Wednesday, November 1, 2017

55 साल का नाता छूट न सका तो केरल में बना लिया 'भिलाई हाउस'

भिलाई में अपनी आधी जिंदगी बिताने वाले अबूबक्र का केरल का घर है एक मिसाल  

केरल में अबूबक्र अपने भिलाई हाउस के सामने 
इस्पात नगरी भिलाई से अपना लगाव सुदूर केरल जाकर भी भुला नहीं पाए अबूबक्र। आज भले ही वो अपने जन्मस्थान में लौट गए हैं लेकिन रह-रह कर उन्हें अपने भिलाई की याद सताती है।
भिलाई में बिताए दिनों की याद कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी तो केरल में अबूबक्र ने अपने मकान का नाम ही 'भिलाई हाउस' रख दिया। आज उनका यह भिलाई हाउस' सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच खासा चर्चित हो गया है वहां के लोगों के लिए एक लैंडमार्क बन गया है।
केरल के त्रिशूर जिले के काटूर गांव निवासी एए अबूबक्र 1958 में अपने दूसरे रिश्तेदारों के साथ भिलाई पहुंचे थे। यहां उन्होंने भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी तो नहीं की लेकिन रोजी-रोटी के लिहाज से भिलाई-तीन में टेलरिंग की एक छोटी सी दुकान खोल ली।
शुरूआत में उनका इरादा कुछ साल बाद केरल लौट जाने का था लेकिन बाद देखते ही देखते बरस बीतते गए और अबूबक्र व उनका परिवार पूरी तरह भिलाई का ही हो कर रह गया। उनके बच्चे  और दूसरे रिश्तेदार भिलाई स्टील प्लांट, निजी व्यवसाय सहित अलग-अलग क्षेत्रों में व्यस्त हैं। करीब 55 साल बाद इस वृद्धावस्था में जब उन्हें अपने जन्मस्थान लौटना पड़ा तो उनके लिए एक पीड़ादायक अनुभव था। पुरखों की जमीन में लौटते हुए अबूबक्र अपने साथ भिलाई की यादें लेकर गए।
चार साल पहले वहां जब उन्होंने अपने नए मकान में कदम रखा तो भिलाई की उन्हीं यादों को ताजा करते हुए इसका नाम 'भिलाई हाउस' रख दिया। पिछले हफ्ते भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर डीजीएम जीएस सेंगर अपने पारिवारिक मित्र और यहां सीआईएसएफ  में कार्यरत सीएम रफीक के साथ केरल पहुंचे तो भिलाई हाउस देखकर उनकी भी खुशी का ठिकाना न रहा।
अबूबक्र दरअसल रफीक की अम्मी के मामा लगते हैं। सेंगर ने बताया कि भिलाई का नाम आते ही अबूबक्र बेहद भावुक हो जाते हैं। खास कर अगर कोई भिलाई से पहुंच जाए तो अबूबक्र के लिए वह दिन बेहद खुशी का होता है। सेंगर के मुताबिक अबूबक्र ने मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी साथ ही भिलाई में बिताए दिनों को हर पल याद करते रहे।
रफीक बताते हैं कि अबूबक्र यहां भिलाई-तीन मेें 50 साल रहे हैं। वहीं अब भी बहुत से रिश्तेदार भिलाई में रहते ही हैं। इसलिए भिलाई से रिश्ता तो बना हुआ है और इसी रिश्ते की पहचान के तौर पर उन्होंने अपने घर का नाम 'भिलाई हाउस' रखा है। रफीक ने बताया कि अक्सर त्रिशूर जिले में भिलाई से रिटायर हो कर गए लोग उनके मकान की नेमप्लेट देखकर अंदर जरूर आते हैं और फिर भिलाई की यादें मिल बैठकर ताजा करते हैं।
भिलाई की यादों के सहारे लगता है यहां मन 
हरिभूमि भिलाई 6 अक्टूबर 2017 में प्रकाशित खबर 
केरल से फोन पर चर्चा करते हुए एए अबूबक्र ने बताया कि 1958 में जब वो भिलाई पहुंचे थे तो भिलाई स्टील प्लांट कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। बहुत सारे मजदूरों को मैं देखता था कि सब जाते अच्छे कपड़ों में हैं और लौटते हुए ग्रीस-आइल में लिपे-पुते आते हैं तो मुझे कुछ अटपटा लगा। फिर उन दिनों मजदूरों की मौत बहुत ज्यादा होती थी। इसलिए भले ही मेरे सारे रिश्तेदार बीएसपी में लग गए लेकिन मैनें नौकरी नहीं की। हालांकि भिलाई का माहौल मुझे भा गया तो वहीं रहने लग गया।
55 साल में पूरे 45 साल मैं किराए के मकान में रहा। इस दौरान मैं कैम्प-4 (खुर्सीपार) और तितुरडीह दुर्ग में भी रहा। भिलाई तीन में टेलरिंग की शॉप से परिवार चल गया, इसलिए कहीं जाने का सवाल ही नहीं था। अभी भी मेरा बड़ा बेटा नौशाद कवर्धा में और छोटा बेटा शाहजहां भिलाई-तीन में रहते हैं।
पुरखों की जमीन में केरल लौटना था, इसलिए आना पड़ा। अपने घर का नाम 'भिलाई हाउस' रख लिया जिससे कि भिलाई की याद ताजा होती रहे और किसी को पता पूछने में दिक्कत न हो। सच बताऊं तो यहां उतना मन नहीं लगता है। गांव के ज्यादातर लोगों के बच्चे गल्फ  में हैं। मेरे बच्चों के बच्चे भी दूसरे शहरों में पढ़ रहे हैं। बहुत कम मौका आता है, जब पूरा परिवार इकट्ठा होता है। नहीं तो भिलाई की यादों के सहारे दिन कटते हैं। 

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