Tuesday, March 17, 2020


'अयोध्या से अयोध्या तक' जारी है 'माननीय '

को संसद-राजभवन तक भेजने का सिलसिला 


मुहम्मद ज़ाकिर हुसैन 


सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किए जाने के फैसले के साथ ही चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इधर कुछ खोजी लोगों ने इस फैसले को जस्टिफाई करने जस्टिस रंगनाथ मिश्र और जस्टिस बहरूल इस्लाम का नाम आगे कर दिया। 
कल से जारी बहस के बीच बड़ी सफाई के साथ इस परंपरा की शुरूआत जहाँ से होती है, वो नाम छिपा लिया गया। अब इसे संयोग ही मानिये की स्वतंत्र भारत में अब तक की जानकारी के मुताबिक 'न्याय' देने वालों को प्रभावित करने का सिलसिला अयोध्या मामले से शुरू होता है और आज जस्टिस गोगोई का नाम भी अयोध्या मामले पर फैसले की वजह से ज़्यादा चर्चा में आया है
 वैसे जस्टिस गोगोई का नाम इस पंरपरा में आखिरी नहीं है। आप इंटरनेट पर ही खंगाले तो कई चौंकाने वाली जानकारी मिलेगी। जिस तरह से देश की स्वतंत्रता के बाद 'माननीयों' को संसद से लेकर राजभवन तक भेजा जाता रहा है, वह अपने आप में हैरान करने वाला है। इसकी शुरआत करने वाली भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ हो या इस पिच पर जम कर खेलने वाली कांग्रेस हो, सबने अपने-अपने हिसाब से 'माननीयों' के लिए सीढ़ी तय की है। कुल मिलाकर मामला दोनों पार्टियों के बीच बराबरी सा दिखता है। 


नायर से 'नायक ' बनने वाले जिला मजिस्ट्रेट 

न्याय जगत से जुड़े किसी व्यक्ति को संसद तक पहुंचाने की शुरूआत का श्रेय आज की भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती राजनीतिक पार्टी जनसंघ को जाता है।याद कीजिए फैजाबाद की 22-23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात,(सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में शामिल रिकॉर्ड के मुताबिक ) जब बाबरी मस्जिद के अंदर चोरी से रामलला की प्रतिमा रख दी गईं। इसके बाद जिस व्यक्ति की भूमिका निर्णायक साबित हुई वह थे फैजाबाद के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट आईसीएस आफिसर कंदनगलतिल करुणाकरण नायर।
दस्तावेज बताते हैं कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दखल के बावजूद केके  नायर ने प्रतिमा निकलवाने से इनकार कर दिया था। इसके कुछ साल बाद 1952 में नायर ने सरकारी मुलाजमत छोड़ी और जनसंघ के हो लिए।
नायर का उपकार इतना ज्यादा था कि चौथे लोकसभा चुनाव को दौरान 1962 में जनसंघ ने न सिर्फ उन्हें बहराइच से लोकसभा का टिकट दिया बल्कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर को कैसरगंज से उतारा और दोनों पति-पत्नी चुनाव जीत कर सांसद रहे। दस्तावेजों में यह भी मिल रहा है कि तब नायर दंपति के ड्राइवर को भी विधानसभा का टिकट देकर जनसंघ ने उपकृत किया था। नायर को दक्षिणपंथी हमेशा एक नायक के तौर पर  देखता है


सांसद रहे और जस्टिस भी 

नायर के बाद दूसरा नाम असम के प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व बहरूल इस्लाम का आता है। 1962 में राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य थे। उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के बीच में ही त्यागपत्र दे दिया। 
उन्हें 1972 में असम और नगालैंड उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। बाद में वह जुलाई 1979 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी बने। वह एक मार्च 1980 को सेवानिवृत्त हुए और इसके बाद 4 दिसंबर, 1980 को उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया था लेकिन यहां भी कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्होंने जनवरी 1983 में त्यागपत्र दे दिया था। इसके 10 साल बाद 5 फरवरी 1993 को उनका इंतकाल हुआ।


