Wednesday, August 19, 2020

 

कोलकाता से लेकर भिलाई तक 'अम्मा 

वाली कॉफी' कभी नहीं भूले पं. जसराज


पद्मविभूषण पं. जसराज से जुड़ी कुछ बातें, उनकी पारिवारिक सदस्य की जुबानी 
और कुछ बातें सतना की साथ में मेरा इकलौता निजी अनुभव

 प्रख्यात शास्त्रीय गायक पद्मविभूषण पं. जसराज अब हमारे बीच नहीं रहे। 90 साल की उम्र में 17 अगस्त 2020 सोमवार को अमेरिका में उन्होंने आखिरी सांस ली। संगीत जगत की एक बड़ी शख्सियत होने की वजह से उनसे जुड़ी ढेर सारी बातें और यादें लोगों के जनमानस में हैं। यहां कुछ उनकी निजी बातें। 


 कोलकाता से जुड़ा रिश्ता-भिलाई तक कायम रहा

2009 में बंगलुरु में अम्मा के साथ पंडित जसराज, साथ में हैं टी एस अनंतु  
पं. जसराज से बचपन में संगीत की तालीम लेने वालीं दिल्ली घराने की गायिका लक्ष्मी कृष्णन आज भी नहीं भूलती कि किस समर्पण के साथ उन्हें संगीत की बारीकियों से वे अवगत कराते थे। 
उनके गुजरने के बाद लक्ष्मी कृष्णन को अपने बचपन से लेकर पिछले साल मुंबई में हुई आखिरी मुलाकात सब कुछ किसी पटकथा की तरह याद आ रहा है। सेंट थॉमस कॉलेज से रिटायर प्रोफेसर लक्ष्मी कृष्णन ने पं. जसराज के साथ अपने लगाव को कुछ इस तरह याद किया- मेरे पिता टी. ए. सुब्रमण्यम कोलकाता में स्टेट्समैन अखबार में पत्रकार थे। 
उन दिनों बड़े भाई टीएस नटराज को संगीत सिखाने पं. जसराज हमारे घर आया करते थे। मैं तब 4-5 साल की थी। पं. जसराज का हमारे परिवार से इतना ज्यादा घरोबा था कि वो हमारे माता-पिता को मां बाबा ही बोलते थे। 
हम लोग भी उनके घर के सभी सदस्यों से घुल-मिल चुके थे। तब उनके बड़े भाई (स्व) पं. मणिराम और मंझले भाई (स्वपं. प्रताप नारायण भी हमारे यहां आते थे। पं. प्रताप आज की संगीतकार जोड़ी जतिन-ललित और गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा-विजेयता पंडित के पिता है।
पं. जसराज की पत्नी और प्रख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा जसराज भी हमारे परिवार के सदस्य की तरह ही रहीं। पं. जसराज के पुत्र शारंग देव और बेटी दुर्गा जसराज सहित तमाम सदस्यों से आज भी वहीं पुराने संबंध कायम है। 
हमारे परिवार में बड़े भाई टीएस नटराज, भाभी रेवती और उनकी बेटी सीता, बड़ी बहन वल्ली,छोटे भाई टीएस अनंतु और भाभी ज्योति सहित तमाम सदस्यों को पं. जसराज का हमेशा आशीर्वाद मिला।
तब पंडित जसराज अक्सर हमारे बड़े भाई नटराज से कहते थे कि पढ़ाई छोडो और आ जाओ मंच पर, दोनों भाई 'जसराज-नटराज' की जोड़ी बना कर खूब गाएंगे
हालाँकि ऐसा कभी नहीं हो पाया लेकिन पं. जसराज का आशीर्वाद हमेशा बना रहा। इसी तरह छोटे भाई अनंतु उनसे संगीत तो नहीं सीखते थे लेकिन अनंतु के प्रति उनका विशेष स्नेह रहा

 बड़े भाई को सिखाते देख मुझमें जागी संगीत की रूचि
नटराज और अनंतु सपत्नीक जसराज दम्पति संग  
मैं अपने बचपन के उन शुरूआती दिनों को याद करूं तो बड़े भाई को पं. जसराज से संगीत सीखते हुए देखती थी। कई बार खेलते-खेलते मैं भी उन्हें सुनने बैठ जाती थी। 
इस बीच कोई 4-5 साल बाद बड़े भाई का आईआईटी में चयन हो गया। तब मैं 6-7 साल और मेरी बड़ी बहन वल्ली 09 -10 साल की थी। 
पं. जसराज एक दिन बोले-अब मैं तुम दोनों बहनों को संगीत सिखाउंगा। इस तरह हम दोनों बहनों की संगीत की शुरूआती तालीम पं. जसराज के सान्निध्य में हुई। 
इस बीच हमारा परिवार मद्रास (चेन्नई) आ गया। यहां मैं कर्नाटक संगीत सीखती रही। कुछ साल बाद फिर पिता जब दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया में आ गए तो हम लोग सपरिवार दिल्ली रहने लगे।

