Tuesday, February 7, 2012

रहमान ने मेरा और छत्तीसगढ़ी दोनों का ‘एक्सप्लाइटेशन’ किया: यादव

अभिनेता रघुवीर यादव से ख़ास बातचीत
वैनिटी वैन में रघुवीर से बात
रंगमंच से फिल्मों में गए अभिनेता रघुवीर यादव में एक सहजता है। इस वजह से वह मीडिया से बातचीत में अपना दिल खोल कर रख देते हैं। उनकी बातों में साफगोई भी है और आज के सिनेमा और रंगमंच को लेकर एक दर्द भी है। हालांकि इन सबके बीच वह नाउम्मीद नहीं है। भिलाई में एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में आए रघुवीर यादव ने ख़ास बातचीत के दौरान बहुत से पहलुओं पर तफ्सील से अपने खयालात का इजहार किया। बात-बात में वह ‘देहली-6’ को लेकर अपनी पीड़ा भी उजागर कर बैठे। रघुवीर यादव से इस लंबी बातचीत के कुछ ख़ास हिस्से इस तरह से हैं-

फिल्मों से लगातार बढ़ती दूरी की वजह थकान या फिर काम की कमी..?
मैं थका नहीं, मेरी एक रफ्तार है और मैं बहुत भागदौड़ नहीं करना चाहता। अगर मै भागदौड़ करूंगा तो न अपने साथ न्याय कर पाउंगा न ही पब्लिक के साथ। पहले भी मैं कम फिल्में कर रहा था और आज भी मेरी आदत में फर्क नहीं पड़ा है। वैसे आज कल यह दूरी ही बेहतर है। क्योंकि आज जिस तरह का काम हो रहा उसमें मुझे अच्छा नहीं लगता। पिछले साल दिल्ली के डायरेक्टर राकेश रंजन आए और उन्होंने ‘हिटलर’ बनने का प्रस्ताव दिया, मुझे भी यह चैलेंजिंग लगा और मैनें फिल्म साइन कर ली। जल्द ही यह फिल्म प्रदर्शित होने वाली है। इसके अलावा मेरी एक फिल्म ‘वाइटलैंड’ भी आ रही है।

फिल्मों के साथ अब थियेटर को कितना वक्त दे पाते हैं?
अपने कैरियर की शुरूआत में ज्यादातर मैनें थियेटर ही किया है और बड़ी मुहब्बत करता हूं थियेटर से मैं। थियेटर न कर पाने की तकलीफ भी है मुझे क्योंकि थियेटर में जो सुकून मिलता है वह मुझे फिल्मों में नहीं मिलता।

छत्तीसगढ़ी गीत ‘सास गारी’ को आपने ‘देहली-6’ तक कैसे पहुंचा दिया..?
ऐसा था कि उन्हें (डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा को)कोई फोक चाहिए था। हबीब साहब के थियेटर में मैनें यह गीत सुना था। उन्होंने पहले तो मुझे एक दो लाइन गाने कहा। फिर पता नहीं कैसे यह पूरा गाना ही रहमान ने ले लिया जबकि इस गीत में रहमान का म्यूजिक तो है ही नहीं। मैनें डायरेक्टर से कहा भी कि फिल्म में साफ तौर पर इसका जिक्र करिए कि यह छत्तीसगढ़ का ही फोक है। एक दो लाइन होती तो चलो कोई बात नहीं थी लेकिन आपने लफ्जों के साथ जो खिलवाड़ किया है वह बर्दाश्त के काबिल नहीं है। बाद में मैं बाहर चले गया था और जब फिल्म रिलीज हुई तो मैं भोपाल में शूटिंग में व्यस्त था। मुझे भी पूरे मामले से बहुत तकलीफ हुई।

...तो क्या सिर्फ रहमान ही दोषी हैं..?
बात ऐसी है कि मैनें ‘सास गारी’ की चंद लाइनें ही डायरेक्टर को सुनाईं थी, पता नहीं डायरेक्टर ने कब इसे रहमान की तरफ खिसका दिया। फिर संगीतकार रहमान और गीतकार प्रसून जोशी की जोड़ी ने इसे अपने नाम कर लिया। बात सिर्फ इस एक गीत की नहीं है, मैंनें इसी ‘देहली-6’ में रामलीला वाले हिस्से का सारा म्यूजिक खुद तैयार किया है। मेरी मेहनत भी रहमान ने दबा दी। इस बात को लेकर भी मैं रहमान से $खफा हूं। इस तरह किसी को आप एक्सप्लाइट करते हैं तो ये $गलत बात है। ‘सास गारी’ के मामले में मैनें कहा भी था कि ये छत्तीसगढ़ का है। लेकिन छत्तीसगढ़ी को क्रेडिट देने के बजाए उन्होंने उसके लफ्ज बदल दिए। इसलिए मैं साफ तौर पर कह रहा हूं कि रहमान ने मुझे और छत्तीसगढ़ी दोनों को एक्सप्लाइट किया।

