Tuesday, September 15, 2020

नेहरू की सौगात हरा-भरा भिलाई 



छत्तीसगढ़ विधानसभा की त्रैमासिक पत्रिका
 'विधायन' में प्रकाशित मेरा आलेख 


 मुहम्मद जाकिर हुसैन 

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के निर्माणाधीन स्थल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 16 दिसंबर 1957

देश की आजादी के बाद सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का दृष्टिकोण बिल्कुल साफ था। वे औद्योगिक तीर्थों की स्थापना के साथ एक आधुनिक भारत की नींव रख रहे थे, जिसमें देशवासी पूरी दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें। 
 अपने इसी नजरिए की वजह से जवाहरलाल नेहरू ने पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की। जिसमें पहली पंचवर्षीय योजना 1951 से 1956 में देश के चहुमुखी विकास के लिए औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात कर दिया गया था। वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.1 था और इस प्रथम योजना में 3.6 प्रतिशत की विकास दर हासिल की गई। 
 इसके बाद दूसरी पंचवर्षीय योजना मेें 4800 करोड़ रूपए के प्रावधान के साथ 4.5 फीसदी विकास दर हासिल की गई। इस दूसरी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने तीन प्रमुख स्टील प्लांट की स्थापना को मंजूरी दी गई। जिसके अंतर्गत तत्कालीन तत्कालीन सोवियत संघ की सहायता से तब के मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ अंचल में भिलाई, जर्मनी की सहायता से ओडिशा में राउरकेला और इंग्लैंड की सहायता से पश्चिम बंगाल मेेंं दुर्गापुर में फौलाद बनाने के कारखाने लगे। 
 इन तीनों कारखानों की स्थापना में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बेहद दिलचस्पी दिखाई। इनमें भिलाई स्टील प्रोजेक्ट को लेकर नेहरू कुछ ज्यादा ही भावनात्मक थे क्योंकि यह भारत के अनन्य मित्र सोवियत संघ की सहायता से स्थापित हो रहा था। यह नेहरू की ही दूरंदेशी थी कि उन्होंने भिलाई की स्थापना के साथ एक ऐसे विश्वस्तरीय शहर की परिकल्पना की, जहां सब कुछ नियोजित ढंग से हो। 
इसलिए यहां जो शहर बसा उसमें न सिर्फ नागरिक सुविधाओं का ध्यान रखा गया बल्कि पर्यावरण को लेकर भी पूरी गंभीरता बरती गई। भिलाई स्टील प्लांट के लिए लौह अयस्क खदान के तौर पर दल्ली राजहरा की खदाने आवंटित की गई लेकिन यह जवाहरलाल नेहरू की दूरदृष्टि थी कि उन्होंने भिलाई के भविष्य और पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता का भी पूरा ध्यान रखा। इस वजह से उन्होंने भिलाई का भविष्य सुरक्षित रखने दल्ली राजहरा से 85 किमी दूर रावघाट लौह अयस्क भंडार पूरा का पूरा भिलाई स्टील प्लांट के लिए सुरक्षित करवा दिया था।
 जिससे कि भिलाई के लिए अंधाधुंध खनन के बजाए सुरक्षित ढंग से खनन संभव हो सके। भिलाई टाउनशिप के नियोजन की बात करें तो जवाहरलाल नेहरू के दृष्टिकोण से ही संभव हो पाया कि यहां आवासों-सड़कों व अन्य निर्माण के साथ बड़े पैमाने पर खाली जमीन छोड़ी गई, जहां तब से पौधारोपण शुरू किया गया। नतीजतन आज हम हरा-भरा भिलाई देखते हैं। जवाहरलाल नेहरू की की इस दूरदृष्टि को बाद के दौर में उनके खानदानी व राजनीतिक वारिस रहे भूतपूर्व प्रधानमंत्री द्वय इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी भिलाई को ऊंचाईंयां देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

