Monday, November 26, 2012

रियाज छूट गया और सुर अल्लाह पर छोड़ दिया

105 साल के उस्ताद राशिद खान ने की दिल की बातें 
प्रोग्राम से ठीक पहले ग्रीन रूम में बातचीत करते हुए उस्ताद राशिद खान 
1908 में जन्मे ग्वालियर घराने के उस्ताद राशिद खान का रियाज पिछले 20 साल से छूट गया है लेकिन आज भी सुर सधते हैं तो यकीन करना मुश्किल होता है कि इन बूढ़ी हड्डियों वाले जिस्म में इतना दमदार जिगर मौजूद है। उस्ताद इसे अल्लाह की नेअमत मानते हुए सब कुछ उसी की मर्जी पर छोड़ देते हैं। 

 16 फरवरी 2012 गुरुवार को भिलाई अपना में कार्यक्रम देने आए उस्ताद राशिद खान ने खास बातचीत की, इस दौरान मेरे साथ भिलाई के ही युवा पत्रकार शेखर झा भी थे । उस्ताद ने कहा की -हमारी यह 23 वीं पीढ़ी है। मैने 5 साल की उम्र में उस्तादों की निगहबानी में तालीम शुरू की थी, अब उम्र के 105 वें साल में हूं और  आज मैं कहां तक संगीत सीख पाया हूं या मुझे और कहां तक पहुंचना है, ये सब उस रब्बुल आलमीन को मालूम है। जैसे हर कलाकार की ख्वाहिश होती है वैसे ही मैं भी चाहता हूं कि बस उपर वाला आवाज सलामत रखे और आखिरी सांस तक गाता ही रहूं। 

 रायबरेली में निवासरत और कोलकाता में आईटीसी अकादमी से जुड़े उस्ताद ने कहा कि 20 साल पहले रियाज छोड़ चुका हूं, इसका मतलब यह नहीं कि मैं सब कुछ जान गया। दरअसल शरीर अब साथ नहीं देता। रोजाना मैं पांचों वक्त की नमाज पढ़ता हूं और सुबह कुरआन की तिलावत करता हूं। इससे जो रूहानी ताकत मिलती है उसी की बदौलत अपनी जिंदगी में जो थोड़ा -बहुत संगीत सीखा था, उसे आज की पीढ़ी में बांट रहा हूं। 'रसन पिया' के नाम से मैने 2 हजार से ज्यादा बंदिशें रची है। यही सब कुछ है जो मैं छोड़ जाऊंगा। अपनी विरासत के बारे में उन्होंने कहा कि घर के बच्चे तो गा ही रहे हैं। एक हमारा बच्चा शुभमय भट्टाचार्य है, बहुत अच्छा गाता है। मैं उसे प्यार से शहाबुद्दीन कहता हूं। ऐसे और भी हैं, जिनसे बहुत उम्मीदें हैं। अपनी सेहत और दिनचर्या पर उन्होंने कहा कि दिन भर में सिर्फ रात में एक वक्त खाना खाते हैं। दांत सलामत हैं इसलिए खान-पान में कोई परहेज नहीं है। सुबह भीगा चना और सूखे मेवे लेता हूं।
पैगंबर और सूफियों ने की संगीत से इबादत
एक सवाल के जवाब में उस्ताद ने कहा कि संगीत को लेकर इस्लाम में स्थिति कुछ अलग है। अल्लाह के पैगंबर दाउद अलैहिस्स्लाम 'लहने दाउदी' बड़ी मशहूर है। दाउद अपना कलाम गा कर खुदा की इबादत करते थे तो परिंदे तक भी खींचे चले आते थे। वहीं हमारे सूफियाए किराम ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती , हजरत साबिर शाह और खुद हमारे पीर का ये हाल था कि जब (सूफी कलाम) गाने वाला सामने बैठता था तो इनकी इबादत की मंजिले तय होती थी। दूसरी तरफ पीराने पीर दस्तगीर गौस पाक के यहां गाना शरई एतबार से ममनुअ (मना) था। इसलिए ये इबादत का एक तरीका भी है और आखिरी सांस तक मैं गाता ही रहूं अब ये अल्लाह की मर्जी है वो गवावे चाहे न गवावे।
उस्ताद की दुआए ऑटोग्राफ की शक्ल में 

