Tuesday, February 7, 2012

इंदिरा के योग गुरू से लेकर ताकतवर शख्शियत तक चाहते थे स्टील की हेराफेरी करवाना


भिलाई की एक कंपनी और एक मुख्यमंत्री के भाई के कारनामों का भी खुलासा
‘सेल’ के पूर्व चेयरमैन की किताब में कई सनसनीखेज आरोप

स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड-सेल के पूर्व चेयरमैन डा. प्रभुलाल अग्रवाल की हालिया रिलीज किताब ‘जर्नी ऑफ ए स्टील मैन’ इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। ‘सेल’ की तमाम इकाइयों में यह किताब पहुंच चुकी है और अफसर उस दौर में इस्पात जगत से जुड़े षडय़ंत्र ओर दूसरे किस्सों को बेहद जिज्ञासा के साथ पढ़ रहे हैं। डा. अग्रवाल की इस किताब का हिंदी संस्करण भी अगले माह आ रहा है। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में डा. अग्रवाल ने कहा कि किताब में उन्होंने वही सब कुछ लिखा है जिनसे उनका सीधा वास्ता है। डा. अग्रवाल ने स्पष्टï किया कि उनका मकसद किसी व्यक्ति विशेष की छवि को ठेस पहुंचाना नहीं है, लेकिन जो वास्तविकता है उसे समाज के बीच लाने में वह कोई बुराई नहीं समझते। 

राउरकेला स्टील प्लांट के पूर्व जनरल मैनेजर डा. अग्रवाल जनता शासनकाल के अलावा इंदिरा शासनकाल के शुरूआती दिनों तक ‘सेल’ के चेयरमैन थे। इन दिनों उदयपुर में रह रहे डा. अग्रवाल ने आत्मकथात्मक शैली में लिखी इस पुस्तक में अपने पूरे कैरियर का खाका खींचा है, साथ ही कुछ ऐसी घटनाओं का ब्यौरा दिया है,जिनसे उस दौर की एक और तस्वीर उभरती है। राउरकेला में जनरल मैनेजर रहने के दौरान उड़ीसा की तत्कालीन मुख्यमंत्री और उनके भाई से हुए विवादों का जिक्र करते हुए डा. अग्रवाल ने लिखा है कि मुख्यमंत्री नंदिनी सत्पथी के भाई तुषार पाणिग्रही उनसे मिलने आए और संयंत्र भ्रमण के बाद सीधे तौर पर मुझसे 5 एमएम मानक वाली 110 टन स्टील प्लेट की मांग कर दी। चूंकि यह स्टील पर कंट्रोल का दौर था इसलिए मैनें श्री पाणिग्रही की इस मांग के आधार पर ‘सेल’ के सेंट्रल मार्केटिंग आर्गनाइजेशन के जनरल मैनेजर को निजी तौर पर टेलीफोन किया। लेकिन श्री पाणिग्रही इससे खुश नहीं हुए और बाद में संभवत:यह बात अपनी मुख्यमंत्री बहन को भी बताई होगी। इसके बाद जब एक मरतबा श्रीमती सत्पथी राउरकेला दौरे पर आई तो उन्होंने मुझे अकेले में ले जाकर कहा कि-मैं तुम्हे उड़ीसा से बाहर करवा दूंगी, क्योंकि हमारे लोगों के लिए तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो। मैनें उन्हें बेहद विनम्रता से जवाब दिया कि मैडम, यह आपकी प्रिविलेज है, अगर मुझे राउरकेला से बाहर भी पोस्टिंग मिलती है तो मैं वहां जा कर काम करने में खुशी महसूस करूंगा। 