 नेहरू का नजरिया और रविशंकर शुक्ल की सूझबूझ 

 छत्तीसगढ़ विधानसभा की शोध पत्रिका 'विधायन' अंक-19, जुलाई-सितम्बर-2020 

जिस वक्त भिलाई का ब्लूप्रिंट बन रहा था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक विश्व स्तरीय टाउनशिप की अवधारणा रखी थी। उनकी बातों से तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल भी पूरी तरह सहमत थे। 
 यही वजह है कि जवाहरलाल नेहरू के दृष्टिकोण के अनुरूप रविशंकर शुक्ल ने चुन-चुन ऐसे अफसरों को प्रतिनिुयुक्ति पर भिलाई स्टील प्रोजेक्ट में भेजा, जो एक शहर की बसाहट में अपना श्रेष्ठ योगदान दे सकते थे। इनमें सबसे पहला नाम तत्कालीन मध्यप्रदेश के पुनर्वास आयुक्त श्रीनाथ मेहता (आईसीएस) का आता है। 
मेहता को भिलाई स्टील प्रोजेक्ट का जनरल मैनेजर बनाया गया। उनके साथ ही मध्यप्रदेश के मुख्य अभियंता (जल संसाधन) पुरतेज सिंह को भिलाई का डिप्टी चीफ इंजीनियर बना कर भेजा गया। मेहता ने जहां अपने प्रशासनिक कौशल की वजह से भिलाई में भू-अधिग्रहण, पुनर्वास और राहत के कार्य को अंजाम दिया वहीं पुरतेज सिंह ने अपने तकनीकी कौशल का इस्तेमाल भिलाई के पर्यावरण को बेहतर बनाने में किया।
 पुरतेज सिंह के नेतृत्व में भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के लिए शिवनाथ नदी तट पर पहला एनीकट बनाया गया और पहली बार शिवनाथ नदी से ब्लास्ट फर्नेस-1 के निर्माण स्थल तक के लिए पाइप लाइन बिछाई गई। पुरतेज सिंह के नेतृत्व में समूचे टाउनशिप की प्लानिंग में हर सेक्टर में पानी की पाइप लाइन और पानी टंकी की व्यवस्था की गई। 
इसी तरह पूरे शहर से निकलने वाले अपशिष्ट जल के शोधन के लिए कुटेलाभाठा में आक्सीडेशन पॉंड का निर्माण भी पुरतेज सिंह की निगरानी में हुआ। यह समूचे देश का ऐसा पहला आक्सीडेशन पांड था, जिसमें टाउनशिप से निकलने वाले गंदे पानी को प्राकृतिक रूप से बैक्टीरिया डाल कर सूरज की रोशनी के साथ होने वाली रसायनिक क्रिया से साफ किया जाता था। इस आक्सीडेशन पांड से शोधन के उपरांत मिलने वाले पानी का इस्तेमाल खेतों में किया जाता रहा। इसी तरह भिलाई के पर्यावरण को बेहतर बनाए रखने में तत्कालीन मध्यप्रदेश के एक और अफसर सरदार बीरम सिंह का अहम योगदान रहा है। 
वरिष्ठ पत्रकार (स्व.) बसंत कुमार तिवारी उन दिनों के गवाह रहे हैं। उन्होंने इस संदर्भ में विस्तार से कुछ इस तरह बताया था- मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने वन विभाग के सरदार बीरम सिंह को जिम्मा दिया था भिलाई में हरियाली लाने का। तब टाउनशिप की योजना बनाते समय तीन प्रमुख सड़कों की परिकल्पना की गई तो इनके नाम तय नहीं थे। एक जुलाई 1956 को मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल भिलाई स्टील प्रोजेक्ट की प्रगति का मुआयना करने आए। 
उन्होंने रायपुर से हम दो-तीन पत्रकारों को भी साथ लिया। उस वक्त सिंगल ट्रैक ही रेलवे पटरी थी। पावर हाउस के पास पटरियों से थोड़ी दूर प्रस्तावित सेक्टर-1 के हिस्से में मुख्यमंत्री शुक्ल ने भूमिपूजन किया। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री शुक्ल, हम पत्रकारों और एक-दो अतिथियों (कुल छह लोगों) ने यहां बनने वाली प्रस्तावित सड़क के दोनों ओर तीन-तीन पौधे लगाए। बाद में इसी आधार पर इसे सिक्स ट्री एवेन्यू कहा जाने लगा। 
इसके बाद टाउनशिप के बीच में सेंट्रल एवेन्यू की परिकल्पना की गई और कारखाने से लगे हिस्से की सड़क के दोनों ओर चूंकि तब भी काफी बड़े-बड़े पेड़ थे इसलिए उसे फारेस्ट एवेन्यू का नाम दिया गया। सरदार बीरम सिंह ने समूचे टाउनशिप के साथ सिक्स-ट्री, सेंट्रल और फारेस्ट एवेन्यू की हरा-भरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खास तौर पर सिक्स ट्री एवेन्यू में पेड़ लगाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि सामने पटरियों पर दौड़ते कोयले के इंजन का धुआं टाउनशिप में प्रदूषण न फैलाए। 

