Saturday, September 8, 2012

'गोदान' शुरू हुई थी बलराज साहनी-निरुपा राॅय के साथ लेकिन 

बनी राजकुमार-कामिनी को लेकर, भावुक हो गई थीं शिवरानी


'गोदान 'का मुहूर्त, सबसे ऊपर नजर आ रहे हैं बलराज साहनी और ठीक बीच में बेबी नाज

मुंशी प्रेमचंद की कालजयी रचना 'गोदान' पर बनी फिल्म शुरू हुई थी बलराज साहनी-निरुपा राय और बेबी नाज को लेकर लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मुहूर्त के बाद इन तीनों कलाकारों की जगह निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली को इसमें राजकुमार-कामिनी कौशल और शुभा खोटे को लेना पड़ा। फिल्म पूरी हुई और आज भी इसे एक क्लासिक के तौर पर माना जाता है। 

फूलचंद मिश्रा
फिल्म 'गोदान' से जुड़े ऐसे कई तथ्य दस्तावेज व फोटोग्राफ सहित मौजूद है इस्पात नगरी भिलाई के सेक्टर-9 में निवासरत प्रख्यात फोटोग्राफर व रिटायर बैंक अफसर फूलचंद मिश्रा के पास। 'गोदान' फिल्म के निर्माता-निर्देशक 
त्रिलोक जेटली दरअसल मिश्रा के बहनोई थे। इस लिहाज से इस फिल्म से मिश्रा पारिवारिक कारणों से जुड़े और उन्होंने प्रोडक्शन विभाग का जिम्मा संभाला था।
मिश्रा बताते हैं कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर बनीं फिल्म देखकर उनकी पत्नी शिवरानी प्रेमचंद बेहद भावुक हो गई थी। बाद में उन्होंने फिल्म के निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली को पत्र लिखकर इसे मुंशीजी की भावनाओं की सही अभिव्यक्ति बताया था। 

इस फिल्म की परिकल्पना, निर्माण से लेकर रिलीज तक सारी जवाबदारी निभाने वाले मिश्र ने मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर 'गोदान' से जुड़ी ऐसी बहुत सी यादें बांटीं। रायपुर में बैंक की अफसरी से सेवानिवृत्ति के बाद मिश्र अब शौकिया फोटोग्राफी करते हैं। 

मुंशी प्रेमचंद की कृति पर राजकुमार और कामिनी कौशल को लेकर बनीं फिल्म 'गोदान' अब अपने प्रदर्शन के 50 साल पूरे करने जा रही है। मिश्र ने बताया कि उनके बहनोई त्रिलोक जेटली और बहन कृष्णा जेटली की कोशिशों के चलते 'गोदान' को सेल्युलाइड पर साकार किया जा सका था। 
इसके लिए मुंशी प्रेमचंद के बेटे श्रीपत राय से अधिकार लिए गए थे। सारी तैयारियों के बाद 17 अप्रैल 1959 को मुंबई में मुहूर्त शॉट दिया 'गोदान' के रूसी संस्करण की प्रस्तावना लिखने वाले प्रख्यात रूसी साहित्यकार आईगर कंपंतसेव ने।
 इसके फोटोग्राफ्स दिखाते हुए मिश्र बताते हैं कि तब तक फिल्म के मुख्य पात्र होरी का किरदार बलराज साहनी, उनकी पत्नी की भूमिका निरूपा रॉय को दी गई थी और बेटी की बेबी नाज को। लेकिन बाद में बहुत से फेरबदल हुए।
 बलराज साहनी की जगह राजकुमार, निरूपा रॉय की जगह कामिनी कौशल और बेबी नाज की जगह शुभा खोटे आ गए  इसके बाद भी विभिन्न दिक्कतों की वजह से फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं हो पा रही थी। इसी दौरान भारत सरकार ने फिल्म फाइनेंस कार्पोरेशन (अब एनएफडीसी) की स्थापना की थी। तब 'गोदान' ऐसी पहली फिल्म थी जिसे इस संस्था ने फाइनेंस किया।  

रिकार्डिंग के दौरान जेटली, आशा, रविशंकर और पीसी मिश्र
फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। इसे कई अवार्ड मिले और कार्लो वेरी फिल्म फेस्टिवल के साथ-साथ अमेरिका में भी इसकी स्क्रीनिंग हुई।
बाद में जेटली ने फिल्म के मूल प्रिंट साउंड ट्रैक सहित पुणे के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार को इस आधार पर सौंप दिए कि यह फिल्म भी मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की तरह राष्ट्र की धरोहर है।
रफी की नजाकत और रविशंकर की महानता गोदान के गीतों की रिकार्डिंग से जुड़ी यादें शेयर करते हुए मिश्र ने बताया कि मोहम्मद रफी ने पंजाबी पृष्ठभूमि के बावजूद जिस कुशलता से 'पिपरा के पतवा और 'होरी खेलत नंदलाल' गीतों को गाया, उसे सुन कर हम सब वाह-वाह कर रहे थे लेकिन रिकार्डिंग के बाद बाहर निकले रफी साहब ने अदब से सिर्फ शुक्रिया और मालिक का करम कह कर सलाम अर्ज कर दिया।


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