श्रोताओं को तार सप्तक तक ले गए उस्ताद
गुरुवार की शाम अंचल के शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के लिए एक दुर्लभ मौका लेकर आई। मंच पर ग्वालियर घराने के दिग्गज 105 वर्षीय उस्ताद राशिद खान जब सुर साधने बैठे तो ऑडिटोरियम में  बैठे श्रोता दंग रह गए। उम्र के इस पड़ाव में सुरों को इस ऊंचाई तक ले जाना और गमक की इस कदर सधी हुई ताने लेना किसी जादूगरी से कम नहीं लग रहा था। 
मौका था सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक  एंड कल्चर अमंग्स्ट यूथ (स्पिक मैके) की ओर से भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (बीआईटी) में उस्ताद राशिद खान की प्रस्तुति का।
 ज्यादातर श्रोता जिज्ञासावश भी आए थे बुजुर्ग उस्ताद की जादूगरी से रूबरू होने। उस्ताद ने किसी को निराश नहीं किया। सरस्वती वंदना के बाद मंच पर बैठते ही गर्म चाय का घूंट लिया और कहा- जो कुछ उसने दिया है, सब आपके सामने। संगत के लिए शुभ मय भट्टाचार्य, असद अली खां, तबले पर बिलाल अहमद और हारमोनियम पर हाफिज अहमद खां थे। शुरुआत हुई राग मधुवंती में बड़ा ख्याल विलंबित एक ताल में और छोटा ख्याल मध्य लय 3 ताल में। इस बंदिश के बोल थे बाबुल मोरे। इसके बाद बारी आई विलुप्त हो रही बंधी ठुमरी की। 'सावरी सूरत मोरा मन बस कर लीनो' बोल पर आज की श्रृंगारिक ठुमरी से कहीं अलग इस बंधी ठुमरी ने समां बांध दिया। कार्यक्रम के बाद अनौपचारिक चर्चा में उस्ताद राशिद खां ने बताया कि बंधी ठुमरी विलुप्त तो नहीं हुई है लेकिन उनके घराने ने कायम रखी है। उन्होंने उस्ताद चांद खां से इसे सीखा था। इसके बाद एक भोजपुरी गीत 'मोरे पिया गइले हो बिदेसवा' को उस्ताद ने अपने शागिर्द शुभ मय के साथ सुनाया। यह गीत राग मांड में निबद्ध था। राजस्थान से आई मांड गायिकी के अक्स में ढले भोजपुरी गीत का अद्भुत मेल सुन कर श्रोता दंग थे।  समापन हुआ गुरु वंदना से। उस्ताद ने जब आंखें बंद कर के 'मेरा रोम हर-हर बोले हरि ऊं' गाना शुरू किया तो पूरा ऑडिटोरियम रूहानियत से भर गया। 
इस उम्र में ऐसी गायिकी..अद्भुत
समापन पर बीआईटी की ओर से आईपी मिश्रा, पीबी देशमुख, पीआरएन पिल्लई, एमके कोवर और डॉ. संजय शर्मा ने उस्ताद और उनके शागिर्दों का सम्मान किया। कार्यक्रम में मौजूद अंचल के वरिष्ठ संगीतज्ञ पं. कीर्ति व्यास ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उम्र के इस पड़ाव में गायिकी का ऐसा अद्भुत रुप अपने आप में दुर्लभ है। पं. व्यास के मुताबिक उस्ताद अपनी गायिकी के दौरान तार सप्तक के स्वरों पर जाकर जिस तरह देर तक कायम रह रहे थे, वह बहुत बड़ी बात है। फिर गमक के लिए जो दम लगाना पड़ता है, उसमें ज्यादातर उम्रदराज लोगों को दिक्कत होती है लेकिन उस्ताद राशिद खां यहां भी बेहद सहज थे। कुल मिला कर एक ऐसा दुर्लभ मौका था जो खुशनसीबों को मिलता है।
16 फरवरी 2012 (c)

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