 भिलाई में कारखाना और टाउनशिप का नियोजन 

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर स्टील प्रोजेक्ट को लेकर इतने ज्यादा उत्साहित थे कि पूरे कार्य की निगरानी सीधे उनके प्रधानमंत्री कार्यालय से होती थी। तब हर शनिवार रात 8:30 बजे का समय प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा सुरक्षित रखा जाता था, जिसमें हॉट लाइन पर खुद जवाहरलाल नेहरू भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर के जनरल मैनेजर से बात करते थे और पूरे कार्य की साप्ताहिक समीक्षा करते थे। इसमें कारखाना निर्माण की समीक्षा तो होती थी, साथ ही टाउनशिप को लेकर भी जवाहरलाल नेहरू अपने जरूरी सुझाव देते थे। उनके सुझाव का ही नतीजा था कि जब कारखाना निर्माण शुरू हुआ तो हर यूनिट में पौधारोपण के लिए पर्याप्त जगह रखी गई और ऐसी ही व्यवस्था टाउनशिप निर्माण के दौरान भी की गई। 
 भिलाई के शुरूआती दौर के वास्तुविद भा. वा. नांदेड़कर को आज भी वह दिन नहीं भूलते जब देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भविष्य के भारत की नींव रखी जा रही थी। नांदेड़कर उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं- मैंने 19 जून 1957 को भिलाई स्टील प्रोजेक्ट में वास्तुविद के पद से अपनी सेवा की शुरुआत की। तब तक सेक्टर-1,भिलाई हाउस व 32 बंगला के लिए शिवनाथ नदी से पेयजल की व्यवस्था हो चुकी थी। वहीं सेक्टर-10 व भिलाई होटल निर्माणाधीन थे। 
एक निर्जन स्थान पर किस तरह भिलाई टाउनशिप की प्लानिंग की गई यह बेहद रोचक तथ्य है। शुरूआती दौर में एक मिलियन टन प्लांट के मैनपावर को देखते हुए 35 हजार आवासों की जरुरत थी। तब काफी कर्मचारी दुर्ग में रहते थे और इतने मकान दुर्ग में निर्माण करवाना संभव नहीं था। टाउनशिप की जो शुरुआती प्लानिंग राजदान-मोदी आर्किटेक्ट ने तैयार की थी। 
 उसके मुताबिक मरोदा टैंक को आधार मानते हुए दोनों हिस्सों में टाउनशिप का निर्माण होना था। लेकिन बाद में उसे बदल कर मुंबई-हावड़ा रेल लाइन को केंद्र मानते हुए पटरी के दोनों तरफ टाउनशिप की प्लानिंग की गई। संभवत: इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय की राय को मानते हुए फैसला लिया गया था। ऐसे में पटरी के एक तरफ समानांतर तीन मुख्य मार्ग (आज के सिक्स ट्री,सेंट्रल व फारेस्ट एवेन्यू) बनाए गए। 
ठीक वैसे ही जैसे शरीर में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाडिय़ां होती है। सुषुम्ना जो मध्य (सेंट्रल एवेन्यू) में दौड़ती है। इसके एक तरफ कर्मभूमि (कारखाना जाने) फारेस्ट एवेन्यू व दूसरी तरफ हास्पिटल (32 बंगला का पुराना दवाखाना)जाने सिक्स ट्री एवेन्यू बनाई गई। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने तब टाटा स्टील प्लांट की गार्डन सिटी का उदाहरण भी था। ऐसे में केंद्र सरकार के सुझावों को शामिल करते हुए भिलाई को वनाच्छादित शहर के रूप में विकसित करने की परिकल्पना की गई थी। जिसके लिए एक एकड़ में 10 मकानों की प्लानिंग की गई। 
इस तरह हर एक सेक्टर में 3 हजार मकान और एक हजार आवास के पीछे एक प्राथमिक शाला व दो हजार आवास के पीछे एक उच्चतर माध्यमिक शाला का निर्माण किया गया। चूंकि भिलाई के आस-पास कोई अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था इसलिए हर सेक्टर में हायर सेकेंडरी स्कूल, मार्केट, हेल्थ सेंटर,स्लाटर हाउस, कम्यूनिटी हाल व अन्य सुविधाएं दी गई। शुरुआती दौर में 32 बंगला के बंगला नं. 32 और सेक्टर-1 के सड़क नं. 4 में हेल्थ सेंटर शुरु किया गया।
 तब आस्था के केंद्र के रूप में सेक्टर-2 और सेक्टर-9 के हनुमान मंदिर ही थे। बाद में सेक्टर-6 की प्लानिंग धार्मिक स्थलों के लिए की गई और वहां सभी धर्मों के अराधना स्थलों को जगह आबंटित की गई। हर एक सेक्टर नागरिक सुविधाओं के मामले में पूर्ण रहे इसका पूरा ध्यान रखा गया, जिसके चलते प्रत्येक सेक्टर मेें स्कूल, अस्पताल व शॉपिंग सेंटर बनाए गए। 
 इसके साथ ही टाउनशिप के ठीक मध्य मेें टाउनशिप के वृहद व्यवसायिक केंद्र की परिकल्पना को मूर्त रूप देते हुए दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर सिविक सेंटर बनाया गया। टाउनशिप में पहले चरण में एकल या युग्म आवास बनाए गए। फरवरी 1960 में जब सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव भिलाई यात्रा पर आए तो उन्होंने लंच के दौरान अनौपचारिक रुप से टाउन प्लानिंग के बारे में बात की। उन्होने अपने समाजवादी नजरिए से मल्टी स्टोरी आवास बनाने का सुझाव दिया जिससे भविष्य के विस्तारीकरण में ज्यादा से ज्यादा लोग टाउनशिप में रह सके।
 उनका यह सुझाव दिल्ली के दखल से कुछ दिन बाद भिलाई मेें अमल में लाया गया और सेक्टर-6 व 7 सहित विभिन्न सेक्टर्स में बहुमंजिला आवास बनाए गए। भिलाई में हरियाली का महत्व आज इसी बात से समझा जा सकता है कि जब 16 दिसंबर 1957 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु पहली बार भिलाई यात्रा पर आए।
 उनके साथ बर्मा के प्रधानमंत्री ऊ-नू भी थे। इन विशिष्टï अतिथियों के सम्मान में भिलाई हाउस मेें सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया। जिसमें एक बैले की प्रस्तुति हुई। देश की तरक्की दिखाने के लिए प्रस्तुत किए जा रहे इस बैले के मंच पर पाश्र्व में बनाई गई पेंटिंग मेरी थी।
 इसमें मैनें हरियाली के बीच उभरता हुआ कारखाना और टाउनशिप दिखाने की कोशिश की थी। मेरी इस पेंटिंग की अतिथियों सहित तमाम लोगों ने खूब तारीफ की। तब जिस हरियाली की परिकल्पना की गई थी, उसे आज मूर्त रूप में देखकर समझ में आता है कि हमारे देश के नेतृत्वकर्ता कितने दूरअंदेशी थे।

 जवाहरलाल नेहरू का छत्तीसगढ़ और भिलाई दौरा 

 प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का न सिर्फ भिलाई बल्कि समूचे छत्तीसगढ़ से आत्मीय रिश्ता था। भिलाई का निर्माण देश की स्वतंत्रता के उपरांत हुआ लेकिन जवाहरलाल नेहरू का छत्तीसगढ़ अंचल पहले भी आना होता रहा है। दस्तावेजों के मुताबिक 13 अप्रैल 1930 को रायपुर में महाकोशल राजनीतिक परिषद् का आयोजन किया गया था अधिवेशन की अध्यक्षता करने जवाहरलाल नेहरू रायपुर आने वाले थे। 
वे इलाहाबाद से रायपुर के लिए रवाना भी हो गए किंतु इरादतगंज में वे गिरफ्तार कर लिए गए। अंतत: 15 अप्रैल 1936 को उनका प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। उनका पहला पड़ाव महासमुंद था। उनके स्वागत के लिए रायपुर से रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह और द्वारिकाप्रसाद मिश्र आदि नेता महासमुंद पहुंचे। 
ठाकुर प्यारेलाल सिंह महाकोशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री थे और रविशंकर शुक्ल रायपुर डिस्ट्रिक्ट कौंसिल के अध्यक्ष थे। तब 1935 के अधिनियम के अनुसार चुनाव हो रहे थे। ऐसे में यह जवाहरलाल नेहरू का चुनावी दौरा था। तब रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर से काग्रेस के उम्मीदवार मैदान में थे। 15 अप्रैल को रायपुर पहुंच कर जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय विद्यालय में डिस्ट्रिक्ट कौंसिल द्वारा आयोजित सप्तम वार्षिक अधिवेशन को संबोधित किया था।
 रायपुर में तब उन्होंने लारी स्कूल (सप्रे शाला) मैदान में 'आजादी का आर्थिक आधार' विषय पर आयोजित सभा को भी संबोधित किया था। इसके बाद स्वतंत्र भारत में जवाहरलाल नेहरू 1951 के आम चुनाव में प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ अंचल पहुंचे थे। यहां उन्होंने 8 दिसंबर 1951 को रायपुर कटोरातालाब के विशाल मैदान में चुनावी सभा को सम्बोधित किया था। फिर प्रथम आम चुनाव के बाद 8 मार्च 1954 को उनका रायपुर आगमन हुआ था। यहां से वे बस्तर प्रवास पर गए थे।

