Monday, February 10, 2025


मां के साथ मजदूरी की, ईंटें ढोईं और खुद लिखी अपनी किस्मत

 

अरबपति कारोबारी भगवान गवई आज तेल और रियल इस्टेट के क्षेत्र में बड़ा नाम


सिरपुर में लेखक/पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन (बाएं) के साथ उद्योगपति भगवान गवई (दाएं)

देश के एक प्रमुख उद्योगपति भगवान गवई की दास्तां संघर्षों का डट कर सामना कर अपनी किस्मत खुद लिखने की है। दलित समुदाय से आने वाले गवई समूचे समाज के लिए एक मिसाल है। 

आज भी वह अपने संघर्षों के दिनों को भूले नहीं है और उनकी कोशिश रहती है कि वंचित समुदाय के नौजवान भी उद्यमशीलता का रास्ता अपनाएं और अपना भविष्य तय करें।

हाल ही में 18 और 19 जनवरी 2025 को अंबेडकर भवन (पुराना बीएसपी स्कूल) सेक्टर-6 में दो दिवसीय करियर गाइडेंस, उद्यमिता विकास और संविधान जानो कार्यशाला का आयोजन किया गया।  डॉ अंबेडकर एक्जीक्यूटिव फ्रेटरनिटी भिलाई, सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन छत्तीसगढ़ ,एनस्टेप छत्तीसगढ़ और मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल भिलाई के संयुक्त तत्वावधान में हुए इस आयोजन में हिस्सा लेने भिलाई पहुंचे भगवान गवई से मुझे साक्षात्कार का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन संघर्ष से लेकर विभिन्न मुद्दों पर लंबी बातचीत की। इस लंबे साक्षात्कार में उन्होंने जो कुछ बताया, सब उन्हीं के शब्दों में- 

 

बचपन में पिता गुजरे तो मां के साथ मजदूरी में हाथ बंटाया

सिरपुर में एडवोकेट सुरेश माने का भी साथ रहा

हम लोग मूल रूप से महाराष्ट्र के बुलढाणा जिला, सिरखेड़ तालुका के रहने वाले हैं। माता-पिता के साथ चार भाई और एक बहन का हमारा परिवार था। 1964 की बात है, मैं कक्षा दूसरी में था तो पिता का अचानक निधन हो गया। स्वाभाविक है परिवार पर संकट आ गया। मां पढ़ी लिखी नहीं थी और उनके सामने परिवार को पालने की जवाबदारी थी। ऐसे में हम सब बॉम्बे कांदीवली आ गए। 

यहां  महिंद्रा एंड महिंद्रा की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मां को काम मिल गया। तब हम सभी के लिए परिस्थितियां बेहद विषम थी, इसलिए मुझे भी शुरूआती 2-3 साल अपनी मां के साथ मजदूरी करनी पड़ी। उनके साथ मैं भी ईंटे ढोता था। इस बीच स्कूली पढ़ाई छूट रही थी और  इसका मुझे भी ध्यान था, इसलिए एक रोज खुद से पास के स्कूल में जाकर मैनें कक्षा तीसरी में दाखिला ले लिया। 

दरअसल, तब कांदीवली में चारों तरफ जंगल था और रास्ते दुर्गम थे। जंगली जानवरों के संभावित खतरे को देखते हुए वहां स्कूल में छोटे बच्चों को दाखिला नहीं देते थे। इसलिए मुझे 2-3 साल बाद जब थोड़ी और समझ आई तो वहां स्कूल जाकर दाखिला ले लिया। इसके बाद बेहतर काम की तलाश में परिवार को खोपोली, फिर नासिक और फिर रत्नागिरी जाना पड़ा। तब तक  छठवीं की पढ़ाई हो चुकी थी। 

अंक अच्छे थे तो मुझे रत्नागिरी के प्राइवेट स्कूल में दाखिला मिल गया। यहां 10 वीं तक वहां रहा। इस दौरान छोटे-छोटे काम कर मैं अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल लेता था। फिर बड़े भाई ने भी भवन निर्माण में ईंटा जोड़ाई का काम लेना शुरू कर दिया था। घर के हालात थोड़े बेहतर हुए तो मां ने मजदूरी छोड़ सब्जी बेचना शुरू किया। 

 

धीरे-धीरे सुधरे हालात, मिली सरकारी नौकरी

भिलाई के कार्यक्रम में एल. उमाकांत के साथ

इसके बाद मैनें मुंबई में कामर्स में ग्रेजुएशन किया। इसी दौरान लार्सन एंड टुब्रो में अकाउंट विभाग में नौकरी लग गई।यहां नौकरी करते-करते मैनें पब्लिक सेक्टर में सेवा के लिए तैयारी जारी रखी। जिसके चलते साल 1982 में  हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड (एचपीएल) में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर एक नई शुरूआत हुई। एचपीएल की सेवा मेरे करियर के लिए बहुत ज्यादा लाभकारी रही। 