 एक नाम जो विधायक, सांसद और न्यायमूर्ति तीनो रहा 

इधर-उधर होने वालों में तीसरा नाम न्यायमूर्ति गुमानमल लोढ़ा का हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय में 1978 में न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले वह 1972 से 1977 तक जनसंघ से राजस्थान विधान सभा के सदस्य रह चुके थे। गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति गुमानमल लोढ़ा फिर सक्रिय राजनीति में लौटे और भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर 1989 से लगातार तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे। 22 मार्च 2009 को उनका निधन हुआ।


न्यायिक जगत से संसद  तक  का सफर 

अब बात सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश रहे जस्टिस रंगनाथ मिश्र की। 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में भड़के सिख विरोधी दंगों की घटनाओं की जांच के लिये 26 अप्रैल 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित किया था। इस आयोग ने फरवरी 1987 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी।
वैसे जस्टिस रंगनाथ मिश्र का परिवार राजनीति और न्यायिक जगत दोनों में सक्रिय रहा है। उनके भाई भी सांसद-विधायक रहे है और फिलहाल भतीजे पिनाकी मिश्रा राजनीति में सक्रिय हैं तो दूसरे भतीजे दीपक मिश्रा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुए हैं। 25 सितंबर 1990 से 24 सितंबर 1991 तक देश के चीफ जस्टिस रहे जस्टिस रंगनाथ मिश्र को उनके रिटायरमेंट के 7 साल बाद कांग्रेस ने 1998 में राज्यसभा भेजा। जहां से वे 2004 में रिटायर हुए और 13 सितंबर 2012 को उनका निधन हुआ।

राजभवन पहुँचने वाले कुछ 'माननीय' 

न्याय जगत की हस्तियों को राजभवन भेजने की परंपरा 1997 से ज्यादा जोर पकड़ी है। जिसमें उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश रहीं न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी को उनके रिटायरमेंट के बाद 25 जनवरी 1997 को तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया था। इससे एक कदम आगे जाते हुए मौजूदा एनडीए सरकार ने देश के प्रधान न्यायाधीश पी सतशिवम को अप्रैल 2014 में सेवानिवृत्ति के बाद सितंबर-14 में केरल का राज्यपाल बनाया था। यह पहली बार हुआ था कि किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश को किसी राज्य का राज्यपाल बनाया गया।


एक न्यायधीश का मुख्यमंत्री बनने तक का सफर 

न्यायाधीश का दायित्व निभाने के बाद राजनीति में सक्रिय होने वाला फिलहाल एकमात्र नाम विजय बहुगुणा का है। पहले कांग्रेस में रहे अब भारतीय जनता पार्टी में है। विजय बहुगुणा पहले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए और फिर वह बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने लेकिन अचानक ही उन्होंने 15 फरवरी 1995 को न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गये और 2007 से 2012 तक लोकसभा में कांग्रेस के सदस्य बने और फिर 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बने। फिलहाल भाजपा में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।


अब कुछ बातें गोगोई की 

अब बात जस्टिस रंजन गोगोई की। सुप्रीम कोर्ट से 17 नवंबर 2019 को रिटायर हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया गया है केंद्र सरकार की ओर से सोमवार 16 मार्च 2020 को  देर शाम जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया हैसुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में रंजन गोगोई का कार्यकाल करीब साढ़े 13 महीने का रहा इस दौरान उन्होंनें कुल 47 फैसले सुनाए, जिनमें से कुछ बहुचर्चित फैसले भी शामिल हैं
18 नवंबर 1954 को जन्मे रंजन गोगोई ने साल 1978 में बतौर एडवोकेट अपने करियर की शुरुआत की थी रंजन गोगोई ने शुरुआत में गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत की उनको संवैधानिक, टैक्सेशन और कंपनी मामलों का जानकार वकील माना जाता था इसके बाद उनको 28 फरवर 2001 को गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी न्यायमूर्ति नियुक्त किया गया। 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया
इसके बाद, 12 फरवरी 2011 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बना दिया गया23 अप्रैल 2012 को उन्हें पदोन्नत करके सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया जब दीपक मिश्रा चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हुए, तो उनकी जगह जस्टिस रंजन गोगोई को चीफ जस्टिस बनाया गया


