Saturday, May 30, 2020


अजीत जोगी-एक दुस्साहसी राजनेता


मुहम्मद जाकिर हुसैन
अजीत जोगी चले गए और अपने पीछे ढेर सारे अफसाने छोड़ गए। अफसाने भी ऐसे कि कई बार यकीन करना मुश्किल होगा कि तब ऐसा भी हुआ था।
 खैर, छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाके में जन्म लेने के बाद इंजीनियर बनना, फिर आईपीएस और आईएएस में भी सफलता, लंबे समय तक कलेक्टरी, फिर कांग्रेसी और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद खौफ के साए में आईएएस-आईपीएस के दम पर सत्ता चलाने का गुर रखने वाले जोगी अब यादों में रहेंगे।
अजीत जोगी 2004 से व्हील चेयर पर थे। इसके बावजूद जिस तरह उन्होंने आखिरी 16 साल छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखा,वह अपने आप में अद्भुत था। उनके राजनीतिक जीवन से जुड़े कई प्रसंग लोग लगातार लिख रहे हैं। कुछ और मेरी तरफ से भी जोड़ लीजिए-

 छत्तीसगढ़ी में शपथ ले के इजाज़त नई हे

उनका पदार्पण भी बेहद नाटकीय ढंग से हुआ था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण करीब देख आंदोलनों की श्रृंखला चला रहे वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल खुद को पहला मुख्यमंत्री मान कर चल रहे थे।
 तब राज्य निर्माण के काफी पहले भिलाई के सेक्टर-9 में संयुक्त मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल की प्रतिमा लग चुकी थी लेकिन लोकार्पण के लिए किसी शुभ घड़ी का इंतजार था। लंबे समय से कपड़े में लिपटी प्रतिमा को देखकर कयास इस बात के लगाए जा रहे थे कि शायद विद्याचरण शुक्ल एक नवंबर 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर अगले दिन इसका लोकार्पण करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
राजनीति ने अपना दाव खेला और 'आदिवासी' मुख्यमंत्री की मांग उठने लगी। देखते ही देखते घटनाक्रम बदला और खुद को मुख्यमंत्री मानकर चल रहे विद्याचरण शुक्ल हाशिए पर चले गए और जोगी शपथ लेते नजर आए।
इस दौरान जैसे ही समर्थकों ने नारेबाजी शुरू की तो वाकचातुर्य में माहिर जोगी ने मंच से कहा-छत्तीसगढ़ी में शपथ ले के इजाज़त नई हे....इसके बाद उन्होंने हिंदी मेें शपथ ली।

आईएएस-आईपीएस के दम पर चलता था राज

यह बात जगजाहिर थी कि जोगी ने पूरा शासन आईएएस-आईपीएस के दम पर चलाया। तब मंत्री या कार्यकर्ता से ज़्यादा आईएएस-आईपीएस उनके क़रीब होते थे एक घटना मुझे याद आ रही है। नेहरू नगर नगर से साफ्टवेयर टेक्नालॉजी पार्क का उद्घाटन समारोह था। 
जोगी मंच पर बैठे थे और कार्यक्रम चल रहा था। अचानक कुछ देर बाद दुर्ग कलेक्टर आईसीपी केशरी आते हैं और सीधे मंच पर चढ़ कर जोगी की कुर्सी के पीछे खड़े हो जाते हैं। 
इसके बाद दोनों में काफी देर तक कानाफूसी होने लगती है। इधर कार्यक्रम भी चल रहा था और देखने वाले हम जैसों को लग रहा था कि शायद 'बॉस काम हो गया' जैसी कुछ बात हो रही है।
शायद इस कार्यक्रम के अगले दिन कलेक्टर आईसीपी केशरी अपनी कार में पूर्व विधायक और एनसीपी मेें विद्याचरण शुक्ल के साथ शामिल हो चुके प्यारेलाल बेलचंदन को मुख्यमंत्री निवास ले गए और वहां प्यारेलाल बेलचंदन ने प्रेस कान्फ्रेंस कर खुलासा करते हुए कहा कि- रात में 'भगवान कृष्ण' सपने में आए थे और उन्होंने आदेश दिया है, इसलिए मैं कांग्रेस प्रवेश कर रहा हूं। इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी जानते हैं कि रात में स्व. बेलचंदन के सपने में कौन आया था।

भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन और तोड़ दिए विधायक

जोगी के दुस्साहस के कई किस्से हैं। याद कीजिए 10 दिसंबर 2001, जब केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन रायपुर में चल रहा था और भाजपा के सारे दिग्गज-चाणक्य रायपुर में थे।तब अचानक जोगी ने भाजपा के 13 विधायक तोड़ कर तहलका मचा दिया था।
 हालांकि तब जोगी की सरकार कोई खतरा नहीं था और कांग्रेस पूर्ण बहुमत में भी थी।इसके बावजूद उन्होंने यह क़दम उठाया था इस बारे में एक दफा मैनें तब के छत्तीसगढ़ भाजपा अध्यक्ष ताराचंद साहू (अब स्व.) से पूछा था तो उनका जवाब था कि-''मैं अपने इलाज के सिलसिले में दिल्ली में था। इसका फायदा उठाकर जोगी ने हमारे विधायक तोड़ लिए। मैं छत्तीसगढ़ में रहता तो जोगी यह दुस्साहस नहीं कर पाते।''

भिलाई होटल की वह खुफिया बैठक


जोगी की कार्यशैली थी ही ऐसी। यहां भिलाई होटल (अब इसे भिलाई निवास कहा जाता है) में उनकी एक प्रशासनिक बैठक की चर्चा कई दिनों तक रही।
 शायद 2002 की बात है, तब भिलाई होटल पूरा सील कर दिया गया था और सिवाए आईएएस-आईपीएस के किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि भिलाई स्टील प्लांट के मैनेजिंग डायरेक्टर बीके सिंह को भी बैठक खत्म होने के बाद अंदर जाने दिया गया।
 सब कुछ बड़ा रहस्यमयी और खौफनाक जैसा लग रहा था। इसी दौरान स्कंद आश्रम वाले स्वामी आए और उनके लिए गेट खोला गया। स्वामी जब बैठक से बाहर निकले तो हम लोगों ने जिज्ञासावश पूछा तो उन्होंने भी बेहद हल्के ढंग से कहा-कुछ नहीं, हम तो एक निमंत्रण देने आए थे।
 हालांकि यह बात किसी को हजम नहीं हुई। इस बैठक की जानकारी देने तब जोगी ने भी पत्रकारों से चर्चा नहीं की थी। हम लोगों को उम्मीद थी कि जोगी बाहर आएंगे तो बात करेंगे लेकिन करीब दो-तीन घंटे की बैठक के बाद जोगी बिना बात किए चले गए और जो हमें बताया गया उसके मुताबिक राज्य की योजनाओं की समीक्षा की गई थी। हालांकि इससे बहुत कम लोग इत्तेफाक रख पाए।

क्या सेक्टर-9 अस्पताल खरीदना चाहते थे जोगी ?

एक और घटना याद आई। एक रोज अचानक शाम को कंट्रोल रूम पर पाइंट चला कि मुख्यमंत्री अजीत जोगी सेक्टर-9 अस्पताल आ रहे हैं।
 हम पत्रकारों को लगा कि शायद अपने किसी परिचित को देखने अस्पताल आ रहे होंगे। 
लेकिन मालूम हुआ कि जोगी बिना किसी तामझाम के सीधे सेक्टर-9 अस्पताल आए और डायरेक्टर मेडिकल एंड हेल्थ डॉ. इकबाल के चेम्बर में चले गए।
 शायद एमडी बीके सिंह को भी वहीं बुलवा लिया था। इस बैठक को लेकर  चर्चा ऐसी थी कि शायद जोगी अपने किसी समर्थक के माध्यम से सेक्टर-9 अस्पताल को खरीदने जा रहे हैं।यह अस्पताल उनकी बीवी चलाएंगी। 
तब चूंकि लीज पर बीएसपी के मकान बेचे जा रहे थे और दूसर तरफ भिलाई से रायपुर तक उनके समर्थक बालकृष्ण अग्रवाल की चिदंबरा लिखी हुई प्रापर्टी को होर्डिंग जगह-जगह दिख रहे थे, इसलिए इस चर्चा को तब ज्यादा बल मिला था। 
हालाँकि इस पूरे  प्रकरण के गवाह रहे बीएसपी के एक अधिकारी ने बताया कि प्रस्ताव स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड की तरफ से था कि इसे राज्य सरकार अधिग्रहित कर यहाँ मेडिकल कॉलेज शुरू कर ले। 
ऐसे में जोगी ने भी इस प्रोजेक्ट में बेहद दिलचस्पी दिखाई थी। हालाँकि जोगी की रूचि इस प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी)  में चलने की ज़्यादा थी। वैसे जोगी सरकार के जाते ही प्रोजेक्ट ठन्डे बस्ते में चला गया 