‘पीपली लाइव’ में कहीं ऐसा लगा कि नत्था का किरदार आपको निभाना था या फिर आप का किरदार नत्था से 19 साबित हुआ?
मैं ऐसा नहीं मानता। इस फिल्म में नत्था का किरदार रचा ही ऐसा गया था कि इसे निभाने वाले ओंकार दास मानिकपुरी को इससे ज्यादा हाइट मिली। ओंकार का जो काम था वो उन्होंने किया मेरा जो हिस्सा था उसे मैनें किया। इसमें 19-20 वाली कोई बात नहीं है, लेकिन यह जरूर है कि ओंकार ने बहुत ही अच्छे तरीके से अपनी भूमिका निभाई।

आज थियेटर किस हद तक एक आंदोलन रह गया है?
आज थियेटर कुछ ‘मीडियॉकर’ लोगों के हाथ में चला गया है। ऐसे लोग थियेटर को भी पूरी तरह कमर्शियल कर रहे हैं। मुझे लगता है 70 के दशक के आस-पास थियेटर जिस तरह से एक आंदोलन था वह पूरी तरह कमजोर पड़ चुका है। क्योंकि इसके बादकथित इंटैलेक्चुअल किस्म के और किताबी ज्ञान लेकर जिन लोगों ने थियेटर में घुसपैठ की, इन्हें मैं आलसी कहूं तो ज्यादा बेहतर है, इन लोगों ने थियेटर को कमर्शियल बना दिया और जो उसका स्टैंडर्ड था वो गिरा दिया। फिर हमारे आज के कलाकार भी थियेटर नहीं करना चाहते,फिल्में उनके लिए पहला रूझान है। इन लोगों की नीयत पहले ही पता लग जाती है कि वो फिल्मों में जाने के लिए ही थियेटर कर रहे हैं। 

इस सूरत को बदलने आप क्या कर रहे हैं..?
एक अकेला आदमी थियेटर नहीं कर सकता। यहां आज हुआ ये है कि पूरा कुनबा ही बिगड़ा हुआ है तो क्या किया जाए। खैर, मैनें कोशिश की थी एनएसडी के कुछ लोगों से सलाह मश्विरा कर के सूरत बदलने के लिए लेकिन, बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जिन्हें मैं साथ लेना चाहता था वो एक दो दिन तो गंभीरता से रिहर्सल भी करते थे लेकिन फिर उन्हें कोई फिल्म मिल जाए थियेटर छोड़ देते थे। ऐसे में एक अकेला आदमी कितना करेगा। मुझे लगा कि, मैं अपना वक्त क्यूं ज़ाया करूं। आगे जब मौका आएगा और मुझे लगेगा कि अपने तरीके से करना है तो जरूर करूंगा। 

छत्तीसगढ़ में शूटिंग करते हुए हबीब तनवीर को कैसे याद करना चाहेंगे?
1974 की बात है। उन दिनों नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से 2-3 महीने की छुट्टी मिली थी। ऐसे मे मैनें हबीब साहब का नया थियेटर ज्वाइन कर लिया। तब हबीब साहब के साथ लालूराम जी ,मदनलाल जी, फिदाबाई और माला बाई सहित बहुत सारे लोग थे। इन्हें आज भी मैं नहीं भूल पाया हूं। तब मैनें इन कलाकारों के साथ ‘आगरा बाज़ार’ किया। हबीब साहब ने छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को एकजुट करके रखा था, उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। 

छत्तीसगढ़ में रहते हुए थियेटर या फिल्में करने का कोई इरादा..?
मैं जबलपुर मध्यप्रदेश से हूं लेकिन पहले तो हम एक ही थे। अभी मेरा छत्तीसगढ़ में काम का कोई इरादा नहीं है। छत्तीसगढ़ वाले कला-संस्कृति के क्षेत्र में और बेहतरीन काम करें, यही मेरी शुभकामनाएं हैं।

संगीत से अपने जुड़ाव को कैसे बयां करेंगे..?
संगीत मेरी बहुत बड़ी कमजोरी रहा है। बचपन से मेरा संगीत से गहरा ताल्लुक रहा है। पिछले दिनों ‘पीपली लाइव’ का ‘महंगाई डायन’ गाया, इसके पहले मैं ‘आसमान से गिरा’ और ‘रामजी लंडन वाले’ में टाइटिल सांग गा चुका हूं। ‘झुका-झुका आसमान’ में मैनें आनंद मिलिंद के लिए गाया है। ‘दिल्ली-6’ में रामलीला वाले हिस्से का पूरा म्यूजिक मैनें किया था। कुछ अभी एड फिल्में हैं, जिनमें मैनें अपनी आवाज दी है।

हमारे मुख्य धारा के सिनेमा को आज कहां देखते हैं..?
पहली बात तो मैं निजी तौर पर मुख्य धारा या कला सिनेमा जैसे विभाजन नहीं मानता। जिसे आप मुख्य धारा का सिनेमा कहते हैं वह हमारे हिंदुस्तान में बहुत पहले भटक गया है। दूसरे देशों में आपको ऐसी सांस्कृतिक विविधता नहीं मिलेगी जितनी हमारे यहां हैं। यहां ढेर सारे कैरेक्टर और कहानियां मौजूद हैं। यहां जो इमोशंस में वेरायटी है वो कहीं नहीं मिलेगी। हमारा इतना साहित्य है उस पर भी काम नहीं हो रहा है। आप बाहर का उठाकर बड़े मजे से नकल कर लेंगे या फिर कहीं कोई फिल्म हिट हो गई तो उसी तरह की बनाना शुरू कर देंगे। ये सब दिमाग की कमजोरी और आलसपन है। 