ऐसे पड़ी भिलाई परियोजना की नींव 

 यह वह दौर था,जब भिलाई परियोजना अपने गर्भ में थी। तब भिलाई परियोजना के जन्म की पृष्ठभूमि भी बेहद रोचक है। दरअसल स्वाधीनता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र में एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की जरूरत को साफ तौर पर महसूस किया। इस दिशा में भारत सरकार ने 'हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड' का 19 जनवरी 1954 में गठन किया। इसके बाद 2 फरवरी, 1955 को सोवियत तकनीक से 10 लाख टन इस्पात उत्पादन की क्षमता वाले इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिये पुरोगामी समझौता हुआ। 
यह इस्पात कारखाना कहां लगाया जाये इसको लेकर एकमत राय उभर कर नहीं आ रही थी। भारी कश्मकश और कोशिशों के बाद भिलाई में इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिये सहमति हुई। सारे प्रयासों के बाद 14 मार्च 1955 को अंतत: दुर्ग जिले के भिलाई को इस कारखाने के लिये चुना गया और इसके बाद ही निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो पाई। 
 मध्य प्रदेश का एक आर्थिक रूप से पिछड़ा आदिवासी अंचल को इसके लिये चुना गया था और यह पिछड़ा अंचल और कोई नहीं आज का औद्योगिक तीर्थ 'भिलाई' है। इस औद्योगिक तीर्थ के अपने इस स्वप्न को साकार होते देखने जवाहर लाल नेहरू भिलाई आते रहे। उनका पहला दौरा 16 दिसम्बर 1957 को हुआ। जब भिलाई स्टील प्रोजेक्ट अपनी निर्माण अवस्था में था। तब उनके साथ बर्मा के प्रधानमंत्री ऊ-नू और किशोरवय के राजीव गांधी भी थी। तब प्रधानमंत्री नेहरू ने सिर्फ कारखाना निर्माण का जायजा नहीं लिया था बल्कि उनकी नजर निर्माणाधीन टाउनशिप में भी थी। टाउनशिप में तब सेक्टर-1,4,9 और 10 तेजी से बन रहे थे।
 वहीं 32 बंगला और भिलाई हाउस में अफसर रह रहे थे। मजदूरों के लिए 4 कैम्प बनाए गए थे। जिसमें से 1 व 2 तो आज भी मौजूद है, वहीं कैम्प-3 बोरिया क्षेत्र में था, जहां बाद में 40 लाख टन परियोजना के तहत प्लेट मिल स्थापित हुई वहीं कैम्प-4 पुरैना क्षेत्र में था। प्रधानमंत्री नेहरू को तब सेक्टर-1 के कुछ बन चुके आवासों को दिखाया गया था। यहां नेहरू काफी देर रुके रहे और इन मकानों के साथ लगाए गए पेड़-पौधों की पहल की उन्होंने तारीफ की।
 इसके बाद उनका अगला दौरा अक्टूबर 1960 के अंतिम सप्ताह में हुआ, तब पूरा का पूरा नेहरू मंत्रिमंडल रायपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में हिस्सा लेने आया हुआ था। जवाहरलाल नेहरू इस सिलसिले में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक पूरे तीन दिन रायपुर में रुके थे। वहां उन्होंने 30 अक्टूबर को दाऊ कल्याण सिंह (डी.के.) सरकारी अस्पताल के नए भवन का उद्घाटन भी किया था। लेकिन रायपुर दौरे से पहले 27 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नेहरू दिन भर भिलाई में रहे। 
उन्होंने यहां नवनिर्मित रेल एंड स्ट्रक्चरल मिल का उद्घाटन किया तथा एक सभा को संबोधित भी किया था। इसके बाद उनका आंशिक दौरा 14 फरवरी 1962 को हुआ। तब नेहरू चुनाव प्रचार के सिलसिले में ओडिशा जा रहे थे और दिल्ली से वे भिलाई के नंदिनी एयरोड्रम पहुंचे। यहां उनका स्वागत करने आम जनता खड़ी थी। उन्होंने सबका अभिवादन स्वीकार किया और नंदिनी एयरोड्रम के एक कमरे में भिलाई स्टील प्लांट के अफसरों से कारखाने के कामकाज की जानकारी ली, कुछ जरूरी हिदायतें दी और इसके बाद वायुसेना के प्लेन से ओडिशा के लिए रवाना हो गए। 
 जवाहरलाल नेहरू का आखिरी छत्तीसगढ़ दौरा 14-15 मार्च 1963 को हुआ था। तब पहले दिन 14 मार्च को उन्होंने रायपुर में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। यहां उन्होंने शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज भवन का उद्घाटन किया। जिसे वर्तमान में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (एनआईटी) का दर्जा मिल चुका है। इस दिन रायपुर म्युनिसिपल कमेटी की ओर से जवाहरलाल नेहरू को मानपत्र भेंट किया गया। अपने अभिनंदन पर 14 मार्च को उन्होंने राजकुमार कॉलेज के विद्यार्थियों को भी संबोधित किया। इसके अगले दिन वे भिलाई पहुंचे थे। जहां उन्होंने कारखाना देखने के बाद एक आमसभा को संबोधित किया था। 