सार्वजनिक प्रेस कांफ्रेंस से आये थे चर्चा में 

12 जनवरी 2018 को न्यायमूर्ति जे चेलेश्वर, एमबी लोकुर और कूरियन जोसेफ के साथ मिलकर न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने भारत के उच्चतम न्यायालय के इतिहास में पहली बार, उच्चतम न्यायालय के न्याय वितरण प्रणाली में विफलता और मामलों के आवंटन के मामलें में एक प्रेस वार्ता आयोजित की थी। इस दौरान, चारो न्यायाधीशों ने पत्रकारों से कहा कि विशेष सीबीआई न्यायाधीश बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के मामले को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को आवंटित करने से प्रेरित होकर उन्होंने प्रेस वार्ता की है।लोया, एक विशेष सीबीआई न्यायाधीश थे, दिसंबर 2014 में रहस्यमय परिस्थितियों  उनकी मौत हुई थी। न्यायमूर्ति लोया 2004 के सोहराबुद्दीन शेख मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें पुलिस अधिकारी और बीजेपी प्रमुख अमित शाह का नाम सामने आया था। बाद में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया। न्यायमूर्ति चेलेश्वर 30 जून, 2018 को सेवानिवृत्त हुए, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को भारत के उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में बने, उनके बाद जस्टिस एम बी लोकुर और कुरियन जोसेफ क्रमश: वरिष्ठता में रहे।

यौन उत्पीड़न का आरोप भी लगा था गोगोई पर 

रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का भी आरोप लग चुका है। हालाँकि अब उन्हें इस मामले में क्लीन चिट मिल चुकी है और आरोप लगाने वाली महिला कर्मी व उसके साथ बर्खास्त उसके अन्य रिश्तेदारों की सुप्रीम कोर्ट में नौकरियां बहाल कर दी गयी हैद वायर की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने शीर्ष अदालत के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था 
35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं उनका कहना है कि चीफ जस्टिस द्वारा उनके साथ किए ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ का विरोध करने के बाद से ही उन्हें, उनके पति और परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है
महिला के कथित उत्पीड़न की यह घटना 11 अक्टूबर 2018 की है, जब वे सीजेआई के घर पर बने उनके दफ्तर में थीं महिला ने अपने हलफनामे में लिखा है कि इसके बाद उनका विभिन्न विभागों में तीन बार तबादला हुआ और दो महीने बाद दिसंबर 2018 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गयाइन्क्वायरी रिपोर्ट में इसके तीन कारण दिए गए, जिनमें से एक उनका एक शनिवार को बिना अनुमति के कैज़ुअल लीव लेना है
उनका कहना है कि यह शोषण उनकी बर्खास्तगी पर ही नहीं रुका, बल्कि उनके पूरे परिवार को इसका शिकार होना पड़ा. उन्होंने बताया कि उनके पति और पति का भाई, दोनों दिल्ली पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल हैं, को 28 दिसंबर 2018 को साल 2012 में हुए एक कॉलोनी के झगड़े के लिए दर्ज हुए मामले के चलते निलंबित कर दिया गया
इस बाद छह मई-19 को सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को यौन उत्पीड़न के आरोप पर क्लीनचिट दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदु मल्होत्रा इस जांच समिति की सदस्य थे


