Monday, November 19, 2018


कुथरेल, भाठागांव से वैशाली नगर

तक  कटता-बंटता हमारा  भिलाई नगर 


कैसे बनी भिलाई विधानसभा, कौन बने पहले

 विधायक, कैसे हुआ था चुनाव, जानिए सब कुछ  


मुहम्मद ज़ाकिर हुसैन 

1952 में तत्कालीन मध्यप्रांत (सीपी-बरार) के पहले विधानसभा चुनाव में आज का भिलाई विधानसभा अस्तित्व में नहीं था। इसलिए दुर्ग शहर के बाद शुरू होने वाले ग्रामीण इलाकों में कुथरेल से लेकर भिलाईकलां (आज का भिलाई-तीन) तक का हिस्सा कुथरेल विधानसभा घोषित किया गया था। बाद के चुनाव में भिलाई विधानसभा बनीं लेकिन तब से करीब 60 साल में लगभग हर दूसरे या तीसरे विधानसभा चुनाव में  भिलाई विधानसभा का स्वरूप बदलता गया।
बात करें 1952 के विधानसभा चुनाव की तो तब आज के भिलाई के अंतर्गत आने वाले 40 से ज्यादा गांव कुथरेल विधानसभा के अंतर्गत आते थे। इस पहले चुनाव में इसके बाद तब इस क्षेत्र में कुरूद, कोहका, सुपेला, अकलोरडीह, जरवाय,दादर, पथर्रा, चरोदा, जुनवानी, कातुलबोड़,  कोसा, आमदी, रूआबांधा,  बावली, नवागांव, मरोदा, सोमनी, गनियारी, मोरिद, कोहका-कुरूद, देवबलोदा, सिरसाकलां,पचपेड़ी, कोरसा, पहंडोर,बेदरी, घुघवा, परेवाडीह, महकाकलां, मुड़पार, ढौर, पतोरा, चुनकट्टा, नेवई, डुंडेरा, डूमरडीह, अचानकपुर, गोड़पेंड्री, राखी फुंडा, चोरहा, जंजगिरी, उरला, कुकदा और परसदा गांव शामिल थे।
पहले विधानसभा चुनाव के लिए 27 मार्च 1952 को मतदान हुआ। जिसमें कुथरेल विधानसभा क्षेत्र के कुल 54 हजार 94 मतदाताओं में 20 हजार 432 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और 38 प्रतिशत मत पड़े। इस चुनाव में विजेता सोशलिस्ट पार्टी के तिलोचन सिंह को 8522 मत मिले थे और पराजित प्रत्याशी कांग्रेस के मोहनलाल बाकलीवाल को 6575 मत मिले थे। वहीं रामराज्य पार्टी के लाल दशरथ सिंह को 2755 और एससीएफ के रनडोल को 1,658 मत मिले थे।
 भारत सरकार और सोवियत संघ के बीच करार
हालांकि तब तक भिलाई की परिकल्पना मूर्त रूप नहीं ले सकी थी। इस चुनाव के उपरांत 2 फरवरी 1955 को मध्यभारत में 10 लाख टन सालाना हॉट मेटल उत्पादन क्षमता का कारखाना लगाने भारत सरकार और सोवियत संघ के बीच करार हुआ।
इस दौरान औपचारिक रूप से यह तय नहीं था कि कारखाना भिलाई में लगेगा या कहीं और लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू और मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल की दूरदर्शिता का नतीजा था कि इस समझौते के अगले ही दिन 3 फरवरी 1955 को भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के नाम से भारत सरकार ने दुर्ग जिले के 47 गांवों के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी थी।
