नेकदिल बल्लो, भिलाई वाली खाला और पुत्तर संजू
(''संजू ''देखने के बाद जो कहने का दिल हुआ )
----मुहम्मद जाकिर हुसैन ----
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सुनील दत्त-संजय दत्त, नरगिस और सावित्री बख्शी |
दत्त आज के पाकिस्तान के हिस्से में पडऩे वाले झेलम के पिंडदादन के मूल निवासी थे। बंटवारे के खून-खराबे में उनके खानदान के चंद जिंदा बचे लोगों में एक उनकी खाला (मौसी) सावित्री बख्शी भी थीं, जो बाद के दौर में दिल्ली से अपने पति तीरथराम बख्शी के साथ भिलाई आ गईं थीं।
बख्शी साहब भिलाई स्टील प्लांट में इंजीनियर थे। पति के गुजरने के बाद श्रीमती बख्शी यहां 38 ओल्ड नेहरू नगर नेहरू नगर में अपने बेटों के साथ रहती थीं। वे सुनील दत्त के पिता दीवान रघुनाथ दत्त के बड़े भाई दीवान पिंडी दास दत्त की पत्नी कौशल्या की सगी बहन थीं।
श्रीमती बख्शी से सुनील दत्त और संजय दत्त प्रकरण पर मेरी 2-4 बार बात हुई थी। सुनील दत्त इनके संपर्क में हमेशा रहे और जब भी वो भिलाई या रायपुर आए तो वक्त निकाल कर नेहरू नगर उनसे मिलने उनके घर भी गए थे श्रीमती बख्शी ने ही मुझे बताया था कि बलराज दत्त (सुनील दत्त) का घर का नाम बल्लो था।बल्लो की नेकदिली की ना सिर्फ दुनिया कायल थी बल्कि घर-परिवार के लोगों के बीच भी उनका मरतबा काफी ऊंचा था। 25 मई 2005 को सुनील दत्त गुजरे तो उस रोज शाम को मेरी श्रीमती बख्शी से लंबी बातचीत हुई थी।
नरगिस का आखिरी सफर और ''दर्द का रिश्ता''
तब बंटवारे का दौर याद करते हुए उन्होंने बताया था कि बल्लो सहित हम कुछ ही लोग दंगे में बच पाए थे। हम लोगों ने हिंदुओं का जैसा कत्लेआम वहां देखा,ठीक वैसे ही यहां मुसलमानों का कत्लेआम चल रहा था। इसलिए बल्लो ने भारत पहुंचने के बाद उस दौर में विभाजन के पीडि़त हिंदु-मुस्लिम की मदद के लिए दिन रात एक कर दिया था।
उसकी यही नेकदिली आखिरी दम तक रही। तब नरगिस दत्त (मूल नाम-फातिमा रशीद) के अंतिम संस्कार का भी जिक्र निकला था। परिवार के सदस्य के तौर पर मौजूद रहीं श्रीमती बख्शी ने उस दुखद घड़ी के बारे में बताया था ।
उनके मुताबिक 4 मई 1981 को दोनों परिवारों के आपसी समझौते के तहत नरगिस के शव को घर से हिंदु सुहागन के तौर पर सारे रीति-रिवाज के साथ निकाला गया था। कुछ दूर चलने के बाद दोनों पक्षों की मौजूदगी में मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में जनाजे की नमाज के बाद उन्हें मुस्लिम परंपरा के अनुसार दफन किया गया था।
उसकी यही नेकदिली आखिरी दम तक रही। तब नरगिस दत्त (मूल नाम-फातिमा रशीद) के अंतिम संस्कार का भी जिक्र निकला था। परिवार के सदस्य के तौर पर मौजूद रहीं श्रीमती बख्शी ने उस दुखद घड़ी के बारे में बताया था ।
उनके मुताबिक 4 मई 1981 को दोनों परिवारों के आपसी समझौते के तहत नरगिस के शव को घर से हिंदु सुहागन के तौर पर सारे रीति-रिवाज के साथ निकाला गया था। कुछ दूर चलने के बाद दोनों पक्षों की मौजूदगी में मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में जनाजे की नमाज के बाद उन्हें मुस्लिम परंपरा के अनुसार दफन किया गया था।