इन बहुचर्चित फैसलों के लिए याद किए जाते हैं गोगोई

1. अयोध्या मामला:- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 सदस्यीय बेंच ने फैसला सुनाया सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया जिसमें शीर्ष कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला विराजमान को देने और मुस्लिम पक्षकार (सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड) को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है
2. चीफ जस्टिस का ऑफिस पब्लिक अथॉरिटीः- जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने चीफ जस्टिस के ऑफिस को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में आने को लेकर फैसला सुनाया इसमें कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस का ऑफिस भी पब्लिक अथॉरिटी है लिहाजा चीफ जस्टिस के ऑफिस से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी जा सकती है
3. सबरीमाला मामला:- जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की साथ ही मामले को सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय बड़ी बेंच को भेज दिया इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जारी रहेगा जैसा कि कोर्ट 2018 में दिए अपने फैसले में कह चुका है
4. सरकारी विज्ञापन में नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी: चीफ जस्टिस के तौर पर रंजन गोगोई और पी.सी. घोष की पीठ ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी लगा दी थी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से सरकारी विज्ञापन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस, संबंधित विभाग के केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री के अलावा किसी भी नेता की सरकारी विज्ञापन पर तस्वीर प्रकाशित करने पर पाबंदी है
5. अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में फैसला: - अंग्रेजी और हिंदी समेत सात भाषाओं में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को प्रकाशित करने का फैसला चीफ जस्टिस रहते हुए रंजन गोगोई ने ही लिया था इससे पहले तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले सिर्फ अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते थे
इस बीच, जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किए जाने पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं. एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, 'क्या यह 'इनाम है'? लोगों को जजों की स्वतंत्रता में यकीन कैसे रहेगा? कई सवाल हैं.'
इस तरह हम  देखते हैं कि फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नायर से शुरू हुई कहानी आज रंजन गोगोई तक पहुंच चुकी है। यकीन मानिए यह पूर्ण विराम नहीं है। देश बहस करता रहे, पद, सत्ता और प्रभाव मिले तो कौन मना करता है। इसकी कीमत चाहे कुछ भी हो। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो कह ही चुके हैं,  सब मिले हुए हैं जी..। तो यही होता आया है और यही होता रहेगा.?

चलते-चलते....रियाणा में हुआ कारनामा, प्रभावशाली लोगों के

 बच्चों और रिश्तेदारों को हाइकोर्ट में कानूनी अधिकारियों के पद

मानव अधिकार कार्यकर्ता रजत कल्सन ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है.... आम आदमी का मेहनती व होनहार उम्मीदवार बस देखता रह गया और 90 अधिकारियों की नियुक्ति में नेताओं, अधिकारियों और जजों के बच्चों और रिश्तेदारों को नियुक्ति दे दी गई । इस लिस्ट में स्व. सुषमा स्वराज के बेटी बांसुरी स्वराज, जुलाना से पूर्व विधायक परमिंद्र ढुल के बेटे रविंद्र ढुल, विधायक रामकुमार गौतम के बेटे रजत गौतम, पंचकूला में एडिशनल जज की पत्नी को भी कानून अधिकारी नियुक्त किया गया है।
वहीं चंडीगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष अरूण सूद की पत्नी अंबिका सूद को भी एडिशनल एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया है। पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में सीनियर जज राजीव शर्मा की बेटी त्रिशांजली शर्मा को भी नियुक्त किया गया है। जेजेपी के प्रदेशाध्यक्ष निशान सिंह के बेटे की भी नियुक्ति हुई है।
हरियाणा के पूर्व डीजीपी यशपाल सिंघल की बेटी महिमा यशपाल सिंघल, हरियाणा के जींद से विधायक कृष्ण मिड्ढा का रिश्तेदार पंकज मिड्ढा, बीजेपी नेता बच्चन सिंह आर्य का बेटा रणबीर आर्य, रिटायर्ड जज टीपीएस मान के रिश्तेदार संदीप सिंह मान, रिटायर्ड जज एसके मित्तल के रिश्तेदार संजय मित्तल को नियुक्त किया गया है।
हरियाणा सरकार की तरफ से जारी 90 कानून अधिकारी पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सरकार की पैरवी करेंगे। इनमें 22 एडिशनल एडवोकेट जनरल, 28 डिप्टी एडवोकेट जनरल और 28 असिस्टेंट एडवोकेट जनरल हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए आठ एडिशनल एडवोकेट जनरल की भी नियुक्ति की गई है। गरीब आदमी के होनहार बच्चे केवल मेहनत करते रहेंगे और नेताओं के बच्चे ,रिश्तेदार मलाई खाते रहेंगे।