 दिल्ली घराने से तालीम के बीच मिलता रहा उनका मार्गदर्शन

नटराज-जसराज और दुर्गा जसराज ह्यूस्टन में 
तब मैनें दिल्ली घराने के उस दौर के खलीफा उस्ताद चांद खां साहेब से गंडा बंधवाई के बाद उनके भाई उस्ताद उस्मान खां साहेब के बेटे उस्ताद नसीर अहमद खां से बाकायदा तालीम शुरू की। 
दिल्ली घराने की रिवायत के मुताबिक खलीफा से ही गंडा बंधाई रस्म पूरी करवाई जाती है। दिल्ली घराने ने कई नामचीन संगीत साधक दिए हैं। जिनमें पाकिस्तान की मशहूर गायिका इकबाल बानों भी एक हैं।
दिल्ली घराने के मौजूदा खलीफा उस्ताद इक़बाल अहमद खां साहेब हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी में संगीत विभाग की डीन रहीं कृष्णा बिष्ट भी दिल्ली घराने से ताल्लुक रखती हैं 
तब मैं दिल्ली घराने से बाकायदा तालीम जरूर ले रही थी लेकिन पं. जसराज का भी पूरा मार्गदर्शन मिलता था। तब, पं. जसराज दिल्ली आते तो हमारे घर जरूर आते। एक बार जब पं. जसराज अपनी पत्नी मधुरा के साथ आए तो मुझे गुजरी तोड़ी की एक बंदिश 'जा जा रे कगवा' मुझे पूरी तरह सिखाने के बाद ही लौटे। बाद के दिनों में मैं भिलाई आ गई। तब भी पं. जसराज से संपर्क हमेशा की तरह कायम रहा।

 भिलाई आते ही सबसे पहले पहुंचे हमारे घर  

 
बालाजी कल्याण महोत्सव 1986 
भिलाई में 15-16 नवंबर 1986 को भारत सांस्कृतिक एकता समिति, मद्रास के तत्वावधान में जयंती स्टेडियम सिविक सेंटर में दो दिवसीय बालाजी संगीत कल्याणोत्सव का आयोजन किया गया।
 इस आयोजन में पं. जसराज भी आमंत्रित थे। वहीं पं. पुरूषोत्तम जलोटा, पीनाज मसानी,पाश्र्व गायिका सिस्तला जानकी की एकल प्रस्तुति के अलावा डा. बालमुरली के वायलिन और डा. रमानी की बांसुरी की जुगलबंदी उल्लेखनीय रही।
इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने जब पं. जसराज भिलाई आए तो हम लोग सेक्टर-10 में रहते थे। इस कार्यक्रम से पहले दिन में पं. जसराज सीधे हमारे घर आए। कुशल क्षेम पूछने के बाद बोले- चलो पहले अम्मा वाली कॉफी पिलाओ।
दरअसल कोलकाता के दिनों से पं. जसराज को मेरी अम्मा सीतालक्ष्मी फिल्टर कॉफी पिलाती थीं। मैं अम्मा जैसी कॉफी तो नहीं बना पाती लेकिन जब भी पंडित जी ने अम्मा वाली कॉफी मांगी तो मैनें कोशिश जरूर की। 

