Wednesday, August 19, 2020

 'मास्टर जी' सरोज खान- एक पवन दीवानी


फिल्मी दुनिया मेें 'मास्टर जी' कहलाने वाली सरोज खान अब हमारे बीच नहीं है। 3 जुलाई 2020 को 72 साल की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।

सरोज खान की पूरी जिंदगी बेहद उतार-चढ़ाव वाली रही। हालांकि 'नगीना', 'चांदनी' और 'तेजाब' से उनका जो सितारा चमका तो फिर कोरियाग्राफी की दुनिया में उन्होंने अपनी बादशाहत बीते दशक तक कायम रखी। उनकी जिंदगी के कुछ उतार-चढ़ाव पर एक नजर-

वैजयंती माला ने दिया था सबसे बड़ा इनाम

1962 आते-आते 'मास्टरजी' सरोज खान अपने गुरु बी. सोहनलाल की असिस्टेंट हो चुकी थी। डॉ. विद्या के गीत पवन दीवानी न मानें की शूटिंग चल रही थी और वैजयंती माला को सोहनलाल ने कहा-सरोज जैसा करती है तुम्हे वैसा करना है। 13 साल की बच्ची को देखकर वैजयंती माला भी हैरान थी। 

खैर, इस गाने पर सरोज ने अपने मास्टरजी की बताई हुई तमाम हरकतें हूबहू करने लगीं और जब 'उलझी लट हमारी..' वाला अंतरा आया तो सरोज का नृत्य कौशल देख वैजयंती माला दंग रह गई।

पूरा गाना शूट होने के बाद वैजयंती ने आवाज दी-ए सरोज..उधर से सरोज दौड़ी चली आई और वैजयंती ने खुश होकर 50 रूपए दिए। सरोज इस 50 रूपए को हमेशा अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सम्मान मानती रही।

'ताजमहल' की कव्वाली में देखिए सरोज को

याद कीजिए 'ताजमहल' फिल्म की कव्वाली चांदी का बदन सोने की नजर अगर भूल गए हों तो इसे यू-ट्यूब पर दोबारा ध्यान से देखिए। मीनू मुमताज और खुर्शीद भंवरा के बीच शानदार मुकाबला चल रहा है और मीनू मुमताज के ठीक पीछे बाईं ओर सरोज है।

प्रख्यात मेकअप आर्टिस्ट पंढरी जुकर का यू-ट्यूब पर एक इंटरव्यू मेें बताते हैं-''तब मैंने सरोज की हरकतों को देखकर डायरेक्टर सादिक से कहा कि मीनू के पीछे जो लड़की है उसे देखिए। उसे तो आगे होना चाहिए।

इस पर सादिक बोले-बात तो सही कह रहे हो तुम लेकिन उस लड़की को आगे लाएंगे तो अपनी मेन आर्टिस्ट मीनू मुमताज दब जाएगी। इसलिए उसे वहीं रहने दो।''

खैर, सरोज तब फ्रंट पर नहीं थी लेकिन आज उस कव्वाली को देखिए तो सरोज की अदाकारी से आपका ध्यान नहीं हटेगा।

परछाई को देखकर नाचने वाले निर्मला ऐसे बन गई सरोज

बंटवारे के बाद पाकिस्तान वाले हिस्से से रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई आए शरणार्थी किशनचन्द सिद्धू सिंह नागपाल और उनकी बीवी नोनी सिंह के घर 22 नवंबर 1948 को बेटी ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया निर्मला नागपाल।

उस खानदान में किसी का भी नृत्य या कला से कोई लेना देना नहीं था लेकिन 3 साल की उम्र में जब निर्मला अपनी परछाई को देखकर नाचने लगी तो मां पास के एक डाक्टर के पास ले गई कि शायद बच्ची दिमागी तौर पर कुंद तो नहीं है।

लेकिन डाक्टर ने समझाया कि बच्ची नार्मल है और अगर नाचना चाहती है तो फिल्मों में क्यों नहीं भेज देते। वैसे भी तुम लोगों को पैसे की जरूरत तो है ही। इस तरह 3 साल की निर्मला जब फिल्मों मेें आई तो माता-पिता नहीं चाहते थे कि फिल्म लाइन की वजह से उनके परिवार पर सवाल उठे, इसलिए निर्मला का नाम बदल कर बेबी सरोज करवा दिया।