10 comments:

  1. ज़ाकिर भाई
    बढ़िया लेख है। कल रात ही कुछ नोटिंग तैयार किया था। सोचा था कुछ लिखूंगा। अपने तो बख्शा नहीं। बधाई बिना मैं आपको बख्शने को तैयार नहीं।

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    1. आपकी टिप्पणी और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया लेकिन तकनीकी वजह के चलते कमेंट पर आपका नाम नहीं आ रहा है। बराए मेहरबानी अपना नाम भी उल्लेखित कर देंगे....

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  2. जाकिरजी, आपने पत्रकारिता धर्म का ईमानदारी सकता पालन किया है . आरोप प्रत्यारोप के दौर मे सभी सत्ता और पद का.दुरुपयोग कर रहे है. भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट अधिकारी और भ्रष्ट व्यापारी और भ्रष्ट. न्यायपालिका,और सम्मिलित पत्रकारिता की जुगलबंदी देश के लिए दीमक की तरह कार्य कर रही है, फिर भी अभी भी उम्मीद है क्योंकि हर व्यक्ति बेईमान नहीं है. बस जनता के धैर्य की परीक्षा कब तक ?

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  3. जाकिरजी, आपने पत्रकारिता धर्म का ईमानदारी से पालन किया है . आरोप प्रत्यारोप के दौर मे सभी सत्ता और पद का.दुरुपयोग कर रहे है. भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट अधिकारी और भ्रष्ट व्यापारी और भ्रष्ट. न्यायपालिका,और सम्मिलित पत्रकारिता की जुगलबंदी देश के लिए दीमक की तरह कार्य कर रही है, फिर भी अभी भी उम्मीद है क्योंकि हर व्यक्ति बेईमान नहीं है. बस जनता के धैर्य की परीक्षा कब तक ? जाकिरजी बहुत बहुत बधाई यह भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप मे रहेगा कि भिलाई के किसी पत्रकार ने सच लिखकर साहसिक कार्य किया है।

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    1. आपकी टिप्पणी और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया लेकिन तकनीकी वजह के चलते कमेंट पर आपका नाम नहीं आ रहा है। बराए मेहरबानी अपना नाम भी उल्लेखित कर देंगे....

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  4. बेहतरीन शोधपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी का शुक्रिया।

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    1. आपकी टिप्पणी और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया लेकिन तकनीकी वजह के चलते कमेंट पर आपका नाम नहीं आ रहा है। बराए मेहरबानी अपना नाम भी उल्लेखित कर देंगे....

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  5. ज़ाकिर भाई लेख शोधपरक है किन्तु भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती राजनीतिक पार्टी जनसंघ को पहला श्रेय देने के चक्कर में ऐसा नहीं लगता कि आपने एक सिविल सेवक और न्यायिक मजिस्ट्रेट में अंतर करना भूल गए? अगर एक आईसीएस आफिसर (आज के संदर्भ में आइएएस) और न्यायिक क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति आपकी नजर में एक है तो ये सूची बहुत लंबी होनी थी। विचार कीजिएगा।

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    1. युगल भाई
      सिविल सर्वेंट को न्यायिक अधिकार होता है इस लिहाज से मैंने उल्लेख किया है और कोई मंशा नहीं है। घटनाक्रम के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नायर ही इस विवाद के जनक रहे हैं और उन्हें उसे बाद में उसी एहसान के लिए उपकृत किया गया। वैसे मेरा यह लेख अयोध्या मामले तक सीमित नहीं है सिर्फ एक संयोग का उल्लेख है कि स्वतंत्र भारत में उपकृत करने की शुरुआत इस तरह से हुई थी और संयोग से गोगोई भी अयोध्या पर फैसला देने के बाद संसद में जा रहे हैं....

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  6. बहुत ही बढ़िया लेख है मेरे भाई का टेक्निकली बुलेट्स 1234567 को बेहतर सजाने पर बहुत सुंदर होगा

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