Thursday, January 16, 2020

 बीएसपी कर्मियों पहल पर बीएसपी की मदद

  से शुरू हुआ था भिलाई का पहला कालेज


इस्पात नगरी भिलाई में उच्च शिक्षा की नींव रहे दो विभूतियों की याद में

 
कल्याण कॉलेज की शुरुआती टीम  संसद मोहनलाल बाकलीवाल के साथ इनमे ठीक बाएं सबसे पहले प्रो ठाकुर नज़र आ रहे हैं

 मुहम्मद जाकिर हुसैन
60 का दशक जब भिलाई स्टील प्रोजेक्ट मूर्त रूप ले रहा था। ऐसे दौर में प्रोजेक्ट की ओर से बमुश्किल कुछ स्कूल ही शुरू हो पाए थे, तब उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की कल्पना भी बेमानी थी। ऐसे दौर में भिलाई स्टील प्लांट के कुछ कर्मियों ने इस दिशा में सोचा और बीएसपी की नौकरी करते-करते एक निजी कॉलेज की नींव डाली। बात इस्पात नगरी भिलाई में उस दौर में स्थापित होने वाले कल्याण कॉलेज सेक्टर-7 की है। इस कॉलेज की शुरूआत करने वाली छत्तीसगढ़ कल्याण समिति के दो प्रमुख स्तंभ रामेश्वर प्रसाद मिश्र और प्रो. तोरण सिंह ठाकुर हाल ही में 4 महीने के अरसे में दिवंगत हुए। मिश्रा जहां मृत्युपर्यंत छत्तीसगढ़ कल्याण समिति के अध्यक्ष रहे वहीं प्रो. ठाकुर कल्याण कॉलेज में सर्वाधिक समय तक रहने वाले प्राचार्य थे।
60 के दशक में जब भिलाई की नींव का काम चल रहा था तब प्रो. ठाकुर बीएसपी के सेक्टर-1 ट्यूबलरशेड के पहले स्कूल में शिक्षक हो गए थे। वहीं मिश्र यहां बीएसपी के विधि विभाग में रहे और चीफ लॉ आफिसर के पद से रिटायर हुए। प्रो. ठाकुर 22 अक्टूबर 2019 को दिवंगत हुए और रामेश्वर प्रसाद मिश्रा का 11 जनवरी 2020 को निधन हुआ।
  इन दोनों विभूतियों का इस्पात नगरी भिलाई की उच्च शिक्षा की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।कल्याण कॉलेज का विद्यार्थी होने के नाते मैंने प्रो ठाकुर की कार्यशैली को क़रीब से देखा है कालेज के दिनों में तो उनसे मार्गदर्शन मिलता ही था लेकिन बाद के दिनों में सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे प्रो. ठाकुर अक्सर शहर में कहीं न कहीं मिल ही जाते थे उनसे काफी बातें होती थी. पत्रकारिता में आने के बाद मुझे प्रोफ़ेसर ठाकुर का कोई औपचारिक इंटरव्यू लेने का मौक़ा तो नहीं मिला लेकिन कॉलेज के चैयरमेन रामेश्वर प्रसाद मिश्रा से 2006 में लम्बी बातचीत का योग बना थायह इंटरव्यू तब ''हरिभूमि'' में विस्तार से प्रकाशित हुआ था वही इंटरव्यू यहाँ उन्हें श्रद्धांजलि स्वरुप 
 

भवन, दरी और पेट्रोमैक्स किराए के लेकिन जज़्बा था खुद का

            रामेश्वर प्रसाद मिश्र                    प्रो टीएस ठाकुर                     
60 का दशक छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के लिहाज से सुविधा-साधनविहीन था। तब रायपुर के दुर्गा कालेज की मान्यता सागर विश्वविद्यालय से थी। मैंने दुर्गा कालेज से लॉ की डिग्री ली तब भिलाई की निर्माणावस्था थी। 
मैं भिलाई आया तो यहां उच्च शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। एक मात्र दुर्ग का विज्ञान महाविद्यालय (साइंस कॉलेज)था। ऐसे में एक विचार हम लोगों के बीच यह आया कि क्यों ना भिलाई के लोगों के लिए एक कालेज शुरू किया जाए। उन दिनों तक हमारे साथियों में तोरण सिंह ठाकुर, बद्रीप्रसाद पांडेय राम नारायण साहू बीएसपी के पहले प्राइमरी स्कूल सेक्टर-1 में शिक्षक हो चुके थे। हम लोगों में एक जज़्बा था छत्तीसगढ़ की खातिर कुछ करने का और हमारी छत्तीसगढ़ कल्याण समिति की स्थापना 1961 में की गई थी।
भिलाई में कालेज की स्थापना भूमिका बनना भी बेहद दिलचस्प है। उन दिनों देश भर से लोग भिलाई में नौकरी के लिए रहे थे। अधिकांश लोगों की पढ़ाई बीच में ही छूटी हुई थी। लोग आगे पढऩा चाहते थे,क्योंकि उनके प्रमोशन रूके हुए थे। इस वक्त अजमेर शिक्षा बोर्ड से परीक्षा की व्यवस्था थी। अजमेर से लोग आते थे और परीक्षार्थियों से फीस के नाम पर अनाप-शनाप पैसे लेकर चले जाते थे। परीक्षा की भी कोई माकूल व्यवस्था नहीं थी। कुछ लोगों ने हमसे पूछा कि हम फार्म भर देते हैं अगर आप लोग हमें पढ़ाई के लिए मार्गदर्शन दे दें तो बेहतर होगा। हम सभी 23 से 25 उम्र के और परीक्षार्थियों में बहुत से 40 से 45 तक के भी। फिर भी हम लोगों ने उनको पूरा मार्गदर्शन दिया। हम लोगों का दृष्टिकोण सेवा और सहयोग का था।