'आगोश' और 'हावड़ा ब्रिज' वाली सरोज

चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर सरोज को छोटे-छोटे रोल मिलने लगे। शुरूआती छोटे-छोटे काम के बाद उन्हें पूरा एक गाना मिला फिल्म आगोश (1953) के गीत बांसुरिया काहे बजाई बिन सुने रहा न जाए में, जिसमें सरोज ने राधा और बेबी नाज ने कृष्ण की भूमिका की थी। इस गीत में आप 5 साल की सरोज का नृत्य कौशल देख सकते हैं।

फिर उम्र कुछ और आगे बढ़ तो सरोज को एक्स्ट्रा आर्टिस्ट के तौर पर काम मिलने लगा। फिल्म हावड़ा ब्रिज के गीत आईए मेहरबां में मधुबाला के सामने डांस कर रहे लड़के-लड़कियों की टोली में सबसे आगे लड़की हमीदा के साथ लड़का बनी सरोज साफ नजर आती हैं। 

..और सोहनलाल की असिस्टेंट बन गई सरोज

बैकग्राउंड डांसर सरोज के लिए जल्द ही ऐसा वक्त भी आया जब डांस डायरेक्टर बी. सोहनलाल उनके ग्रुप को रिहर्सल करवा रहे थे और सरोज अपना हिस्सा छोड़ हेलन के हिस्से का अभ्यास कर रही थी।

 सोहनलाल नाराज हुए लेकिन पूछ बैठे कि क्या हेलन को जो करना है वो पूरा करके दिखा सकती हो। सरोज को मौके की तलाश थी, लिहाजा उन्होंने तुरंत ही हेलन वाला पूरा डांस कर सबको हैरान कर दिया। इसके बाद सोहनलाल ने सरोज को तुरंत अपना असिस्टेंट बना लिया।

असिस्टेंड के तौर पर सरोज तब तमाम दिग्गज नायिकाओं को नचा रही थीं। इसी दौरान एक मौका ऐसा भी आया जब सोहनलाल को 'संगम' के 'प्रेम पत्र' वाले गीत के लिए टीम के साथ विदेश जाना पड़ा और इधर 'दिल ही तो है' फिल्म में नूतन पर 'निगाहें मिलाने को जी चाहता है' कव्वाली की शूटिंग सामने थी।

तब उन्हें कव्वाली पर काम करने कहा गया तो उन्होंने असमर्थता जताई लेकिन निर्देशक प्यारेलाल संतोषी ने उन्हें इस कव्वाली की एक-एक लाइन पर अदाकारी का गुरुमंत्र दिया और इसके बाद सरोज तैयार हुई फिर पहली बार पूरी की पूरी इस कव्वाली को सरोज ने संवार दिया। इससे उनके काम को तारीफ भी खूब मिली।

ऐसे हुई पहली शादी, फिर आए सरदार खान

इसके कुछ ही महीने बाद 41 साल के सोहनलाल ने 13 साल की सरोज के गले में काला धागा बांध दिया और सरोज ने भी मान लिया कि उसकी शादी हो गई।

उस वक्त वे नहीं जानती थीं कि सोहनलाल पहले से शादीशुदा और चार बच्चों के पिता हैं। सरोज को यह सब तब पता लगा जब 1963 में वह एक बेटे को जन्म दे चुकी थी।1965 में उनके दूसरे बच्चे का जन्म हुआ, जो 8 महीनों बाद ही गुजर गया। जब सोहनलाल ने सरोज के दोनों बच्चों को अपना नाम देने से इनकार किया, तो इनकी राहें अलग हो गई।

कुछ सालों बाद सोहनलाल को हार्ट अटैक आया, तब सरोज उनके करीब आईं। इस दौरान सरोज ने बेटी कुकु को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद सोहनलाल हमेशा के लिए सरोज की जिंदगी से अलग हो गए और मद्रास चले गए। इसके बाद सरोज ने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले की।

सोहनलाल से अलग होने के बाद सरोज ने 1975 में कारोबारी सरदार रोशन खान से दूसरी शादी की। सरदार रोशन खान ने सरोज के दोनों बच्चों को अपना नाम दिया।

 इसके बाद सरोज ने इस्लाम धर्म अपना लिया और सरोज खान हो गईं। सरदार रोशन और सरोज की एक बेटी सकीना खान है, जो फिलहाल दुबई में डांस इंस्टीट्यूट चलाती हैं।