समर्थकों का साथ कभी नहीं छोड़ा

आखिरी वक़्त साथ थे पत्नी और पुत्र 
अजीत जोगी ने अपने समर्थक खूब बनाए थे और आखिरी दम तक समर्थक भी उनके साथ रहे। 1998 में जब जोगी शहडोल से सांसद थे तो यहां भिलाई में अपने समर्थक फिरोज खान के वैशाली नगर वाले घर आते थे। 
वहीं प्रेस से उनकी बात होती थी। बाद के दिनों में भिलाई होटल में अपने समर्थक और बीएसपी कर्मी लोकेश साहू (अब स्व.) के माध्यम से खबर भिजवाने लगे। फिर हाल के बरसों में अपने समर्थक जहीर खान के रमजान महीने में इफ्तार पर जरूर आते थे। 
जोगी खुद भी 27 वां रोजा रखते थे और उस रोज अपने रायपुर के बंगले पर इफ्तार की दावत देते थे। इसी तरह अपने समर्थक उज्जवल दत्ता और के उमाशंकर राव के घर भी जोगी आते रहते थे।
जोगी दंपति का भिलाई अक्सर आना होता रहता था। उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी के भाई रत्नेश सालोमन (अब स्व.) के ससुराल पक्ष से जुड़़े नीलेश बख्श का परिवार सेक्टर-1 में रहता था। तब श्रीमती जोगी अक्सर सेक्टर-1 आकर इस परिवार के साथ सेक्टर-4 चाट खाने और फिल्म देखने जाती थी। 
ऐसे ही एक रोज श्रीमती जोगी यहां न्यू बसंत टॉकीज में सनी देओल की फिल्म 'इंडियन' देखने आईं थी तो फिल्म के बाद उनका लंबा इंटरव्यू करने का मौका मुझे मिला था। 
आखिरी बार अजीत जोगी 20 फरवरी को भिलाई आए थे। उनकी बहू अपने मायके में थी, लिहाजा बहू से मिले और कुछ समर्थकों से मुलाकात के बाद रायपुर रवाना हो गए थे।

प्रेस कान्फ्रेंस से हटकर जोगी से वह व्यक्तिगत मुलाकात

विमोचन समारोह के दौरान 
व्यक्तिगत तौर पर पिछले साल राजधानी रायपुर में 'हरिभूमि' के सहयोगी चैनल आईएनएच की लांचिंग पर हुए भव्य समारोह में उनके मुलाकात हुई। 
इसी कार्यक्रम में मेरी किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' तक के प्रथम संस्करण का विमोचन था। जोगी उस रात बेहद मूड में थे। संचालक ने जब बार-बार 'पूर्व मुख्यमंत्री' अजीत जोगी का संबोधन दिया तो तपाक से बोल पड़े-'पूर्व' नहीं छत्तीसगढ़ का प्रथम मुख्यमंत्री बोलिए।
मेरी किताब के विमोचन के तुरंत बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल माइक पर आ चुके थे। इस बीच अजीत जोगी मेरी किताब के कुछ पन्ने पलट रहे थे। इसी दौरान मैं उनके पास पहुंचा तो बोले-''काफी मेहनत की है तुमने, रिसर्च के बाद बहुत अच्छा लिखा है। ऐसे ही लिखते रहो-खूब लिखो।''
मैनें अपनी एक किताब उनसे शुभकामना संदेश के लिए आगे बढ़ा दी तो वो अपने कोट में पेन खोजने लगे, शायद भूल गए थे। तब मैनें अपनी स्याही वाली पेन दी तो थोड़ी देर पेन को देखते रहे और बोले-'अरे वाह..।' इसके बाद उन्होंने शुभकामना संदेश दिया। इस दौरान उनकी सेहत कुछ ठीक नहीं थी, हाथ भी कंपकंपा रहे थे लेकिन इन कांपते हाथों से उन्होंने जो शुभकामना दी, वही मेरे लिए धरोहर है।