मुझे हमेशा दिया उन्होंने संगत करने का सौभाग्य

सेंट थॉमस कॉलेज में पं जसराज 12-12 -08 
12 दिसंबर 2008 को जब हमारे सेंट थॉमस कॉलेज रुआबांधा की रजत जयंती मनाई गई तो पं. जसराज को विशेष रूप से प्रस्तुति देने कॉलेज आमंत्रित किया गया।
तब हम लोग मैत्री नगर रह रहे थे। उन दिनों मेरे पति स्व ए एस कृष्णन बहुत ज़्यादा बीमार थे। 
पं जसराज को भी यह बात मालूम थी, लिहाज़ा कॉलेज के मंच पर जाने से पहले बोले कि घर चलूँगा और फिर वो सीधे घर पहुंचे फिर उन्होंने हाल चाल पूछा  
उसके बाद अपनी पसंदीदा 'अम्मा वाली कॉफी' की फरमाइश की। इस मुलाक़ात के कोई दो साल बाद 2010 में मेरे पति का देहांत हुआ वो भिलाई स्टील प्लांट की ब्लूमिन्ग एन्ड बिलेट मिल में डीजीएम थे
उस रोज़ पंडित जसराज काफी देर तक घर में रहे और वहां से फिर सीधे कॉलेज के स्टेज पर पहुंचे  इसके अलावा हाल के बरसों में पं. जसराज दो बार रायपुर भी आए, तो मैंनें वहीं उनसे मुलाकात की। 
पंडित जी का मुझ पर विशेष आशीर्वाद था कि जब भी उनका कार्यक्रम हो और मैं वहां मौजूद रहूं तो तानपुरे पर मुझे संगत के लिए जरूर बिठाते थे। वैसे उनकी प्रस्तुतियों में मुख्य संगतकार हमेशा उनके भांजे पं. रतन शर्मा ही रहे। आखिरी बार पिछले साल 28 जनवरी 2019 को मुंबई में उनके जन्मदिन पर मुलाकात हुई थी। 
इस आयोजन में पं. हरिप्रसाद चौरसिया, पं. शिवकुमार शर्मा, पं. उमाकांत-रमाकांत गुंदेचा सहित संगीत जगत के सभी दिग्गज मौजूद थे। तब काफी देर उन्होंने बातें की और फिर मिलने का वादा किया। पिछले कुछ दिनों से वे अमेरिका में थे, वहीं उनका निधन हुआ।

 कैसे भूल सकती हूं-'सोफा पर सोना मना है'

आखिरी मुलाक़ात मुंबई में -2019 -साथ में 'सोफा' लिखा  कार्ड 
पं. जसराज जब कोलकाता वाले हमारे घर आते थे तो संगीत सिखाने और अम्मा की कॉफी पीने के बाद अपनी आदत के मुताबिक अक्सर एक नींद लेने सोफे पर जाकर लेट जाते थे।
हम बच्चों को एक दिन शरारत सूझी तो हम लोगों ने एक कागज पर लिखा- 'सोफा पर सोना मना है' और इस कागज को सोफा के पास लगा दिया। पं. जसरास वहां आए उन्होंने कागज देखा और मुस्कुराते हुए इसे हटा कर लेट गए। 
28 जनवरी 2019 को जब पं. जसराज जी से उनके जन्मदिन पर आखिरी मुलाकात हुई तो हम सब भाई-बहनों के परिवार की तरफ से एक खास कार्ड बना कर उन्हें दिया गया। 
इस कार्ड के आखिर में लिखा था-सोफा पर सोना मना है। फिर एक बार पं. जसराज जी ने वह कार्ड देखा और कोलकाता के दिनों की याद में खो गए। हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर बिखरी और उनकी आंखें नम थी। 

 खरज से तार सप्तक तक पहुंचना उनके जैसे साधक का काम 

जहां तक पं. जसराज के व्यक्तित्व की बात है तो वे एक दम सरल स्वभाव के थे। हम लोगों ने कभी उनमें कोई अहंकार नहीं देखा। विश्व प्रसिद्ध होने के बावजूद वो पुराने रिश्ते हमेशा बनाए रखते थे। जब भी मिलते, हम लोगों के साथ खूब मजाक करते थे। 
मेरी नजर में संगीत जगत में पं. जसराज आज के दौर के सबसे चमकदार रत्न थे। जिस तरह पं. जसराज खरज से तार सप्तक तक बिना किसी मुश्किल के बड़े आराम से पहुंच जाते थे, वह किसी योगी-साधक के बस का हो सकता है। उनके पास बंदिशों का खजाना था। 
यह सब बेहद दुर्लभ बंदिशें थीं जो पीढ़ियों से सहेजी गईं। पं. जी बहुत बड़े कृष्ण भक्त थे। उन्होंने अपने गुरूजनों और वरिष्ठों से जो कुछ भी सीखा उसे बिना किसी रोक टोक अपने शिष्यों को सहज भाव से सिखाया। 