इसके करीब डेढ़ महीने बाद 14 मार्च 1955 को नए स्टील प्लांट के लिए भारत सरकार और सोवियत संघ ने मिल कर भिलाई को अधिकृत तौर पर मंजूरी दी। नया नगर बसने के साथ ही यहां की राजनीतिक हलचल भी शुरू होने लगी। शुरूआत में भिलाई के नाम पर 47 गांवों की जमीन अधिग्रहित कर यहां नया नगर बसाना शुरू किया गया।
इस बीच 1 नवंबर 1956 को नए मध्यप्रदेश की स्थापना हुई। इधर 1957 आते तक भिलाई स्टील प्रोजेक्ट में कारखाने का शुरूआती काम चल रहा था और सेक्टर-1, सेक्टर-10, रायपुर नाका और भिलाई हाउस का निर्माण हो चुका था। वहीं शेष गांवों की जमीन पर सेक्टर बन रहे थे।
 ऐसे में भारत के निर्वाचन आयोग ने कुथरेल विधानसभा में शामिल ग्रामीण इलाकों को काटते हुए नए शहर भिलाई के नाम से एक अलग विधानसभा बनाई। हालांकि तब भी भिलाई विधानसभा का दायरा लगभग 55 किमी का था। जिसमें आखिरी सीमा जामगांव रनचिरई से लगे भाठागांव तक जाती थी। जिसमें करीब 80 फीसदी इलाका अनुसूचित जाति-जनजाति बाहुल्य था। ऐेसे में तब के कानून के अनुसार भिलाई को दोहरी सदस्यता वाली विधानसभा घोषित किया गया।
हरिभूमि 10 नवंबर 2018 
इसके उपरांत 1962 के आम चुनाव हुए। जिसमें केंद्र सरकार ने दोहरे निर्वाचन की व्यवस्था समाप्त कर अजा-जजा के लिए अलग से सीट रिजर्व कर दी। जिसमें भिलाई भी शामिल था। 1962 चुनाव से पहले भिलाई विधानसभा का एक बड़ा  विभाजन हुआ। जिसमें कुथरेल से लेकर उतई और भाठागांव तक इलाके को लेते हुए गुंडरदेही विधानसभा का गठन किया गया। 
इसके बाद 1967 में भिलाई विधानसभा का फिर विभाजन हुआ। जिसमें  गुंडरदेही और भिलाई विधानसभा का हिस्सा और पाटन क्षेत्र का हिस्सा लेकर भाठागांव विधानसभा का गठन किया गया। भिलाई विधानसभा का अगला विभाजन 1977 के चुनाव में हुआ। जिसमें भाठागांव विधानसभा को विलोपित कर वहां का और भिलाई का कुछ हिस्सा मिलाते हुए पाटन विधानसभा का गठन किया गया। 
वहीं भिलाई विधानसभा में शामिल दुर्ग की ओर के ग्रामीण हिस्से और गुंडरदेही के कुछ क्षेत्रों को लेते हुए एक और नई विधानसभा खेरथा बनाई गई। नया राज्य बनने के बाद 2008 के विधानसभा चुनाव से पूर्व फिर एक बार परिसीमन हुआ। जिसमें भिलाई विधानसभा का पटरी पार का इलाका लेते हुए नई विधानसभा सीट वैशाली नगर बनाई गई। इस तरह 1957 में अपने जन्म से अब तक भिलाई विधानसभा हर दूसरे तीसरे चुनाव में कंटते और बंटते हुए आज अपने मौजूदा स्वरूप में है।