यहां रहते हुए मुझे कंपनी की ओर से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट  (आईआईएम) कोलकाता में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला और यहाँ तीन महीने एक्ज़ीक्यूटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम में बिजनेस के सारे गुर सीखने का अवसर मिला। कंपनी में प्रमोशन भी मिला लेकिन कतिपय विवादों के चलते यहां 10 साल  की सेवा के बाद मैनें इस्तीफा दे दिया। 

 

भारत से 20 गुना ज्यादा वेतन पर बहरीन गया, साझेदारी में शुरू किया कारोबार

सिरपुर तिवरदेव बौद्ध विहार में प्रतिनिधिमंडल के साथ

इसके बाद मैनें मध्यपूर्व देशों का रुख किया। बहरीन में कैलटेक्स ऑइल जॉइन में उन्हें एचपीसीएल से 20 गुना ज़्यादा वेतन पर रख लिया । फिर दुबई में एमिरेटस नेशनल ऑइल कंपनी (इनोक) की नई रिफाईनरी से उन्हें बुलावा आया।मध्यपूर्व के देशों में कई तरह के अनुभव हुए। मैनें देखा कि कई अनपढ़ लोग तेल से जुड़ा कारोबार कर रहे थे। 

मुझे अपनी कंपनी शुरू करने का विचार आया। तब मेरी  मुलाक़ात वहां के एक तेल व्यवसायी बकी मोहम्मद से हुई। जिनसे प्रेरणा लेकर उन्होंने बिज़नेस की दुनिया में कदम रखने का निर्णय लिया। साल 2003 में मैनें बकी के साथ मिलकर “बकी फुएल कंपनी” की शुरुआत की इसमें मेरा शेयर 25 प्रतिशत था। बकी की मार्केट में अच्छी जान-पहचान थी, इस वजह से तेल का कारोबार चल निकला।  हम दोनों पार्टनर रिफाईनरी से तेल खरीदकर दुनिया-भर में बेचते थे।

 

कारोबार में धोखे खाए लेकिन सीखा भी

सिरपुर तिवरदेव बौद्ध विहार में प्रतिनिधिमंडल के साथ

हमारा कारोबार अच्छी तरह चल रहा था तभी बकी की मां का निधन हो गया और उन्होंने कारोबार समेट लिया। इससे उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ। इन्हीं दिनों कज़ाकिस्तान में एमराल्ड एनर्जी नामक कंपनी के मालिक ने यही काम अपने साथ करने का ऑफर दे दिया और एक-डेढ़ साल में शेयर देने का वादा भी किया। 

वही साल 2008 तक इस कंपनी का टर्न ओवर 400 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन शेयर देने के वक़्त कंपनी का मालिक मुकर गया, इससे आहत होकर मैनें फैसला किया कि अब स्वतंत्र तौर पर अपनी कंपनी शुरू करेंगे। एक औऱ बात मैं बताऊं, कारोबार के इन तमाम उतार-चढ़ाव के बीच मेरा ध्यान हमेशा वंचित समुदाय के उत्थान के प्रति रहता है। 

ऐसे ही एक सामूहिक प्रयास का मैं यहां जिक्र करना चाहूंगा। 2006 में मैत्रेयी डेवलपर्स की स्थापना  दलित समुदाय के हम 50 लोगों ने की। जिसमें सभी ने एक-एक लाख लगाकर 50 लाख के निवेश के साथ कंपनी बनाई। इसमें हम सब बराबर के भागीदार हैं। 

कंपनी फिलहाल मेन्यूफ़ेक्चरिंग का काम करती है।  2009 में मैंनें आइल सेक्टर में कारोबार के इरादे से खुद की कंपनी शुरू की और दुबई में अपना ऑफिस खरीदा। अब आज के समय में मेरी मलेशिया में भी दो और कंपनियां हैं, जो ऑइल और कोयले की खरीद-फरोख्त करती हैं। 

इसके अलावा मैत्रेयी डेवलपर्स और बीएनबी लॉजिस्टिक्स में भी हिस्सेदारी है।  कोरोना काल में हमनें रियल इस्टेट पर ध्यान दिया। फिलहाल पनवेल में एक रियल इस्टेट प्रोजेक्ट पूरा हो गया है। भविष्य की और भी महत्वाकांक्षी योजनाएं है। 

