Wednesday, October 17, 2018


वीर रस के कवि डॉहरिओम पवार की नज़र में यूरोपियन चर्च और वामपंथी 

कर रहे देश के खिलाफ षडय़ंत्र और मोदी ने देवता होने का काम किया


मुहम्मद जाकिर हुसैन
स्मृति नगर में चर्चा के दौरान 
वीर रस के चर्चित कवि डॉ. हरिओम पवार पेशे से कानून के प्रोफेसर रहे हैं। उनके पढ़ाए विद्यार्थियों में ज्यादातर हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। उनकी रचनाएं जनता में जोश जगाती हैं लेकिन जरूरी नहीं कि आप उनकी सभी बातों से सहमत हों। 
उनसे बात करने पर लगता है कि हमारे देश के बहुत सारी समस्याओं के लिए वामपंथ और कुछ हद तक यूरोपियन चर्च के षडय़ंत्र जिम्मेदार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर वे अनुकूल और प्रतिकूल दोनों बातें कहते हैं, इसलिए मुमकिन है कि उनकी सुनने पर कई बार भ्रम जैसा भी होता है। हालांकि तमाम सहमति-असहमति के बीच उनकी बातों पर गौर किया जाना चाहिए। 15 अक्टूबर 2018 को डॉ. पवार भिलाई में थे। एक कॉलेज में स्टूडेंट के बीच उन्होंने वीर रस की रचनाओं से महफिल लूट ली। मेरी ख्वाहिश उनसे लंबी बातचीत करने की थी लेकिन उन्हें हड़बड़ी फ्लाइट पकडऩे की थी। फिर भी लंच तो करना ही था। लिहाजा लंच से पहले 10-15 मिनट में उनसे बातचीत हो ही गई। ये बातचीत उन्हीं के शब्दों में जस की तस, सिर्फ क्रम में फेरबदल है।

वामपंथियों ने षडय़ंत्र कर नोटा का विकल्प जुड़वाया

मैं एक बात साफ कर दूं। ये जो चुनाव में इनमें से कोई नहीं (नोटा) का आप्शन है ना, मैं इसके सख्त खिलाफ हूं। मेरी नजर में यह हिंदुस्तान में लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने का षडय़ंत्र है। यह हिंदुस्तान के लोकतंत्र से मजाक है। ये माक्र्सवाद का, वामपंथियों का षडय़ंत्र है। वो हिंदुस्तान की आम जनता की चुनावों में आस्था और किसी नेता में निष्टा को खतम करना चाहते हैं। 'नोटा समर्थक कहते हैं कि किसी को भी मत चुनों, तो क्यों नहीं चुने साहब हम ? इसके मायने तो ये हुए कि आपका लोकतंत्र में विश्वास नहीं है। भई, जो भी अच्छा बुरा होगा चुनेंगे तो अपनो में से ही ना। आप एक्सपोर्ट करोगे बाहर से, ट्रम्प को चुनोगे क्या..? मैं समझता हूं कि 'नोटाÓ का जो भी समर्थन करता है वो देश के लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। आप कहेंगे कि ये तो बाध्यता है किसी ना किसी को चुनना, तो मेरा कहना है कि आखिर आप लोकतंत्र की बाध्यता स्वीकार करते हैं ना, तो आपको ये भी मानना होगा कि नोटा नहीं होना चाहिए। लोग कहते हैं कि चुनाव में खड़े हुए ये सब गधे हैं और हम नहीं चुनते किसी को। तो क्या कहना चाहते हैं आप? अगर सब बुरे हैं और आप इतने अच्छे हैं तो खुद क्यों नहीं खड़े हो जाते?वोट मत डालो,किसी को मत चुनो यह एक वो धारा है जो हमारी लोकतंत्र की मूल धारा को मुकसान पहुंचाती है। ये बहिष्कार है और यही वामपंथी चाहते हैं। ये वही माक्र्सवादी लोग हैं जो कश्मीर में चुनाव बहिष्कार करवाते हैं। ये वही माक्र्सवादी-लेनिनवादी लोग हैं जो भारत में बंदूक की गोली से बदलाव लाना चाहते हैं। इसलिए कुछ वामपंथी विचारकों ने कांग्रेस के समय में इस 'नोटा का प्रावधान बड़े ही सुनियोजित ढंग से षडय़ंत्र के तहत जुड़वा दिया। जबकि इसके पहले जो संविधान में प्रावधान था कि आप वोट नहीं डालना चाहते तो मत दीजिए। तब उसकी गिनती नहीं होती थी। आज आप विश्वास नहीं करोगे कि गुजरात के चुनाव में कुछ कैंडिडेट से ज्यादा मत नोटा के थे।