 जहां इंदिरा ने लगाया था पौधा, वह सिविक सेंटर कहलाया इंदिरा प्लेस

 यह बांग्लादेश निर्माण के बाद एक लोकप्रिय जननेता बन कर उभरी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दौर था। तब बांग्लादेश निर्माण और पाकिस्तान की करारी हार के चलते इंदिरा गांधी अपनी लोकप्रियता के चरम पर थीं। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के पराजय स्वीकार कर लेने के बाद जब औपचारिक तौर पर बांग्लादेश का गठन हो गया तो भिलाई स्टील प्लांट मैनेजमेंट ने अपनी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक अनूठा उपहार देने का फैसला लिया था। 
 तब के जनरल मैनेजर (स्व.) पृथ्वीराज आहूजा ने बीते दशक में इन पंक्तियों के लेखक को तफसील से बताया था कि कैसे नई दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर बनाए गए भिलाई के मार्केट सिविक सेंटर को इंदिरा प्लेस का नाम देना तय हुआ था। आहूजा के मुताबिक चूंकि यहां साल 1963 में अपने पहले भिलाई प्रवास के दौरान इंदिरा गांधी ने पौधा लगाया था और एक आमसभा को भी संबोधित किया था, इसलिए तत्कालीन हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (एचएसएल) मैनेजमेंट की सहमति से सिविक सेंटर का नाम बदल कर इसे इंदिरा प्लेस रखना तय हुआ।
 इस दिशा में तमाम औपचारिकताओं और मंजूरी के बाद कार्यक्रम बना कि इंदिरा प्लेस का लोकार्पण खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी करेंगी। इसके लिए तारीख भी तय हो गई और कार्यक्रम भी। लेकिन ऐन वक्त पर 26 जनवरी की व्यस्तता को देखते हुए प्रधानमंत्री का भिलाई दौरा टल गया और (स्व. आहूजा के मुताबिक) प्रधानमंत्री कार्यालय की मंजूरी के बाद तय हुआ कि जनरल मैनेजर आहूजा ही इस विशेष पट्टिका का अनावरण कर दें। इस तरह 25 जनवरी 1972 से सिविक सेंटर का नाम बदल कर इंदिरा प्लेस कर दिया गया। 

 भिलाई ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए अनूठे कार्य 

 प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने जिस वैश्विक दृष्टिकोण से भिलाई की स्थापना की थी, उसका मान इस शहर ने हमेशा रखा। प्रारंभ से ही भिलाई ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ऐसे कदम उठाए कि आज 60 साल से ज्यादा की उम्र का हो रहा यह लघु भारत हरियाली से आच्छादित है। यहां का पर्यावरण संरक्षण किसी भी औद्योगिक नगरी के लिए एक मिसाल है। 
आईए जानते हैं कि भिलाई ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कौन-कौन से प्रमुख कदम उठाए, जिनसे आज इस शहर की आबोहवा हमेशा साफ रहती है। 

 पानाबरस परियोजना ने किया भिलाई का कायाकल्प

 तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के कार्यकाल में 24 जुलाई 1975 को मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम अस्तित्व में आया। इस निगम का उद्देश्य वनों की उत्पादन क्षमता में त्वरित गति से वृद्धि करने के लिए तेजी से बढऩे वाली बहुमूल्य औद्योगिक/व्यापारिक कार्यों के लिए उपयोगी प्रजातियों का रोपण करना था। 
 इसी तरह गहन वन प्रबंध पद्धति से वनों की उत्पादन क्षमता एवं गुणवत्ता में सुधार लाना तथा राज्य में वानिकी गतिविधियों के लिए सक्षम योजनाएं तैयार कर वित्तीय संस्थानों से ऋण एवं अतिरिक्त धनराशि प्राप्त करना, बिगड़े वनों का सुधार, पौधारोपण, जलग्रहण क्षेत्र उपचार एवं क्षतिपूरक पौधारोपण करना भी उद्देश्य में शामिल था। 
 वन विकास निगम के अधीन शुरू की गई पानाबरस परियोजना ने इस्पात नगरी भिलाई को हरा-भरा बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। इस परियोजना के अंतर्गत वर्ष 1975 से अब तक हर साल लाखों की संख्या में पौधारोपण कर औद्योगिक क्षेत्र भिलाई को हरा-भरा बनाने में मुहिम जारी है।नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में भी यह निगम पूर्व प्रावधानों के अनुसार कार्यरत है। जिसका गठन 2001 में किया गया था। 
 जैव विविधता का संरक्षण भिलाई इस्पात संयंत्र ने प्लांट, टाउनशिप और माइंस में जैव-विविधता के संरक्षण के लिए शुरुआती वर्षों से बड़े पैमाने पर पौधारोपण अभियान चलाया है। जिसमें अब तक 56 लाख से अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं, इनमें बीएसपी का प्लांट क्षेत्र, टाउनशिप और माइन्स को वानिकी क्षेत्र के रूप में बदल दिया गया है, यहां वनस्पतियों और जीवों की विविधता को आश्रय दिया गया है। इसमें हाल के वर्षों में टाउनशिप के अंदर बागवानी विभाग द्वारा लगाए गए 40,000 पेड़ भी शामिल हैं। 
गौरतलब है कि 1989 के बाद से बागवानी विभाग द्वारा टाउनशिप में 22.5 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं। वर्ष 2019-20 के दौरान, टाउनशिप और इसके परिधीय क्षेत्रों में 47,438 पौधे लगाए गए, जिन्होंने हरियाली बिखेरने में योगदान दिया। छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के सहयोग से परिधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सड़क के किनारे पौधारोपण किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य शासन द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ राज्य हरा-भरा योजना के अंतर्गत वर्ष 2008 में भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के सहयोग से तीन लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं। 
 बीएसपी द्वारा अपनी निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) गतिविधि के तहत छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के माध्यम से वर्ष 2006-07 से 2016-17 के बीच कुल 310 किलोमीटर सड़क के किनारे रोपण का कार्य पूरा होने के बाद सड़क किनारे और भी पौधारोपण जारी है।
 इससे पहले 1990 से 1995 तक, नंदिनी, अहिवारा, बेमेतरा, बेरला क्षेत्रों आदि में पौधारोपण किया गया था। 2016-17 में बीएसपी ने जगदलपुर में 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में काजू के पौधों का रोपण किया।
 भिलाई ही नहीं आसपास का भी ध्यान भिलाई इस्पात संयंत्र सिर्फ भिलाई शहर का ही ध्यान नहीं रखता बल्कि बीएसपी मैनेजमेंट की फिक्र आसपास के गांव को लेकर भी है। इसी कड़ी में निगमित सामाजिक उत्तरदात्वि विभाग द्वारा पिछले पांच वर्षों में 150 किलोमीटर सड़क मार्ग पर तीन लाख से भी अधिक पौधों का रोपण किया गया है।
 इस योजना के अंतर्गत दुर्ग-धमधा, गुंडरदेही-धमतरी, धमधा-बेमेतरा, दुर्ग-जालबांधा, कुम्हारी-अहिवारा-बेमेतरा जैसे मुख्य मार्गों सहित 21 मार्गों पर पौधारोपण के कार्य को पूर्ण किया गया है।
पूर्व में लगाए गए पौधे अब वृक्ष बन गए हैं और इन मार्गों की शोभा बढ़ाते हुए पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयास के अंतर्गत इन वृक्षों में नीम, आंवला, खमार, अर्जुन आदि के पौधों को 150 किलोमीटर के सड़क मार्ग पर लगवाया गया है। अब ये वृक्ष उस सड़क की शोभा बढ़ाते हुए लहलहा रहे है। इस योजना से न केवल छत्तीसगढ़ राज्य को हरा-भरा किया जा रहा है बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बना हुआ है।

