Thursday, March 17, 2022

मेरा कश्मीरनामा-1

 

कश्मीर की वादियों में आखिरी सांस लेने

 की आरजू पूरी न हो सकी मल्ला दंपति की


मुहम्मद जाकिर हुसैन

मल्ला दंपत्ति के साथ लेखक सपत्नीक-जनवरी 2008 नई दिल्ली

बात 1983 की है, कश्मीर की लालडेल कालोनी (श्रीनगर) में एक मकान की नींव रखी गई। भिलाई इस्पात संयंत्र से सेवानिवृत्त हुए कार्मिक अधिकारी जानकी नाथ मल्ला की ख्वाहिश थी इस मकान को घर बनाने की, आबाद रखने की। 

इसलिए भूमिपूजन हुआ, दीवारें खड़ी हुई और तमाम तैयारियों के बाद मल्ला परिवार का सपनों का आशियाना बन गया।

दुर्ग के आदर्श नगर मेें मल्ला दंपति के मकान का नाम पम्पोश (कमल) था, लिहाजा अपने कश्मीर के घर का नाम भी पम्पोश रखना तय हुआ। छह बरस बाद भिलाई स्टील प्लांट से शिक्षा अधिकारी के तौर पर मनमोहिनी मल्ला भी रिटायर हो गईं। मल्ला दंपति की एक बेटी है। सोचा था वहीं बस जाएंगे और बेटी भी अपनी आगे की पढ़ाई वहीं कर लेगी। 

मल्ला दंपति छत्तीसगढ़ से सीधे कश्मीर जाने की उधेड़बुन में थे। कश्मीर और दिल्ली में रह रहे अपने रिश्तेदारों को भी इसकी खबर कर दी थी। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उन बातों को याद करते हुए मल्ला दंपति की आंखें भीग जाती हैं। 

मकान ही नहीं हमारे ख्वाबों पर भी गिरा रॉकेट लांचर

उन दिनों मल्ला परिवार भिलाई को अलविदा कहने की तैयारी में था। लेकिन अचानक खबर आई कि 1989 में यह घर आतंकवादियों के राकेट लांचर का निशाना बन गया और मल्ला परिवार चाह कर भी अपने घर ना जा पाया। मल्ला कहते हैं-वो राकेट लांचर सिर्फ हमारे मकान पर ही नहीं गिरा बल्कि उन ख्वाबों पर भी गिरा जो हमने बरसों से संजोए थे। 

कश्मीर में अपने कई परिजनों को खोने वाले जेएन मल्ला को आज भी अपना पैतृक घर और गलियां भूलती नहीं। छत्तीसगढ़ कश्मीरी पंडित समिति के अध्यक्ष जानकीनाथ मल्ला कहते है हम इस उम्मीद पर जी रहे हैं कि कश्मीरी पंडित एक ना एक दिन अपने घर जरूर लौटेंगे। 

बाजपेयी-मुशर्रफ शिखर वार्ता को लेकर उत्सुकता

आगामी 15 जुलाई 2001 को पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ होने वाली भारत-पाक शिखर वार्ता को लेकर मल्ला परिवार बेहद उत्सुक है। 

बीएसपी की रिटायर शिक्षा अधिकारी मनमोहिनी मल्ला कहती हैं-वार्ता सिर्फ बातचीत के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि कुछ हल भी निकलना चाहिए। वह कहती हैं, हमने जो खोया है वह कोई लौटा तो नहीं सकता फिर भी हमारे प्रधानमंत्री ने जो पहल की है उसका खैर मकदम है

इस्पात नगरी भिलाई को समर्पित मेरा यू-ट्यूब चैनल,सब्सक्राइब करने की गुजारिश

 

कश्मीर से दिल्ली और फिर भिलाई का सफर 

भिलाई के शुरूआती दौर में मल्ला परिवार सहित

74 वर्षीय जेएन मल्ला बीते दिनों को याद करते हुए कहते है-कश्मीर आज जिस बदहाली में है उसकी शुरुआत 1940 में हुई थी जब उस वक्त क्विट कश्मीर मूवमेंट के अंतर्गत वहां के जमीदारों से जमीन हड़पना शुरु हुई। 

इसका सबसे ज्यादा नुकसान वहां के कश्मीरी पंडितों को हुआ। बाद में जब बख्शी गुलाम मोहम्मद ने कश्मीर की सत्ता संभाली तो कश्मीरी पंडितों को नौकरियों व अन्य सेवाओं में अवसर कम मिलने लगे। इस उपेक्षा  से त्रस्त होकर बहुत से कश्मीरी पंडितों को देश के विभिन्न भागों में पहुंचकर रोजगार के अवसर तलाशने पड़े।

मैं स्कूल की पढ़ाई के बाद 1952 में नई दिल्ली पहुंचा था। जहां राष्ट्रपति भवन में मेरे निकट रिश्तेदार पदस्थ थे। उनके साथ वहीं रहने और पढऩे का मौका मिला। मेरी पढ़ाई पूरी हुई तो उस दौरान भिलाई परियोजना शुरू हुई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यालय में आईसीएस आफिसर निर्मलचंद्र श्रीवास्तव पदस्थ थे।