 सतना वाले घर में पं. जसराज से जुडी मणिमय की यादें 

 
सतना में मुखर्जी परिवार के साथ पं  जसराज 
जाने-माने रंगकर्मी मणिमय मुखर्जी को आज भी उनके सतना वाले घर में पं. जसराज के साथ बिताए पल कभी नहीं भूलते। 
करीब 32 साल पहले की एक फोटो दिखाते हुए मणिमय बताते हैं, इस फोटो में दायें से मेरे बड़े भाई आनंद मुखर्जी,पं जसराज,पं आसकरण शर्मा, मैं स्वयं और मेरे पहले मास्टर संजीव अभ्यंकर (पं जसराज के शिष्य) अब पं संजीव अभ्यंकर, कुलभूषण संगीत प्रेमी भाई के मित्र।
नीचे पंडित जसराज की एक और शिष्या सुश्री मुखर्जी, हमारी बड़ी साली साहिबा सुमिता दासगुप्ता, पत्नी सुचिता मुखर्जी और पत्नी की सहेली सुजाता घोष नजर आ रहे हैं। 
मणिमय बताते हैं-पं. आसकरण और पं. जसराज दोनों पं मणिराम के शिष्य थे। वैसे पं मणिराम रिश्ते के लिहाज से पं. जसराज के सगे बड़े भाई भी थे। पं आसकरण शर्मा की पत्नी पं मणिराम की बेटी थीं तो पंडित जसराज रिश्ते में पं आसकरण के चाचा ससुर भी थे। हालांकि इससे बढ़ कर वे मित्र ज्यादा थे। करीब 32 साल पुरानी यादें हमारे सतना वाले घर से जुड़ी हुई हैं। 
पं. जसराज तब रीवा में कार्यक्रम देने आए थे। उनके साथ पं. आसकरण शर्मा थे और पं. शर्मा से मेरे बड़े भाई आनंद मुखर्जी संगीत सीखते थे। ऐसे मेें जब पं. आसकरण शर्मा ने पं. जसराज से हमारे घर चलने कहा तो वे सहर्ष तैयार हो गए।
हम लोगों तक खबर पहुंची तो हम सब हड़बड़ा गए कि उनका स्वागत कैसे करें। खैर, घर पहुंचे तो हम लोगों को लगा ही नहीं कि इतनी बड़ी हस्ती हमारे बीच है। तब उन्होंने खूब हंसी-मजाक किया, सबका हालचाल पूछा।
हमारे घर पर आने के बाद पं जसराज जब भी सतना से निकलते वो हमारे घर की बिना प्याज लहसुन वाली बंगाली दाल और रोटी मंगवा लिया करते थे। हम सब के लिए पं. जसराज एक बेहद सरल और विशाल हृदय वाले इंसान थे। 

 हमको लगा पं. जसराज के लिए ही गुरुदेव ने लिखी है यह रचना

उस रोज जब पं. जसराज हमारे घर आए थे, तब मेरी भतीजी अंतरा मुखर्जी 7-8 साल की थी। पं. जसराज को पता लगा कि अंतरा गाती है तो उन्होंने उसे पास बुलाया और कुछ सुनाने कहा।
तब अंतरा ने उन्हें एक रवीन्द्र संगीत 'तूमि केमोन कोरे गान करो हे गुनी आमी अवाक होते सूनी' सुनाया था। हम सबके साथ पं. जसराज भी तल्लीन होकर यह गान सुन रहे थे
तब हम लोगों को ऐसा लग रहा था जैसे कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह रचना पंडित जसराज के लिए ही लिखी हो। इस गीत का हिन्दी भावार्थ है कि-''हे गुणी तुम कैसे इतना सुन्दर गायन कर लेते हो, मैं आश्चर्य चकित हो कर सुनता रह जाता हूं। मैं भी सोचता हूं कि मैं भी तुम्हारे जैसा सुरीला गाऊं पर मैं अपने गले में सुर ढूंढ ही नही पाता हूं। मैं क्या कहना चाहता हूं मैं कह नहीं पाता हूं पर हार मानने से भी मेरे प्राण कांपते हैं ,हे गुणी तुमने मुझे ये कहां फंसा दिया।'' सचमुच में बेहद गुणी और सुंदर गायन करने वाले व्यक्तित्व थे पं. जसराज। 

