Thursday, March 24, 2022

मेरा कश्मीरनामा-3

 

हमनें बड़े भाई को आतंकी हमले में खोया, हमारे घर पर घास 

उग आई और आर्मी बैठी है, इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी..? 

 

 हास्पिटल सेक्टर में निवासरत दूदा दंपति को उम्मीद कश्मीर में फिर लौटेंगे वो बहार वाले दिन


मुहम्मद जाकिर हुसैन 

वो 90 वाला खौफनाक दौर था, भिलाई स्टील प्लांट के उपमहाप्रबंधक (डीजीएम) रामकृष्ण दूदा उस रोज अपने घर में टेलीविजन देख रहे थे और उनकी पत्नी और भिलाई महिला महाविद्यालय सेक्टर-9 की प्राचार्य डॉ. संतोष कौल दूदा किचन में व्यस्त थी।

 किसी काम से श्रीमती दूदा बाहर निकली तो टीवी पर खबर आ रही थी कि सुप्रसिद्ध कश्मीरी साहित्यकार सर्वानंद कौल प्रेमी की उनके नौजवान बेटे वीरेंद्र कौल प्रेमी सहित आतंकवादियों ने बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी है। यह दर्दनाक वाकया 30 अप्रैल 1990 का है। 

बकौल श्रीमती दूदा-मेरे कदम वहीं रूक गए, कुछ समझ में नहीं आया कि प्रेमी जैसे साहित्यकार, जो कि सभी वर्गों में समानरूप से लोकप्रिय थे, भी दहशतगर्दी का शिकार हो गए। उन्होंने कई धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रंथों का कश्मीरी में अनुवाद किया था। उस रात हम लोग खाना नहीं खा सके। 

आतंकियों के शिकार सर्वानंद कौल 'प्रेमी' और मीर वाइज फारुख शाह

तब तो यह सिलसिला चल निकला था। हम लोग सर्वानंद प्रेमी के कत्ल से सदमे में थे कि कुछ ही दिन के बाद 21 मई 1990 को कश्मीर में सर्वमान्य धार्मिक नेता मीर वाइज फारुख शाह को भी आतंकियों ने अपनी गोली का निशाना बना दिया। 

आरके दूदा कहते हैं-उस दौर में हमनें अपने बड़े भाई को भी आतंकी हमले में खो दिया और प्रेमी जैसे साहित्यकार व मीर वाइज जैसे अमनपसंद लोगों के कत्ल ने हमें अपने भाई को खोने जैसा दुख दिया। दूदा दंपति आज भी हैरान है कि प्रेमी-मीर वाइज की तरह शांति प्रिय लोग ही क्यों लगातार दहशतगर्दी का शिकार हुए। 

अब चूंकि आगामी दिनों में (15 जुलाई 2001 को) पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ आगरा में शिखर वार्ता तय है इसलिए दूदा दंपत्ति भी उत्सुक है, लेकिन बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। 

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कश्मीर पर दोनों देशों को देनी होगी कुरबानी, तब हल होगा मसला

दूदा दंपति-साभार फेसबुक

आरके दूदा कहते हैं जिस तरह दूर क्षितिज पर हमें जमीन-आसमान मिलते दिखाई देते हैं लेकिन, वास्तव में जमीन-आसमान मिलते नहीं है वहीं हाल दोनों मुल्क के बीच का है। 

बीते 50-52 साल में दानों देशों के रिश्तों में जो उतार-चढ़ाव आए है वह सिर्फ एक शिखर वार्ता से तो हल होने वाला नही। हां, यह जरूर है कि कम से कम दोनों मुल्क आपसी तकरार भूल कर एक टेबल पर बात करने तैयार हुए हैं।

 इससे रिश्तों में सुधार जरूर आएगा और सीमा पर तनाव कम होगा। दूदा कहते हैं कि दूसरे मामलों में भले ही समझौते हो जाएं लेकिन, कश्मीर मसले पर बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है क्योंकि यह मसला बहुत पेचीदा हो गया है फिर बातचीत में निरंतरता रहनी चाहिए और दोनों देशों को कुछ ना कुछ कुर्बानी देनी पड़ेगी। इसके बाद ही हम किसी नतीजे की उम्मीद कर सकते हैं। 

 

सिर्फ हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मारा गया, आम कश्मीरी भटक रहा 

जनरल मुशर्रफ द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस को दावतनामा भेजने के मसले पर श्रीमती दूदा कहती हैं कि हम यह नहीं कहते कि आप हुर्रियत को बुलाएं बल्कि होना यह चाहिए कि कश्मीरी को बुलाएं जिसमें सभी वर्ग हो। आरके दूदा का कहना हैं दहशतगर्दी से कश्मीर में सिर्फ हिंदू ही पीडि़त नहीं था बल्कि वहां का मुसलमान भी मारा गया और घर छोडऩे विवश हुआ।

