Monday, June 6, 2011

अन्न साक्षात ईश्वर

शादी हो या कोई पार्टी, हम हिंदुस्तानियों के लिए पूरी थाली भर लेना और थोड़ा खा कर बाकी फेंक देना अब आम बात हो गई है। दावत कैसी भी हो, हम खाना तो खाते ही हैं साथ ही मेजबान द्वारा रखवाई गई सारी डिश को बहुत ज्यादा-ज्यादा लेकर उसमें से थोड़ा सा चखना भी चाहते हैं और आखिर में ठंडा-गरम और पान के साथ विदाई हो तो क्या बात है।

खाने की ऐसी बेकद्री, वह भी ऐसे देश में जहां आज भी कुपोषण और अनाज आखिरी तबके तक नहीं पहुंचने की समस्या बरकरार है। इस बेकद्री के माहौल में हम अपने धर्मग्रंथों को भी भूल गए हैं, जिनमें भोजन को लेकर न सिर्फ आचार संहिता है, बल्कि भोजन के महत्व को भी साफ तौर पर बताया गया है। लोग नहीं चेते, इसलिए केंद्र सरकार पड़ोसी मुल्क की तर्ज पर ‘वन डिश’ कानून बनाने पर विचार कर रही है। जिसमें सामूहिक दावतों में सिर्फ एक तरह की डिश परोसना अनिवार्य किया जाएगा।

इस मौसम मेें अगले दो महीने शादियों की भरमार है। कुछ मुहूर्त तो ऐसे हैं जो दुर्लभ हैं, लिहाजा इस मुहूर्त में हर कोई अपने बेटे-बेटियों की शादियां करना चाह रहा है। स्वाभाविक है कि एक ही दिन में एक ही परिवार को औसतन 5-6 से ज्यादा आमंत्रण मिले। हमारी कोशिश होगी कि हम हर जगह अपनी उपस्थिति दें लेकिन हर जगह भोजन भी करें ऐसा संभव नहीं। फिर भी मेजबान तो अपने मेहमानों के लिहाज से आज के दौर में जरूरत से ज्यादा ही भोजन पकवाएगा। ऐसे में शादियों के इस मौसम में दूसरे दिन सुबह का नजारा जरूर देखिए जहां औसतन 100 से 150 लोगों का खाना बरबाद होकर खुले में पड़ा रहता है। डिस्पोजल ग्लास और कटोरियां भी खुले में पड़ी आपको मिल जाएंगी जो घातक प्लास्टिक की बनीं है। अब किराया भंडार वालों ने भी स्टेनलेस स्टील के ग्लास-कटोरियों को शादी-पार्टी में देना बंद कर दिया है। इन सबका दबाव रहता है कि डिस्पोजल खरीदो और इस्तेमाल के बाद फेंक दो। इस पर अभी तक किसी शासन-प्रशासन ने नियम बनाने और कार्रवाई करने की तरफ ध्यान नहीं दिया है। जरा गौर कीजिए, हम जितने डिस्पोजल ग्लास और कटोरी को इस्तेमाल कर फेंक देते हैं, वह इस धरती पर बोझ नहीं तो और क्या है। आखिर हम कब चेतेंगे...?


वेदों में अन्न को साक्षात ईश्वर मानते हुए ‘अन्नम वै ब्रह्म’ लिखा गया है। वैदिक संस्कृति में भोजन मंत्र का प्रावधान है। जिसका सामूहिक रूप से पाठ कर भोजन ग्रहण किया जाता है। हमारे यहां भोजन के दौरान ‘सहनौ भुनक्तु’ कहा जाता है, इसके पीछे भावना यह है कि मेरे साथ और मेरे बाद वाला भूखा न रहे। वेदों मे ‘अन्नम बहु कुर्वीत’ कहा गया है, यानि अन्न अधिक से अधिक उपजाइए। कृषि और ऋषि प्रधान देश में अगर हम अन्न का महत्व नहीं समझेंगे तो भविष्य में प्रकृति खुद हमें समझा देगी।
आचार्य महेशचंद्र शर्मा, वैदिक संस्कृति के जानकार

कुरआन-हदीस ने चेताया है खाने की बरबादी से
कुरआन शरीफ के 8 वें पारे की रूकू-4 में कहा गया है-‘खाओ उसी में से जो अल्लाह ने तुम्हे रोजी दी है और शैतान के कदमों पर न चलो’। हदीस-22 इब्ने माजह में हजरत आयशा (रदि.) से रिवायत है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद घर के अंदर तशरीफ लाए तो रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा पड़ा हुआ देखकर उसे उठाया और पोछ कर खा लिया। उन्होंने अपनी बीवी आयशा से फरमाया कि ये चीज (रोटी)जब किसी कौम से रूठी है तो लौट कर नहीं आई है। इस्लाम में हर हाल में रोटी के एहतराम का हुक्म है। हजरत मोहम्मद ने रोटी खाने के आदाब (तरीके) भी बताए हैं। इसे न मानते हुए अगर हम खाने की बेकद्री करते हैं तो यह हमारी बदकिस्मती होगी।
हाफिज मक्सूद खान, मदरसा रूआबांधा

बाइबिल ने रोका है पेटूपन से
बाइबिल में अन्न के सम्मान का कई जगह उल्लेख है। एक आयत में कहा गया है कि हम खाने का लालच (पेटूपन) बिल्कुल न करें। हमारी जितनी आवश्यकता है, हम उतना ही खाएं। इसी तरह प्रेरितों के काम अध्याय (6-2)में कहा गया है कि हम परमेश्वर का वचन छोडक़र खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें, यह ठीक नहीं। इसाई समुदाय मे आय का दसवां भाग परमेश्वर के काम (जनकल्याण) में खर्च करने का विधान है। जिससे दीन-दुखियों की सेवा हो। हम शादी-पार्टियों में अन्न बरबाद करके खुद के साथ-साथ प्रकृति का भी नुकसान कर रहे हैं। इस पर गंभीरता से सोचना होगा।
रेव्ह. राकेश प्रकाश पास्टर मेनोनाइट चर्च, हास्पिटल सेक्टर

गुरुओं ने बताया है सत्कार के साथ खाना
सिक्खों में गुरु अंगद देवजी से लंगर की प्रथा नियमित हुई। जिसमें स्त्री-पुरुष को समान अधिकार है। सिक्खों में पहले पंगत फिर संगत का प्रावधान है। जिसमें पंगत में एक साथ बैठकर (प्रसाद मानते हुए)भोजन करने और झूठन नहीं छोडऩे का निर्देश है। आज के दौर में भोजन बरबाद करने की कुवृत्ति को रोकने जनजागरण जरूरी है।
दलजीत सिंग, गुरू गोविंद सिंग स्टडी सर्किल भिलाई

अन्न का एक दाना तैयार होता है 4 माह में
एक अन्न का दाना तैयार होने मे चार महिने का समय, श्रम और पानी लगता है। इतनी मेहनत से तैयार दानों को हम बेदर्दी से फेंक देते हैं। इस दिशा में सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। हम बफे सिस्टम का दुरूपयोग कर रहे हैं। खाना जरूरत से ज्यादा लेने के बाद उसे फेंक कर हम गरीबों के मुंह का निवाला भी छीन रहे हैं। आज कृषि उत्पादन और जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ा रहा है। अगर हम ऐसे ही अन्न फेंकते रहे तो जल संकट की तरह जल्द ही अन्न संकट का सामना करना पड़ेगा।
डॉ. आरती दीवान, गृहविज्ञान विभागाध्यक्ष, शासकीय इंदिरा गांधी कॉलेज वैशाली नगर

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