Thursday, September 6, 2012

मैं नेहरू हाउस, अब मर रहा हूं



मैं नेहरू हाउस हूं। सेक्टर-1 में एक टीन शेड को हटा कर मेरी इमारत खड़ी की गई थी देश की राष्ट्रीय एकता और कला-संस्कृति  को प्रदर्शित करने पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की सोच के मुताबिक । कुछ साल इस सोच पर अमल भी हुआ। लेकिन मेरी पहचान खत्म करने की साजिश में धीरे-धीरे लोग कामयाब होते गए और आज मेरे काफी सालों बाद बना भोपाल का भारत भवन तो देश और दुनिया की सुर्खियों मेें रहता है लेकिन मेरी अपनी पहचान पर मेरे अपने भिलाई के लोगों ने जंग लगाने में कोई कमी नहीं की।
मेरी कहानी शुरू होती है 1956 से। जब सेक्टर-1 में अस्पताल की जगह के ठीक सामने टीन का शेड डाला गया सामाजिक-धार्मिक आयोजनों के लिए। इस साल जब ईद पड़ी तो भिलाई स्टील प्लांट के पहले रजिस्ट्रार मोहम्मद अबुल फराह वारसी की पहल पर इसी शेड के ठीक सामने मैदान में ईद की पहली नमाज पढ़ी गई। फिर इसके बाद गणेशोत्सव आया तो महाराष्ट्र मूल के पहले चीफ इंजीनियर (सिविल) पीपी दानी की पहल पर शेड के भीतर गणपति की स्थापना की गई। धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजनों का सिलसिला चल पड़ा। 1956 और 57 में15 अगस्त व 26 जनवरी  पूरी भिलाई ने यहीं मनाई। 1958 के आखिरी महीनों में जब पहली कोक ओवन बैटरी का काम पूरा हो गया तो यहां इस्तेमाल किए गए टीन के शेड और बहुत पोल को यहां लाकर इस सभागार को और मजबूत बना दिया गया। अक्टूबर 1960 में रेल मिल का उद्घाटन करने पहुंचे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भिलाई में राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित करते एक भवन बनाने का सुझाव दिया। पं. नेहरू का सपना था कि एक  ऐसा सभागार बनाया जाए, जो उस वक्त के 17 राज्यों का प्रतिनिधित्व करते 17 कमरों से घिरा हो। जिससे कि यहां पूरे देश की कला व संस्कृति को दर्शाया जाए।  पं. नेहरू के रहते यहां 17 कमरे और भव्य सभागार तैयार हो गया। इसमें रूसी इंजीनियरों ने अपने देश से मोटर मंगाकर सभागार के स्टेज के नीचे लगा दी, जिससे नाटकों के प्रदर्शन के दौरान स्टेज पूरा गोल घूमता था। 1963 में पं. नेहरू गुजरे तो उनकी याद में इस पूरे आडिटोरियम कैंपस को नेहरू सांस्कृतिक सदन का नाम दे दिया गया।
उस्ताद विलायत खां, पं. भीमसेन जोशी, एमएस सुब्बलक्ष्मी, हेमा मालिनी, केजे येसुदास और उदय शंकर से लेकर शायद ही कोई ऐसी विभूति होगी, जिन्होंने यहां अपनी प्रस्तुति न दी हो। 1989 तक तो कुछ-कुछ ठीक चला लेकिन इस साल जैसे ही चित्रमंदिर टॉकीज को बंद कर कला मंदिर  सभागार का रुप दिया गया, मैनेजमेंट का ध्यान कला मंदिर पर ज्यादा और नेहरू हाउस  पर कम होता गया। यहां की लाइब्रेरी में देश की तमाम भाषाओं का साहित्य हुआ करता था। जब से लाइब्रेरी सिविक सेंटर शिफ्ट हुई है, यहां का सारा भाषाई साहित्य कबाड़ में जा चुका है। नेहरू हाउस की लाइब्रेरी की जगह अब जिम चलता है। शेष कमरों में कुछ कला-संस्कृति से जुड़े संगठनों को दिए गए हैं। इनसे भी अब हर महीने शुल्क वसूलने की तैयारी है। पूरा नेहरू हाउस जर्जर हो गया है। स्टेज के नीचे लगी रशियन मोटर को सुधारने वाले कई इंजीनियर आज भी भिलाई में मौजूद हैं, लेकिन जिम्मेदार लोग इस मोटर पर मलबा डाल इसे पूरी तरह ढकने की तैयारी में है। बाकी तस्वीरें यहां की बदहाली को उजागर करती है।
मुझे पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की सोच के मुताबिक बनाया तो गया लेकिन बाद का मैनेजमेंट उसे कायम नहीं रख सका। हर साल प्लानिंग बनती है लेकिन इस पर अमल बहुत कम हो पाता है। इस वित्तीय वर्ष में भी मैनेजमेंट की बहुत कुछ करने की योजना है लेकिन छह महीने बीतने के बावजूद अब तक सिर्फ बजट का ही रोना है।
शुरूआती दौर में इस्पात नगरी के एकमात्र ऑडिटोरियम के तौर पर मुझे खूब संवारा गया। मेरा औपचारिक उद्घाटन तो कभी नहीं हुआ लेकिन मुझे पं. नेहरू के गुजरने के बाद नेहरू सांस्कृतिक सदन का नाम जरुर दे दिया गया। उस वक्त के जनरल मैनेजर सरदार इंद्रजीत सिंह  ने 17 कमरों में 17 राज्यों की संस्कृति को दर्शाने अच्छी पहल की थी। तब भिलाई के सांस्कृतिक संगठनों को कमरे नि:शुल्क उपलब्ध कराए गए थे, जिससे कि देश की राष्ट्रीय एकता को जीवंत रूप में दर्शाया जा सके। मैनेजमेंट ने अपनी तरफ से काफी सहयोग भी किया। इंद्रजीत सिंह ने सीधे दिल्ली बात कर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी को उद्घाटन के लिए भिलाई आमंत्रित कर लिया था। लेकिन तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और उस वक्त कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले द्वारका प्रसाद मिश्र को नागवार गुजरा। तब उड़ीसा दौरे पर गई इंदिरा को संबलपुर से सड़क मार्ग से भिलाई पहुंचना था। लेकिन इसके पहले श्री मिश्र संबलपुर पहुंच गए और इंदिरा को वहां से भोपाल चलने राजी कर लिया। इस तरह डीपी मिश्र के अहम के चलते नेहरू हाउस का औपचारिक उद्घाटन नहीं हो पाया।