  पं. जसराज से मेरी वो तनाव से भरी यादगार मुलाक़ात 

प्रेस कांफ्रेंस के बाद गुफ्तगू ,साथ में हैं प्रो लक्ष्मी कृष्णन 
प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. जसराज से मेरी इकलौती,यादगार और तनाव भरी मुलाकात 12 दिसंबर 2008 की सुबह की है। 
तब सेंट थॉमस कॉलेज रुआबांधा का रजत जयंती समारोह था और पंडित जसराज वहां विशेष तौर पर गायन के लिए आमंत्रित थे। 
खैर, यह मुलाकात एक मायने में यादगार ही रही। लेकिन इसमें तनाव का पुट भी आ गया था। इसकी एक वजह यह थी कि इस मुलाकात से ठीक पहले मेरी 'शहादत' की रात थी। 
तब मैं जिस अखबार में सेवा दे रहा था, वहां अचानक पता चला कि सबसे तेज बढ़ता अखबार अब कास्ट कटिंग लागू करने जा रहा है। लेकिन मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि पहली बिजली मुझ पर ही गिरेगी।
दरअसल 11 दिसंबर की शाम मैं अपने रूटीन काम को निपटाने के बाद शहर के शास्त्रीय संगीत के कुछ जानकारों से फोन पर बात कर रहा था कि कल पं. जसराज से क्या-क्या पूछा जा सकता है। 
इस बीच हमारे उस रोज के संपादकीय प्रभारी अपना लैंडलाइन फोन रख अपनी कुरसी से उठे, उन्होंने मुझे फोन रख कर बाहर चलने कहा। जैसे ही मैं बाहर निकला तो उन्होंने धीरे से कहा-कास्ट कटिंग में पहला नाम तुम्हारा है। जाहिर है पैरों तले जमीन खिसकनी थी।
मैनें पूछा क्या करना है तो उन्होंने कहा कि मैनेजमेंट ने 5 दिन काम लेने कहा है, अगर तुम नहीं भी आओगे तो भी तुमको अगले 5 दिन की तनख्वाह मिलेगी और पूरा हिसाब-किताब 5 दिन बाद हो जाएगा। 
मैनें फिर पूछा कि कल पं. जसराज आ रहे हैं, तो उनका इंटरव्यू करना है या नहीं? उन्होंने कहा-देख लो तुम्हारी मर्जी, अगर इंटरव्यू कर लोगे तो अच्छी बात है नहीं करोगे तो कोई बात नहीं। मुझे लगा शायद इंटरव्यू करने का इशारा है। ऐसे में मैं अपनी तैयारी पूरी कर 12 दिसंबर की सुबह पहुंच गया दुर्ग के होटल सागर। 
वहां जाने पर पता चला कि मेरी जगह एक अन्य रिपोर्टर को भी भेज दिया गया है। यह एक तरह से अपमानजनक स्थिति थी। इसलिए मैनें फिर एक बार संपादकीय प्रभारी से पूछा कि आपने तो कहा था कि इंटरव्यू चाहे तो दे देना, फिर यहां एक और को आपने भेज दिया है। इस पर वो बोले-उसको कुछ आता-वाता थोड़ी है, तुम बना कर दे दोगे तो लगा देंगे। 
खैर, तब तक पंडित जसराज सामने आ चुके थे लेकिन मन में संगीत से जुड़े सवालों के बजाए भविष्य की चिंता ज्यादा थी। दिमाग परेशान था, इसलिए मैनें बहुत ज्यादा सवाल नहीं पूछे, कुछ भी रिकार्ड नहीं किया। हां, इतनी बड़ी हस्ती सामने बैठी हो तो उनकी बातें सुनने और गुनने की कोशिश जरूर की।
संगीत से जुड़े कुछ एक सवाल मैनें किए, इसका उन्होंने कुछ आधा-अधूरा सा जवाब भी दिया। फिर इंटरव्यू खत्म हुआ तो आखिरी में उनके साथ फोटो खिंचाने का मोह तो छोड़ नहीं सकता था।
इसी दौरान मुझसे एक चूक हुई। दरअसल पं. जसराज के बाजू कुर्सी पर उनकी शिष्या और सेंट थामस कॉलेज मेें प्रोफेसर लक्ष्मी कृष्णन बैठी हुई थी। मैनें फोटो खिंचाने के लिहाज से प्रो. कृष्णन से गुजारिश की तो वो बिना कुछ बोले मुझे देखते ही रह गईं। 
मेरी समझ में आ गया कि जरूर कुछ गड़बड़ हुई है। इसके पहले कि प्रो. लक्ष्मी कृष्णन कुछ कहतीं, पं. जसराज ने नाराज होते हुए कहा-ये क्या बात हुई, आप उन्हें उठने कह रहे हैं? आप जानते हैं कौन हैं वो? आप पहले खुद को इस काबिल बनाइए कि हमारे बराबर बैठ सकें। 
उनकी इस बात से पूरा माहौल थोड़ी देर के लिए तनावमय हो गया, फिर पं. जसराज थोड़े शांत हुए और बात बदलते हुए बोले-हां, वो संगीत के घरानों के बारे में क्या पूछ रहे थे आप? मैनें वहीं उनके पास नीचे बैठे-बैठे फट से सवाल दागा औ्रर उन्होंने जवाब भी दिया। 
इसके बाद पं. जसराज बोले-''अच्छा भई शाम को मिलेंगे, आप लोग कार्यक्रम में जरूर आइए।'' पं. जसराज से यही एकमात्र तनाव भरी मुलाकात थी, जिसकी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी।

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