भिलाई विधानसभा को जन्म के साथ पहले साल मिले थे दो आदिवासी और एक सामान्य वर्ग से  विधायक



भिलाई विधानसभा का जन्म 1957 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ हुआ था। इसमें रोचक तथ्य यह है कि इस पहले ही साल में भिलाई को तीन विधायक मिले। जिसमें साल खत्म होने से पहले ही उपचुनाव की नौबत गई। द्विसदस्यीय विधानसभा होने की वजह से भिलाई के पहले तीन विधायकों में दो आदिवासी और एक सामान्य वर्ग से थे।
उल्लेखनीय है कि तब के कानून के मुताबिक भिलाई में आदिवासी और सामान्य वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए एक ही सीट से दो सदस्यों का चुनाव हुआ था। कुथरेल विधानसभा को विलोपित कर 1957 में भिलाई विधानसभा का गठन किया गया था। इस चुनाव में आदिवासी प्रतिनिधित्व के लिए कांग्रेस को गोविंद सिंह ठाकुर खड़े थे और उनके विरुद्ध प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के गज थे। वहीं सामान्य वर्ग प्रतिनिधित्व के लिए कांग्रेस के उदयराम चुनाव मैदान में थे और उन्हें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के खिलावन सिंह ने चुनौती दी। भिलाई विधानसभा में मतदान 27 मार्च 1957 को हुआ। जिसमें गोविंद सिंह को 18096 और गज को 11643 मत मिले। वहीं उदयराम को 17922 मत और खिलावन सिंह को 12 हजार 578 मत मिले। इस तरह भिलाई के पहले निर्वाचन में कांग्रेस के गोविंद सिंह और उदयराम  को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। हालांकि होनी को कुछ और ही मंजूर था। आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे गोविंद सिंह ठाकुर चुनाव जीत तो गए लेकिन उनके स्वास्थ्य से साथ नहीं दिया।
हरिभूमि 14  नवंबर 2018 
भाठागांव (बालोद) मूल के निवासी गोविंद सिंह ठाकुर के भतीजे और रिटायर प्रिंसिपल हरिसिंह कतलम बताते हैं-गोविंद सिंह निर्वाचन के बाद मानसून सत्र में भाग लेने भोपाल विधानसभा भी गए और वहां से लौटने के बाद सख्त बीमार पड़ गए इसके बाद अगस्त 1957 में उनका निधन हो गया।  उनके निधन के कुछ दिनों बाद भिलाई विधानसभा में उपचुनाव की घोषणा कर दी गई। इस बार आदिवासी प्रतिनिधित्व के लिए भाठागांव के समीपस्थ ग्राम तमोरा (कानाकोट)तहसील पाटन के शिक्षक और कांग्रेसी नेता गोपाल सिंह ठाकुर को टिकट दी गई।
उपचुनाव के लिए भिलाई में मतदान 7 नवंबर 1957 को हुआ। जिसमें कांग्रेस के गोपाल सिंह को 17359 मत और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को योमन सिंह को  6664 मत मिले। इस तरह भिलाई के दूसरे आदिवासी विधायक बनने का अवसर गोपाल सिंह ठाकुर को मिला और एक ही साल 1957 में तीन विधायक गोविंद सिंह ठाकुर, गोपाल सिंह ठाकुर और उदयराम निर्वाचित हुए।
इसके बाद वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव में द्विसदस्यीय निर्वाचन की व्यवस्था खत्म कर दी गई। हालांकि  इस चुनाव में भिलाई आरक्षित आदिवासी सीट रही। जिसमें कांग्रेस से दूसरी बार गोपाल सिंह ठाकुर खड़े हुए और उन्हें 14391 मत मिले। वहीं उनके प्रतिद्वंदी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के योमन सिंह को 7002 मत मिले।
साल 1967 से भिलाई को सामान्य विधानसभा घोषित कर दिया गया। जिसमें विजेता कांग्रेस के धर्मपाल सिंह गुप्ता को 18796 और पराजित  भारतीय जनसंघ के सत्येंद्र नाथ साधु को 7498 मत मिले। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के फूलचंद बाफना को 31,948 और पराजित भारतीय जनसंघ के विशाल प्रसाद चंद्राकर को 12,627 मत, 1977 में विजेता जनता पार्टी के दिनकर डांगे को 26,975 और पराजित कांग्रेस  के फूलचंद बाफना को 19,594 मत मिले। 
हरिभूमि 16  नवंबर 2018 
1980 में विजेता कांग्रेस के फूलचंद बाफना को 20,967 और पराजित सीपीआई (एम) के पीके मोइत्रा को 12,177 मत,1985 में विजेता कांग्रेस के रवि आर्य को 31,839 और पराजित पराजित सीपीआई (एम) के पीके मोइत्रा को 30,608 मत मिले। 1990 के विधानसभा चुनाव में विजेता भारतीय जनता पार्टी के प्रेम प्रकाश पांडेय  को 36,878 मत और पराजित कांग्रेस के रवि आर्य को 31,384 मत, 1993 में विजेता भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय को 37,703 और पराजित कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी को 37,381मत,1998 में विजेता कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी को 56,012 और पराजित भाजपा के प्रेमप्रकाश पांडेय को 50,451 मत, 2003 के चुनाव में विजेता भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय को 75,749 और पराजित कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी को 60,745 मत, 2008 में विजेता कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी को 52, 848 मत और पराजित भाजपा के प्रेमप्रकाश पांडेय को 43,985 मत, 2013 में विजेता भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय को 55, 654 और पराजित कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी को 38,548 मत मिले।

