Saturday, January 15, 2022


एक कारखाने के बनने की कथा और अंतर्कथा 

-जाहिद खान, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

समीक्षक जाहिद खान अपने निवास पर

‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ‘भिलाई स्टील प्लांट’ पर केन्द्रित दिलचस्प और तमाम दस्तावेजी जानकारियों से भरी एक मुकम्मल किताब है। लेखक-पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की यह शानदार किताब एक अलग ही शिल्प में लिखी गई है। 

कहीं ये किताब ‘भिलाई स्टील प्लांट’ के गौरवशाली इतिहास के बारे में सूक्ष्म जानकारियां देती है, तो कहीं इस प्लांट से जुड़े रूसी और भारतीय इंजीनियर-अधिकारियों के संस्मरण, इस्पात नगरी के बनने और उनके संघर्षमय जीवन की झलकियां दिखलाते हैं। किताब के कुछ अध्याय सीधे-सीधे रिपोर्ताज की शक्ल में हैं, तो अनेक महत्वपूर्ण लोगों के साक्षात्कार से प्लांट की अंतर्कथा मालूम चलती है। 

हां, किताब में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के तीन ऐतिहासिक भाषण भी शामिल हैं, जो उन्होंने अलग-अलग वक्त में ‘भिलाई स्टील प्लांट’ के दौरे के दौरान दिए थे। अपने एक भाषण में नेहरू ने भिलाई को मुल्क की तरक्की और खुशहाली की बुनियाद बतलाया था। उनका यह दावा बाद में सच साबित हुआ।

फरवरी, 1960 को सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री निकिता सरगेयेविच खु्रश्चेव के दो दिवसीय दौरे का भी लेखक ने किताब में तफ्सील से जिक्र किया है। यह जानना भी बेहद जरूरी होगा कि भिलाई कारखाने के निर्माण के पीछे नेहरू के साथ-साथ ख्रुश्चेव की बड़ी भूमिका थी। अगर खु्रश्चेव दिलचस्पी नहीं लेते, तो यह कारखाना आकार नहीं लेता। किताब में शामिल अनेक तस्वीरें, हमें उस दौर में ले जाती हैं, जब इस कारखाने का विस्तार हो रहा था। 

प्रकाशित समीक्षा

कुल मिलाकर ‘भिलाई स्टील प्लांट’ की स्थापना और इसके विकास को अच्छी तरह से जानना-समझना है, तो ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ एक मददगार किताब है। जो अथक शोध, धैर्य और परिश्रम के साथ लिखी गई है। हिंदी में इस तरह का काम बहुत कम हुआ है। 

अलबत्ता, मुहम्मद जाकिर हुसैन जरूर इस तरह का काम पहले भी कर चुके हैं। इस किताब से पहले इस्पात नगरी भिलाई पर साल 2012 में उनकी एक और महत्वपूर्ण किताब ‘भिलाई-एक मिसाल’ आई थी, जो काफी चर्चा में रही।

 वोल्गा नदी, अविभाजित रूस की जीवनरेखा रही है, तो शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की। विश्व की सारी आधुनिक सभ्यताएं, नदी किनारे विकसित हुईं। भिलाई, शिवनाथ नदी के किनारे तो नही है, लेकिन इस नदी से ‘भिलाई स्टील प्लांट’, के लिए पानी की आपूर्ति हुई और एक आधुनिक शहर अस्तित्व में आया। जिसकी संस्कृति मिली-जुली है

प्रकाशित समीक्षा

रशियन टेक्नालॉजी, वर्क कल्चर और छत्तीसगढ़ी संस्कृति से मिलकर भिलाई में एक ऐसी संस्कृति बनी जो बेजोड़, बेमिसाल है। किताब में जितने भी इंटरव्यू हैं, चाहे वे रूसियों के हों या फिर भारतीयों के इनमें एक दूसरे के प्रति गहरी दोस्ती, मुहब्बत, एहतराम और यकीन झलकता है। 

किताब का सबसे दिलचस्प हिस्सा, ऐसे दंपतियों के इंटरव्यू हैं, जिनमें पति भारतीय और पत्नी रशियन हैं। इन इंटरव्यू से मालूम चलता है कि मुहब्बत, किसी देश-दुनिया की दीवार और बंधनों को नहीं मानती। लेखक ने किताब में उस अनुबंध को भी शामिल किया है, जो भारत सरकार और सोवियत संघ के बीच हुआ था।

अनुबंध से मालूम चलता है कि परियोजना के लिए दोनों सरकारों के बीच उस वक्त क्या-क्या अहम करार हुए थे। छोटे-छोटे अध्यायों में बंटी ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ की कोई कमी की यदि बात करें, तो जितना संजीदा कंटेन्ट है, उसके बरक्स किताब की छपाई बेहद निम्न स्तर की है। 

किताब बिल्कुल टेक्स्ट बुक की तरह लगती है। प्रकाशक ने पेपरबैक किताब का दाम तो पांच सौ रुपए रखा है, लेकिन क्वालिटी थोड़ी सी भी देने की कोशिश नहीं की है। जबकि किताब की मांग को देखते हुए, एक साल के अंदर इसका दूसरा संस्करण आ गया है।

शीर्षक: वोल्गा से शिवनाथ तक

लेखक:मुहम्मद जाकिर हुसैन

समीक्षक-जाहिद खान, महल कॉलोनी, शिवपुरी मप्र 

मोबाईल 94254 89944 

मूल्य : 500 (पेपरबैक संस्करण), 

प्रकाशक : सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली

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 लोहे का बदन... लोहे का कारखाना 

