे कि-''मैं भिलाई स्टील प्रोजेक्ट मंजूर करवा कर लौटूंगा नहीं तो दिल्ली से मेरी लाश आएगी।'' दिल्ली में वह प्रधानमंत्री से मिले और उन्हें बताया कि-मध्य भारत सबसे पिछड़ा इलाका है और यहां के विकास के लिए सबसे पहले भिलाई गांव के पास ही प्लांट लगना चाहिए। नेहरू उनकी दलीलों से सहमत हुए और इस तरह भिलाई स्टील प्रोजेक्ट को सबसे पहले मंजूरी मिली।

बाबा हमेशा पक्षधर थे माटीपुत्रों के 

भिलाई निर्माण स्थल में शुक्ल, साथ में हैं पुरतेज सिंह

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट मंजूर होने के बाद नए मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ तो बाबा इसके पहले मुख्यमंत्री हुए और वे भिलाई के काम को लेकर बेहद उत्साहित थे।
उन्होंने श्रीनाथ मेहता और पुरतेज सिंह समेत अपने सर्वश्रेष्ठ अफसरों को यहां डेप्युटेशन पर पहले ही भेज दिया था। जिससे कि भिलाई का काम पूरी गति से हो।

सीपी एंड बरार के मुख्यमंत्री रहते हुए बाबा 1 जुलाई 1956 को निर्माण कार्य का जायजा लेने भिलाई आए थे। बाबा हमेशा कहते थे कि भिलाई कारखाने में रोजगार का पहला हक मध्यप्रदेश के माटीपुत्रों का है। इसके लिए उन्होंने नियम भी बनवाने की कोशिश की कि 80 प्रतिशत माटीपुत्र और 20 प्रतिशत अन्य राज्य के लोगों को नौकरी मिलेगी।

लेकिन तब के अफसरों की लॉबी ऐसा नियम बनने नहीं देना चाहती थी। वहीं भिलाई में बैठे कुछ अफसर जानबूझ कर स्थानीय लोगों को सरप्लस बताते हुए उनकी छंटनी भी कर देते थे।

इसी बीच 31 दिसंबर 1956 को बाबा का निधन भी हो गया। तब हम लोग सुनते थे कि इसी मुद्दे पर भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के पहले जनरल मैनेजर श्रीनाथ मेहता ने इस्तीफा दे दिया था।

श्रीनाथ मेहता एक बहुत ही सुलझे हुए काबिल अफसर थे। मुझे याद है उन्हें कुत्ते पालने का बड़ा शौक था। एक दफा भिलाई में 32 बंगले में उनसे मिलने विद्याचरण शुक्ल के साथ मैं भी गया था। तब उनके बंगले के बरामदे 6-7 कुत्ते घूम रहे थे। 

नौजवानों से भी ज्यादा फुर्तीले थे रविशंकर शुक्ल 

नए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए शुक्ल

एक बार ऐसा हुआ कि बाबा, हम, हमारे चाचा गिरिजा चरण नागपुर से रायपुर आ रहे थे।

 तब हम नागपुर में लॉ कॉलेज में पढ़ रहे थे। बाबा सुबह ४ बजे से उठ जाते थे और नहा धो कर पूजा व ध्यान के साथ चंदन टीका लगाकर अपनी छड़ी और दुपट्टा लेकर निकलते थे।

तब बाबा मुख्यमंत्री के  तौर पर अमरावती-अकोला का दौरा करके नागपुर आए और हम चाचा- भतीजा को साथ लेकर रायपुर के लिए सड़क से रवाना हुए। मुझे याद है तब  हम लोग रात २ बजे राजनांदगांव पहुंचे।

 वहां बाबा की प्रशासनिक बैठक थी और जनसामान्य से भी उन्हें मिलना था। रास्ते भर बाबा ड्राइवर को टोकते  जा रहे थे कि-तुम हमको देर कराओगे जरा जल्दी चलाओ। हम लोग जब रात को 2 बजे पहुंचे तो रेस्ट हाउस में आराम कुर्सी दिख गई।

हम और हमारे चाचा जवान होने के बावजूद थक के चूर हो चुके थे। इसलिए दोनों आराम कुर्सी में निढाल होकर गिर गए। जबकि दूसरी तरफ हमारे बाबा एकदम तरोताजा दिखाई दे रहे थे।