मौजूदा मैनेजमेंट ने नेहरू हाउस को संवारने कई योजनाएं बनाई है। इनमेें मुख्य सभागार का वृहद स्तर पर सौंदर्यीकरण होना है। इससे लगे तीन बड़े कमरों में , जिसमें कुछ माह पहले तक इप्टा व नेहरू हाउस का दफ्तर था, अब नए सिरे से अत्याधुनिक ढंग से सौंदर्यीकरण कराया जाएगा। इसे वीवीआईपी ट्रीटमेंट के लिए सुरक्षित रखने की तैयारी है। वहीं दो मंजिला भवन वाले हिस्से का संधारण कर उसे आवासीय रूप दिया जाएगा। जिससे कि भिलाई में अपना प्रदर्शन करने आने वाले नाट्य व कला-संस्कृति के दल के रुकने का इंतजाम हो सके। उपर के कमरों में कला-संस्कृति से जुड़े दफ्तर खोलने की भी तैयारी है। शेष कमरों में जहां कबाड़ रखा है, उसे नए सिरे से आवंटित किया जाएगा। अब कमरों का किराया भी सुविधा के हिसाब से वसूलने की तैयारी है। मैनेजमेंट के पास लंबी-चौड़ी योजनाएं हैं लेकिन सारी फाइलें धूल खा रही है। अफसरों की दलील है कि बजट नहीं है। दूसरी तरफ कला मंदिर को पूरा एयर कंडीशंड करने  अमल शुरू हो चुका है।

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