तब सेक्टर-2 से रोज़ भिलाई स्टील प्लांट जाते थे जोगी 

दिवंगत अजीत जोगी का भिलाई से नाता कॉलेज के दिनों से था। संयोग से इस रिश्ते का ज़िक्र मेरी किताब के विमोचन समारोह के बाद खुद अजित जोगी ने अपने बेहद करीबी समर्थक ज़हीर खान से किया था। 
ज़हीर भाई ने इस बात का खुलासा आज दिवंगत जोगी के अंतिम संस्कार से लौटते हुए उस वक़्त किया, जब मैंने उन्हें किसी और वजह से फ़ोन किया। 
उन्होंने बताया कि मेरी किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' जोगी जी ने देख-पढ़ ली थी और एक दिन जब मैं (ज़हीर खान) किसी काम से उनके बंगले मिलने गया तो  जोगी जी ने किताब की काफी तारीफ की
फिर भिलाई की बात शुरू करते हुए बताने लगे कि ''1967-1968 में  इंजीनिरिंग के फाइनल ईयर में मुझे इंटर्नशिप करना था तो मैंने भिलाई स्टील प्लांट को चुना। तब मैं सेक्टर-2 में अपने एक रिश्तेदार के घर रहता था और यहाँ से रोज़ाना भिलाई स्टील प्लांट जाता था।''
 ज़हीर भाई के मुताबिक तब जोगी जी ने भिलाई से जुडी बहुत सी बातें शेयर की थी और 'वोल्गा से शिवनाथ तक' के लेखक को किसी दिन घर पर ले कर आने कहा था। अफ़सोस वह शानदार मौका कभी नहीं आ पाया

8 comments:

  1. अच्छा लगा, एक लेखक को इससे अधिक और क्या चाहिए। ये पल आपके लिए हमेशा यादो में रहेंगे और जोगी जी भी….
    बहुत अच्छा संस्मरण

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्छा और सुंदर लेख है फ़ोटो के साथ सजा हुआ एक बेहतरीन कवरेज बहुत बढ़िया सर जी

    ReplyDelete
  3. ज़ाकिर भाई आप हर जगह खरे उतरते हैं और आपकी लेखनी उम्मीद से ज्यादा अनमोल बातें समेटे हुए रहती है।इसके लिए मैं आपको अपने जीवन का एक बेहतरीन दोस्त के रूप मे उपलब्धि मानता हूँ

    ReplyDelete
  4. Bahut achha likhe hain bhaijan. Good

    ReplyDelete
  5. Zakir bhai, aapki kalam aur kalaam me raftar aur rafaqat bani rahe. Bahut Badhiya,

    ReplyDelete
  6. टिप्पणियों के लिए आप सभी का स्वागत और आभार...एक निवेदन-कृपया टिप्पणी के अंत में अपना नाम जरूर उल्लेखित कर देंगे। तकनीकी कारणों से आपका नाम उपर उल्लेखित नहीं हो पाता है।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही अच्छा अनुसंधानात्मक तथ्य संकलन एवं सर्वोत्तम प्रस्तुतीकरण। जाकिर भाई, आपकी लेखनी तब से चल रही है जब आप बाल अवस्था जैसे प्रतीत होते थे। आशा है आदि अनंत काल तक आपकी लेखनी सभी को लाभान्वित करती रहेगी।

    ReplyDelete
  8. बहुत ही अच्छा लेख जाकिर हुसैन सर।
    नरसिंह सोनी

    ReplyDelete