दिन में जहाँ बालमंदिर लगता था रात में वहां शुरू हुआ कॉलेज  

भारत सेवक समाज कैम्प -1  का भवन  (1963 )
आमतौर पर कालेज शुरू होता है बीए, बीएससी बी कॉम जैसे स्नातक पाठ्यक्रमों के साथ। लेकिन, हमने कल्याण कालेज शुरू किया विधि महाविद्यालय के साथ।
पहले प्राचार्य हुए नरसिंह प्रसाद साहू। इनके बाद मानस मर्मज्ञ बलदेव प्रसाद मिश्रा भी प्राचार्य रहे . हमारी कल्याण समिति के अध्यक्ष थे जेपी खिचरिया। उन्हीं का सुझाव था पहले एलएलबी शुरू करने का। तब हमारे सांसद मोहनलाल बाकलीवाल का भी सहयोग रहता था। मध्यप्रदेश के सेवानिवृत चीफ जस्टिस गणेश प्रसाद भट्ट तब सागर विश्वविद्यालय के कुलपति (कार्यकाल 22 जून 62 से 21 जून 65 तक) थे। अंचल के प्रसिद्ध समाजसेवी देवीप्रसाद अग्रवाल से उनके निकट संबंध थे।
 ऐसे में हमें सागर विश्वविद्यालय से विधि महाविद्यालय की मान्यता मिल गई। हमारे सामने दिक्कत थी भवन की। लिहाजा कैंप-1 स्थित भारत सेवक समाज के अध्यक्ष शिवनंदन प्रसाद मिश्र आगे आए। समाज के छोटे से भवन में हमारा कालेज शुरू हुआ। यहां दिन में बच्चों के लिए बाल मंदिर लगा करता था। रात में हमने अपनी कक्षाएं लगाने की शुरुआत की। इसके लिए जरूरी संसाधन खरीदने हमारे पर उतनी राशि नहीं थी लिहाजा किराए में पेट्रोमैक्स और दरी की व्यवस्था की गई।
 दिन भर हम लोग बीएसपी की सेवा में रहते और रात में कालेज में पढ़ाते। हम सभी लोग अवैतनिक रूप से पढ़ा रहे थे, जो फीस भी आती उसे हम बैंक में जमा करते थे। हमारी यह जमा पूंजी बाद में कालेज में ही काम आई। हमारा कालेज कैंप में चल रहा था। इसी दौरान 1963 में ही सेक्टर-5 में बीएसपी की कन्या शाला का भवन बन कर तैयार हुआ। हमें बीएसपी प्रबंधन की ओर से इस कन्या शाला में रात्रिकालीन कक्षाएं संचालित करने की अनुमति मिली।
  जब हमने रात्रिकालीन कालेज की शुरूआत सेक्टर-5 गल्र्स स्कूल के भवन में की तो हमारे सामने कई चुनौतियां थी। सागर विश्वविद्यालय से हमें मान्यता दी गई। इसके लिए निरीक्षण पर प्रख्यात शिक्षाविद आचार्य नंद दुलारे बाजपेयी के साथ टीम आई। बाजपेयी को यह भरोसा ही नहीं हो रहा था कि रात में कालेज सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है। यहां आकर उन्होंने देखा कि रात के 8.30 बज रहे हैं और सारे बीएसपी कर्मी पढ़ रहे हैं। यहां उन्होंने देखा कि चपरासी लेकर प्राचार्य तक सभी मानसेवी है। यहां की व्यवस्था देख वह बेहद अभिभूत हुए। हमें मान्यता मिली तो लगा एक बहुत बड़ी समस्या हल हो गई।
पुरतेज सिंह        प्रदीप सिंह              एम् आर आर  नायर
फिर सेक्टर-5 से हमारा कालेज सेक्टर-2 भिलाई विद्यालय में शिफ्ट हुआ। यहां स्व. पुरतेज सिंह का मैं उल्लेख करना चाहूंगा। वह बेहद आदर्शवादी थे। उनके पुत्र प्रदीप सिंह, जो कि नि:शक्त थे, हमारे भिलाई विद्यालय में लगने वाले कालेज में वह पढ़ा करते थे। पुरतेज सिंह अपने पुत्र को छोडऩे और ले जाने रोज कालेज आते थे। मुझे याद है तब वह जीएम बन चुके थे। एक रोज जब उनकी कार आकर रूकी तो मैं कालेज में ही था। 
मैं तुरंत बाहर निकला तो वह सीधे अपने पुत्र को गोद में लेकर क्लास रूम छोडऩे जा रहे थे, वहां से लौटने   के बाद वह बोले- मिश्रा जी यहां मैं सिर्फ एक पिता की हैसियत से आया हूं। आपसे छोटी सी दरख्वास्त यह है कि अगर प्रदीप की क्लास रूम आप उपर मंजिल के बजाए नीचे कर दें तो मुझे लाने ले जाने में थोड़ी आसानी होगी। पूरे भिलाई का 'मालिक' होने के बावजूद उनकी बातों में जो विनम्रता थी उसकी मिसाल फिर मुझे दोबारा देखने को नहीं मिली। उस दौर के तमाम ग्रेजुएट अप्रेंटिस लोगों ने कालेज में दाखिला लिया। जिनमें एमआरआर नायर और येदेंद्र कुमार चौकसे के नाम मुझे याद रहे हैं। नायर बाद में सेल के चेयरमेन हुए और चौकसे भिलाई के मुख्य नगर प्रशासक। इनके अलावा और भी कई छात्र थे हमारे।