 खूबसूरत जंगल में तब्दील हो चुका है भिलाई स्टील प्लांट 

 भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सूझबूझ का ही नतीजा है कि शुरूआती दौर में ही यहां पौधारोपण पर पूरा ध्यान दिया गया। इसकी वजह से अब संयंत्र का पूरा का पूरा क्षेत्र एक खूबसूरत जंगल में तब्दील हो चुका है। ऐसे में कई बार कुछ प्रमुख इकाइयों के बीच यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि यहां जंगल में कारखाना है या कारखाने में जंगल। 
यहां कारखाना और टाउनशिप के निर्माण क्षेत्र में पौधों का संचयी रोपण 30 लाख से अधिक है जबकि दल्ली राजहरा, नंदिनी और हिर्री माइंस में यह 22 लाख से अधिक है। वर्ष 2008-09 के दौरान 50,000 जैटरोफा के पौधे सहित 65,000 पौधे विशेष अभियान के तहत लगाए गए हैं। 
भिलाई स्टील प्लांट के अंदर सिर्फ खूबसूरत जंगल ही नहीं बल्कि पांच बड़े गार्डन हैं। वहीं टाउनशिप 15 बड़े गार्डन है। इसके अलावा मुख्य सड़क (सेंट्रल एवेन्यू) सहित सभी सेक्टरों में पंक्तिबद्ध लगाए गए पेड़ पूरे शहर को एक अलग आभा देते हैं। टाउनशिप में 167 एकड़ में फैला भारत-रूस मैत्री का प्रतीक मैत्री बाग पूरे शहर के पर्यावरण को समृद्ध करता है।

 यूपीए शासनकाल में क्लाइमेट चेंज पर दिखाई गंभीरता

 भिलाई इस्पात संयंत्र ने अपने आधुनिकीकरण और विस्तार कार्यों के बाद विभिन्न गैसों के उत्सर्जन की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कार्बन और जल फुटप्रिंट अध्ययन का कार्य भी आरंभ किया। यह 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की पहल पर शुरू हुए प्राइम मिनिस्टर्स नेशनल एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज जैसी योजनाओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय और आंचलिक नीतियों को लागू करने के उद्देश्य से किया गया।
 इसी दिशा में प्रोडक्ट कार्बन फुटप्रिंट अध्ययन 2012-13 में आईआईटी मुंबई के सहयोग से अत्याधुनिक साफ्टवेयर का उपयोग करते हुए किया गया। इसी तरह भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा वॉटर फुटप्रिंट अध्ययन भी आईआईटी मुंबई के सहयोग से की गई।
 इसका लक्ष्य मात्रात्मक जल पदचिह्न मूल्यांकन (क्वान्टिटेटिव वॉटर फुटप्रिंट एसेसमेंट) तैयार करना था। भिलाई इस्पात संयंत्र ने 2012-13 में यूएनआईडीओ और पर्यावरण और वन मंत्रालय के सहयोग से पीसीबीज के सुरक्षित डिस्पोजल की योजना भी लागू की है। 
यह योजना पूरे देश में अपनी तरह की एक महत्वपूर्ण परियोजना है जो न सिर्फ सेल के लिए मददगार साबित हो रही है बल्कि पीओपीज की रोकथाम के लिए स्टॉकहोम कन्वेन्शन को लागू करने के साथ ही सम्पूर्ण भारतीय उद्योग और भारत सरकार के लिए भी मददगार हो रही है। दूषित जल को इस्तेमाल लायक बनाने यहां संचालित है प्रणाली भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना के दौरान टाउनशिप से निकलने वाले सीवरेज के दूषित जल का उपचार कर उसे खेती के इस्तेमाल योग्य बनाने कुटेलाभाठा में पहला विशिष्ट सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाया गया था।
 वर्तमान में यहां भिलाई आईआईटी का निर्माण होना है और यह एसटीपी करीब दशक भर पहले से बंद किया जा चुका है। लेकिन इसकी जगह टाउनशिप में दूसरे स्थानों पर एसटीपी बनाए जा चुके हैं, जिनसे जल संरक्षण की गतिविधियों को समुचित प्रोत्साहन मिला है। 
 इसके लिए सेक्टर-5 फारेस्ट एवेन्यू पर 30 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया जा चुका है। वर्तमान में सीवरेज से निकलने वाले जल को सीवरेज पंप हाउस में एकत्र कर इन्हे पास बने तालाबों में भेजा जाता है। जहां धूप में पानी के प्राकृतिक उपचार के बाद इसे आगे इस्तेमाल के लिए भेजा जाता है।
 भिलाई स्टील प्लांट में आवासीय क्षेत्रों के सीवरेज पानी का उपचार करने के लिए वर्तमान में कुल 4 ऑक्सीकरण तालाब हैं जो कि घर के कर्मचारी हैं। सेक्टर-1 से 10 तक के आवासीय क्षेत्रों का सीवरेज का पानी सुपेला पंप हाउस के माध्यम से कुटेलाभाठा ऑक्सीकरण तालाब में भेजा जाता था लेकिन अब इसे सेक्टर-5 में बने नए एसटीपी में भेजा जाता है। अस्पताल सेक्टर, सेक्टर 9 मुख्य अस्पताल और हुडको क्षेत्र का सीवरेज पानी रायपुर नाका तालाब में भेजा जाता है। 
 भिलाई रिफ्रैक्टरी प्लांट (अब एसआरयू) के पास एक और ऑक्सीडेशन तालाब है, जो मरोड़ा, रिसाली और रुआबांधा आवासीय क्षेत्रों से सीवरेज का पानी इकट्ठा करता है। जहां से बीएसपी अब औद्योगिक उपयोग के लिए पानी की री-साइक्लिंग कर रहा है। 
 इस पंप हाउस में ऑक्सीकरण तालाब से मरोदा-1 जलाशय (प्लांट का कूलिंग पॉन्ड) तक पंप करने के लिए एक नया पंप हाउस स्थापित किया गया है, जहां से भिलाई स्टील प्लांट के इस्तेमाल के लिए पानी का दोबारा उपयोग किया जाता है।
 इसके अलावा भिलाई स्टील प्लांट टाउनशिप क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन और भूजल रिचार्जिंग के लिए कदम उठा रहा है। वर्क्स एरिया के अंदर, प्लेट मिल ने पहले ही वर्षा-जल संचयन द्वारा पानी के संरक्षण के लिए पर्याप्त उपाय किए हैं। 