1957 में जब श्रीवास्तव को भिलाई परियोजना का महाप्रबंधक बना कर भेजा गया तो उन्होंने मुझे भी साथ ले लिया और इस तरह किस्मत मुझे भिलाई ले आई। फिर मैं यहीं का हो कर रह गया। अब पता नहीं कब अपने कश्मीर जा पाउंगा।

पाकिस्तान की नीयत पता चलती है ऐसे बयानों से 

मल्ला दम्पत्ति की आगामी मुशर्रफ-बाजपेयी की आगरा शिखर वार्ता को लेकर अपनी धारणा है। जेएन मल्ला कहते है दोनों देशों की होने वाली उच्च स्तरीय बातचीत से कश्मीर मसले का शांतिपूर्वक हल निकलना चाहिए।

वह कहते हैं वार्ता से पूर्व भारत में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर ने एक बयान दिया है कि लाहौर और शिमला समझौते के साथ संयुक्त राष्ट्र के मसौदे को भी पाकिस्तान मानता है जिसमें जनमत संग्रह की बात थी। आज जनमत संग्रह अव्यवहारिक है फिर भी उच्चायुक्त यह मुद्दा उठा रहे है इससे ही पाकिस्तान की नीयत पता लग जाती है। ऐसे में वार्ता का कोई औचित्य नहीं रहेगा।

वास्तविक नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा मान लिया जाए

मल्ला दंपति

मल्ला कहते है, कश्मीर आज जिस स्थिति में है उसके लिए कौन जिम्मेदार हैं सभी जानते है, कभी इच्छा होती है कि भारत को बलपूर्वक पाक अधिकृत कश्मीर वापस ले लेना चाहिए। 

लेकिन, ऐसा हमारे हिंदुस्तानी खून में नहीं है। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम वास्तविकता को स्वीकार करें और संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता से 1947 में बनाई गई वास्तविक नियंत्रण रेखा को भारत और पाकिस्तान के बीच की अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा मानें।

मल्ला कहते हैं कश्मीर के साथ भारत सरकार को भी देश के अन्य राज्यों की तरह समान व्यवहार करना चाहिए और अगर इस वार्ता की आड़ में पाकिस्तान की मंशा फिर जेहाद के नारे को बुलंद करने की है तो भारत को अपनी संप्रभुता की खातिर पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने तैयार रहना चाहिए। 

 

हम अपने घर नहीं जा सकते, इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी..?

श्रीमती मल्ला कहती है जिस कश्मीर में हमारा बचपन गुजरा, हम बड़े हुए वह हमारे दिल में बसा है कई बार ख्वाहिश होती है कि कश्मीर जाएं और उन्हीं वादियों में घूमें लेकिन, फिर हकीकत तो हकीकत है। आज हम अपने घर नहीं जा सकते इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकी है। 

वह कहती है आगरा शिखर वार्ता अगर हमें हमारे घर पहुंचा दे तो जनरल मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी के हम जिंदगी भर ऋणी रहेंगे। मल्ला दम्पति की आंख छलक गई।  जेएन मल्ला कहने लगे-यहां भिलाई में हमनें अपने जिंदगी के बेहतर दिन गुजारे, अब एक ही आरजू है कि कश्मीर में अपने 'वतन' में आखिरी सांस लें। श्रीमती मल्ला अपनी छलकती आंखों के साथ उनकी बातों से इत्तेफाक रखते हुए हामी भर देती हैं।


रास्ता खुलेगा तो टूटे हुए दिल करीब आएंगे

हरिभूमि10-7-2001 भिलाई संस्करण

कश्मीर पर छिड़ी बातों पर कुछ और जोड़ते हुए जानकीनाथ मल्ला कहते हैं- कुछ दिनों से यह सूरत दिखाई दे रही है कि कश्मीर में फिर वहीं पुराने दिन लौटेंगे। 

खुदावंद तआला से हम यही दुआ करते हैं कि हमारे यहां वाजपेयी जी और वहां मुशर्रफ की पहल को कामयाबी बख्शे और मुफ्ती मोहम्मद सईद की चीफ मिनिस्टरशिप में जम्मू कश्मीर में अमन चैन लौटे।

मल्ला कहते हैं कि आज भी हर कश्मीरी, जिसमें पंडित और मुसलमान दोनों शामिल हैं, दिलोजान से चाहता है कि कश्मीर का मसला हल हो जाए, ताकि वहां खुशहाली और अमन लौटे और कट्टरवाद से मुक्ति मिल जाए। 

 अमन की बहाली से ही लौटेंगे हमारे पुराने दिन

वह कहते हैं कि अगर अमन की बहाली होती है तो वहीं पुराने दिन लौटेंगे और जिससे कश्मीर और कश्मीरियत दोनों जिंदा रह सकेंगे। पास बैठी श्रीमती मनमोहिनी मल्ला उनकी बातों से इत्तफाक रखते हुए कहती है, वाकई अब तो हालात ऐसे बनने चाहिए कि कश्मीरी पंडित वापस उन्ही वादियों में लौट सके। वह कहती है यदि मुफ्ती सरकार इसमें कामयाब हो जाती है तो यह सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