 पहले तीन विधायकों के कामकाज पर नजर और चुनाव प्रचार का तरीका

नया मध्यप्रदेश राज्य 1 नवंबर 1956 को बना और इसके बाद अगला साल 1957 लोकसभा और विधानसभा चुनाव का रहा  भिलाई के लिए यह साल महत्वपूर्ण इसलिए रहा क्योंकि इस पहले ही साल भिलाई विधानसभा को तीन विधायक मिले। तीनों विधायकों का कामकाज अनूठा रहा और तब की प्रचार शैली भी अपने आप में अनूठी थी। इन तीनों शुरूआती विधायकों के परिजनों को आज भी वह दौर नहीं भूलता।

शिक्षा के लिए संकल्पित थे गोविंद दाऊ

हरिसिंह कतलम जी
 के साथ भाठागांव में 

भिलाई में द्विसदस्यीय निर्वाचन के तहत आदिवासी प्रतिनिधित्व के लिए हुए चुनाव में भाठागांव (बालोद) के मालगुजार गोविंद सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए थे। आज उनके परिजनों मेें ज्यादातर पुलिस प्रशासन, राज्य शासन से लेकर केंद्रीय सेवाओं में उच्च पदों पर हैं लेकिन संयोग से किसी के भी पास अब गोविंद दाऊ की फोटो तक नहीं है। गोविंद दाऊ के भतीजे और रिटायर प्रिंसिपल हरिसिंह कतलम (84 वर्षीय) बताते हैं-तब 27 मार्च को मतदान हुआ था और विधायक निर्वाचित होते ही उन्होंने सबसे पहले आदिवासी समुदाय की शिक्षा के लिए अपना संकल्प व्यक्त किया था। श्री कतलम बताते हैं-तब गोविंद दाऊ ने मुझसे स्कूल स्थापना के लिए दरख्वास्त बनाने कहा था। इसके बाद मैनें दरख्वास्त बना कर गांववालों के हस्ताक्षर लिए थे। फिर उनके रहते ही भाठागांव, गब्दी और परसाही में स्कूल खुल चुके थे। उनकी योजना भाठागांव से भिलाई के आखिरी छोर तक स्कूलों का जाल बिछाना था, जिससे वंचित तबके के बच्चे पढ़ सकें लेकिन किस्मत ने उन्हें मौका नहीं दिया और मानसून सत्र से लौटने के बाद वे गंभीर रूप से अस्वस्थ्य हो गए। जिसकी वजह से अगस्त 1957 में उनका निधन हो गया। श्री कतलम बताते हैं-तब चुनाव प्रचार में बहुत ज्यादा तामझाम नहीं था। कार्यकर्ता और हमारे रिश्तेदार साइकिल से दूर भिलाई तक प्रचार करने जाते थे। वहीं दाऊजी की चुनावी सभा को तब के कांग्रेसी मोहनलाल बाकलीवाल, केशवराम गुमाश्ता और मंगल प्रसाद सावर्णी सहित कई लोगों ने संबोधित किया था।

संशोधन प्रस्ताव रख हड़कंप मचा दी थी उदयराम ने
भिलाई के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के 
खिलाफ 