संजय दत्त की बात निकलने पर श्रीमती बख्शी ने एक ही शब्द कहा था-''बल्लो का बेटा गलत सोहबत की वजह से बिगड़ा।'' उनके यही शब्द बाद में ''हरिभूमि'' में संजय दत्त पर मेरी एक स्टोरी की हेडिंग बने थे।
आर्य समाज भिलाई की संस्थापक सदस्य रहीं सावित्री बख्शी का 8 नवंबर 2011 को 94 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया था। वे सतीश चंद्र छिब्बर, सुभाष चंद्र छिब्बर, जितेंद्र बख्शी और सुमन बाली की मां थीं। उनके इकलौते भाई रिटायर लेफ्टिनेंट कर्नल मदन मोहन बाली देहरादून में रहते हैं।
इतना लंबा लिखने की वजह यह थी कि संजू देखते वक्त 2-3 बातें मेरे दिमाग में चल रही थी। एक हद तक यह संजय दत्त की पीआर फिल्म भी लगी लेकिन इसमें दर्शकों का 'दर्द का रिश्ता' सुनील दत्त के साथ ज्यादा जुड़ता है, यह मैनें अनुभव किया।
आर्य समाज भिलाई की संस्थापक सदस्य रहीं सावित्री बख्शी का 8 नवंबर 2011 को 94 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया था। वे सतीश चंद्र छिब्बर, सुभाष चंद्र छिब्बर, जितेंद्र बख्शी और सुमन बाली की मां थीं। उनके इकलौते भाई रिटायर लेफ्टिनेंट कर्नल मदन मोहन बाली देहरादून में रहते हैं।
इतना लंबा लिखने की वजह यह थी कि संजू देखते वक्त 2-3 बातें मेरे दिमाग में चल रही थी। एक हद तक यह संजय दत्त की पीआर फिल्म भी लगी लेकिन इसमें दर्शकों का 'दर्द का रिश्ता' सुनील दत्त के साथ ज्यादा जुड़ता है, यह मैनें अनुभव किया।
'बिरजू'' का अवतार और कौन होगा वो राजनेता..?
विश्व सिनेमा की धरोहर महबूब खान की ''मदर इंडिया'' में विद्रोही बिरजू की भूमिका सुनील दत्त ने की थी,जिसमें राधा (नरगिस) गांव की इज्जत पर आंच आते देख अपने बेटे बिरजू को गोली मार कर खुद इंसाफ कर देती है। नरगिस और सुनील दत्त ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा कि बिरजू उनकी गोद आए। हालांकि नरगिस तो अपने बेटे को ''बिरजू'' के अवतार में पूरा ढलते नहीं देख पाई लेकिन सुनील दत्त ने अपनी आखिरी सांस तक अपने पुत्तर बिरजू की सारी ''कलाएं'' देखी।
हकीकत की जिंदगी अगर सिनेमा होती तो मुमकिन था कि सुनील दत्त खुद ''मदर इंडिया'' बन कर अपने बिरजू का ''इंसाफ'' कर देते लेकिन हकीकत और फसाने के बीच की महीन लकीर का यही बड़ा फर्क है। फिल्म देखते हुए कुछ कोड को डि-कोड करने की कोशिश कर रहा था। मसलन दिल्ली में संजू अपने दोस्त के साथ जिस राजनेता से मिलने जाता है, वो कौन हो सकता है..? अंटा गफील हालत में छड़ी थामे बैठे इस राजनेता की भूमिका अंजन श्रीवास्तव ने बेहद प्रभावी ढंग से की है।
वह पूरा दृश्य देखकर नेता प्रतिपक्ष (1993-1997 ) रहे अटल बिहारी बाजपेयी, कांग्रेस अध्यक्ष (1996 से 1998) रहे सीताराम केसरी और केंद्रीय गृहमंत्री (1991-1996) रहे शंकरराव भाऊराव चव्हाण की तरफ मेरा ध्यान गया लेकिन अभी भी समझ नहीं आ रहा है कि वो घाघ राजनेता इन तीनों में से एक था या कोई और..?