विस्थापित कश्मीरियों के संबंध में जेएन मल्ला कहते हैं कि अगर कट्टरवाद के खिलाफ सरकार दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दें तो विस्थापित कश्मीरी फिर वापस लौट सकते हैं। मल्ला कहते हैं कि पहले मुजफ्फराबाद और श्रीनगर वाला रास्ता खोलना चाहिए, ताकि लोग एक दूसरे से मिल सकें। 

अगर ऐसा हो गया तो श्रीनगर और मुजफ्फरबाद का रास्ता क्या खुलेगा समझो दिल से रास्ते खुल जाएंगे और हिंदुस्तान और पाकिस्तान जो दिल के दो दुकड़ों की तरह अलग हो गए हैं वह भी करीब आएंगे। हम तो उम्मीद करते हैं कि एक न एक दिन यह होगा और हम अपने वतन में लौट सकेंगे। 

 

कश्मीर में बसने की ख्वाहिश लिए दुनियाा से विदा हुए दोनों

 मल्ला दंपत्ति से मेरा रिश्ता माता-पिता और एक संतान की तरह था। अक्सर उनसे कश्मीर के मसले पर मेरी बात होती थी। उनके घर पर कई बार कश्मीरी दस्तरख्वान बिछा और कश्मीरी खानों का जायका उनके दुर्ग वाले घर में ही चखने का मौका मिला। खास तौर पर कश्मीरी गोश्त बिल्कुल अलहदा अंदाज में पका हुआ, जिसका जायका मैं आज तक भूल नहीं पाया। मल्ला साहब जब भी बात करने बैठते तो सबसे पहले नफीस उर्दू में ओम नम: शिवाय  (اوم نمہ شوائے) और श्री गणेशाय नम: (شری گنیشائے نما) लिखते, फिर जो कुछ भी बताते अपनी याददाश्त के लिए डायरी में उर्दू में नोट भी कर लिया करते थे।
कश्मीरी जबान में कमल को ''पम्पोश'' कहते हैं और मल्ला दंपति को कमल का फूल बेहद पसंद था। इसलिए उन्होंने न सिर्फ अपने दुर्ग आदर्श नगर वाले घर का नाम ''पम्पोश'' रखा था बल्कि कश्मीर जो घर बनाया था उसका नाम भी ''पम्पोश'' रखा था।
उन्हें बाजपेयी शासन काल में कमल वाली भारतीय जनता पार्टी से भी खूब उम्मीदें थी। मल्ला दंपति को लगता था कि जीते जी जरूर कश्मीर में अमन के साथ बस जाएंगे। हालांकि यह कभी हो न सका...। मल्ला दंपति से यह इंटरव्यू जुलाई 2001 में उनके दुर्ग वाले घर पम्पोश में अलग-अलग मुलाकातों के दौरान लिया था। 2006 में मल्ला परिवार दुर्ग से दिल्ली अपने कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ रहने चले गया। हालांकि उनके मेरा जीवंत संपर्क बना रहा। 

वर्ष 2008 के शुरूआती दिनों में मेरा सपत्नीक नई दिल्ली जाना हुआ था, जहां मल्ला दंपत्ति से रूबरू आखिरी मुलाकात हुई थी। कुछ दिनों बाद 6 फरवरी 2008 को मनमोहिनी मल्ला इस दुनिया से रुखसत हो गईं। बाद के दिनों में जेएन मल्ला से संपर्क बना रहा। फोन पर बातें होती थीं। कभी दिल्ली जाने पर मुलाकात भी हो जाती थी।17 दिसंबर 2018 को जानकीनाथ मल्ला का निधन हुआ।

मेरा कश्मीरनामा-2

मेरा कश्मीरनामा-3

मेरा कश्मीरनामा-4


5 comments:

  1. बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर..
    बहुत संम्हाल कर रखे इस लेख ( इन्टरव्यू)को..

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  2. निवेदन,
    टिप्पणी के लिए आभार....कृपया टिप्पणी के अंत में अपना नाम जरूर उल्लेखित कर दें। ब्लॉग में टिप्पणीकर्ता के नाम की जगह Unknown लिखा होने से टिप्पणीकर्ता को पहचानना संभव नहीं होता।

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  3. ललित यादव भिलाईMarch 18, 2022 at 7:52 AM

    बढ़िया लेख
    जीवन में हर पल एक नई कहानी जुड़ते जाती है जिसे हर किसी को जानने की जरुरत है यहीं से खोजी पत्रिकारिता का रास्ता निकलता है.

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  4. अच्छा संस्मरण है। अपनी माटी से कट जाना बड़ी पीड़ा देता है। बहरहाल - हजारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले ....

    विश्वास मेश्राम, भिलाई

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