Saturday, October 20, 2012

भिलाई का वैज्ञानिक जुटा है मानव जाति की जड़ें तलाशनें

डार्विन का वंशज भी जुड़ा है इस महाअभियान से 

अजय राय्युरू
 इस्पात नगरी भिलाई का युवा वैज्ञानिक अजय राय्युरू अंतर्राष्टरीय स्तर की एक महत्वपूर्ण परियोजना का नेतृत्व कर रहा है। इस परियोजना के तहत यह पता लगाया जा रहा है कि  मानव जाति के  कहां से कहां तक का सफर करते हुए पूरी दुनिया में फैलते गए। अपनी जड़ों को तलाशने की इस मुहिम से हाल ही में क्रिस डार्विन भी जुड़ चुके हैं। क्रिस दुनिया को अनुवांशिकी का सिद्धांत देने वाले वैज्ञानिक चाल्र्स डार्विन के वंशज हैं। अजय राय्युरू इस महत्वकांक्षी परियोजना को लेकर बेहद उत्साहित हैं।

चर्चा मेअजय राय्युरू ने बताया कि नेशनल ज्योग्राफिक चैनल और आईबीएम संयुक्त रूप यह परियोजना 'जिनोग्राफिक प्रोजेक्ट' के नाम से पिछले 4 साल से चला रहे हैं। इस मुहिम में अब  तक 4 लाख से भी ज्यादा नमूने ले कर उनका विश्लेषण किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि अजय इस परियोजना में आईबीएम की ओर से प्रभारी हैं। जनभागीदारी से चल रही विश्व की सबसे अनूठी और बड़ी परियोजनाओं में से एक 'जिनोग्राफिक प्रोजेक्ट' में किसी भी मनुष्य के गाल के अंदरूनी हिस्से को खुरच कर लार के साथ उसके नमूने लिए जाते हैं। जिनका प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है। अजय भिलाई के हैं और सेक्टर-10 सीनियर सेकंडरी स्कूल के पूर्व छात्र रहे हैं इसलिए उन्होंने इस प्रोजेक्ट की शुरूआत में ही अपने सेक्टर-10 स्कूल के एक छात्र के नमूने लेकर भिलाई की भागीदारी भी इस प्रोजेक्ट में दर्ज कर ली थी। अजय ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की गतिविधियों से प्रभावित होकर महान वैज्ञानिक चाल्र्स डार्विन के प्रपौत्र के प्रपौत्र (ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड सन) क्रिस डार्विन ने भी अपनी भागीदारी दी है।

चाल्र्स डार्विन 
अजय ने बताया कि चाल्र्स डार्विन ने अपनी पुस्तक 'ओरिजिन आफ स्पीशिस' में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि सभी मनुष्य एक ही पूर्वज से आए हैं। चाल्र्स डार्विन के जन्म के दो सौ साल बाद डीएनए टेक्नालॉजी द्वारा इसी अवधारणा की पुष्टिï अब 'जिनोग्राफिक प्रोजेक्ट' में  और बेहतर ढंग से हो है। ब्ल्यू माउंटेन सिडनी में रहने वाले डार्विन के वंशज क्रिस डार्विन ने जिनोग्राफिक पब्लिक पार्टिसिपेशन प्रोजेक्ट के तहत अपने नमूने दिए थे। जिसमे उनके वाई क्रोमोसोम का विश्लेषण किया गया। इससे यह पता चला कि चाल्र्स डार्विन के पूर्वज 45 हजार साल पहले अफ्रीका से निकले थे।

क्रिस डार्विन 
अजय ने बताया कि क्रिस इस परिणाम से बेहद खुश हैं। इसी साल फरवरी में क्रिस से मुलाकात हुई थी।  अजय ने बताया कि क्रिस डार्विन के दिए नमूने के विश्लेषण से यह  निष्कर्ष भी निकला है कि उनके पूर्वजों में पितृत्व की श्रृंखला हैपलो ग्रुप आर वन बी से और उनकी मां की ओर से वह हैपलो ग्रुप 'के' से हैं। उन्होंने बताया कि यूरोप में ज्यादातर हैपलो ग्रुप आर वन बी से हैं। इस समूह का एक भाग अफ्रीका से 40 हजार साल पहले ईरान और दक्षिण मध्य एशिया मे पहुंचा था। उसके बाद 35 हजार साल पहले यूरोप में यह ग्रुप पहुंचा। फिर धीरे-धीरे यह यूरोप मे बसते गए हैं। अजय के मुताबिक यह प्रोजेक्ट बहुत महत्वपूर्ण है इससे सही अनुमान लगाया जा सकता है कि मानव जाति ने एक जगह से दूसरी जगह कैसे प्रवास तय किया। 100 डालर की भागीदारी फीस का भुगतान कर इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट से कोई भी जुड़ सकता है। अजय ने बताया कि भारत में इस प्रोजेक्ट के तहत नमूने लेने का काम चल रहा है और मदुरई के प्रोफेसर पिच्चप्पन इसे देख रहे हैं। अभी भारत मे नमूनों का विश्लेषण होना है। इसके उपरांत इसे शोधपत्र में प्रकाशित कराया जाएगा।
भिलाई,15 जून 2010 (C)

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