वहीं सरोज के मास्टर सोहनलाल से दो बच्चों को भी सरदार खान ने अपना नाम दिया। इनमें राजू (हामिद) खान आज जाने-माने कोरियोग्राफर हैं। वहीं बेटी कुकू खान मेकअप आर्टिस्ट थीं, जिनका 2011 में देहांत हो गया।

पहला ब्रेक साधना ने दिया, राह बनाई सुभाष घई ने

सरोज की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते रहे। इस बीच उन्हें पहला ब्रेक दिया साधना ने 1974 में अपनी फिल्म 'गीता मेरा नाम' से। इस फिल्म से वह स्वतंत्र कोरियोग्राफर बन गई। 

इसके बाद उन्होंने राजश्री फिल्म्स के बैनर तले राज बब्बर की पहली फिल्म जज्बात की। हालांकि मंजिल अभी भी दूर थी। उनकी कीमत पहचानी निर्माता-निर्देशक सुभाष घई ने, जिन्होंने 1982 में अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'हीरो' में स्वतंत्र रूप से नृत्य निर्देशन का मौका दिया।

इसके बाद 1986 में आई फिल्म 'नगीना' सरोज के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म में सरोज ने श्रीदेवी को 'मैं तेरी दुश्मन गाने' पर नृत्य कराया, जो काफी हिट साबित हुआ और इसी गाने की वजह से सरोज को फेम मिला। 

यही वह दौर था, जब सरोज खान के नाम का सिक्का चल निकला। चांदनी, तेजाब, मिस्टर इंडिया, लम्हे चालबाज, खलनायक, हम दिल दे चुके सनम, देवदास तक सरोज खान पूरी तरह स्थापित हो चुकी थी।

कई सम्मान हासिल किए, दक्षिण ने भी पूछा उन्हें

2002 में आई 'देवदास', 2006 की तमिल फिल्म 'श्रृंगारम' और 2007 में रिलीज 'जब वी मेट' में बेहतरीन कोरियोग्राफी के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला। श्रृंगारम की सबसे खास बात यह है कि इसमें एक गीत की महज एक लाइन में सरोज खान ने नायिका से 16 भाव दिखाए हैं। इससे दक्षिण के कई दिग्गजों ने उनकी कला को सराहा।

इस दौरान उन्हें चेन्नई की प्रतिष्ठित श्रीकृष्णा गान सभा बुलाकर सम्मानित किया। फिल्मी दुनिया से सरोज खान पहली ऐसी हस्ती थी, जिन्हें शास्त्रीयता में रची-बसी एक प्राचीन संस्था ने बुलाकर सम्मानित किया था। इसी तरह तेजाब के एक दो तीन के साथ रोचक तथ्य यह जुड़ा है कि इस गीत के साथ फिल्मफेयर ने पहली बार बेस्ट कोरियोग्राफर की केटेगरी रखी और पहला अवार्ड सरोज खान को दिया। इसके बाद उन्होंने 8 फिल्मफेयर अवॉड्र्स जीते। वहीं 2001 में आई 'लगान' के लिए उन्हें अमेरिकन कोरियोग्राफी अवॉर्ड मिला था।

कम होती गई सक्रियता, मकाम बनाया अपना

भले ही सरोज 2000 से ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ कर चुकी हैं। लेकिन दशक भर से उनकी सक्रियता में कमी आई थी। आखिरी बार पिछले साल माधुरी दीक्षित की फिल्म कलंक में उन्होंने तबाह हो गए गीत का नृत्य संयोजन किया। 

इससे पहले 2014 में 'गुलाब गैंग' और 2015 की 'तनु वेड्स मनु रिटन्र्स' जैसी चुनिंदा फिल्मों में उन्हें अपना काम दिखाने का मौका मिला। वहीं सरोज खान कई रियलिटी शो में बतौर जज जुड़ी थीं। इसमें 'नच बलिए', 'उस्तादों के उस्ताद', 'नचले वे विद सरोज खान', 'बूगी-वूगी', 'झलक दिखला जा' जैसे शो शामिल हैं।

आज सरोज खान हमारे बीच नहीं है लेकिन 90 के दौर से बीते दशक तक उन्होंने अपना जो मकाम बनाया वह हमेशा खाली रहेगा। अपनी मौत से कुछ दिन पहले उन्होंने एक वीडियो रिकार्ड करवाया था। उसे लिंक पर देख-सुन सकते हैं

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