आनन फानन में मिली ज़मीन और हुआ भूमिपूजन  

भूमिपूजन और दानदाताओं के शिलालेख
खैर, भिलाई विद्यालय के बाद हम सेक्टर-7 की वर्तमान जगह पर आए। यहां की भूमि मिलने का किस्सा भी बेहद रोचक है। बीएसपी के पास भूमि के लिए हमारा आवेदन तो पहले से था ही। एक दिन अचानक हमें बताया गया कि इस्पात मंत्री नीलम संजीव रेड्डी 27 दिसंबर 1965 को भिलाई दौरे पर रहे हैं। आनन-फानन में हमें बीएसपी ने 16 एकड़ जमीन सेक्टर-7 में आबंटित की। 
हमसे तत्काल भूमिपूजन की तैयारी करने कहा गया। इस तरह हमने कार्यक्रम आयोजित कर नीलम संजीव रेड्डी से भूमिपूजन करवाया। इसके बाद हमारी प्राथमिकता थी इस भूमि पर भवन बनाने की। इस दौरान भी पुरतेज सिंह हमारे साथ आगे आए। उन्होंने हमसे पूरी जानकारी ली और कालेज के लिए फंड इकठ्ठा  करने में पूरा सहयोग देने की बात कही। इसके बाद हम लोग रायपुर के कमिश्रर रामप्रसाद मिश्रा से मिले। कमिश्नर मिश्रा भी बेहद सज्जन व्यक्ति थे। वह बोले- मैं आप लोगों को पूरा समय देने तैयार हूं। 
 इसके बाद वह भिलाई पहुंचे और उनके साथ हमारी समिति के सदस्य अंचल के एक-एक उद्योगपति से मिले। सभी ने हमें मुक्त हाथों से सहयोग दिया। उद्योगपतियों से हमारा रिश्ता हमेशा सकारात्मक रहा। स्व. सेठ बालकिशन हमारी समिति में रहे। रोटरी इंटरनेशनल से सेठ मोहनलाल केडिया ने सहायता दिलवाई। बीईसी के बलवंत राय जैन ने भी हमेशा सहयोग दिया। इन लोगों के सहयोग से ही हम भिलाई में उच्च शिक्षा का केन्द्र स्थापित करने में सफल हो पाए।
कल्याण कालेज में हमने सारे संकाय मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखकर शुरू करवाए। हमने यहां कला वाणिज्य संकाय शुरू किया था। तब तक पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की रायपुर में स्थापना हो चुकी थी। कुलपति पं. बंशीलाल पांडेय ने हम लोगों को प्रोत्साहित किया कि यहां विज्ञान की कक्षाएं भी शुरू की जाए। इन दिनों एक और समस्या रही थी। बीएसपी के जितने शिक्षक थे, सबको पदोन्नति के लिए बीएड करना अनिवार्य था। लेकिन, बीएड करने उन्हें जबलपुर जाना पड़ता था।
 जिसकी कक्षाएं रायपुर में भी लगती थी। इससे इन शिक्षकों को बार-बार छुट्टी लेनी पड़ती थी आने-जाने की परेशानी अलग से थी। इन्हीं दिनों तत्कालीन कमिश्नर रामप्रसाद मिश्रा ने भी कल्याण कालेज में बीएड खुलवाने में विशेष रूचि दिखाई। लेकिन, इससे थोड़ा बवाल भी मचा। वह इसलिए क्योंकि उन दिनों किसी भी निजी महाविद्यालय में बीएड नहीं था। हमारी समिति के रूझान को देखते हुए तमाम विरोध को दरकिनार कर बीएड की अनुमति दी गई वह भी रात्रिकालीन कक्षाओं के लिए। पूरे मध्यप्रदेश में यह पहला मौका था।