आज वहां भाड़े के आतंकवादियों के नाम से सूडान और अफगानिस्तान जैसे मुल्कों से आए लोग अपने पैर जमा रहे हैं और कश्मीरी अपने ही मुल्क में भटक रहा है। श्रीनगर के करीब करणनगर की रहने वाली श्रीमती दूदा व जवाहर नगर के आरके दूदा को अपना कश्मीर भुलाए नहीं भूलता। 

 

साझी थी हमारी महाशिवरात्रि और ईद की खुशियां

कश्मीरी महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में (आर्काइवल फोटो)

आरके दूदा कहते हैं-हम कश्मीरी लोग तो रूहानी तौर पर काफी ऊपर थे। हमारा रहन-सहन, मेल-जोल सब एक आदर्श था।

वह बताते है हमको तो कभी भी हिंदु-मुस्लिम में फर्क पता नहीं चला। बचपन से हम देखते आ रहे थे कि घर में हमारे मुस्लिम परिवार रहता था।

फिर महाशिवरात्रि, जो कि हमारा सबसे बड़ा त्योहार होता है, में हमें सबसे पहली मुबारकबाद मुहल्ले के मुस्लिम परिवारों से मिलती थी। मुसलमान ईद के दिन का तबर्रूक सबसे पहले अपने हिंदू भाई के घर देता था। 

बचपन में हम सुनते थे और यह इतिहास भी है कि आजादी की जंग हिंदु-मुसलमान दोनों ने इकट्ठे लड़ी थी। लेकिन अब जो हालात बिगड़ गए है उसके लिए हम किसे जिम्मेदार ठहराएं। 

 

14 अगस्त का दिन, जब हमारे परिवार पर कहर टूटा

दूदा कहते हैं हमने जो खोया ईश्वर करे किसी को ऐसा दिन देखने ना मिले। वह बताते है स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पूर्व 14 अगस्त 1997 को आतंकवादी अपनी पूर्व घोषणा पर कायम थे। 

हमारे बड़े भाई कन्हैयालाल दूदा नियमित दिन की तरह सुबह उठे और श्रीनगर जाने बस पर सवार हुए। बस थोड़ी ही दूर गई थी कि आतंकवादियों ने बस यात्रियों को अपना निशाना बना लिया। 

दूदा अपने भाई की तस्वीर दिखाते हुए कहते हैं इस तरह हम कश्मीरियों ने ना जाने कितने ही अपनों को खोया है। श्रीमती दूदा कहती है अब 13 बरस हो गए है, हम अपने घर नहीं जा पाए है। 

बीच में खबर मिली की करणनगर और जवाहर नगर के हमारे घरों में घास उग आई है और वहां मिलिट्री बैठी हुई है अब इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी। 

फिर भी हम इस उम्मीद पर कायम हैं कि एक न एक दिन घाटी में अमन लौटेगा। हम लोगों ने 80 के दौर तक जो दिन देखें हैं, हमारी आने वाली पीढ़ी भी वैसे ही बहार के दिन देख पाएगी। 

 

..तब आखिरी बार इकट्‌ठा हुआ था हमारा पूरा परिवार

कश्मीरी पंडित परिवार (आर्काइवल फोटो)

श्रीमती दूदा बताती हैं-हर साल मई-जून आता है तो हमको अपने घर की याद आती है। लेकिन फिर ध्यान आता है कि अब वहां हमारा कोई नहीं है।

जब हम 12 बरस पहले (1990 में) श्रीनगर गए थे तब आखिरी बार हमारा पूरा परिवार इकट्ठा हुआ था। 

उसी दौरान कश्मीरी साहित्यकार सर्वानंद कौल प्रेमी से भी आखिरी मुलाकात हुई थी। अब तो वहां वीराना है। सिर्फ भाड़े के विदेशी आतंकवादी है बाकी वहां के रहवासी तो पलायन कर चुके हैं। 

श्रीमती दूदा कहती है अब जबकि भारत-पाक वार्ता होने वाली है तो पाकिस्तान के साथ विभिन्न मुद्दों पर बात करने के अलावा हमें आयात-निर्यात बढ़ाने और युद्धबंदियों की रिहाई पर भी बात खुल कर बात करनी चाहिए। 

आरके दूदा कहते है दहशतगर्दी से सभी तंग आ चुके हैं। अब जबकि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में बदलाव आ चुका है। जर्मनी जैसा देश एक हो चुका है। भारत और पाकिस्तान जो कि एक ही संस्कृति के पोषक हैं, के लिए क्या जर्मनी से सबक लेने का वक्त नहीं आ गया है?