...तो क्या बेहतर मनोरंजन या फिर दिशा देने वाला सिनेमा लुप्त हो गया है..?
नहीं, ऐसा नहीं है। श्याम बेनेगल की सक्रियता आज की पीढ़ी के लिए आईना है। उनकी हाल की ‘हरी-भरी’ भले ही बिगड़ी हुई फिल्म थी लेकिन ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ तो लाजवाब रही। आज ‘थ्री इडियट’ और ‘तारे जमीं पर’ जैसी फिल्में नाउम्मीदी के माहौल में रोशनी की किरण दिखाते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि छोटी और सार्थक फिल्में बनें।

‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ से आपको लोकप्रियता मिली। इस कैरेक्टर को निखारने में आपका कितना योगदान था?
‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ अपने दौर का सबसे लोकप्रिय सीरियल साबित हुआ। इसमें मुंगेरीलाल के तौर पर मैनें जो सपने देखे थे वो पब्लिक के लिए थे, इसलिए पब्लिक ने इसे हाथों-हाथ लिया। मुंगेरीलाल का यह पूरा कैरेक्टर मनोहर श्याम जोशी जी की देन है। मैनें स्क्रिप्ट आने के बाद उसमें थोड़ा बहुत इंप्रोवाइजेशन किया था।

मुंगेरीलाल,मुल्ला नसरूद्दीन और चाचा चौधरी जैसे चुनिंदा कैरेक्टर ही करने की वजह..?
शायद इन सीरियलों के बनाने वालों को मेरा चेहरा-मोहरा इन कैरेक्टरों पर फिट लगा होगा। वैसे मैनें $खूब एन्ज्वाए किया इन्हें निभाने में। मैं पहले ही कह चुका हूं कि इस मामले में मैं बहुत चूजी हूं। मैं कुछ भी काम कर लूं तो ये मेरी जहनियत गवारा नहीं करती। अभी चाचा चौधरी के बाद कोई दूसरा सीरियल नहीं है। अगर मुझे कोई कहानी पसंद आएगी तो जरूर कोई सीरियल करूंगा। मैं जिस तरह से मेहनत कर के इस मकाम पर पहुंचा हूं ,मुझे लगता है कि अपना काम ऐसे ही बरबाद नहीं होने दूंगा।

जीवन में निराशा के पल कब महसूस करते हैं?
रघुवीर यादव
इसे मैं निराशा नहीं कहूंगा बल्कि ये जीवन की सच्चाई है। एक तरफ इंसानियत हैं तो दूसरी तरफ हैवानियत रहेगी ही। आप अपनी मेहनत के बलबूते जरा सा उपर उठ कर देखिए, आपके इर्द-गिर्द बहुत से दुश्मन पैदा हो जाएंगे। मुझे अपने काम में अपने इमान में और मेहनत में मजा आता है। बाकी ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें दूसरों का मजाक उड़ाने में ज्यादा मजा आता है। बहुत से लोगों ने इसे अपने जीने का जरिया बना लिया है। जो दूसरों का मजा उड़ाते हैं वो यह भूल जाते हैं कि उनकी भी बारी आएगी।

हाल के पारिवारिक विवाद (पत्नी की वजह से जेल) के बाद ऐसा कह रहे हैं?
जहां तक मेरे पारिवारिक विवाद का मामला है तो ठीक है सबने मजा ले लिया, मीडिया ने भी खूब उछाला और मजा लिया। मैं थोड़ा सा सेलिब्रेटी हूं इसलिए मीडिया ने भी उछाल दिया गया। अब अंदर की जो सच्चाई है वह तो ईश्वर जानता है या फिर हम जानते हैं। उसे मैं सार्वजनिक तो नहीं कर सकता।

वास्तविक जीवन में इस ‘मुंगेरीलाल’ का कोई ‘हसीन सपना’ जो अब तक पूरा नहीं हुआ?
मैं जो भी कर चुका हूं वह सब जानते हैं और जो नहीं किया हूं उसका कोई अफसोस नहीं। जो जऱा हट कर हो वही मेरे लिए ड्रीम रोल होता है। वैसे मैं कोई ड्रीम-व्रीम नहीं देखता।
(रघुवीर यादव से यह इंटरव्यू भिलाई नगर रेलवे स्टेशन पर फिल्म ‘आलाप’ की शूटिंग के दौरान दिसंबर 10 में लिया।)
मो.जाकिर हुसैन

1 comment:

  1. स्‍वागत और बधाई जाकिर जी. फांट/पब्लिशिंग के लिए किसी की मदद ले लें, अभी भी संपादन किया जा सकता है.

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