फिर इस बीच दीगर जगहों पर भी कालेज खोले गए, जिससे भिलाई स्टील प्लांट से जुड़े हजारों कर्मियों उनके बच्चों को लाभ हुआ। दल्लीराजहरा में बीएसपी के अफसर पी.भादुड़ी, शिवास्वामी और बिमलेंदु मुखर्जी के प्रयासों से हमें भूमि मिली। फि सेठ नेमीचंद जैन आगे आए। इस तरह हमारा कालेज शुरू हुआ। 60 के दशक में ग्राम छावनी के दाऊ रेवासिंह ने कल्याण समिति को शैक्षणिक गतिविधि के लिए एक एकड़ जमीन दान में और 4 एकड़ जमीन न्यूनतम दर पर दी। बाद में यह जमीन औद्योगिक ईकाईयों के लिए आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत गई। हमसे सरकार ने कहा मुआवजा ले लो। लेकिन, हम कालेज  के लिए भूमि चाहते थे। हमें 10 एकड़ भूमि दी गई। लेकिन उसका हस्तांतरण अभी तक नहीं हो पाया है।
भिलाई में उच्च शिक्षा की शुरूआत करने की वजह से हमें हर कदम पर बीएसपी का सहयोग समर्थन मिला। हमने शिक्षा के क्षेत्र में कालेज खोलने के बाद जिले की पहली निजी आईटीआई शुरू की। इसके बाद अगला कदम मेडिकल कालेज था। बीएसपी के पूर्व  मेडिकल डायरेक्टर डॉ. रामजीवन चौबे ने इसकी पूरी रूपरेखा बनाई। शुरूआती कार्रवाई में हमें राज्य शासन का फिजिबिलिटी सर्टिफिकेट भी मिल गया। इसके बाद किन्ही कारणों से अगले चरण में रुकावट गई। मैं आशान्वित हूं कि भविष्य में हम अपना मेडिकल कालेज भी शुरू करेंगे। जहां तक बीएसपी से संबंधों की बात है तो हम लोगों ने जितनी भी सफलता हासिल की सब बीएसपी प्रबंधन के सहयोग से ही संभव हो पाई थी।
 मैं बीएसपी में लॉ आफिसर रहा। बीएसपी अफसरों से हमारे हमेशा अच्छे ताल्लुकात रहे। लेकिन, मैंने इसका कभी कोई लाभ नहीं लिया। मैंने हमेशा बीएसपी और कालेज को अलग-अलग रखा। मैं आपको बताऊं जब मैं बीएसपी से रिटायर हुआ तो विदाई पार्टी में सीटीए शर्मा को यह कहना पड़ा कि मुझे आज पहली बार मालूम हुआ कि हमारे लॉ ऑफिसर और कल्याण कालेज के चेयरमेन दोनों मिश्रा एक ही हैं। मैंने जीवन में जो कुछ भी पाया वह सभी साथियों के सहयोग से ही संभव हो पाया।
आखिर में एक त्रुटि की ओर ध्यान- कल्याण कॉलेज की वेबसाइट में 23 जुलाई 1963 को इस्पात मंत्री नीलम संजीव रेड्डी के हाथों भूमिपूजन की तिथि का उल्लेख है। वास्तविकता यह है कि नीलम संजीव रेड्डी उक्त तिथि में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री थे और जून 1964 मेें उन्होंने केंद्र में इस्पात मंत्री का पदभार संभाला। जिस पर वह 1967 में लोकसभा अध्यक्ष बनने के पहले तक रहे। हालांकि कॉलेज में लगाए गए भूमिपूजन के शिलालेख में वास्तविक तिथि 27 दिसंबर 1965 ही अंकित है।

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