 उत्कृष्ट है बीएसपी का पर्यावरण प्रबंधन

 भिलाई इस्पात संयंत्र को कारखाना, टाउनशिप और दल्ली माइंस में उत्कृष्ट पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली के लिए पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली मानक आईएसओ:14001 से सम्मानित किया जा चुका है। बीएसपी ने एक एकल प्रमाणित एजेंसी मेसर्स डीएनवी द्वारा एकीकृत प्रबंधन प्रणाली (आईएमएस) का प्रमाणपत्र प्राप्त किया है। यह भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) में सर्वप्रथम और कुछ कॉर्पोरेट संस्थानों में से एक है। 
 कारखाना के क्षेत्र में भी उत्कृष्ट पर्यावरण प्रबंधन भिलाई इस्पात संयंत्र के महत्वाकांक्षी 70 लाख टन सालाना हॉट मेटल उत्पादन की आधुनिकीकरण और विस्तार परियोजना के तहत सभी इकाइयाँ अब उत्पादन में शामिल हो चुकी हैं और सभी पर्यावरण प्रबंधन के दृष्टिकोण की अत्याधुनिक तकनीकों से लैस हैं।
 इनसे न केवल उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार आया है और सेल-बीएसपी की उत्पाद श्रृंखला व्यापक बनी है बल्कि पर्यावरण को बेहतर करने में भी योगदान दिया है। मॉडेक्स इकाइयों में कार्यान्वित की जाने वाली अत्याधुनिक तकनीकों में से कुछ प्रमुख का उल्लेख कर सकते हैं - कोक ओवन बैटरी 11: कोक ड्राई कूलिंग प्लांट (सीडीसीपी), एचपीएलए सिस्टम, हाइड्रो जेट डोर क्लीनर, लीक प्रूफ ओवन डोर, सीडीसीपी से उत्सर्जन नियंत्रण, भाप और बिजली उत्पादन ब्लास्ट फर्नेस 8: कार्य क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए स्टॉक हाउस और कास्ट हाउस डी-डस्टिंग सिस्टम, भट्ठी के शीर्ष गैस दबाव का उपयोग करके स्वच्छ बिजली उत्पादन के लिए शीर्ष वसूली टर्बाइन, कास्ट हाउस ग्रैन्यूलेशन सिस्टम, स्टोव हीट रिकवरी, स्लैग दर में कमी के लिए प्रौद्योगिकी आदि। स्टील मेल्टिंग शॉप 3: माध्यमिक उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली, एलडी-गैस धारक नई रोलिंग मिल्स (यूआरएम और बीआरएम): कम एनओएक्स और एसओ 2 बर्नर, ऊर्जा कुशल चलने वाले बीम भट्टियां, कम शोर वाले मोटर और साउंड प्रूफ पुलपिट्स। 
पावर और ब्लोइंग स्टेशन-2: उत्सर्जन को कम करने के लिए ईंधन के रूप में स्वच्छ द्वि-उत्पाद गैसों का उपयोग। उपरोक्त स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अलावा, सभी इकाइयां स्थानीय जल उपचार और रीसाइक्लिंग प्रणालियों से सुसज्जित हैं। 
उपरोक्त स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के कार्यान्वयन ने विशिष्ट उत्सर्जन स्तरों में कमी, विशिष्ट जल की खपत, शोर प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट उपयोग में सुधार / पुनर्चक्रण और कार्य क्षेत्र वायु गुणवत्ता में समग्र सुधार के लिए अग्रणी संयंत्र के पर्यावरण प्रदर्शन को बहुत बढ़ाया है।