'मी टू चर्च का षडय़ंत्र, जिससे पादरियों के कुकर्म से ध्यान हटे

आज 'मी टू अभियान पूरी तरह गलत दिशा में जा रहा है। दरअसल कुछ पादरियों पर रेप के केस थे। यह मामला मीडिया में छा गया था। ये लड़की जिसने नाना पाटेकर पर आरोप लगाया है वो लंदन में रहती है और क्रिश्चियन बन गई है। जो लोग पादरियों पर रेप की चर्चा को खत्म करना चाहते थे और भारत की संस्कार और संस्कृति को खत्म करना चाहते थे। ऐसे लोग आरोप लगा रहे हैं। मेरे एक कवि मित्र तेजनारायण ने लिखा है- 'जो बिल्लियां नौ सो चूहे खा कर भी हज नहीं जा सकी वो बिल्लियां उन अपच चूहों को उगल रही है।

आज आरोप लगा रही हैं शराब-सिगरेट पीने वाली

एमजे अकबर आरोप झूठे हैं कि सच्चे हैं मैं नहीं जानता। अब आप सोचिए कि तब अकबर इतना ताकतवर था कि उसके साथ काम करने वाली लड़की जो पत्रकारिता में शराब-सिगरेट पीती थी, उसे अकबर ने छेड़ा और उसने शिकायत तक नहीं की। अब जबकि 20 साल बाद अब वही अकबर मंत्री बन गया तो आपका डर खत्म हो गया कि अब आरोप लगा दो कि एमजे अकबर की हम पर नीयत खराब थी। हैरासमेंट की 20 साल बाद याद आई हो सकता है सब बातें सच हो लेकिन 20 साल बाद ये सब कहना मेरी नजर में इंटेंशन है।

'अवार्ड वापसी की तरह है ये मामला

यह ठीक उसी तरह है जैसे पहले एक गैंग चला था अवार्ड वापसी का कि देश में अनार्की हो गई है और कोई भी सुरक्षित नहीं है। उसका असर हुआ कि बिहार में भाजपा हार गई। कम लोगों को मालूम है कि साहित्य अकादमी का नियम है कि चेक वापस हो ही नहीं सकता। अब 20 साल पहले अवार्ड मिला और अब हम को कोई भी नहीं जानता, इसलिए अब अवार्ड वापस कर दो तो नाम भी हो जाएगा। इसलिए अब हीरो बनने के लिए वापस कर दिए। जबकि उनको मालूम है कि चेक तो वापस होता ही नहीं।