 

आज भी हम पंडितों को अपने कश्मीरी मुसलमानों पर पूरा भरोसा

परंपरागत कश्मीरी नृत्य

रामकृष्ण दूदा का कहना है कि कुछ अरसे से घाटी में हालात बदले हैं लेकिन, यह नाकाफी है। अभी भी सूरत ऐसी नहीं कि कश्मीरी पंडित वापस अपने घर लौट सकें। 

आज भी कश्मीरियों को सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं दे सकता। सार्क समिट एक अच्छी पहल है, बातचीत आगे भी होगी लेकिन सरकारों के अलावा इसमें आम कश्मीरी को भी जोडऩा होगा। 

जब शांति के लिए जनता एक साथ बैठेगी तो हल जरूर निकलेगा। इसके अलावा आज जरूरत है, घाटी में जो हथियारों, गोला बारूद का जखीरा है उसे नष्ट करके मेजर ऑपरेशन चलाया जाए। दूदा कहते हैं कि आज भी कश्मीरी पंडित वापस अपने घर लौटना चाहते हैं।

क्योंकि यह जमीनी हकीकत है कि आज भी कश्मीरी पंडित को अपने कश्मीरी मुसलमान पर ही ज्यादा भरोसा है ना कि दूसरे समुदाय पर। इसलिए हर कश्मीरी को कश्मीरियत का उसूल निभाना होगा और सरकारों को दृढ़ इच्छा शक्ति का सबूत देना होगा। 

 

रद्द किया जाए कश्मीर में बेची गई तमाम संपत्ति का करार

हरिभूमि 12 जुलाई 2001

दूदा का कहना हैकि अब मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार को सबसे पहले यह कदम उठाना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों ने आतंक के दौर में जो संपत्ति बेच दी है उसका करार रद्द किया जाए और संपत्ति बेचने पर पाबंदी लगा दी जाए।

क्योंकि 15-16 साल में पंडितों और मुसलमानों ने जो भुगता है वह वापस तो नहीं आ सकता लेकिन इससे दोनों समुदायों को इकट्‌ठा रहने का मौका मिलेगा। 

वह कहते हैं कि अभी भी वहां की सरकार गंभीर नजर नहीं आती है। पिछले साल वनधामा नरसंहार में 45 लोग मारे गए, उनके एक-एक परिजनों को सरकारी नौकरी का वायदा किया गया था लेकिन साल बीतने के बाद भी सारे प्रभावित लोग बदहाल हैं।

आज तक किसी को नौकरी नहीं मिली इससे लोगों में असंतोष है। सरकार को लोगों का विश्वास जीतना होगा। जो शाख टूट चुकी है उस पर फिर से बहार लाने दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। 

 

 हमारे परिवार के कई लोग आतंक की भेंट चढ़े, वहां तो

 मुसलमानों को भी नहीं बख्शा आतंकियों ने:निर्मला देवी 

उम्र के आखिरी पड़ाव में श्रीमती निर्मला देवी कौल की सिर्फ एक ख्वाहिश है। वह चाहती है किसी न किसी तरह कश्मीर में अमन कायम हो। 

श्रीमती संतोष कौल दूदा की मां निर्मला देवी आज के हालात के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहती, फिर भी कहती है जो हुआ सो हुआ, ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे। दरअसल श्रीमती कौल ने आतंकवाद की आंधी झेली है। 

वह बताती हैं कि मैं सिर्फ एक अटैची में कपड़े रखकर अपनी बेटी के घर आई थी। पीछे घर में आतंकवादियों ने आग लगा दी। अब वहां तो राख भी नहीं बची होगी, क्योंकि बात 15 बरस पुरानी है। 

श्रीमती संतोष कौल बताती हैं कि उस हादसे के बाद परिवार के कई लोग आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। इससे मम्मी बहुत ज्यादा अवसाद में आ गई थीं। 

निर्मला देवी कहती हैं- घाटी में कश्मीरी पंडितों को सुनियोजित तरीके से निकाला गया था, ताकि हमारी जमीन जायदाद पर कब्जा कर सकें, लेकिन कश्मीरी पंडितों के निकलने के बाद आतंकवादी वहां बच गए मसलमानों को भी जेहाद के नाम पर निशाना बना रहे हैं।

वह कहती हैं कि हालात अगर सामान्य होते नजर आए तो कश्मीरी पंडित वापस लौट सकते हैं। लेकिन इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार में दृढ़ इच्छा शक्ति का होना बेहद जरूरी है।

 जम्मू कश्मीर की पिछली सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए बगैर नाम लिए वह कहती हैं कि शायद 'वो' सबसे अयोग्य मुख्यमंत्री थे जिन्हें यह नहीं मालूम था कि उनके स्टेट में क्या हो रहा है।

खास बात:-दूदा दंपति से इंटरव्यू 13 जुलाई 2001 को और श्रीमती निर्मला देवी का इंटरव्यू 13 जनवरी 2004 को 'हरिभूमि' में प्रकाशित हुआ था। फिलहाल दूदा दंपति भिलाई छोड़ कर अन्यत्र बस गए हैं। 

मेरा कश्मीरनामा-1

मेरा कश्मीरनामा-2 

मेरा कश्मीरनामा-4

 

2 comments:

  1. गुजारिश:-टिप्पणी के अंत में अपना नाम जरूर उल्लेखित कर दें। ब्लॉग में टिप्पणीकर्ता के नाम की जगह Unknown लिखा होने से टिप्पणीकर्ता को पहचानना संभव नहीं होता।

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  2. कश्मीर में अमन चैन कायम रहे इसका ख्याब तो हर हिन्दुस्तानी देखता है । समस्या का मुलभूत समाधान अवश्य होगा। इच्छाशक्ति को बनाये रखें

    पल्लव चटर्जी

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