 2019-20 के दौरान पर्यावरण संबंधी पहल जल संरक्षण

 बीएसपी ने पहले ही विशिष्ट जल खपत में वैश्विक सर्वोत्तम मानकों को प्राप्त कर लिया है। जीरो डिस्चार्ज कंपनी बनने और जल संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के तहत भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) में जल प्रबंधन के कई क्षितिजों को संबोधित करने के लिए समग्र दृष्टिकोण का प्रयास किया जा रहा है। 
 उपचार के बाद जल संरक्षण, रिसायकल और पुन: उपयोग पर मुख्य रूप से जोर है। साथ ही पानी का इष्टतम उपयोग, रिसाव व वाष्पीकरण आदि के कारण होने वाले नुकसान को कम करना बेहतर जल प्रबंधन के लिए अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं। 
 वर्ष 2018-19 और 2019-20 पानी की खपत में कमी के लिए की गई पहल उत्कृष्ट रही है। बीएसपी आउटलेट-ए से लगभग 3500 क्यूबिक प्रति घंटा की रीसाइक्लिंग को बढ़ाने में सक्षम है। यह आउटलेट-ए के होल्डिंग तालाब में डिसिल्टिंग कार्य करने के द्वारा प्राप्त किया गया था।
 आउटलेट-सी और आउटलेट-बी से अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के अनुबंधों पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं। उपरोक्त के अलावा, मौजूदा 30 एमएलडी संयंत्र में सीवेज के पानी की रीसाइक्लिंग के लिए एक और योजना को भी अंतिम रूप दिया गया है। 
चालू वित्त वर्ष में उपरोक्त पुनर्चक्रण योजनाओं के कार्यान्वयन से लगभग 3000 क्यूबिक प्रति घंटा की जल बचत होगी। सौर ऊर्जा का भी इस्तेमाल कर पर्यावरण को समृद्ध कर रहा बीएसपी भिलाई आज सिर्फ पौधारोपण कर या अपशिष्ट जल का प्रबंधन कर ही पर्यावरण को समृद्ध नहीं कर रहा है बल्कि प्राकृतिक स्त्रोत सौर ऊर्जा का भी इस्तेमाल कर कृत्रिम रूप से बिजली उत्पादन से होने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को भी कम कर रहा है। 
 बीएसपी ने अपने गेस्ट हाउस भिलाई निवास में बिजली की आंतरिक खपत को पूरा करने के लिए फोटोवोल्टिक सोलर पैनल्स (2 गुणित 100 केवीए) की स्थापना की है। यह सेल का सबसे पहला सोलर पॉवर प्लांट है। पर्यावरण प्रबंधन विभाग, नगर इलैक्ट्रिकल अभियाँत्रिकी विभाग एवं सम्पर्क एवं प्रशासन विभाग द्वारा भिलाई निवास की आंतरिक बिजली संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसी ही परियोजना इस्पात भवन में भी स्थापित किए जाने की तैयारी है।
 इसी तरह 15 गुणित 20 केवीए की एक और सौर ऊर्जा इकाई की स्थापना के लिए स्थान के चयन को अंतिम रूप दिए जाने का कार्य जारी है। वितरण लाइसेंसी होने कारण भिलाई इस्पात संयंत्र के नगर इलैक्ट्रिकल अभियाँत्रिकी विभाग द्वारा कुल ऊर्जा खपत का 5 प्रतिशत गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों जैसे सौर ऊर्जा से लेने की बाध्यता है। 
इसलिए इस दिशा में कार्य जारी है। इस फोटोवोल्टिक सोलर पैनल्स (2 गुणित 100 केवीए) के फलस्वरूप न सिर्फ भिलाई इस्पात संयंत्र को आर्थिक बचत हो रही है बल्कि कार्बन डाइआक्साईड के उत्सर्जन में भी कमी आई और प्राकृतिक संसाधनों की बचत भी हो रही है। भिलाई निवास में सोलर पॉवर सिस्टम की स्थापना के साथ भिलाई इस्पात संयंत्र नेशनल सोलर मिशन से सीधे जुड़ गया है। 

छत्तीसगढ़ विधानसभा की पत्रिका 'विधायन' का लोकार्पण 

 

विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 28 अगस्त 2020 को छत्तीसगढ़ विधानसभा परिसर स्थित विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में छत्तीसगढ़ विधानसभा की शोध पत्रिका 'विधायन' के नवीनतम अंक का विमोचन किया। इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल एवं विधानसभा के प्रमुख सचिव चंद्रशेखर गंगराड़े भी उपस्थित थे। 
विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर विधानसभा पर केन्द्रित वृत्तचित्र का भी विमोचन करते हुए इसकी डीवीडी जारी की। उल्लेखनीय है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में शोध पत्रिका 'विधायन' का प्रकाशन होता था। 
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात छत्तीसगढ़ विधानसभा में 'विधायन' नाम से पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 2001 से प्रारंभ हुआ। विगत 10 वर्षों से इस पत्रिका का प्रकाशन स्थगित था।
 पिछले एक वर्ष से विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की रुचि, निर्देश एवं मार्गदर्शन पर अब नियमित रूप से 'विधायन' के प्रकाशन का कार्य प्रारंभ किया गया है। 'विधायन' के जिस अंक का विमोचन किया गया है। वह 'पर्यावरण' पर केंद्रित है। वर्तमान समय में विश्वव्यापी महामारी कोरोना ने पूरे विश्व को झकझोर दिया है। 
ये संकट प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ मानव द्वारा लंबे समय तक की जाने वाली लापरवाही एवं छेड़छाड़ का परिणाम है। इसेे ध्यान में रखते हुए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत ने 'विधायन' का वर्तमान अंक 'विधायन' पर केंद्रित करने हेतु निर्देशित किया था। 19 मई 2020 को इस पत्रिका के नियमित प्रकाशन हेतु संपादक मंडल का गठन किया गया।
 जिसमे विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के द्वारा वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार सतीश जायसवाल,बिलासपुर को कार्यकारी संपादक मनोनीत किया गया। संपादक मंडल में 5 अन्य सदस्य भी मनोनित किए गए हैं जिनमें आकाशवाणी,दूरदर्शन के सेवानिवृत्त निदेशक मो. हसन खान, वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार शंकर पाण्डेय, प्रेम पाठक,शोभा यादव एवं प्रियंका कौशल शामिल हैं। 
 'विधायन' के इस अंक में पर्यावरण प्रदूषण, ओजोन परत एवं ग्रीनहाउस जैसे विषयों पर देश भर के वरिष्ठ विशेषज्ञों के उच्च स्तरीय लेख प्रकाशित किए गए हैं। इस पत्रिका में प्रकाशित होने वाले लेख संदर्भ एवं शोध करने वाले छात्रों के लिए लाभदायक होंगे।

 

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