Sunday, March 20, 2022

मेरा कश्मीरनामा-2

 

आंखों के सामने कश्मीरी भाई का खून देखा 

तो तीन दिन छिपते-छिपाते भिलाई लौट आया

 

श्रीनगर की हजरत बल दरगाह, शोपियां कस्बे में सेब की फसल औऱ वहां के मौजूदा हालात

मुहम्मद जाकिर हुसैन

 बात 1990 की है। आतंकवाद से झुलसते कश्मीर से ज्यादातर कश्मीरी पंडित पलायन कर रहे थे। भिलाई इस्पात संयंत्र में बतौर अफसर सेवा दे रहे पुष्कर नाथ सत्थु को जम्मू के करीब शोपयान कस्बे में अपने पैतृक निवास में रखे कुछ जरूरी कागजात लाने की याद आई। भिलाई में जम्मू पहुंच सत्थु शोपयान के लिए पैदल ही निकल पड़े।

इस दौरान सत्थु किसी तरह काजीगुंड पहुंचे थे कि ठीक उनके सामने एक कश्मीरी युवक आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गया। अपनी आंखों के सामने एक कश्मीरी मुस्लिम भाई का बहता खून देख सत्थु तुरंत उल्टे पांव जम्मू की ओर लौट पड़े। 

 

चरार-ए-शरीफ में मत्था टेकने और अपने सेबों

 के बाग फिर से देखने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

सत्थु दंपति (2018) फेसबुक

भिलाई के सत्थु परिवार की दिली ख्वाहिश थी कि एक बार परिवार सहित अपने पुरखों के घर शोपियान जाएं। 
अपने सेब के बागों में बेफिक्र होकर घूमें और हजरत बल में शुक्राना अदा करने माथा टेक आएं। अफसोस, उनकी यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाई।

अपनी श्रृंखला कश्मीरनामा के लिए पुष्करनाथ सत्थु से बात करने उनके रुआबांधा वाले घर में मैं बैठा था तो यह सब बताते हुए वह बेहद परेशान लग रहे थे। फिर भी उन्होंने खुद को संभाला और तफसील से बात की। सत्थु बताने लगे कि तब किसी तरह छिपते-छिपाते तीन दिन के पैदल सफर के बाद मुझे सेना के एक ट्रक में पनाह मिली। 

तब कहीं वापस सही-सलामत भिलाई पहुंच पाया। कई बार तो लगता था कि जान बच पाएगी या नहीं। पैदल सफर जारी रहा। 

इस दौरान मैनें कई जगह कत्लो-गारत का खौफनाक मंजर देखा। हमारे सारे रिश्तेदार तो वहां से निकल चुके थे लेकिन वहां जो बाकी हमारे कश्मीरी भाई रह रहे थे मुझे उनके बारे में सोच कर दहशत होने लगी कि इनकी सलामती की गारंटी कौन लेगा? हमारे कश्मीर तो पंडित और मुसलमान सब इकट्‌ठे रहते थे फिर किसकी नजर लग गई समझ नहीं आता।

सत्थु कहते हैं- उस आखिरी सफर के बाद हमारे लिए कश्मीर ऐसा हो गया मानो हमने इसे सिर्फ किस्से कहानियों में ही जाना हो। यह बताते हुए पुष्करनाथ सत्थु की आंखें छलक गईं। वह कहने लगे-आज हमारी यादों में जिंदा है हमारा अपना शोपयान कस्बा।

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अब पुराने फोटोग्राफ्स देख नम हो जाती हैं आंखें 

हमारी बातों के बीच अपना पारिवारिक एलबम दिखाते हुए सत्थु कहने लगे-अभी ज्यादा दिन की बात नहीं है, जब हम लोग अपने पूरे परिवार के साथ शोपयान और पहलगाम गए थे। 1983 के इस सफर की गवाह फोटोग्राफ्स देख कर आज भी हमारे परिवार की आंखें नम हो जाती है। 

सत्थु कहते हैं-वहां तो हमारा सब कुछ लूट गया। यहां जो जमा पूंजी थी उसे हमने वहां मकान बनाने में लगा दी थी। वहां तो कुछ रहा नहीं अब भविष्य की चिंता सता रही है कि भिलाई स्टील प्लांट से रिटायरमेंट के बाद हम कहां जाएंगे। 

हमारी बातचीत में शामिल होते हुए सत्थु की पत्नी फुला सत्थु कहती हैं आज हम अपनी जड़ों से इतने कट गए हैं कि हमारे बच्चे अब नहीं जानते कि कश्मीरियत क्या है, हमारी परंपरा क्या है? 