छूट गए बहुत से प्रसंग, हीरानी के जरिए संजू ने कही अपने मन की बात

दर्शक और समीक्षक संजय दत्त के जीवन के दूसरे कई प्रसंग भी परदे पर देखना चाहते थे लेकिन हीरानी ने ''भाईचारा'' निभाते हुए बहुत कुछ गायब कर दिया है। संजू की पहली प्रेमिका (अब बड़े घर की बहू) का अंदाज लगाने उन्होंने मामला दर्शकों के विवेक पर छोड़ दिया है।
दर्शक होने के नाते मेरा भी मानना है कि इसमें बाल ठाकरे वाला प्रसंग होना था। लेकिन हीरानी इससे भी बचे हैं। हालांकि फिल्म रिलीज होने के बाद उस रोज का यह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है।जिसमें मध्यस्थता करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा सहज भाव से बाल ठाकरे के बाजू बैठे हैं और सुनील दत्त पूरी क्लिप में बेहद असहज नजर आ रहे हैं।
ध्यान से देखेंगे तो एक जगह सुनील दत्त के ठीक बाजू उनके समधी जुबली स्टार राजेंद्र कुमार भी नजर आते हैं। किस्सा मुख्तसर ये कि संजू बाबा जैसे उत्पाती बच्चे हर दौर में हर घर या खानदान में जन्म लेते रहते हैं। लेकिन सभी को सुनील दत्त जैसा बाप और राजकुमार हिरानी जैसा फिल्म निर्माता-निर्देशक नहीं मिलता। वैसे भी सिनेमा आधी हकीकत आधा फसाना का बेजोड़ संगम है। इसलिए हीरानी के जरिए संजू बाबा ने अपनी कहानी कह दी। इसे दिल पे नई लेने का...
बहुत बढ़िया लिखा ज़ाकिर भाई
ReplyDeleteधन्यवाद शरद भाई
Deleteज़ाकिर भाई, मेरा सौभाग्य है कि मेरे स्वर्गीय पिता चूंकि आर्य समाज भिलाई के संस्थापक थे इसलिए आदरणीय सावित्री बक्षी जी को मैंने बहुत करीब से जाना है वे एक बहुत ही नेक दिल धर्मपरायण महिला थीं। इस लेख में उनके ज़िक्र से उनको याद कर मेरी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं ।
ReplyDeleteहां संजू फ़िल्म का जहां तक सवाल है मुझे ये बहुत ही पसंद आई और जिसके विषय में मेरे विचारों को फ़िल्म के बाद एक चैनल ने लिया था और उनको टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रचारित किया था जिसको मैंने आपको भी भेजा था ।
आपको बहुत धन्यवाद कि आपके यादों के पिटारे से निकले लेखों से मैं फिर से अपना पिटारा खोल पाता हूँ । 1955 से 1980 और फिर 1990 से 1994 तक का भिलाई का सफर तो मेरी धरोहर है ।
आपको पुनः धन्यवाद ।
राकेश मोहन विरमानी
DeleteBeautifully written blog by Hussain sahab regarding Mohammad Rafi Night at Rajhara on his 'Punnyatithi'. Great to know that he has sung 2 chattisgarhi songs. Rafi Sahab will always remain in the heart of every Indian.
ReplyDeleteExellent collection,,,Dr Praveen Vishwakarma Education
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