क्रिश्चियन होने के बाद लगाया आरोप नाना पर

तब वो लड़की 150 लोगों के बीच नाना पाटेकर के साथ सेट पर नाच रही थी। अब 10 साल बाद उसने क्रिश्चियन हो कर आरोप लगाया कि वहां नाना ने छेड़छाड़ की थी। आरोप लगाने के लिए वो लड़की लंदन से बुलाई गई। इससे साफ समझ में आता है कि ये 'मी टू वालों की नीयत भी अवार्ड वापसी गैेंग जैसी है। तो देखना आप आगे मोदी पर भी लगेगा ऐसा आरोप। इससे ऐसा लगेगा कि यह देश तो यूरोप से आगे निकल गया। हम जिन मूल्यों संस्कृति में महान माने जाते थे, उनकी कोशिश है कि इन्हें इतना बिगड़ा सिद्ध कर दो कि दुनिया में हम किसी से ना कहें कि हम दुनिया में विश्व गूरू थे। हमारे यहां सबसे बड़ी ताकत परिवार थी, उसे वामपंथी और क्रिश्चियानिटी विचारधारा ने तोड़ दिया है। अब देखिए 370 हटाने के बजाए 377 हटा दिए। हां, 497 को खत्म किया तो ठीक है क्योंकि अपनी मर्जी से कोई दो व्यस्क सोते हैं तो यह क्राइम तो नहीं है। आईपीसी में अपराध और अनैतिकता तो अलग-अलग मामले है। अपराध की सजा है और अनैतिकता को कानूनी वैधता दे रहे हो। ये फैसले कानूनी हिसाब से गलत नहीं है लेकिन हमारे नैतिक मूल्यों के हिसाब से तो गलत है। यह भारत के संस्कारों से खेलने की कोशिश है।

कम से कम अभी तो नहीं दिख रहा मोदी का विकल्प

देखिए आज की परिस्थिति में विपक्ष को जैसा काम करना है वैसा कर रहा है। अब गठबंधन की लाचारी पर मेरा कहना है कि 'यह चूहे बिल्ली में यारी है और गिरगिट के मस्तक पर रोली है। सारांश ये है पूरे राजनीति माहौल का कि 'जहां हौसले हिल जाते हैं सांप-नेवले मिल जाते हैं। जोगी और मायावती का गठबंधन हो रहा है, अब देश ना जाने आगे क्या क्या देखेगा। लेकिन आज आप पूछें तो मेरा साफ कहना है कि कम से कम अभी तो मोदी का विकल्प नहीं दिख रहा है।

मैं मोदी का प्रशंसक हूं प्रचारक नहीं

यह स्वाभाविक है कि राजनीति में सत्ता में जो बैठा होता है विपक्ष उसे हटाने की कोशिश तो करता ही है। मैं फिर कहूंगा कि मुझसे आज कोई पूछे तो मुझे कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। मोदी से भूल हो सकती है पर उनकी निष्ठा पर सवाल नहीं उठा सकते। वो देश के गरीब आदमी के लिए कर रहे हैं। मैं उनका प्रशंसक हूं लेकिन मैं उनका प्रचारक नहीं हूं। वो आदमी जिसने 4 करोड़ गरीब महिलाओं को धुएं से मुक्ति दिला दी, महिलाएं पहले धुएं में अपनी आंख फोड़ती थी, उन्हें गैस चूल्हा दिया तो ये देवता हो जाने का काम किया है मोदी ने। कोई माने या ना मानें, प्रेस भी ना मानें। लेकिन ये कोई छोटा काम नहीं है।

ये देश चला है 60 साल नंबर 2 में

देश को सुधारने की कोशिशों में कोई कमी नहीं है उन्होंने। ये दो नंबर में चलने वाला देश जब हंटर लेकर एक नंबर में लाया जाएगा ना तो ऐसा ही विरोध होगा जैसा मोदी का हो रहा है। अब बढ़ाओ जमीन के रेट आप और लाओ नंबर एक का पैसा। आप कहां से लाओगे? ये देश 60 साल नंबर 2 में चला है। व्यापारी 2 नंबर का काम करते थे जो करोड़ों कमाते थे ना, वो इंकम टैक्स नहीं भरते थे। क्या ये शर्मनाक नहीं है कि केवल 10 लाख लोगों का रिटर्न 10 लाख से उपर का है और हर साल एक करोड़ लोग विदेश जाते हैं जो परिवार सहित विदेश घूमता है उसने भी इनकम टैक्स का आफिस नहीं देखा था। रिटर्न नहीं भरता था। अब अगर मोदी मजबूर कर रहा है कि भरें तो साढ़े तीन करोड़ लोगों ने रिटर्न भरा डर के मारे। अपनी मर्जी से नहीं डर के मारे।