एक अच्छी शुरूआत है बाजपेयी-मुशर्रफ में बातचीत

रूआबांधा निवासी सत्थु दंपत्ति का पुत्र संजय चेन्नई में साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है व पुत्री सुप्रिया स्नातकोत्तर की छात्रा है। इस शिक्षित परिवार के मुखिया पुष्कर नाथ सत्थु कहते हैं जनरल मुशर्रफ भारत आ रहे हैं और बाजपेयी साहब से बातचीत भी करेंगे। 

शिखर वार्ता की तैयारियां चल रही हैं। यह बेहतर कदम है और इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। खुशी की बात है कि दोनों देश बातचीत के लिए राजी तो हैं।

लेकिन, बातचीत से किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं है क्योंकि अगर कोई सोचे कि कश्मीर समस्या एक बातचीत से हल हो जाएगी तो यह गलत है। हां, यह एक अच्छी शुरुआत है। अब कश्मीर की समस्या कोई आज की तो नहीं है। आधी सदी से ज्यादा का अरसा हमने इसका हल ढूंढने में ही बिता दिया।  


1951 के पहले का दर्जा दें तो कुछ बात बनें 

हरिभूमि भिलाई 11 जुलाई 2001

बातों के दौरान पुष्करनाथ सत्थु कहते हैं यह एक पेचीदा मामला है और किसी फार्मूले पर सभी पक्ष संतुष्ट हो जाएगें ऐसा नहीं लगता। मेरी राय में अगर कश्मीर को 1951 के पहले का दर्जा देने से समस्या हल हो सकती है तो सरकार को जरूर पहल करनी चाहिए। 

जहां तक हुर्रियत काफ्रेंस की मुशर्रफ से मुलाकात का सवाल है तो हमें यह समझना चाहिए हुर्रियत समूचे कश्मीरियों की प्रतिनिधि संस्था नहीं है। कश्मीर में और भी लोग हैं और भारत सरकार को सभी पक्षों को बराबर मानना चाहिए। 

सत्थु के पुत्र संजय का कहना है कि उन्हें बाजपेयी-मुशर्रफ वार्ता से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है क्योंकि सबसे पहले दोनों देशों को मानना होगा कि कश्मीर एक कोर इश्यु है तभी कुछ बात बनेगी। फिर अभी मुशर्रफ का अपने देश के कट्टरपंथियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। पाकिस्तान में वैसे भी हुक्मरान कोई भी हो वहां सेना का दखल सबसे अहम होता है। पुष्करनाथ कहते हैं-हमें उम्मीद तो है कि कुछ बेहतर हो सकता है। क्योंकि हम सभी चाहते हैं कश्मीर अपने घर लौटना। 1990 के बाद से हम सब इंतजार कर रहे हैं कि वह दिन कब आएगा, जब हम अपने घर लौटेंगे। 

 

हमारी पहचान बचाने 'पनुन कश्मीर' को मंजूरी दे सरकार

 जब तक भारत सरकार कश्मीर के आम लोगों को संतुष्ट नहीं रख सकती कश्मीर में शांति संभव नहीं। अपने बेटे की बातों से इत्तेफाक रखते हुए पुष्करनाथ सत्थु कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों का जो पनून कश्मीर आंदोलन है यदि उसके अनुसार भी भारत सरकार हम लोगों को एक निश्चित क्षेत्र पूर्ण संरक्षण के साथ दे तो शायद हमारी पहचान बच सकती है। 

वह कहते हैं-दिल्ली सरकार कश्मीरी पंडितों को आवास व अन्य सुविधा दिलाने प्राथमिकता देती है ऐसी ही पहल छत्तीसगढ़ सरकार को करनी चाहिए। 

सत्थु बताते हैं- 1960 में मेरा भिलाई आना हुआ और यह सोच कर यहीं रूक गया कि नौकरी के बीच छुट्टी में घर जाता रहूंगा फिर रिटायरमेंट करीब है पर शोपयान में अपना कोई रहा नहीं। 


स्विटजरलैंड से भी बेहतर था हमारा शोपियान

अहरबल की खुबसूरत वादी (सौजन्य-जिला प्रशासन शोपियान)

सत्थु कहते हैं-हमारा शोपियान तो स्विटजरलैंड से भी बेहतर था लेकिन, ना जाने किसकी नजर लग गई। 

पहले मैं जब भी छुट्टियों में जाता था तो घर से 20-25 मील दूर चरारे शरीफ दरगाह जरूर जाता था और भिलाई लौटते अपने घर के बाग के प्रसिद्ध सेब लाता था। 

फुला सत्थु कहती हैं-हम फिर अपने बागान के सेब खाना चाहते हैं और चरारे शरीफ में मत्था टेकना चाहते है। पुष्करनाथ सत्थु चुप हो गए, क्योंकि उनके पास कोई जवाब नहीं है। 

यह इंटरव्यू जुलाई 2001 का है। बाद के दिनों में 1-2 मरतबा उनसे मिलना हुआ। सोशल मीडिया पर भी सत्थु परिवार बेहद सक्रिय रहा है। अफसोस, पुष्करनाथ सत्थू अब हमारे बीच नहीं हैं। 2 जनवरी 2019 में उनका भिलाई में निधन हो गया।

मेरा कश्मीरनामा-1

मेरा कश्मीरनामा-3 

मेरा कश्मीरनामा-4

6 comments:

  1. आपकी टिप्पणियों का स्वागत है। गुजारिश है कि टिप्पणी के आखिर में अपना नाम जरूर उल्लेखित कर दें।

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  2. अपनों के सपनों की कश्मीर और कश्मीरियत का सच्चाई नामा में कितना दर्द रहा होगा है वही जान सकते है जिन्होने खोया हो। (प्रभाकांत सरसिहा)

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  3. बहुत ही शानदार दिल को छू जाने वाली रिपोर्टिंग है अगले भाग का इंतजार रहेगा
    Dr Uday

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  4. Kashmir valley mey shanti dooto ney jo hinduo ke padosi they unhone hee atyaachaar kiya.

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  5. अपनी जमीन से कट जाने का दर्द बहुत व्याकुल करता है

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