इसके बाद दुर्भाग्य से उड़ीसा स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से राउरकेला स्टील प्लांट को बिजली आपूर्ति के मुद्दे पर गतिरोध उत्पन्न हो गया। उड़ीसा बिजली बोर्ड हमें हमारे हिस्से की बिजली देने में कोताही बरतने लगा। इससे प्लांट का उत्पादन प्रभावित हो रहा था। इस बारे में जब मैनें अपने लोगों से पता करवाया तो मालूम हुआ कि यह आदेश ‘ऊपर’ से था, जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि राउरकेला स्टील प्लांट को सबक सिखाना जरूरी है। मैनें वस्तुस्थिति की रिपोर्ट बनाई और अपने मंत्री चंद्रजीत यादव को रूबरू कराया। उन्होंने समस्या की गंभीरता को देखते हुए तुरंत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर.के.धवन को फोन लगाया और प्रधानमंत्री से मिलने का समय ले लिया। श्री यादव ने मेरे द्वारा दी गई फाइल के आधार पर श्रीमती गांधी से चर्चा की और अगले ही दिन श्रीमती सत्पथी नई दिल्ली आने वाली थी। ऐसे में बाद में मुझे श्री यादव ने बताया कि श्रीमती गांधी ने मुख्यमंत्री को बेहद कड़े शब्दों में चेताया। इसके बाद उड़ीसा बिजली बोर्ड से राउरकेला स्टील प्लांट को बिजली की आपूर्ति नियमित हो पाई। 

भिलाई की कंपनी के षडय़ंत्र का जिक्र करते हुए डा. अग्रवाल ने लिखा है कि 1971 में राउरकेला स्टील प्लांट के कोक ओवन के कोल्ड और हॉट में टनेंस के लिए विशेषज्ञ कंपनी की जरूरत थी। चूंकि इस कोक ओवन की स्थापना जर्मनी की डा. सी. ओट्ट एंव कंपनी ने की थी, लिहाजा उन्हें ही इसकी मरम्मत का वृहद अनुभव था। जब टेंडर बुलाए गए तो ओट्ट इंडिया के साथ बीआर जैन की भिलाई कंस्ट्रक्शन कंपनी ने भागादारी दी। चूंकि यह सारा काम विशेष दक्षता वाला था इसलिए अनुभव को देखते हुए ओट्ट इंडिया को काम देने का निर्णय लिया गया। ऐसे में जब भिलाई कंस्ट्रक्शन को काम नहीं मिला तो इस कंपनी के लोगों ने राउरकेला स्टील प्लांट और विशेषकर मेरे खिलाफ दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। इन लोगों ने सारे संसद सदस्यों और कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग (कोपू) सहित विभिन्न कमेटियों को इस फैसले के खिलाफ चिट्ठी लिखी और प्रेस में भी हमारे खिलाफ काफी कुछ लिखवाया। हालांकि हमारा निर्णय बिल्कुल सही था और यह बात बाद में उस वक्त भी सही साबित हुई जब जैन डायरी (जैन हवाला केस) एक राष्टï्रीय मुद्दा बनीं। हम लोगों को पता चला कि बीआर जैन इन डायरियों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार थे। इसी तरह इंदिरा शासनकाल में ‘सेल’ चेयरमैन के नाते पडऩे वाले दबाव का जिक्र करते हुए डा. अग्रवाल ने अपनी किताब में खुलासा किया है कि इंदिरा गांधी के योग गुरू (नाम का खुलासा नहीं ) से दो मरतबा भिड़ंत हुई। (प्रकाशन तिथि 25 जून 2010 सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़)

डा. अग्रवाल की किताब में भिलाई कंस्ट्रक्शन कंपनी के मुखिया के तौर पर अपना नाम आने से वरिष्ठï उद्योगपति बीआर जैन खफा हैं। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते हुए श्री जैन ने कहा कि वह भिलाई इंजीनियरिंग कंपनी (बीईसी)के मुखिया हैं। उनका भिलाई कंस्ट्रक्शन कंपनी (बीसीसी)से कोई लेना-देना नहीं है। यह बीसीसी कंपनी उनके रिश्ते के भाई एसके जैन की है। श्री जैन ने कहा कि उन्होंने अभी डा. अग्रवाल की वह किताब नहीं देखी है लेकिन कोक ओवन के क्षेत्र में उनकी कंपनी बीईसी का लंबा अनुभव है और अभी भी राउरकेला में उनकी कंपनी कोक ओवन का काम कर रही है।

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