हम लोगों को झपकी आ रही थी तो उन्होंने ताड़ लिया और पुलिस वालों को बोले कि ये लड़के थोड़ा आराम कर लें। जब तक मैं मीटिंग में हूं, मुझे इतनी सिक्योरिटी की जरूरत नहीं है, तुम इन्हें लेकर आ जाना, मैं अपनी गाड़ी में चलता हूं। इसके बाद बाबा चले गए।

अपने आलोचक के लिए सह्रदयता थी उनके दिल में 

भिलाई में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के हाथों प्रतिमा अनावरण 28 जनवरी 2002

बाबा जब मुख्यमंत्री थे तो उन दिनों राजनांदगांव में एक बड़े वामपंथी नेता रूइकर हुआ करते थे। रूइकर यहां बंगाल नागपुर कॉटन (बीएनसी) मिल में श्रमिक राजनीति करते थे लेकिन मध्यप्रदेश और पूर्ववर्ती सीपी-बरार की राजनीति में भी उनका अच्छा खासा दखल था।
उनकी राजनीतिक शैली ऐसी थी कि वह हमेशा बाबा को खूब बुरा कहते थे। हर बात पर वह बाबा को कटघरे में खड़ा करते थे। उस रात जब हम लोग राजनांदगांव सर्किट हाउस से बाबा की बैठक की जगह पहुंचे तो वहां मैनें देखा कि रूइकर की पत्नी आई हुई है। वह बाबा से मिली और बेहद दुखी होकर बताया कि उनके पति की राजनीति की वजह से घर में फाके पड़ रहे हैं।

सब कुछ सुन कर बाबा बेहद दुखी हो गए और अपने सेक्रेट्री से बोले लाओ मेरी चेक बुक। तुरंत उन्होंने 5 हजार रूपए का चेक काटकर रूईकर की पत्नी को दिया और बोले-बेटी, तुम घबराओ मत मैं अभी हूं और जरूरत पड़े तो मुझे संपर्क करना। तब हम लोग बड़े हैरान थे कि जो आदमी उनको हमेशा गाली बकता रहता है, उसके परिवार के साथ बाबा इतनी उदारता का व्यवहार कर रहे हैं।

बाबा के आदर्श अनुकरणीय थे। भिलाई की स्थापना में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। 28 जनवरी 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री  अटल बिहारी बाजपेयी ने भिलाई के सेक्टर-9 में बाबा की प्रतिमा का अनावरण किया था। यह बाबा के योगदान को नमन करने का एक स्तुत्य प्रयास था। 

विद्याचरण और मिनीमाता ने भी स्थानीयता की आवाज उठाई

विद्याचरण शुक्ल-मिनी माता

बाबा रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद के दिनों में विद्याचरण शुक्ल और मिनीमाता संसद में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, तब इन दोनों सांसदों ने भिलाई सहित तमाम उद्योगों में स्थानीय लोगों की नौकरी सुरक्षित रखने आवाज उठाई थी।

दोनों सांसद भी चाहते थे कि सार्वजनिक उपक्रमों में 80 प्रतिशत भर्ती स्थानीय हो। इसके विपरीत भिलाई मेें तो स्थानीय लोगों की उपेक्षा हो रही रही थी वहीं 1966 में कोरबा में शुरू हुई भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को) में तो अफसरों ने मिल कर इस नियम को ही उल्टा कर दिया। वहां 20 प्रतिशत स्थानीय और 80 प्रतिशत अन्य राज्यों से भर्ती होने लगी।

तब मिनीमाता ने इसका पुरजोर विरोध किया था। हालांकि बाल्को में उत्पादन शुरू होने के दौर में मिनीमाता स्थानीय लोगों को नौकरी दिलाने आवाज उठा रही थीं। 

 इसी बीच 1972 में मिनीमाता का एक प्लेन क्रैश में निधन हो गया। बाद के दिनों में मैनें भी रेलवे में स्थानीय भर्ती की मांग को लेकर आंदोलन किया था। हमारा आंदोलन डब्ल्यूआरएस कालोनी में चला था।

हरिभूमि में प्रकाशित मेरी स्टोरी 

 


1 comment:

  1. इतिहास के अनछुए पन्नों की जानकारी दी है आपने। आपकी प्रत्येक पोस्ट संग्रहणीय होती है। आपकी मेहनत और कलम को नमन।

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