Saturday, December 17, 2011

हम क्यूबा के लोगों की रगों में बहता है हिंदुस्तानी खून


ओसिरिस ओवियडो डी ला तोरे से चर्चा करते जाकिर

वल्र्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस की डिप्टी जनरल सेक्रेट्री से खास बातचीत
उनका चेहरा-मोहरा हिंदुस्तानी है और माथे के उपर झांकती सफेदी कुछ-कुछ इंदिरा गांधी सी भी लगती है। ऐसे में यह शिना त करना मुश्किल है कि अंतरराष्ट्रीय संस्था वल्र्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस की डिप्टी जनरल सेक्रेट्री ओसिरिस ओवियडो डी ला तोरे मूलत: स्पेनिश भाषी क्यूबा की नागरिक है। यहां एक्टू के राष्ट्रीय स मेलन में भाग लेने आई ओसिरिस ने शनिवार को ‘भास्कर’ से खास बातचीत में न सिर्फ हिंदुस्तान से अपने लगाव को बताया बल्कि क्यूबा, अमेरिका और फिदेल कास्त्रो से जुड़े सवालों पर भी वह खुल कर बोलीं।
इंडिया और इंडियन सुन कर बेहद उत्साहित ओसारिस ने कहा-हमारे पूर्वज इंडियन थे, फिर 1495 में जब स्पेनिश जहाज क्यूबा पहुंचे तो उन व्यापारियों ने मजदूरी के लिए बड़ी सं या मे अफ्रीकन लोगों को भी लाया। इस तरह आज के क्यूबा में इंडियन, स्पेनिश और अफ्रीकन लोगों की ही पीढिय़ा रह रही हैं। हमारी रगों में हिंदुस्तानी खून बह रहा है। मैं पूरे दावे के साथ तो नहीं कह सकती कि मेरे पूर्वज दिल्ली, मुंबई या जयपुर से आए थे, बस इतना पता है कि वो इंडियन थे। इंडियन पर्सनालिटी की आप बात करेंगे तो मैं सिर्फ महात्मा गांधी
को जानती हूं, क्योंकि मैनें बचपन में स्कूल की किताबों में उनके बारे में पढ़ा था। अब भी मैं गांधी जी के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुक रहती हूं। मैं बार-बार इंडिया आती रहती हूं लेकिन यहां का खाना खाते हुए कई बार मेरे आंसू निकल जाते हैं। हमारे इंडियन लोग इतना तेज मसाला और नमक कैसे खा लेते हैं, मुझे तो बेहद तकलीफ होती है। यहां भिलाई में दो दिन से मैं उबला हुआ भोजन ले रही हूं। बाकी इंडियन ट्रेडिशन और कल्चर की तो बात मत पूछिए। फेडरेशन की गतिविधियों से जब भी मुझे फुरसत मिलती है मैं स्पेनिश सब टाइटिल वाली इंडियन मूवी जरूर देखती हूं। आप मुझे नाम पूछेंगे तो नहीं मालूम लेकिन दो साल पहले एक गरीब बच्चे की मिलेनियर बनने वाली फिल्म और एक विशेष बीमारी से पीडि़त मुस्लिम युवक पर अमेरिका में बीतने वाली कहानी पर बनीं फिल्म मुझे बेहद पसंद आई। (उनका मतलब स्लम डॉग मिलेनियर और माइ नेम इज खान से था)। मुस्लिम युवक वाली फिल्म मैनें दो-तीन मरतबा देखी और मैं बहुत भावुक हो गई। यहां भिलाई में ज्यादा कुछ देखने का मौका नहीं मिला, आते-जाते जो हरियाली दिखी उसने मुझे बहुत ही इंप्रेस किया।

आज भी प्रेरणा दे रहे हैं कास्त्रो

ओसारिस ने क्यूबा और पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के बारे में सवालों का जवाब देते हुए कहा कि हमारे नेता कास्त्रो आज बढ़ती उम्र की वजह से ज्यादा अस्वस्थ हो गए हैं लेकिन वह लगातार लिख रहे हैं और हम क्यूबा वासियों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। जहां तक कास्त्रो के बाद का सवाल है तो अभी उनके भाई राउल कास्त्रो राष्ट्रपति हैं। नीतियां तो बदली नहीं है। आज क्यूबा आर्थिक सुधार के दौर से गुजर रहा है, इसके बावजूद वहां बड़े उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों का निजीकरण नहीं किया गया है। एक सवाल के जवाब में ओसारिस ने कहा कि अमेरिका के खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहने की वजह से क्यूबा ने बहुत कुछ भुगता है। लेकिन इसे लेकर हम चिंतित नहीं है। अमेरिका आज भी हमारे देश पर कई प्रतिबंध लगाए हुए है और हमारे नेता फिदेल कास्त्रो पर अब तक 200 से ज्यादा जानलेवा हमले अमेरिका की शह पर हो चुके हैं। इसके बावजूद फिदेल आज हम सब के बीच हैं और हम लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।

बांग्लादेश में नई बात नहीं है विनिवेश : आलम

महबूबुल आलम से चर्चा करते जाकिर
बांग्लादेश ट्रेड यूनियन सेंटर के नेता अबू कौसर  मोहम्मद महबूबुल आलम ने ‘भास्कर’ से चर्चा करते हुए बताया कि उनके यहां दो दशक से दो दलीय शासन है। अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अपनी ट्रेड यूनियन है, उसके बाद हमारी ट्रेड यूनियन के सर्वाधिक सदस्य हैं। दोनों प्रमुख दलों के बाद बची ट्रेड यूनियनों का संचालन वहां काफी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि किसी भी संगठित या असंगठित क्षेत्र में मजदूर इन तीसरे पक्ष की यूनियनों से जुडऩा चाहते हैं तो उन्हें रजिस्ट्रेशन के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है।
हमारे यहां विनिवेश या निजीकरण कोई नई बात नहीं है। जूट, शक्कर, टेक्सटाइल और स्टील मिलों मे 1971 के बाद से जबरदस्त विनिवेश हुआ है। ऐसे में आज 10 प्रतिशत से भी कम उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के रह गए हैं। बांग्लादेश की आर्थिक हालत किसी से छिपी नहीं है। विश्व बैंक का दबाव हमारी सरकारों पर रहता है कि वो विदेशी निवेश ज्यादा से ज्यादा करें। इसके लिए हम बांग्लादेशी बिल्कुल भी राजी नहीं है। हम लोग चाहते हैं कि विदेशी निवेश हो लेकिन हमारी शर्तों पर। हमारे यहां गैस का प्रचुर भंडार है। हम लोग गैस खोजते हैं और उसे निकालने विदेशी आकर भारी मुनाफा कमाए यह मंजूर नहीं होगा। इसलिए हमारे यहां इंजीनियर शेख मोह मद सइदुल्लाह के नेतृत्व में 10 साल से आंदोलन चल रहा है और कई मोर्चों पर हमें कामयाबी भी मिली है। बांग्लादेश के भविष्य को लेकर मैं इसलिए आशान्वित हूं, क्योंकि अब वहां जनता पहले से ज्यादा जागरुक हो गई है।

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