पंथराम जी के साथ
 उनके गांव मटंग में  
भिलाई विधानसभा के पहले चुनाव में सामान्य प्रतिनिधित्व के तहत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कांग्रेसी उदयराम ने जीत हासिल की थी। वर्तमान में पाटन के ग्राम मटंग में रह रहे उनके सुपुत्र और सर्वोदयी कार्यकर्ता पंथराम वर्मा (94 वर्षीय)बताते हैं-तब मुद्दा तो कोई खास नहीं था सिर्फ इतना ही कहना काफी था कि भिलाई खुल रहा है,सबको नौकरी मिलेगी और छत्तीसगढ़ में खुशहाली आएगी। 
प्रचार के लिए भाठागांव पाटन क्षेत्र से तमाम रिश्तेदार और कार्यकर्ता जुटे थे। जो साइकिल से भिलाई तक जाते थे और कई बार तो वहीं रूक भी जाते थे। सिर्फ एक जीप उदयराम जी के लिए थे। तब कांग्रेस पार्टी से नाम के लिए खर्च मिलता था बाकी घर से लगाना पड़ता था। पंथराम कहते हैं-''हमर मन के बाई मन के सब गाहना बेचा गे, चुनाव लड़ई म। अब हमर लइका बच्चा मन कहत हें विधायक रहे का काम कराये? एक ठन पक्का मकान नई बना सकिस, विधायक रही के। तो अंधेर हे। कइसन विधायक रहिस हे।''
उदयराम के योगदान पर वे बताते हैं-तब भिलाई के विधायक होने के अलावा वे प्रदेश की जल दर समिति (वाटर रेट कमेटी) के सदस्य भी थे।भिलाई स्टील प्लांट निर्माण का काम चल रहा था और केंद्र राज्य सरकार ने विशेष अनुबंध कर भिलाई को उसकी जरूरत का पूरा का पूरा पानी मुफ्त देना तय कर लिया था। 
जब उदयराम जी को पता लगा तो उन्होंने विरोध किया। इसके खिलाफ उन्होंने विधानसभा में संशोधन प्रस्ताव पेश किया। जिससे कांग्रेसजनों ने उन्हें घेरा भी लेकिन उनका तर्क था कि  हमको धनराशि मिलेगी तो विकास होगा। अंतत: उनका प्रस्ताव मंजूर हुआ और भिलाई के लिए पानी की दर तय हुई। इसके बाद जो राशि मिलने लगी उससे भिलाई के चारों तरफ नहरों को पक्का किया गया। मरोदा टैंक का निर्माण हुआ और नहरों के किनारे मोटर के लायक रोड बनाया गया। 1962 में वे गुंडरदेही से विधायक रहे। 23 जनवरी 1979 को उदयराम का निधन हुआ।

स्थानीय हितों के लिए संघर्ष करते रहे गोपाल सिंह

भिलाई के पहले आदिवासी विधायक गोविंद सिंह ठाकुर के अगस्त 1957 में आकस्मिक निधन के बाद नवंबर में हुए उपचुनाव में गोपाल सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए। श्री ठाकुर ने भिलाई का प्रतिनिधित्व 1957-1962 और 1962-1967 के कार्यकाल में किया।
तुलसीराम जी के साथ पाटन में 
पाटन निवासी उनके पुत्र तुलसीराम ठाकुर बताते हैं भिलाई इस्पात संयंत्र में नौकरी के दौरान स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिलाने, आसपास के विकास कार्य और सामाजिक उत्थान में उनका योगदान रहा। इसके लिए उन्होंने दोनों कार्यकाल में स्थानीय स्तर से लेकर विधानसभा तक में आवाज उठाई। उनका निधन 4 जुलाई 1989 को हुआ था।
तुलसीराम ठाकुर बताते हैं कि स्व गोपाल ठाकुर एक निर्भीक आदिवासी विधायक थे और अपनी बात रखने के लिए अपने दौर के मुख्यमंत्रियो रविशंकर शुक्ल,भगवंतराव मंडलोई, कैलाश नाथ काटजू और द्वारिका प्रसाद मिश्रा तक के सामने अड़ जाते थे। क्षेत्र के विकास के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे । उन्होंने पूरा जीवन समाजसेवा में होम कर दिया। उनके आदर्शों पर चलते हुए उनकी पत्नी श्रीमती बिन्दुमति ठाकुर ने भी एक अलग मिसाल क़ायम की। श्रीमती ठाकुर पाटन कन्या शाला में प्रधान पाठिका थीं और पूरा जीवन उन्होंने बालिका शिक्षा को बढावा देने में लगा दिया। उन्हें पुरे पाटन-भाठागांव क्षेत्र में बड़ी बहनजी के नाम से जाना जाता था
क्रमशः 
पिछली क़िस्त
कभी हम एक ही क्षेत्र से चुनते थे दो विधायक और दो सांसद 
समापन क़िस्त 
जब प्रचार के अखिरी दौर में पलट गई थी बाज़ी, ज़िले की पहली चुनावी याचिका 

4 comments:

  1. बहुत बढ़िया रिपोर्ट सर🙏

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  2. बहुत बढ़िया रिपोर्ट सर🙏

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  3. अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद

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  4. Y jankari dene ke liye aap ko bhut bhut dhnywad.

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