इंदिरा ने सिखाया अनुशासन तो सब वक्त पर आने लगे

साफ कहूं तो ये देश अनुशासन कोड़े से सीखता है। आपातकाल में इंदिरा गांधी ने कुछ भी नहीं किया था सिर्फ अनुशासन सिखाया। सारी ट्रेन समय पर चलने लगी। सब समय पर आने लगे थे अपने दफ्तरों में। इस देश को अनुशासन सिखाया जाता है। मोदी कोशिश कर रहा है कि देश एक नंबर पर हो जाए। इसमें हर उस दो नंबर के आदमी को परेशानी है। इसलिए लोग मोदी की निंदा करते हैं। अनुशासन की बात निकली है तो जैसा कुछ लोग कहते हैं कि प्रत्येक नागरिक को आर्मी की ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए तो मैं इसका विरोधी हूं। क्योंकि हमारे संविधान में आर्मी की ट्रेनिंग की व्यवस्था है ही नहीं। इसलिए उस बारे में मत सोचिए। वैसे भी आपकी नई पीढ़ी तो ऐसे ही बरबाद हो रही है। आपके बच्चे को टेम्स मालूम है गंगा नदीं नहीं, फोर्टी नाइन मालूम है उनंचास नहीं। 

रमन, शिवराज, नितिश..सब काम करते थे मेरे अधीन 

हरिभूमि 16 10 18 
2014 में जब लोग भारतीय जनता पार्टी की टिकट के लिए लाइन लगाए हुए थे तो मैं एक ऐसा अकेला व्यक्ति हूं,जिसने मिलती हुई टिकट ठुकराई। क्योंकि मेरे लिए कवि रहना राजनीति में रहने से ज्यादा सम्मनजनक है। मैं जानता हूं कि राजनीति में जाकर ईमानदार कभी नहीं रह सकता है। मैंनें लिखा है कि- 'मैं चारण हूं चौराहों पर आंख लाल कर पूछंूगां, सिंघासन के गिरेबान में हाथ डालकर पूछूंगा,जो भूखों के लिए किए हों वो काम बता दो मोदी जी, काले धन के गद्दारों के नाम बता दो मोदी जी अब अगर यह मैं संसद में सुनाता तो पार्टी मुझे संसद बनाए रखती क्या? कवि होने का जो सम्मान है उसके आगे राजनीति में आना मंजूर नहीं।राजनीति को मैनें बहुत करीब से देखा है। आपातकाल में मैं जेल जा चुका हूं। वो दौर ऐसा था कि मंच में जेपी और नानाजी देशमुख के अलावा तीसरा सिर्फ मैं होता था। ये जो आज के रमन सिंह, शिवराज सिंह, नितीश कुमार और शाहनवाज सहित तमाम नेता हैं, ये सारे के सारे तब मेरे अधीन काम किया करते थे। मैं नेता था इनका। जेपी मेरे कंधे पर हाथ रख कर भाषण दिया करते थे। इसलिए राजनीति मेरे लिए कोई नई बात नहीं है। मुझे कवि रहना ज्यादा सम्मानजनक लगता है।

अतिसक्रियता का माहौल सोशल साइट की वजह से

अभी आसन्न चुनावों को लेकर देश में जैसा वातावरण पहले रहा है लगभग वही अभी भी है। हां, जनता में जो अतिसक्रियता दिख रही है, उसकी वजह जनता में आया जोश नहीं है बल्कि यह सोशल साइट का नतीजा है। ये नया खेल आया है, इसके कारण हमको सारी दुनिया एक्टिव नजर आती है। आज जिनकी कोई नहीं सुनता वो सोशल साइट पर चला आता है। अब हर कोई क्रिकेट,राजनीति, फिल्म इंडस्ट्री से लेकर हर विषय पर अपनी बात रख रहा है। नाना पाटेकर को किसी ने क्या कह दिया इस पर राय सभी दे रहे हैं। राय तो पहले भी लोग रखते थे लेकिन वो आपस में चर्चा कर शांत हो जाते थे। अब सोशल मीडिया का असर है।

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