गर छूने से नहीं सिहरता तो मेरे किस काम का

-पीयुष कुमार, रामानुजगंज छत्तीसगढ़ 

इंसानी सभ्यता की बड़ी पहचान उसकी बनाई तामीर है। मिस्र के पिरामिड्स से लेकर सिंधु सभ्यता और और आज शंघाई की गगनचुम्बी इमारतों को देखकर यह बेहतर समझा जा सकता है। सभ्यता के इस विकास क्रम में स्टील का सबसे बड़ा योगदान है। 

यह इस्पात कैसे बनता है और इसमें लोहे के साथ पसीना, दिमाग और जज्बात किस तरह घुले मिले हैं उसकी यह अलहदा सी कहानी है जिसे भिलाई के पत्रकार लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने 'वोल्गा से शिवनाथ तक' में बयान किया है। 

राहुल सांकृत्यायन आज होते तो उन्हें खुशी होती कि 'वोल्गा से गंगा' के अलावा एक धारा शिवनाथ (नदी) तक भी बह चली है, वह धारा जिसने देश की आज़ादी के बाद उसके भविष्य को थामकर रखने के लिए बुनियाद दी। 

जी हां, यह किताब रूस के सहयोग से 1955 में स्थापित भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना और प्रक्रिया पर आधारित है जिसमें लोहे को इस्पात में बदलने में लगे जज्बातों का पानी मिला हुआ है। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना रूस के सहयोग से हुई थी। 

ऐसे में रूसी इंजीनियरों का भिलाई आना और उनके यहां रम जाने के किस्से पढऩा अद्भुत एहसास कराते हैं। इन किस्सों में एक ओर जहां भिलाई इस्पात संयंत्र के विकास क्रम में हुई हर बात जो भट्टी के अंदर के ताप से रूबरू कराती है, वहीं साथ मिलकर काम करने से उपजे इंसानी रिश्तों की तरलता भी साथ साथ बहती है। गौरतलब है कि कई रूसी महिलाओं ने यहीं भारतीय पुरुषों के साथ विवाह कर यहीं घर बसा लिया है जिनमे से कई जोड़ों का तस्वीर सहित इसमें जिक्र है। 

पहली-दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं में बने औद्योगिक तीर्थों की खास बात यह है कि हर जगह वे एक लघु भारत का निर्माण करते हैं। छत्तीसगढ़ के भिलाई की भी यही कहानी है। यह बोकारो, राऊरकेला जैसे शहर के लोग और रेलवे में जिनके पिता या दादाजी कार्यरत रहे हैं, वे भी बेहतर महसूस कर सकते हैं। 

विशेष ढंग से बनी कालोनियां, पार्क, अस्पताल, स्कूल, पेड़ पौधे और मार्केट इन्हें बाकी जगहों से अलग करते हैं। यह किताब देश के बुनियादी विकास का एक दस्तावेज है। औद्योगिक नगरीयकरण में श्रम, सहकार और विभिन्न सांस्कृतिक पहचानों में गुंथे समाज को साहित्यिक विधाओं और विमर्शों में जगह नहीं मिली है, इस लिहाज से यह किताब इस कमी को पूरा करती है और प्रेरित करती है कि हर ऐसी जगहों को उसके मिजाज बदलने से पहले ही दर्ज कर लिया जाए। लेखक को इस किताब के लिए बधाई।

 सुझाव है कि आप भी यह किताब जरूर पढ़ें ताकि पता लगे कि साहित्य में कविता कहानी से अलग भी कोई दुनिया है। 

संपर्क-+918839072306 

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एक खुशहाल मुल्क बनने का ब्यौरा इस किताब में 

 -पल्लव चटर्जी, भिलाई छत्तीसगढ़

'वोल्गा से शिवनाथ तक' के लेखक मुहम्मद ज़ाकिर हुसैन को मैं मुबारकबाद देता हूं। उन्होंने अपनी पुस्तक में तत्कालीन रुसी प्रधानमंत्री खुशचेव तथा भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी के मित्रतापूर्ण संबंध और भिलाई में आधुनिक भारत के लौह इस्पात संयंत्र निर्माण कार्य पूरा कर इस्पात उत्पादन सम्भव बनाने का ब्यौरा दिया है। 

केवल कृषि प्रधान देश नहीं हमें कुछ नये ख्वाब देखना होगा। देश में खनिज पदार्थ का इस्तेमाल करके नये तकनीकी शिक्षा को अपनाकर देश को स्वाबलंबी बनाने हेतु भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह विचार व्यक्त किए। 

उनके इस विचार को किस प्रकार रुसी भाईयों ने वास्तव में परिणत किया उसका बिस्तारपूर्वक उल्लेख लेखक ने अपनी किताब में किया है। दोस्ती बढी, प्रेम बढ़ा दो बड़े देशों के बीच। विश्व में आधुनिक भारत का लोहा मनवाया रूसी मित्रता ने। धीरे धीरे एक खुशहाल मुल्क बनाने का विवरण इस पुस्तक में मिलता है। इस पुस्तक को पढ़कर मुझे बेहद संतुष्टि मिला।

 मैं मोहम्मद जाकिर हुसैन के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। 

संपर्क -+918109303936

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