 

किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझे नीचा दिखाने की, लेकिन

 दूसरे साथियों की प्रताड़ना के मुद्दों पर किया संघर्ष

भिलाई में आयोजित कार्यक्रम में अतिथिगण

वंचित-दलित समुदाय से आने के बावजूद स्कूल और कॉलेज में मुझे कभी भेदभाव महसूस नहीं हुआ। सभी से मिल कर रहता था और अपनी काबिलियत पर भरोसा था। ऐसे में किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझे नीचा दिखाने की। मेरा मानना है कि जब आप बेस्ट परफार्म करते हो तो किसी को आपको नीचा दिखाने की हिम्मत नही हो सकती। 

लेकिन मैं यह नहीं कहता कि समाज में भेदभाव बिल्कुल नहीं है। हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड के सेवाकाल में मैं एससी-एसटी एम्पलाइज एसोसिएशन  का जनरल सेक्रेट्री था और अपने समुदाय के दूसरे कर्मियों के साथ ऐसा भेदभाव अक्सर देखने में आता था। 

इनमें जातीय उत्पीड़न, प्रमोशन रोकने, सीआर खराब करने सहित प्रताड़ना के कई मामले थे। मैनें ऐसे 100 से ज्यादा मामले मैनेजमेंट के सामने उठाए। मेरी कार्यशैली मैनेजमेंट से सीधे भिड़ने की नहीं बल्कि बात कर रास्ता निकालने की थी। इसलिए  ऐसे मामलों में मैं अपने साथियों को इंसाफ दिलाने में सफल रहा।  

 

बेटे को जॉब पर रखा,  बीएसएस गठन कर बढ़ाई सक्रियता


जिस तरह विपरीत हालातों का सामना मैनें अपने जीवन में किया है, तो मेरा मानना रहा है कि मेरे बच्चे भी संघर्षों से आगे बढ़े और खुद को साबित करें। दो बेटियां और एक बेटे ने अपनी इच्छा अनुसार विषय चुनकर उच्च शिक्षा हासिल की। 

मैं चाहता तो पढ़ाई पूरी कर लौटे बेटे को अपनी कंपनियों में आसानी से निदेशक या कोई और पद देकर रख सकता था लेकिन मैनें ऐसा करने के बजाए जॉब पर रखा, जिससे  बेटा पहले जमीनी काम सीखे, खुद को साबित करे और इसके बाद वह कंपनियों की बागडोर सम्हाले। 

बेटियां भी अलग-अलग क्षेत्र में सक्रिय हैं। अपने समाज के स्तर पर भी हम लोग बहुत कुछ कर रहे हैं। हमनें समान विचारधारा के लोगों को मिलाकर एक सामाजिक संगठन बहुजन समाज संघ (बीएसएस) भी शुरू किया। 

जिसमें सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रहे हैं। इसमें 15 विंग विकसित किए हैं और अनुभवी लोगों को शामिल किए हैं। हमारा प्रयास समाज के वंचित समुदाय के कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम बनाएं और इन्हें क्रियान्वित करें। इसमें हमें दलित समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का पूरा सहयोग मिल रहा है।

 


युवा उद्यमी बनाने महाराष्ट्र में लगातार दे रहे हैं प्रशिक्षण


बिरबिरा (महासमुंद) स्थित बौद्ध विहार में

मेरी एक कंपनी इंडियन एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड है। जिसके माध्यम से हम लोगों ने महाराष्ट्र में कोरोनाकाल में 600 युवाओं को इंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट प्रोग्राम (ईडीपी) के अंतर्गत नि:शुल्क ट्रेनिंग दी है। इसमें हम लोगों ने एजुकेशन, आयरन एंड गैस, एनर्जी और कृषि सहित अलग सेक्टर में बिजनेस मॉडल का प्रशिक्षण अपने विशेषज्ञों के माध्यम दिलाया। 

इसे विस्तार देते हुए अब हम महाराष्ट्र में स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच  अपनी कंपनी के माध्यम से इंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट प्रोग्राम (ईडीपी) चला रहे हैं। वहीं नौजवानों को उद्यमशीलता के क्षेत्र में तमाम मार्गदर्शन भी दे रहे हैं। 

महाराष्ट्र के 36 जिलों में 18 हजार उद्यमी तैयार करने के वहां की राज्य सरकार के एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को भी हम क्रियान्वित कर रहे हैं।  इंटर्न एक्सपर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की  हमारी वेबसाइट है। जिसके माध्यम से नौजवान संपर्क कर सकते हैं। 

'हरिभूमि' में 6 फरवरी 2025 को प्रकाशित

 

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